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Saturday, April 13, 2013

ऋग्वेद से जानें कितनी है प्रकाश की गति Rigveda - Speed of Light

वेद यानि ज्ञान। हमारे चार वेद ज्ञान का भंडार हैं। विज्ञान, गणित, जीवन जीने का रहस्य, ईश्वर, आध्यात्म सब कुछ है इनमें।

वेदों में सबसे पुराना है ऋग्वेद है। क्या आप जानते हैं कि ऋग्वेद में सूर्य की प्रकाश की गति कितनी बताई हुई है? 2202 योजन प्रति आधा निमेष।

1 योजन = 9 मील और 16/75 सेकंड होता है एक निमेष।

इसका मतलब हुआ 8/75 सेकंड में 2202 * 9 मील या कहें कि 1 सेकंड में 2202*9/8*75 मील।

ये उतना ही बैठेगा जितना आज हमें किताबों में बताया जाता है। यानि 1,86,000 मील प्रति से. प्रकाश की गति नापने के लिये  आधुनिक व वैज्ञानिक तरीके से तैयार यंत्रों की सहायता ली जाती है। उसी गति को हमारे ऋषियों ने उस समय के वैज्ञानिक आधार से निकाला था। कैसे किया ये तो रहस्य है। लेकिन इतना तय है कि उस काल का विज्ञान हमारे आज के समय से कहीं ज्यादा आगे था। जिस ईश्वर की खोज आज हमारे वैज्ञानिक कर रहे हैं उसी ईश्वर को ऋषियों ने योग व ज्ञान के आधार पर जान लिया था।

आप को जहाँ से भी इस तरह की वैदिक जानकारी पता चले कृपया अवश्य बाँटें। एक दिन ऐसा आना चाहिये कि वेदों को स्कूलों में पढ़ाया जाये।

जय हिन्द
वन्दे मातरम
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Thursday, March 28, 2013

घर बैठे RTI कैसे करें दाखिल How to submit RTI Application on internet

पिछले वर्ष नवम्बर में मैने पहली बार RTI दाखिल करी। मैं जानना चाहता था कि दिल्ली के किस विधायक ने कितना पैसा अपने क्षेत्र में लगाया है। RTI डालना बहुत ही आसान है। आमातौर पर 10 रू में आप किसी भी दफ़्तर या मंत्रालय में जा कर सूचना के अधिकार तहत किसी भी तरह की जानकारी ले सकते हैं। किन्तु यदि आपको यह नहीं पता कि आपको ये जानकारी किस मंत्रालय से मिलेगी तो चिंता की बात नहीं। घर बैठे भी आप RTI डाल सकते हैं।

Step 1 -www.rtination.com पर जायें।

Step 2 - Submit RTI पर क्लिक करें।


Step 3 - वहाँ फ़ॉर्म में अपने बारे मं बतायें व अपना सवाल लिख दें।

Step 4 - ये साईट आपसे केवल 150 रू लेगी और आपके सवाल को ठीक से ड्राफ़्ट करेगी व ये भी बतायेगी कि आपका प्रश्न किस मंत्रालय व विभाग के अंतर्गत आता है।


Step 5 - आपको एक Document आपके ईमेल पर आयेगा। आप उसको स्कैन करिये। उस पर हस्ताक्षर कर के वापिस ईमेल कर दीजिये।

Step 6 - आपके हस्ताक्षर करी हुई प्रतिलिपि को rtination मंत्रालय व विभाग को भेज देगा। आपका काम हो गया।

सूचना का अधिकार आपका हक़ है।

अधिक जानकारी के लिये आप मुझे लिख सकते हैं। या फिर दी गई साईट पर भी जा सकते हैं।


वन्देमातरम
जय हिन्द
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Monday, February 18, 2013

क्या आप जानते हैं चिड़ियाघर की शुरुआत कहाँ हुई और भारत में कुल कितने चिड़िया घर हैं? Why Zoos are necessary?

एक फ़ाईव स्टार हॉटल के कमरे में आप कितने दिन ठहर सकते हैं? जहाँ सारी सुविधायें मौजूद हों। खाना - पीना रहना सोना, नहाना सब कुछ बढिया सुविधाओं सहित। कुछ दिन, कुछ सप्ताह या कुछ महीने.. ज़िन्दगी भर तो नहीं....

अभी पिछले दिनों परिवार के साथ दिल्ली के चिड़ियाघर जाना हुआ। हजारों लोग, सैंकड़ों गाड़ियाँ एक के बाद एक आई जा रहीं थीं। अच्छी खासी भीड़ थी उस दिन। वैसे तो दस-पन्द्रह रूपये की टिकट है लेकिन यदि आपको भीड़ की धक्का मुक्की से बचना है तो प्रशासन आपको सौ रूपये की टिकट भी दे रहा है। काफ़ी बड़े हिस्से में बना हुआ है चिड़ियाघर। सभी तरह के पशु-पक्षी आपको मिल जायेंगे। शेरे, चीता, गीदड़ हाथी से लेकर जिराफ़, हिरन, नील गाय, चिम्पैंजी आदि भी। जानकारी के लिये बता दूँ कि भारत का एकमात्र गुरिल्ला मैसूर के चिड़ियाघर में है।


इन पशुओं को देखकर एक बात दिमाग में आई कि आखिर चिड़ियाघर की आवश्यकता क्या है? हम शेर को एक बड़े इलाके में रखते हैं, जहाँ वो घूम तो सकता है पर जंगल की तरह जहाँ जी में आये जा नहीं सकता। उसे एक छोटा सा इलाका मिल जाता है और उसके व मैदान के बीच एक गड्ढा होता है। मुझे विश्वास है कि कुछ सालों में वो शिकार करना भी भूल जायेगा। और जिन जंगली जानवरों के बच्चे चिड़ियाघर में जन्म लेते होंगे उनको तो कभी उनकी असली शक्ति का पता ही नहीं चलेगा। चिड़ियाघर में दो चीतों को तो एक छोटे से पिंजरे में डाल रखा था। चीता जो पृथ्वी पर सबसे अधिक गति से दौड़ लगा सकता है उसे पिंजरे में रहकर कैसा लग रहा होगा आप सोच सकते हैं... ऐसे ही भालू, जिराफ़, गीदड़.. सभी की एक सी हालत... चिड़ियाघर की जगह इन पशुओं को वनजीव अभयारण्य (sanctuary) में भेजना चाहिये जहाँ वे ठीक से साँस तो ले सकें...

