पिछले सप्ताह विदेश मंत्री ने जब संयुक्त राष्ट्र में पुर्तगाल के विदेशमंत्री का भाषण पढ़ा तो बेहद शर्म महसूस हुई। विदेश मंत्री किसी देश का चेहरा होता है। शर्म तब भी महसूस हुई जब उन्होंने बड़ी ही बेशर्मी से कहा कि ये कोई "बड़ी" बात नहीं है। याद कीजिये अटल बिहारी वाजपेयी ने जब संयुक्त राष्ट्र ने हिन्दी में भाषण पढ़ा। ये बात सुनकर और पढ़कर जितना गौरव महसूस हुआ उतनी शर्म आज महसूस हो रही है। ऐसे मंत्री हमारा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो किसी और का लिखा भाषण तो पढ़ते ही हैं ऊपर से भाषण देने से पहले एक बार उसकी "प्रूफ़ रीडिंग" भी नहीं करते। उन्हें यह पता ही नहीं होता कि वे क्या पढ़ रहे हैं। दु:खद शर्मनाक...
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