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Tuesday, May 17, 2011

भारतीय राजनीति में क्या मायने हैं विधानसभा चुनावों के परिणामों के (माइक्रोपोस्ट) Indian Politics And Assembly Election 2011 Results

मैं कोई चुनावी विशेषज्ञ नहीं हूँ इसलिये छोटी सी पोस्ट ही लिख पाया पर हाल-ए-राजनीति इससे बयां हो ही जायेगी।

इस बार के विधानसभा चुनावों के परिणाम दो सबसे बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के लिये अच्छे नहीं रहे पर बाजी मरी है छोटे राजनैतिक दलों ने।

यदि आप कांग्रेस की केरल और बंगाल में हूई जीतों का आकलन करें तो पायेंगे कि केरल में कांग्रेस  ने 82 में से महज 38 सीटें जीतीं। वो तो भला हो मुस्लिम लीग का जिसे 24 में से 20 सीट प्राप्त हुईं। वैसे तो मुस्लिम लीग भी साम्प्रदायिक पार्टी है पर फिर भी कांग्रेस को एक ही पार्टी साम्प्रदायिक नजर आती है। केरल में वैसे भी हर बार सत्ता पलटती है फिर भी यूपीए बड़ी कशमकश के बाद महज 2 सीटें ही आम बहुमत से अधिक ले पाई। बंगाल में भी तॄणमूल कांग्रेस के तिनके के सहारे ही सत्ता तक कांग्रेस पहुँच पाई। तमिलनाडु में दहाई के आँकड़े तक भी न पहुँच पाने के बाद पुड्डुचेरी में भी बुरी तरह हारी। 

केवल एक असम ऐसा प्रदेश रहा जहाँ गोगोई के कार्यकाल को सराहा गया जिसके बलबूते एक अपनी चिपक्षी पार्टियों को एक अच्छे अंतर से हराने में कामयाब हुई। यदि प्रमुख विपक्षी दलों असम गण परिषद और भाजपा एकजुट होतीं तो कुछ टक्कर दे सकतीं थीं।

अब यदि बात करें भाजपा की तो केरल बंगाल और तमिलनाडु में वो पहले ही शून्य पर थीं। बंगाल में एक आध सीट भी उसके लिये काफ़ी है। बाकि राज्यों में भी वोट प्रतिशत बढ़ा है जो इसके लिये अच्छा माना जा सकता है। पर असम में अगप से तालमेल न बैठाने का खामियाज़ा भाजपा को भुगतना पड़ा जो पहले से भी कम सीटें हासिल कर पाई।

अब इस देश में पाँच ताकतवर महिलायें हो गईं हैं। एक आँटी हैं, एक अम्मा, एक बहन जी, एक दीदी और एक इन सब की मैडम!! देखना है कि नारी शक्ति इस देश में क्या गुल खिलाती है। आँटी के काम काज को अब सराहा नहीं जाता। न हीं अब कुछ खास रहा है। बहन जी और अम्मा करप्शन के सागर में पहले  ही डुबकी लगा चुकी हैं। पाठक भूल गये हों तो याद दिला दिया जाये कि उनके पास से साड़ियाँ और सैंडल बरामद हो चुके हैं। दीदी बंगाल की कंगाली को दूर करने में कामयाब होंगी या नहीं ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा पर दीदी और अम्मा केंद्र की राजनीति पर असर जरूर डालेंगी क्योंकि इन दोनों पार्टियों से आने वाले राज्य सभा के सांसदों की संख्या भी 8-10 तक बढ़ सकती हैं।
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