चिड़ियाघर की शुरुआत 1500 ई.पू (BC) में मिस्र (Egypt) में हुई। फिर चीन व यूनान (Greece) में भी ये चलन में आये। गूगल पर ढूँढा तो पता चला कि इनकी जरूरत शोध करने व लोगों में पशुओं की जानकारी देने के लिये पड़ी। वैज्ञानिक इन पर शोध करते हैं। और कहीं कहीं पर विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण हेतु इनका प्रयोग होता है।

पर क्या जीवन भर इन पशुओं को गुलाम रखना इतना जरूरी है? मानव अपनी शक्ति का दिखावा कर रहा है। पर किन पर? बेजुबानों पर....विदेशों में चिड़ियाघर में जीवों की देखरेख के लिये कुछ मानक(standards) होते होंगे पर मुझे नहीं लगता कि भारत में इस तरह का कुछ भी होगा जहाँ इंसान ही जानवरों की तरह समझे जाते हों। जिस तरह हम फ़ाईव स्टार हॉटल के कमरे में ज़िन्दगी नहीं गुज़ार सकते उसी तरह ये पशु भी जंगल में जाने के लिये तड़पते होंगे। PETA आदि संस्था इस विषय पर लड़ रही हैं। वहीं दूसरी और कुछ बुद्धिजीवी चिड़ियाघरों को सही भी मानते हैं। www.whyzoos.com पर बताया हुआ है कि किस तरह से चिड़ियाघर जानवरों को लम्बे समय तक जीवित रखने में सहायक है व आखिर इनकी आवश्यकता है क्या।

भारत में इन " पशु जेलों" की तादाद 38 है, जिसकी लिस्ट आप विकीपीडिया पर देख सकते हैं।

वन्देमातरम
जय हिन्द
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Monday, January 16, 2012

क्या आप जानते हैं कि गणतंत्र दिवस पर कौन से वर्ष से मुख्य अतिथि को बुलाया जा रहा है और राजपथ पर परेड की शुरूआत कब हुई? Republic Day Parade & Chief Guests - Did you know?

क्या आप जानते हैं कि गणतंत्र दिवस पर कौन से वर्ष से मुख्य अतिथि को बुलाया जा रहा है और राजपथ पर परेड की शुरूआत कब हुई?
विजय चौक (राजपथ, दिल्ली, भारत)

हमारा देश 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र घोषित किया गया। "घोषित" शब्द का प्रयोग इसलिये कर रहा हूँ क्योंकि संविधान लिखा तो गया पर उसके साथ कितना खिलवाड़ हुआ यह हम अच्छी तरह से जानते हैं। बहरहाल, हम बात करते हैं मुख्य अतिथियों की। साल 1950 से ही विदेशी प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपति व राजाओं को बुलाने का रिवाज़ रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि 1950 से 1954 के बीच गणतंत्र दिवस का समारोह कभी इर्विन स्टेडियम, किंग्सवे, लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में हुआ था न कि राजपथ पर। 1955 से ही राजपथ पर परेड की शुरूआत हुई। प्रति वर्ष विदेशी रणनीति के तहत विभिन्न देशों से सम्बन्ध बनाने हेतु अलग लग गणमाननीय प्रतिनिधियों को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जाने लगा। वर्ष 1950 से 1970 के दौरान Non-Aligned Movement और Eastern Bloc के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों की मेजबानी करी गई तो शीत-युद्ध के पश्चात पश्चिम देशों को न्यौता दिया गया।

ये गौर करने की बात है कि पाकिस्तान और चीन से युद्ध से पहले इन दोनों देशों के प्रतिनिधि गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हो चुके हैं। पाकिस्तान के कृषि मंत्री तो 1965 में अतिथि बने थे और उसके कुछ समय पश्च्चात ही पाकिस्तान से हमारा युद्ध हुआ। हर बार धोखा ही मिला है पाकिस्तान और चीन से। एक से अधिक बार बुलाये जाने वाले देशों में पड़ोसी राज्य भूटान, श्रीलंका और मोरिशियस के अलावा रूस, फ़्रांस व ब्रिटेन रहे हैं। ब्राज़ील और NAM सदस्य जैसे नाईजीरिया, इंडोनेशिया और यूगोस्लाविया भी एक से ज्यादा बार परेड का हिस्सा बन चुके हैं।

फ़्रांस से सबसे अधिक चार बार अतिथि भारत आये हैं। भूटान, मौरिशियस व रूस के के प्रतिनिधि तीन बार परेड में अतिथि बने हैं।
नीचे कुछ अतिथियों के नाम और देश के नाम हैं:


वर्ष        अतिथि का नाम    देश
1950 राष्ट्रपति सुकर्णो इंडोनेशिया (प्रथम अतिथि)
1951 -
1952 -
1953 -
1954 राजा जिग्मे डोरजी भूटान
1955 गवर्नर जनरल  गुलाम मुहम्मद   पाकिस्तान राजपथ पर परेड के पहले अतिथि
1956 -
1957 -
1958 मार्शल ये यिआनयिंग चीन
1959 -
1960 राष्ट्रपति किल्मेंट वोरोशिलोव सोवियत संघ (रूस)
1961 रानी एलिज़ाबेथ II ब्रिटेन
1962 -
1963 राजा नोरोडोम सिहानाउक कम्बोडिया
1964 -
1965 कृषि मंत्री राणा अब्दुल हमिद पाकिस्तान
1966 -
1967 -
1968 प्रधानमंत्री एलेक्ज़ेई कोसिजिन सोवियत संघ
राष्ट्रपति टीटो                 यूगोस्लाविया
1969 प्रधानमंत्री तोदोर ज़िवकोव बुल्गारिया
1970 -
1971 राष्ट्रपति जूलियस तन्ज़ानिया
1972 सीवोसगूर रामगुलम मोरिशियस
1973 मोबुतु सेसे सेको ज़ायरे
1974 राष्ट्रपति टीटो यूगोस्लाविया
रत्वत्ते बंदरनायके श्रीलंका

1975 केन्नेथ कौंडा ज़ाम्बिया
1976 फ़्रांस
1977 पोलैंड
1978 आयरलैंड
1979 ऑस्ट्रेलिया
1980 फ़्रांस
1981 मैक्सिको
1982 स्पेन
1983 नाइजीरिया
1984 भूटान
1985 अर्जेंटीना
1986 ग्रीस
1987 पेरू
1988 श्रीलंका
1989 वियतनाम
1990 मौरिशियस
1991 मालदीव्स
1992 पुर्तगाल
1993 ब्रिटेन
1994 सिंगापुर
1995 राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ़्रीका
1996 ब्राज़ील
1997 त्रिनिदाद.तोबैगो
1998 फ़्रांस
1999 नेपाल
2000 नाइजिरिया
2001 अल्जीरिया
2002 मौरिशियस
2003 ईरान
2004 ब्राज़ील
2005 भूटान
2006 सऊदी अरब
2007 राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन रूस
2008 राष्ट्रपति निकोलस सर्कोज़ी फ़्रांस
2009 कज़ाकिस्तान
2010 कोरिया
2011 राष्ट्रपति सुसिलो बम्बांग युधोयोनो इंडोनेशिया
2012 प्रधानमंत्री यिन्गलक शिनवात्रा थाईलैंड


जय हिन्द
वन्देमातरम
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Sunday, December 18, 2011

क्या आप जानते हैं में इस बार कुछ रोचक जानकारियाँ Interesting Facts - Did You Know?

