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Monday, October 10, 2011

अलविदा "जग"जीत.... श्रद्धांजलि....Ghazal Maestro Jagjit Singh

पिछले पैंतालीस दिन.. पहले शम्मी कपूर, फिर नवाब पटौदी..फिर स्टीव जॉब्स और अब हमारी पीढ़ी को ग़ज़ल के मायने सिखाने वाले जगजीत सिंह... ये सभी हस्तियाँ अपने अपने क्षेत्र के "लीजैंड" थे। परन्तु न जाने क्यों जगजीत सिंह जी के जाने का दु:ख सबसे अधिक हुआ है...

हम जिसे गुनगुना नहीं सकते..
वक्त ने ऐसा गीत क्यों गाया....

शायद इसलिये क्योंकि हम जैसे नौसिखिये संगीत प्रेमियों को ग़ज़ल सुनवा देना ही बहुत है...  वो पीढ़ी जो ग़ज़ल से दूर भागती है उस पीढ़ी में यदि ग़ज़ल प्रेमी बचे हुए हैं तो वो शायद जगजीत सिंह जी की वजह से ही मुमकिन हुआ है...

न जाने ऐसे कितने ही लोग हैं जिनके लिये ग़ज़ल मतलब जगजीत... जगजीत सिंह मतलब ग़ज़ल.. ग़ज़ल कैसे लिखी जाती है... कितनी मात्रायें होती हैं.. सुर क्या होता है... कोई परवाह नहीं... जगजीत सिंह को सुन लेना ही बहुत है....
उनकी आवाज़ में जो ठहराव था.. जो कशिश थी... वो शायद किसी और में नहीं.... उनकी आवाज़ ऐसी थी जिसे सुनो तो उसी में डूब जाओ..

सोमवार सुबह जैसे ही उनकी मृत्य का समाचार सुना.. मानो पैरों तले जमीन खिसक गई... रोने का मन किया... ईश्वर भी न जाने कैसे कैसे खेल खेलता है... और हम.. जब ये मालूम है कि यदि जीवन है तो मृत्यु भी अटल है.. फिर भी क्यों...???

चाहें रोमांटिक मूड हो या ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा... उन्होंने सभी तरह की ग़ज़ल गाईं...

होठों से छू लो तुम..मेरा गीत अमर कर दो..., "तुमको देखा तो ये ख्याल आया", "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो","झुकी झुकी सी नज़र..", "होश वालों को खबर क्या.."
"सरकती जाये है रूख से नकाब..आहिस्ता..आहिस्ता.." आदि न जाने ऐसे गीत हैं जिन्हें सुनकर होठों पर स्वयं ही हल्की सी मुस्कान आ जाती है....

दूसरी ओर...
"ये दौलत भी ले लो ये शौहरत भी ले लो...भले छीन लो मुझसे..",
"कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे..." जैसे दर्द भरे नगमें भी उन्हीं की आवाज़ की गवाही देते हैं...
इनमें "ये दौलत भी ले लो..." ग़ज़ल तो ऐसी है कि इसके बिना जगजीत सिंह पर बात करना.. हमारा ग़ज़ल सुनना.. सब बेकार व बेमानी लगता है... "मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन.. वो काग़ज़ की कश्ती..वो बारिश का पानी..."

ग़ज़ल की समझ कभी नहीं रही... और यदि जगजीत सिंह जी फ़िल्मों के लिये गाने नहीं गाते तो शायद हमारी पीढ़ी निदा फ़ाज़ली, फ़िराक गोरखपुरी जैसे शायरों के शे’रों को सुनने व पढ़ने से महरूम रह जाती..... किसने शे’र लिखे पता नहीं.. पर गाये.. जगजीत सिंह साहब ने....

जगजीत सिंह जी... आप भारत के रत्न हैं... आपको मेरी छोटी सी श्रद्धांजलि...

इक आह भरी होगी.. हमने न सुनी होगी..
जाते जाते तुमने.. आवाज़ तो दी होगी...
इस दिल पे लगा के ठेस ... जाने वो कौन सा देश.. ..
कहाँ तुम चले गये...
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Thursday, March 24, 2011

फिर एक धमाका कर जाओ... 23 March 1931 Salute Shaheed Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru

एसेम्बली में वो एक धमाका..

ज़ालिम अंग्रेज़ों को चेता गया
सोई जनता को जगा गया...

तब देश हमारा परतंत्र था
अंग्रेज़ों के आतंक से त्रस्त था

पर तुमने वो धमाका किया क्यों?
अपने बचपन को
अपनी जवानी को
यूँ सस्ते में खो दिया क्यों?

क्या तुम्हें भविष्य का अंदाज़ा था
ये देश कितने दिन आज़ाद रहेगा
क्या तुमने मन में सोचा था (?)

तुम गलत थे भगत!!!
तुम गलत थे...

ये देश आज भी गुलाम है..
जहाँ सिर्फ़ पैसे को ही सलाम है..
यहाँ जनता गूँगी बैठी है...
यहाँ नेता बहरे बैठे हैं...
ताकत के गुरूर में
कुर्सी पर ऐंठे बैठे हैं...

सोने की चिड़िया की इस धरती पर
भुखमरी का ऐसा साया है...
जहाँ "ममता" नहीं निर्ममता है
और "माया", "राज" छाया...

23 मार्च का वो इंकिलाबी दिन
जब तुम हँसे देश रोया था..
आज तारीख भूल गया ये देश...
नहीं जानता क्या खोया था...

भगत तुम्हारी आज फिर
महसूस होती जरूरत है...
एक और एहसान कर जाओ...
सोई जनता जगा जाओ..


फिर एक धमाका कर जाओ...
फिर एक धमाका कर जाओ...
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