Sunday, November 25, 2007

मेरे बाद-

कभी कभी सोचता हूँ
मेरे बाद कैसे रहोगे?
क्या वही हँसी मजाक होगा,
क्या वैसे ही चुटकुले होंगे?

क्या मैं भुला दिया जाऊँगा,
या हर बात में याद आऊँगा?
सिहरन उठती है पूरे शरीर में,
डर लगता है,
घबरा जाता हूँ जब
बिछड़ने का ख्याल
मन पर हावी होने लगता है!!

क्या इतिहास हो जायेगा
मेरा आज,
क्या भुला दिये जायेंगे
मेरे सब काज,
मेरी आवाज़ अब
नहीं गूँजेगी यहाँ पर,
नहीं गुनगुनाये जायेंगे
मेरे गीत यहाँ पर|

पर लोगों को
आदत हो जायेगी,
मेरे बिना रहने की,
मेरे बिना खाने की,
बिना मेरे घूमने की|

दो चार दिन काम के बहाने
याद आ जाया करूँगा शायद,
पर वक्त से रह जायेगी
बस एक शिकायत-

वक्त जब हँसाता है,
तो रोने क्यों देता है?
जब परायों को अपना बनाता है
तो बिछड़ने क्यों देता है?

बड़ा छलिया है ये वक्त,
मेरी बात ही नहीं सुनता,
आवाज़ देता हूँ,
दो पल तो ठहर कमबख्त

पर क्या कभी रुका है
किसी के लिये ये वक्त?
क्या ऐसे ही चलता रहेगा
ये बेईमान वक्त?
मेरे बाद भी!!
आगे पढ़ें >>

Sunday, November 4, 2007

कंजकें

ज्यादा भूमिका नहीं बाँधूँगा। लड़कियों का कम होना चिंता का विषय है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि अनपढ़ तो अनपढ़ हैं ही, सभ्य समाज या शहर में बसने वाले और आधुनिक कहे जाने वाले समाज में भी बेटियों को कुछ नहीं समझा जाता।
उन्हें या तो पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है, या बेटों से कम तवज्जो दी जाती है। आधुनिक भारत के सभ्य व आधुनिक समाज के मुँह पर ये जोरदार तमाचा है। तमाचा जोर का लगे उसके लिये आपकी टिप्पणी आवश्यक है।

अरे पिंकू बेटे,
ज़रा बाहर जा,
गुप्ता आँटी की
निक्की को बुला ला।

पिंकू दौड़ा दौड़ा गया,
वापिस आया, माँ से बोला,
निक्की मेहता अंकल के गई है,
१५ मिनट में आने का है बोला।

नवरात्रि के इस त्योहार में
हर घर में कंजकें जीमी जायेंगी,
पर लगता है कि इस बार भी
निक्की ही सब के घर जायेगी।

जब पालने में बेटी होती है,
तो उसका गला दबाया जाता है।
पर "देवी" से आशीर्वाद मिल जाये,
इसलिये नवरात्रि में पूजा जाता है।।

ये सभ्य लोगों का समाज है,
जो बेटी नहीं पाल सकता,
न जाने किस बात का डर है
जो बेटियों को हाशिये पर है रखता।

पंजाब जैसे समृद्ध प्रदेश में भी,
लगातार बेटियाँ हो रही है कम।
जब बेटे की शादी के लिये लड़की ढूँढेंगे,
शायद तब निकलेगा सबका दम।।

तब समझेगा ये समाज,
बेटियों की अहमियत को,
जब तरसेगा आदमी,
पत्नी,बहन, भाभी और माँ को।

भयावह सा लगता है जब,

सोचता हूँ जीवन,
इन रिश्तों के बिना,

हकी़क़त सा लगने लगा था ये दु:स्वप्न,

जो इस बार मैंने कंजकों को,
पिछली बार से आठ कम गिना!!!
आगे पढ़ें >>