क्या आप जानते हैं की श्रृंख्ला में आज हैं कुछ रो़चक तथ्य:

  • ऑस्ट्रेलिया ही एकमात्र महाद्वीप है जिसमें एक भी सक्रिय ज्वालामुखी नहीं है।
  • मनुष्य के पैर में छब्बीस हड्डियाँ हैं।
  • जितनी ऑक्सीजन हम साँस के द्वारा लेते हैं उसका 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा हमारा दिमाग इस्तेमाल करता है।
  • हमारी धरती पर एक मिनट में छह हजार बार बिजली गिरती है।
  • जब 1878 में पहली बार फ़ोन डायरेक्ट्री बनी थी तब उसमें केवल पचास नाम थे। एक शोध के मुताबिक हमारे देश में नलों से ज्यादा मोबाईल हैं। मतलब यह कि जिस देश में आधी से ज्यादा आबादी के पास पीने को शुद्ध पानी नहीं उसमें आप मुफ़्त बात अवश्य कर सकते हैं।
  • आर्कटिक महासागर विश्व का सबसे छोटा महासागर है।
  • अंग्रेज़ी भाषा का सबसे पुराना शब्द है "Town"।
  • 111,111,111 x 111,111,111 = 12,345,678,987,654,321
  • अफ़्रीकी हाथी के मुँह में केवल चार दाँत होते हैं।
  • गिरगिट की जीभ उसके शरीर से दो गुनी लम्बी होती है।
  • व्हेल मछली उलटी दिशा में नहीं तैर सकती।
  • हाथी अपनी सूँड में पाँच लीटर तक पानी रख सकता है।
  • टिड्डे का खून सफ़ेद रंग का होता है।
  • न्यूटन की उम्र तेईस वर्ष की थी जब उन्होंने  पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल की खोज करी थी।

  • मगरमच्छ को रंगों की पहचान में कठिनाई होती है।
  • हैरानी की बात यह है कि मगरमच्छ अपनी जीभ नहीं हिला सकता है।
क्या आप जानते हैं के अन्य लेख

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Wednesday, October 19, 2011

क्या आप जानते हैं एक बार रक्तदान से आप कितनी जान बचा सकते हैं? Donate Blood Save Life

पिछले सप्ताह ही हमारी कम्पनी में रक्तदान शिविर लगा। सुबह से शाम तक लगे इस शिविर में 145 लोगों  ने रक्त दिया। हमारी कम्पनी में करीबन छह सौ लोग हैं। उस दृष्टि से यह आँकड़ा थोड़ा कम लगा। और वो भी तब जब कैम्पस में सैमसंग और बार्क्लेज़ जैसी कम्पनियों के हजारों लोग हैं। बहरहाल...

रक्तदान को महादान कहा गया है। इसके कईं फ़ायदे हैं। पर क्या क्या फ़ायदे हैं ये जानने की जिज्ञासा हुई। इंटेरनेट खंगाला तो कुछ फ़ायदे नज़र आये। उन्हें आपके साथ बाँट रहा हूँ। चूँकि ये इंटेरनेट से हैं इसलिये त्रुटि हो सकती हैं। हालाँकि धूप-छाँव पर डालने से पहले मैंने कुछ वेबसाईटों पर जाँच करी है इसलिये अस्सी फ़ीसदी तो सही होनी चाहियें।

ये देखा गया है कि खून में लोहे की मात्रा हृदय के रोगों को बढ़ाती है। रक्त में मिलने वाला लोहा कोलेस्ट्रॉल के ऑक्सीडेशन के काम आता है। और यही प्रक्रिया आर्ट्रीज़ (Arteries) के लिये हानिकारक होती है। रक्त में लोहे की मात्रा अधिक होने से कॉलेस्ट्रॉल के ऑक्सीकरण की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं। नियमित रक्तदान से रक्त में लोहे की मात्रा संतुलित रहती है और इसलिये हृदय रोग की संभावनायें भी कम होती हैं।

शरीर से रक्त के निकाले जाने से रक्त में RBC कम हो जाते हैं। इसी कमी को पूरा करने के लिये शरीर में अस्थि-मज्जा (Bone Marrow) द्वारा तुरंत नये RBC का निर्माण होता है। इससे रक्त साफ़ व ताज़ा रहता है

हीमोक्रोमाईटिस एक तरह की जैविक बीमारी है जिसमें शरीर के Tissue में खराब पाचन के कारण लोहा जमा होता चला जाता है। इस स्थिति में शरीर के अंग खराब हो सकते हैं। हालाँकि भारतीयों में यह विकार कम पाया जाता है। लेकिअन यदि इंग्लैंड जैसे देश में देखें तो आप पायेंगे कि 300-400 लोगों में से एक व्यक्ति इस बीमारी का शिकार है।

एक सामान्य व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्त दान कर सकता है। एक बार में 450 मिली तक रक्तदान किया जाता है। और ऐसा माना गया है कि इससे 650 कैलोरी इस्तेमाल होती हैं।

और सबसे बड़ा फ़ायदा यह कि इससे किसी की जान बच सकती है।

चलते चलते...
  • क्या आप जानते हैं कि आपका दिया गया रक्त तीन भागों में बँट जाता है और तीन लोगों को चढ़ाया जा सकता है। ये तीन भाग हैं Red Blood Cells, प्लेटलेट्स व प्लाज़्मा (Plasma)|
  • क्या आप जानते हैं कि वैज्ञानिक अभी तक प्रयोगशाला में रक्त नहीं  बना सके हैं। रक्त का निर्माण पूर्णत: प्राकृतिक है और हमारे शरीर में ही हो सकता है।
  • हम में से पच्चीस फ़ीसदी लोगों को हमारे जीवन काल में एक बार रक्त की आवश्यकता पड़ती है

तो फ़िर ये हिचकिचाहट क्यों? रक्तदान कर के देखिये.. अच्छा लगता है...


