इस कड़ी की शुरुआत हो रही है श्री गोपालदास व्यास की "खूनी हस्ताक्षर" से।
वह खून कहो किस मतलब का जिसमे उबाल का नाम नहीं,
वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं.
वह खून कहो किस मतलब का जिसमे जीवन ना रवानी हैं,
जो परवश होकर बहता हैं वह खून नहीं हैं पानी हैं.
उस दिन दुनिया ने सही सही खून की कीमत पहचानी थी,
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में मांगी उनसे कुर्बानी थी.
बोले स्वतंत्रता की खातिर बलिदान तुम्हे करना होगा,
तुम बहुत जी चुके हो जग में लेकिन आगे मरना होगा.
आज़ादी के चरणों में जो जयमाल चढ़ाई जायेगी,
वह सुनो तुम्हारे शीशों के फूलों से गूँथी जायेगी.
आज़ादी का संग्राम कही पैसे पर खेला जाता हैं ,
यह शीश काटने का सौदा नंगे सर झेला जाता हैं.
आज़ादी का इतिहास कही काली स्याही लिख पाती हैं ?
इसको लिखने के लिए खून की नदी बहाई जाती हैं.
यह कहते कहते वक्ता की आँखों में लहू उतर आया,
मुख रक्त वर्ण हो दमक उठा दमकी उनकी रक्तिम काया.
आजानुबाहू ऊँची करके वो बोले ” रक्त मुझे देना “
इसके बदले में भारत की आज़ादी तुम मुझसे लेना.
हो गयी सभा में उथल-पुथल सीने में दिल ना समाते थे,
स्वर इन्कलाब के नारों के कोसों तक छाये जाते थे.
हम देंगे-देंगे खून शब्द बस यही सुनाई देते थे,
रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे.
बोले सुभाष ऐसे नहीं बातों से मतलब सरता हैं,
लो यह कागज़ हैं कौन यहाँ आकर हस्ताक्षर करता हैं.
इसको भरने वाले जन को सर्वस्व समर्पण करना हैं,
अपना तन-मन -धन जीवन माता को अर्पण करना हैं.
पर यह साधारण पत्र नहीं आज़ादी का परवाना हैं,
इसपर तुमको अपने तन का कुछ उज्ज्वल रक्त गिराना हैं.
वह आगे आये जिसके तन में भारतीय खून बहता हो,
वह आगे आये जो अपने को हिंदुस्तानी कहता हो.
वह आगे आये जो इसपर खूनी हस्ताक्षर देता हो ,
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ आये, जो हसकर इसको लेता हो.
सारी जनता हुंकार उठी हम आते हैं हम आते हैं,
माता के चरणों में यह लो हम अपना रक्त चढाते हैं.
साहस से बढे युवक उस दिन,देखा बढ़ते ही आते थे,
चाक़ू-छुरी कटियारों से वो अपना रक्त गिराते थे.
फिर उसी रक्त स्याही में वो अपनी कलम डुबाते थे,
आज़ादी के परवाने पर वो हस्ताक्षर करते जाते थे.
उस दिन तारों ने देखा हिंदुस्तानी इतिहास नया,
जब लिखा महा रणवीरों ने खून से अपना इतिहास नया.
नोट: ये श्रृंख्ला कब तक चलेगी यह कहना कठिन है.. मुझे जितनी कवितायें याद आ पायेंगी उतनी ही पोस्ट कर पाऊँगा.. आप यदि इस श्रॄंख्ला में कोई कविता शामिल करना चाहते हैं तो अवश्य बतायें।
जय हिन्द ।
वन्देमातरम ।
नोट: ये श्रृंख्ला कब तक चलेगी यह कहना कठिन है.. मुझे जितनी कवितायें याद आ पायेंगी उतनी ही पोस्ट कर पाऊँगा.. आप यदि इस श्रॄंख्ला में कोई कविता शामिल करना चाहते हैं तो अवश्य बतायें।
जय हिन्द ।
वन्देमातरम ।
15 comments:
ये मेरी सबसे पहली कंठस्त की हुई कविता थी :)
meri bhi class 6 me yaad ki thi
it is a very nice poem,,,,,,,,,,,,,
i am going to speak this poem in independent day function in school..........
yes, class 6th poem... remember it... one of my favourites!!!
Yes class 6th wat a poem........
this was the first poem which i learnt when i participated in poem competetion on the stage in my k.v ....nd i got the prize for that.....such a nice poem it is...
आज फिर से वो स्कूल की याद ताजा हो गई।
मेरा पसंदीदा कविता है यह ।
ye mery sbse pyari kbita hsi.
I like this poem very much ...
Very inspiring poem,I like it and saloute those freedom fighter who was sacrified their life of our freedom
Good poem.
Us din taaro ne dekha hindustaani VISHVAAS nayaa,
Jab likha maha ranveero ne khun se apna itihaas naya
अद्भुत
Ye mujhe jab main class 8 main thi jab se aaj tak yaad hai aur aaj main apne bacho ko ye kobita sunati hu.mane ye kavita 1993 main yaad ki thi
I love this. Kavita.my school time
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