जय हिन्द
वन्देमातरम


अधिक जानकारी के लिये:
http://www.mayoclinic.org/donate-blood-rst/know.html
http://sankalpindia.net/drupal/health-benefits-donating-blood
http://en.wikipedia.org/wiki/Blood_donor#Benefits

दो अन्य वेबसाईट से चुराये गये दो पोस्टर...
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Friday, October 14, 2011

क्या आप जानते हैं - कुतुब परिसर में खड़े लौहस्तम्भ को किस राजा ने बनवाया था? Qutub Complex, Iron Pillar History - Incredible India

अतुल्य भारत की पिछली कड़ी में कुतुब मीनार का जिक्र किया गया था। उसी कुतुब मीनार की चार दीवारी में खड़ा  हुआ है लौह स्तम्भ।

कुतुब परिसर में स्थित लौह स्तम्भ
दिल्ली के कुतुब मीनार के परिसर में स्थित यह स्तम्भ सात मीटर ऊँचा है। इसका वजन लगभग छह टन है। इसे गुप्त साम्राज्य के चन्द्रगुप्त द्वितीय (जिन्हें चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य भी कहा जाता है) ने लगभग 1600 वर्ष पूर्व बनवाया। मुझे यह जानकर हैरानी हुई थी कि आज का यह लौह स्तम्भ प्रारम्भ से यहाँ नहीं था। गुप्त साम्राज्य के सोने के सिक्कों से यह प्रमाणित होता है कि यह स्तम्भ विदिषा (विष्णुपदगिरी/उदयगिरि - मध्यप्रदेश) में स्थापित किया गया था। कुतुबुद्दीन-ऐबक ने जैन-मंदिर परिसर के सत्ताईस मंदिर तोड़े तब यह स्तम्भ भी उनमें से एक था। मंदिर से तोड़े गये लोहे व अन्य पदार्थ से से उसने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनवाई। 



संस्कृत में अंकित कुछ वाक्य
कहते हैं कि राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने इस स्तम्भ को भगवान विष्णु के लिये समर्पित कर दिया था और इसे एक पहाड़ी-विष्णुपदगिरि पर खड़ा करवाया। इस पर लिखी गईं संस्कृत की पंक्तियाँ स्पष्ट रूप से यह बताती हैं कि बाह्लिक युद्ध के पश्चात उन्होंने यह स्तम्भ बनवाया। उनके काल में यह स्तम्भ समय बताने का भी कार्य करता था। विष्णुपदगिरि पहाड़ी पर स्थित इस स्तम्भ पर सूर्य की किरणें जिस ओर पड़तीं थीं उनकी गणना से समय पता लगाया जाता था।

ऐसा माना जाता है कि तोमर-साम्राज्य के राजा विग्रह ने यह स्तम्भ कुतुब परिसर में लगवाया। लौह स्तम्भ पर लिखी हुई एक पंक्ति में सन 1052 के तोमर राजा अनन्गपाल (द्वितीय) का जिक्र है।

सन 1997 में पर्यटकों के द्वारा इस स्तम्भ को नुकसान पहुँचाने के पश्चात इसके चारों ओर लोहे का गेट लगा दिया गया है।

इस लौह स्तम्भ की खास बात यह है कि इसमें कभी ज़ंग नहीं लगा है। एक आम लोहा बारिश, सर्दी व गर्मी की लगातार बदलती ऋतुओं के कारण आसानी से ज़ंग खा जाता है किन्तु इसे हमारे इतिहास के बेहतरीन कारीगर व वैज्ञानिक क्षमता का उदाहरण ही कहा जायेगा कि यह लौह स्तम्भ आज विश्व में शोध का विषय बन गया है।

पंडित बाँकेराय द्वारा संस्कृत से किया गया अंग्रेज़ी अनुवाद
नोट: मैंने यह लेख लिखने से पहले लौह स्तम्भ पर ज़ंग न लगने के कारण को जानना चाहा। परन्तु यह मेरा दुर्भाग्य है कि मैं अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद नहीं कर पाया। हिन्दी में यदि विज्ञान की पढ़ाई की होती तो शायद कुछ बता पाता। इसलिये आप सब के समक्ष मैं विकीपीडिया के लेख की कुछ पंक्तियाँ जस की तस यहाँ चिपका रहा हूँ। इसके लिये मैं माफ़ी माँगता हूँ किन्तु मेरे पास और कोई चारा नहीं था.. :-( इतना समझ पाया हूँ कि लोहे में फ़ॉस्फ़ोरस का मिश्रण भी इसके ज़ंग-रहित होने का एक कारण है...

In a report published in the journal Current Science, R. Balasubramaniam of the IIT Kanpur explains how the pillar's resistance to corrosion is due to a passive protective film at the iron-rust interface. The presence of second-phase particles (slag and unreduced iron oxides) in the microstructure of the iron, that of high amounts of phosphorus in the metal, and the alternate wetting and drying existing under atmospheric conditions are the three main factors in the three-stage formation of that protective passive film.[1

Lepidocrocite and goethite are the first amorphous iron oxyhydroxides that appear upon oxidation of iron. High corrosion rates are initially observed. Then, an essential chemical reaction intervenes: slag and unreduced iron oxides (second phase particles) in the iron microstructure alter the polarization characteristics and enrich the metal–scale interface with phosphorus, thus indirectly promoting passivation of the iron[14] (cessation of rusting activity)

The next main agent to intervene in protection from oxidation is phosphorus, enhanced at the metal–scale interface by the same chemical interaction previously described between the slags and the metal. The ancient Indian smiths did not add lime to their furnaces

The most critical corrosion-resistance agent is iron hydrogen phosphate hydrate (FePO4-H3PO4-4H2O) under its crystalline form and building up as a thin layer next to the interface between metal and rust. Rust initially contains iron oxide/oxyhydroxides in their amorphous forms. Due to the initial corrosion of metal, there is more phosphorus at the metal–scale interface than in the bulk of the metal. Alternate environmental wetting and drying cycles provide the moisture for phosphoric-acid formation. Over time, the amorphous phosphate is precipitated into its crystalline form (the latter being therefore an indicator of old age, as this precipitation is a rather slow happening). The crystalline phosphate eventually forms a continuous layer next to the metal, which results in an excellent corrosion resistance layer.[17] In 1,600 years, the film has grown just one-twentieth of a millimetre thick.[18]

साभार - विकीपीडिया

जय हिन्द
वन्देमातरम

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Sunday, August 28, 2011

क्या आप जानते हैं कि चीन की महान दीवार कितनी लम्बी है? Great Wall of China, Some Interesting Facts - Did You Know?

भारत के विभिन्न पर्यटन शहरों के बारे में तो हम जानते ही हैं किन्तु पड़ोसी को भी थोड़ा बहुत जानना चाहिये। क्या आप जानते हैं कि चीन की महान दीवार कितनी लम्बी है? चीन की दीवार मिट्टी व पत्थर से बनी हुई है व उत्तरी चीन में स्थित है। कहते हैं कि इसे चीन के राजाओं ने उत्तरी देशों से बचाव के लिये बनवाया है।

चीन की लम्बी दीवार
यह लेख लिखने से पहले मैं सोचता था कि यह एक ही दीवार है जो चीन में फ़ैली हुई है। किन्तु इंटेरनेट पर पढ़ कर समझ में आया है कि यह कईं सारी दीवारों के टुकड़े हैं जो विभिन्न राजाओं ने अलग अलग काल में बनवाये हैं। दीवार बनवाने की शुरुआत पाँचवी शताब्दी (ईसा -पूर्व) यानि करीबन ढाई हजार पहले हुई। प्रमुख दीवारों में किन शि हुआंग नामक राजा की दीवार शामिल है जो उन्होंने 220 से 206 ईसा पूर्व के दौरान बनवाई। हालाँकि अब इस दीवार का छोटा सा हिस्सा ही शेष बचा है। मिंग शासन के दौरान सबसे ज्यादा हिस्सा बनकर तैयार हुआ।

चीन की दीवार पूर्व में शंहाईगुआन से लेकर पश्चिम में लोपलेक तक फ़ैली हुई है। यह दीवार 6,259.6 किमी ईंटों से, 359.7 किमी खाई व 2,232 किमी प्राकृतिक रक्षात्मक बाधायें जैसे पहाड़ियाँ व नदियाँ हैं। इस तरह इसकी कुल लम्बाई करीबन नौ हजार किमी तक पहुँच जाती है। कहते हैं कि मानव निर्मित यह एक ही ऐसी कृति है जो चाँद से देखी जा सकती है।

अन्य कुछ रोचक तथ्य:

  • भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाला फ़ोन है नोकिया ये तो सभी जानते हैं। ये कम्पनी फ़िनलैंड की है और इसका नाम फ़िनलैंड के शहर एक नाम पर रखा गया है।
  • दुनिया में सबसे ज्यादा पोस्ट ऑफ़िस भारत में ही हैं। इनकी संख्या एक लाख से भी अधिक है।
  • मिस्र के पिरामिड विश्वविख्यात हैं। किन्तु ये कम ही लोगों को पता है कि मिस्र से अधिक पिरामिड पेरू (दक्षिण अमरीका) में हैं।
  • जमाइका में 120 नदियाँ हैं व सऊदी अरब एक ऐसा देश है जहाँ एक भी नदी नहीं है।
  • ऑस्ट्रेलिया विश्व का एक मात्र महाद्वीप है जहाँ एक भी ज्वालामुखी नहीं है।
  • ब्राज़ील दक्षिण अमरीका महाद्वीप का एक देश है जो महाद्वीप का पचास फ़ीसदी हिस्सा है।  ब्राज़ील का नाम एक पेड़ के नाम पर रखा गया है।


क्या आप जानते हैं के अन्य लेख पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें। आपको यह श्रॄंख्ला कैसी लग रही है अवश्य बतायें।

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Wednesday, August 3, 2011

क्या आप जानते हैं - थर्मामीटर और वायरलैस का किसने और कब किया आविष्कार? Scientists Who Invented Thermometer And Wireless- Do You Know?

हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में कईं उपकरण या वस्तुयें ऐसी होती हैं जिन्हें हम देखते तो हैं पर हम उन पर ध्यान नहीं देते। वे कैसे बने, किसने कब कैसे बनाया? आज हम कुछ ऐसी ही चीज़ों के बारे में संक्षेप में जानेंगे।

पहली बात करते हैं डायनामाईट की। इसका जिक्र मैंने भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेताओं के लेख में भी किया था। डायनामाईट का आविष्कार एल्फ़्रेड नोबेल (1833-1896) ने किया। स्वीडन के इस वैज्ञानिक से नाइट्रोग्लीसरीन (Nitro Glycerin) की बोतल गलती से Keisulghur पर गिर गई, जो एक बारीक पाऊडर होता है। नोबेल को लगा कि वहाँ उसी समय एक छोटा ब्लास्ट होना चाहिये था। पर वो एक पेस्ट बन गया। नोबेल ने महसूस किया कि वो पेस्ट ज्वलनशील तो है परन्तु उससे घबराने की बात नहीं थी। उन्होंने उस पेस्ट का नाम डायनामाईट रखा। Dynamite एक ग्रीक शब्द Dunamis से बना है जिसका अर्थ पाऊडर होता है। नोबेल नहीं जानते थे कि वो पाऊडर आज वैश्विक खतरा बन चुका है।



1590 के दशक में इटली के एक वैज्ञानिक ने शीशे की नली से तापमान मापा। वो आविष्कार कारगर साबित हुआ और आज हम उसको थर्मामीटर के नाम से जानते हैं। वैज्ञानिक थे गैलीलियो।

क्या कभी आपने सोचा है कि बिना तारों के आपकी ज़िन्दगी कैसी हो गई है? जहाँ चाहो वहाँ से बात करो!! पर इसके बारे में विचार आया तो किसे आया? बचपन में इस वैज्ञानिक का नाम पढ़ा तो था पर फिर भूल गया था। ये थे मार्कोनॊ (१८७४-१९३७)।1901 में इटली के इस वैज्ञानिक ने विद्युत तरंगों को बिना तार के एक जगह से दूसरी जगह तक भेजने में सफलता पाई। उन्होंने इंग्लैंड के कार्नवाल से कनाडा के न्यूफ़ाऊंडलैंड तक विद्युत तरंगों को भेजा। यानि अटलांटिक महासागर के ऊपर से। उस एक आविष्कार ने आज के मोबाईल फ़ोन को जन्म दिया।

अगली बात करते  हैं कार की। पहली कार किसने और कब बनाई इसके बारे पता लगाना कठिन  है। कार के उपकरण बनाने में जर्मनी की तकनीक का आज मुकाबला नहीं है। जर्मनी के ही एक वैज्ञानिक डायबलर ने 1886 में पेट्रोल से चलने वाला एक इंजन बनाया। इस इंजन को एक वाहन में लगा कर उसे कईं किलोमीटर तक सफलता पूर्वक चलाया।
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Thursday, July 7, 2011

क्या आप जानते हैं अब तक कितने भारतीयों को नोबेल पुरस्कार मिला है? Nobel Prize Indian Winners

नोबेल पुरस्कार-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार। इसकी शुरुआत वर्ष 1901 से हुई और इसे एल्फ़्रेड नोबेल के नाम पर रखा गया। नोबेल स्वीडन के निवासी थे व डायनामाईट के आविष्कारक। नोबेल पुरस्कार भौतिकी, रसायन विज्ञान, शरीर विज्ञान या चिकित्सा, साहित्य और शांति के लिये दिये जाते हैं।

आज हम बात करेंगे उन भारतीयों की जिन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। सर्वप्रथम नाम आता है गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का। टैगोर को साहित्य के लिये 1913 में पुरस्कृत किया गया। वे सम्मान पाने वाले पहले एशियाई भी रहे। रवींद्रनाथ (7 मई 1861 – 7 अगस्त 1941) बंगाली कवि, संगीतकार, लेखक व चित्रकार थे। गीतांजलि के लेखक ने महज आठ वर्ष की उम्र से ही कवितायें लिखनी शुरु कर दी थी। वे एक ऐसी हस्ती रहे जिन्होंने हिन्दुस्तान और बंग्लादेश-दो देशों के लिये राष्ट्रगान लिखा।

दूसरा नाम आता है सर चंद्रशेखर वेंकटरमन का। सर सी.वी रमन (7 नवम्बर 1888 - 21 नवम्बर 1970) ने भौतिकी के क्षेत्र में यह सम्मान 1930 में हासिल किया। जब प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम से गुजरता है तब उसकी वेवलैंथ (तरंग की लम्बाई) में बदलाव आता है। इसी को रमन इफ़ेक्ट के नाम से जाना गया।

हरगोबिंद खुराना (भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक)  उन्हें चिकित्सा के लिये नोबेल मिला। खुराना ने मार्शल व. निरेनबर्ग और रोबेर्ट होल्ले के साथ मिलकर चिकित्सा के क्षेत्र में काम किया। उन्हें कोलम्बिया विश्वविद्यालय की ओर से 1968 में ही होर्विट्ज़ पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। वे 1966 में अमरीका के नागरिक बने।

अल्बानिया मूल की भारतीय मदर टेरेसा (26 अगस्त 1910 - 5 सितम्बर 1997) को 1979 में शांति नोबेल पुरस्कार मिला। उनका असली नाम एग्नेस गोन्शा बोजाज़्यू था। उन्होने 1950 में मिशनरी ऑफ़ कोलकाता की स्थापना की। 45 बरसों तक उन्होंने अनाथ व गरीब बीमार लोगों की सेवा करी।

सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर को 1983 में भौतिकी के लिये समानित किया। वे भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक थे। उन्होंने तारों के क्षेत्र में खोज करी। वे सर सी.वी रमन के भतीजे थे। उन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय में 1937 से 1997 तक काम किया। वे 1953 में अमरीकी नागरिक बने।

वर्ष 1998  में अमर्त्य सेन को अर्थशास्त्र में उनके योगदान के लिये नोबेल पुरस्कार मिला। उन्होंने अकाल में भोजन की व्यवस्था के लिये अपनी थ्योरी दी। फ़िलहाल वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर के तौर पर कार्यरत हैं। ऑक्सब्रिज विश्वविद्यालय के शीर्ष पर काबिज होने वाले वे प्रथम भारतीय ही नहीं अपितु प्रथम एशियाई भी हैं। पिछले चालीस बरसों से उनकी तीस से अधिक भाषाओं में उनकी पुस्तकें छप चुकी हैं।

भारतीय मूल के अमरीकी वेंकटरमन रामाकृष्ण को 2009 में रसायन शास्त्र के क्षेत्र में नोबेल मिला। उन्हें सेट्ज़ और योनाथ के साथ ही नोबेल प्राप्त हुआ। वे कैम्ब्रिज में अभी MRC Laboratory Of Molecular Biology में हैं।

कुल मिलाकर बात करें तो विशुद्ध रूप से रवींद्रनाथ टैगोर, सी.वी. रमन व अमर्त्य सेन ही भारतीय हैं जिन्हें नोबेल मिला है। बाकि सभी या तो विदेशी नागरिक रहे या विदेशी मूल के भारतीय नागरिक।
वैसे विडम्बना यह भी कि विनाश की जड़ डायनामाईट के आविष्कारक के नाम पर नोबेल का शांति पुरस्कार मिलता है
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Thursday, June 23, 2011

क्या आप जानते हैं - कैसे निर्धारित होता है आपके इलाके का पिनकोड? Postal Index Number

पिनकोड का मतलब है Postal Index Number । इसका इस्तेमाल भारतीय डाक सेवा चिट्ठी, पत्र, डाक, रजिस्टर्ड पोस्ट इत्यादि को दिये गये पते पहुँचाने के लिये होता है। पर ये सोचिये कि किसी क्षेत्र का पिनकोड निर्धारित कैसे होता है? किस तरह भारतीय डाक इसका उपयोग करता है? किसी डाक पर पिनकोड न लिखें तो क्या होगा?

भारतीय डाक ने पिनकोड का प्रयोग करना 15 अगस्त 1972 से शुरू किया। भारतीय डाक ने स्वयं को नौ क्षेत्र में बाँटा है। जिनमें से आठ क्षेत्रीय व एक सैन्य विभाग है। आपका पिन छह अंकों का होता है। पहला अंक वो राज्य व क्षेत्र होता है जिसमें आपका डाकघर है। मतलब यदि पहला अंक एक (1) है तो आपका डाकघर दिल्ली, हरियाणा, पंजाव, हिमाचल, चंडीगढ़ अथवा जम्मू व कश्मीर में ही है। इसी तरह दूसरा अंक उप-क्षेत्र दर्शाता है, तीसरा अंक जिला व अंतिम तीन अंक डाक-घर का नम्बर इंगित करता है।

वे नौ क्षेत्र/राज्य जो पिन कोड के अंतर्गत आते हैं। पहला अंक-
1 - दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर व चण्डीगढ़।
2 - उत्तर-प्रदेश, उत्तराखण्ड
3 - राजस्थान, गुजरात, दमन-दीव, दादर-नागर हवेली।
4 - गोआ, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़।
5 - आंध्रप्रदेश, कर्नाटक।
6 - तमिल नाडु, केरल, पुद्दुचेरी व लक्षद्वीप।
7 - उडीसा, पश्चिम बंगाल, अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणीपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय, अंडमान-निकोबार।
8 - बिहार व झारखंड।
9 - आर्मी पोस्ट ऑफ़िस।
दूसरा  व तीसरा अंक-
11         दिल्ली
12/13 हरियाणा
14/15 पंजाब
16         चंडीगढ़
17         हिमाचल प्रदेश
18-19 जम्मू-कश्मीर
20 से 28 उत्तर-प्रदेश/उत्तराखंड
30 से 34 राजस्थान
36 से 39 गुजरात
40         गोआ
40 से 44 महाराष्ट्र
45 से 48 मध्यप्रदेश
49         छत्तीसगढ़
50 से 53 आंध्रप्रदेश
56 से 59 कर्नाटक
60 से 64 तमिलनाडु
67 से 69 केरल
682         लक्षद्वीप
70 से 74 पश्चिम बंगाल
744         अंडमान-निकोबार
75 से 77 उड़ीसा
78         असम
79         अरूणाचल प्रदेश
793, 794, 783123 मेघालय
795           मणिपुर
796        मिज़ोरम
799          त्रिपुरा
80 से 85         बिहार व झारखंड

जब एक ही राज्य में दो इलाकों का एक नाम हो तब इस पिनकोड का फ़ायदा होता है। इसलिये भारतीय डाक ने इसका प्रयोग करना प्रारम्भ किया।

"क्या आप जानते हैं" स्तम्भ के अन्य लेख पढ़ने के लिये यहाँ जायें। आपको ये लेख कैसे लगते हैं अवश्य बतायें।
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Tuesday, December 21, 2010

क्या आप जानते हैं? क्या है सीमा सड़क संगठन और ड्राईवरों को कैसे बना रहा है अपने शब्दों से जागरूक Border Roads Organization Slogans

संविधान के अनुसार सड़क निर्माण की जिम्मेदारी किसी भी राज्य की सरकार की होती है। हम सभी जानते हैं कि सीमा की सुरक्षा सर्वोपरि है और हमारी सेना इस कार्य में दिन-रात लगी रहती है। सीमा की सड़कों को देश की अन्य सड़कों से जल्दी से जल्दी जोड़ा जाये जिससे यातायात में सुविधायें बढ़ सकें एवं सीमावर्ती क्षेत्रों के मार्गों को सुगम बनाया जाये इसी के मद्देनजर सीमा सड़क संगठन या Border Roads Organization की स्थापना की गई।
सीमा सड़क संगठन (BRO) का लोगो

7 मई 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसकी स्थापना की व इसके प्रथम चेयरमैन बने। आज इसके निदेशक, लेफ़्टिनेंट जनरल एम.सी बधानी हैं। यह संगठन उत्तर व उत्तर-पूर्वी राज्यों में तत्पर्ता से कार्य कर रहा है। इसे हिमालय की ठंड व राजस्थान की रेत और तपतपाती गर्मी से जूझना पड़ता है और पहाड़ी राज्यों के कठिन रास्तों से भी गुजरना होता है।

सीमा सड़क संगठन की वेबसाईट पर जारी ये संदेश पढ़िये:


"हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विषम क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण केवल कंक्रीट और सीमेन्ट से नहीं हुआ है बल्कि इसमे भारत के सीमा सड़क संगठन के वीर जवानों का खून भी शामिल है । कई वीरों ने कार्य करते हुए ड्यूटी के दौरान अपनी जान गवांई है । इन वीरो के लिए , जो सदा खतरों से खेलते हैं और मौत पर हंसते हैं, उनके  लिए ड्यूटी हमेशा पहले रही है । ये सभी वीर भारत के विभिन्न भागों से आते हैं और अपने देश की सुरक्षा के लिए न केवल हमेशा तत्पर रहते हैं बल्कि पड़ोसियों को खुशहाल बनाने में भी भरपूर योगदान दिया है ।"

हम सभी जानते हैं कि दिल्ली व अन्य किसी भी बड़े शहर में हर व्यक्ति अपनी जान हथेली पर लेकर सुबह घर से बाहर कदम रखता है। अपने आप को पायलट समझते कुछ ड्राईवर सड़कों पर घूम रहे होते हैं जिनसे बच पाना एक वीरता पुरस्कार से कम नहीं होता। सड़क किनारे आपको इस तरह के वाक्य अमूमन मिल जायेंगे जो आपको आगाह करते रहेंगे कि आप गाड़ी धीमे चलायें।

अभी अपनी जम्मू यात्रा के दौरान कुछ ऐसे ही वाक्य BRO की तरफ़ से लिखे हुए देखे। कुछ अलग लगे इसलिये आप के साथ साझा करने चाहे:

  • Keep Your Nerves On The Sharp Curves
  • This is the Highway, Don't Think it a Runway
  • Licence to Drive not to Fly
  • इतनी जल्दी क्या है प्यारे, रुक कर देख प्रकृति के नजारे
  • If Married, Divorce Speed
और ये सबसे अच्छा लगा:
  • रफ़्तार का शौक है तो पी.टी.ऊषा बनो!!!

॥जय जवान, जय हिन्द॥

"क्या आप जानते हैं"  के छोटे से स्तम्भ में लम्बा-चौड़ा लेख नहीं अपितु आप के लिये होगी रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी। चाहें इतिहास हो, विज्ञान, भूगोल, घर्म या अन्य कोई भी और विषय हो। यदि आप भी इन विषयों के बारे में कोई जानकारी बाँटना चाहें तो कमेंट अथवा ईमेल के जरिये जरूर सम्पर्क करें।
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Sunday, December 5, 2010

क्या आप जानते हैं? कनॉट प्लेस का इतिहास और सहारा के रेगिस्तान में कितने भारत समा सकते हैं? Connaught Place and Sahara Desert

आज बात करते हैं सहारा के रेगिस्तान की। अफ़्रीका के महाद्वीप में कईं देशों में फ़ैला यहा रेगिस्तान विश्व का सबसे बड़ा रेगिस्तान है। ये इतना बड़ा है कि उत्तर अफ़्रीका के सभी देशों में यह फ़ैला हुआ है और एक तरह से यह पूरे यूरोप जितना बड़ा है|

अफ़्रीका के जिन 12 देशों में यह फ़ैला हुआ है वे हैं: अल्जीरिया, चाड, मिस्र, एरीत्रिया, लीबिया, माली, मौरिशियाना, मॉरोक्को, नाइजर, सूदान, ट्यूनिशिया व पश्चिमी सहारा। इसकी लम्बाई 4800 किमी है व यह 1800 किमी चौड़ा है। इसका अनुमानित क्षेत्रफल 94 लाख sq.km है जो कि भारत से करीबन तीन गुना अधिक है। यानि हमारे जैसे तीन देश सहारा में समा सकते हैं। अरब के रेगिस्तान से यह चार गुना बड़ा है। चीन का गोबी इसका सातवाँ हिस्सा है व दक्षिणी अफ़्रीका का कालाहारी रेगिस्तान भी इसका दसवाँ हिस्सा ही है।
नासा द्वारा अंतरिक्ष से लिया गया एक चित्र

लीबिया का रेगिस्तान
कैसे आता है भँवर?

जब भी कभी पानी का तेज बहाव किसी भी तरह की रुकावट से टकराता है, उसी समय उसमें कईं तरह के चक्कर बन जाते हैं और पहले से भी अधिक तीव्रता से घूमने लगता है। यही टकराव भँवर पैदा करता है। नदी में ये चट्टान के टकराने मात्र से उत्पन्न हो जाता है जबकि बड़े समुद्र में दो विपरीत दिशा से आने वाली विशाल लहरें इसकी उत्पत्ति का कारण बनती हैं।
यह एक पूर्णत: प्राकृतिक क्रिया है। नार्वे में विश्व के दो सबसे ताकतवर भँवर 37 किमी प्रति घंटा और 28 किमी प्रति घंटा के रफ़्तार से आते हैं।

चलते चलते:
आपने दिल्ली के कनॉट प्लेस के बारे में तो सुना ही होगा। ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया के तीसरे बेटे प्रिंस आर्थर को "ड्यूक औफ़ कनॉट" की उपाधि दी गई थी। कनॉट आयरलैंड में एक जगह का नाम हुआ करता था। उन्हीं के नाम पर आज के सी.पी का नाम रखा गया। इसके आर्किटेक्ट थे रॉबर्ट रसैल और इसका निर्माण 1929 से 1933 के बीच किया गया।
क्या आप जानते हैं कि इस नाम से देहरादून में ही नहीं बल्कि हांगकांग और लंदन में भी जगह हैं। राजनेताओं ने इसका नाम बदल कर राजीव चौक रख दिया। सरकारी कागज़ों में बेशक इसका नाम बदल दिया हो पर दिल्ली के दिल में बना यह लोगों के लिये अभी भी सी.पी ही है।

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Saturday, November 27, 2010

क्या आप जानते हैं भाग-१- दिल्ली का नाम कैसे पड़ा और २६ नवम्बर क्यों है खास? (माइक्रोपोस्ट) Name of Delhi and Significance of 26 November

"गुस्ताखियाँ हाजिर हैं" की शुरुआत के बाद आज से धूप-छाँव पर आ रहा है एक और नियमित स्तम्भ- "क्या आप जानते हैं"?

"क्या आप जानते हैं"  के छोटे से स्तम्भ में लम्बा-चौड़ा लेख नहीं अपितु आप के लिये होगी रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी। चाहें इतिहास हो, विज्ञान, भूगोल, घर्म या अन्य कोई भी और विषय हो। यदि आप भी इन विषयों के बारे में कोई जानकारी बाँटना चाहें तो कमेंट अथवा ईमेल के जरिये जरूर सम्पर्क करें। 

दिल्ली का नाम कैसे पड़ा?


भारत की राजधानी है दिल्ली। मीडिया वाले कभी इसे दिल वालों की दिल्ली तो कभी दरिंदों की दिल्ली कहकर बुलाते हैं। इसका इतिहास आज से पाँच हजार पहले पांडवों के समय का बताते हैं जब ये पांडवों की राजधानी हुआ करती थी और इसका नाम इंद्रप्रस्थ हुआ करता था। हम ये भी जानते हैं कि अंग्रेजों ने कलकत्ता के बाद 1911 में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। पर क्या आप जानते हैं दिल्ली का नाम कैसे "दिल्ली" पड़ा कैसे?

दरअसल दिल्ली का नाम कैसे पड़ा इस बारे में कईं तरह की कहानियाँ हैं। ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि वर्ष 50 ईसा पूर्व (BC) में मौर्य राजा हुआ करते थे धिल्लु या दिलु। उन्होंने इस शहर का निर्माण किया और इसका नाम दिल्ली पड़ गया। कुछ कहते हैं कि तोमरवंश के राजा ने इस जगह का नाम "ढीली" रखा क्योंकि राजा धव का बनाया हुआ लोहे का खम्बा कमजोर था और उसको बदला गया। यही "ढीली" शब्द बाद में बदल का दिल्ली हो गया। तोमरवंश  के दौरान जिन सिक्कों की परम्परा थी उन्हें "देहलीवाल" कहा करते थे। तो कुछ जानकार दिल्ली को "दहलीज़" का अपभ्रंश मानते हैं। क्योंकि गंगा की शुरुआत इसी "दहलीज़" से होती है यानि दिल्ली के बाद होती है। कुछ का मानना है कि दिल्ली का नाम पहले धिल्लिका था।

मतलब यह कि जिस दिल्ली को आप और मैं जानते  हैं उसका इतिहास इतना पुराना है कि उसका असली नाम अब कोई नहीं जानता। दिल्ली को "इंद्रप्रस्थ" बुलाये जाने के बारे में आप लोगों का क्या ख्याल है?

२६ नवम्बर क्यॊं है हमारे लिये खास?

२६ नवम्बर २००८ को पाकिस्तानी आतंकियों ने मुम्बई पर हमला किया। उसके बाद से हमारी सरकार यही राग अलाप रही है कि पाकिस्तान को नहीं छोड़ेंगे। अब इस पाकिस्तानी राग की आदत सी पड़ गई है। नये नये मुख्यमंत्री  पृथ्वीराज चौहाण राष्ट्रगान के दौरान वहाँ से चले जाते हैं तो आप समझ सकते हैं कि कितना गम्भीर होकर हमारे राजनेता काम कर रहे हैं और कितना राष्ट्रप्रेम उनके मन में है।

खैर इस २६ नवम्बर को सभी जानते हैं पर एक और २६ नवम्बर हमारे लिये अहम है। 1949 में इसी दिन हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ था जो २६ जनवरी 1950 से लागू किया गया।

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