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Tuesday, August 9, 2011

मैं अब तक क्यों मौन हूँ? Why Am I Silent Spectator of Crime happening in my city?

मित्रों,

आज से चार वर्ष पूर्व मैंने यह कविता लिखी थी। हो सकता है आप में से कुछ लोगों ने यह पढ़ी हुई हो पर आज स्वतंत्रता दिवस विशेष पर यह आज भी सामयिक है। देश में कितनी पीढ़ा और असंवेदनशीलता है यह कविता उसके बारे में बताती है। कहते हैं जुर्म सहने और जुर्म देख कर आवाज़ उठाने वाला उतना ही बड़ा गुनाहगार है जितना जुर्म करने वाला.. और आज के इस दौर में शोषण को देखते रहने वाले लोगों की तादाद बढ़ रही है....

अँधा वो नहीं,

जो चलने के लिये,
डंडे का सहारा ले,
अँधा तो वो है,
जो अत्याचार होते देखे,
और आँखें फिरा ले।

बहरा वो नहीं,
जिसको सुनाने के लिये,
ऊँचा बोलना पड़ता है,
बहरा वो है,
जो कानों में रूई ठूँस कर,
इंसाफ किया करता है।

गूँगा वो नहीं,
जिसके मुँह में ज़ुबान नहीं,
गूँगे वो हैं,
जो चुप रहते हैं जब तक,
रुपया उन पर मेहरबान नहीं।

यहाँ अँधे, गूँगे बहरों की,
फ़ौज दिखाई देती है,
यहाँ मासूम खून से तरबतर,
मौजें दिखाई देती हैं।

खूब सियासत होती है,
लोगों के जज़्बातों पर,
जश्न मनाया जाता है,
यहाँ ज़िंदा हज़ारों लाशों पर।

यहाँ धमाके होने चाहिये
ताकि खाना हजम हो सके,
मौत का तांडव न हो तो,
चेहरे पर रौनक कैसे आ सके।

यहाँ बगैर लाल रंग के,
हर दिन बेबुनियाद है,
लाशों को ४७, ८४, ०२ की,
काली तारीखें याद हैं।

कोई पूछे उन अँधों से,
कैसे देखा करते हो बलात्कार,
कोई पूछे उन बहरों से,
कैसे सुन लेते हो चीत्कार,
कोई पूछे उन गूँगों से,
क्यों मचाया है हाहाकार।

मुझसे मत पूछना,
इन सवालों को,
मुझे नहीं पता मैं अँधा हूँ,
बहरा हूँ, गूँगा हूँ या कौन हूँ?
हद है!
हर सवाल पर,
मैं अब तक क्यों मौन हूँ??
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Sunday, January 23, 2011

जीवन बुलबुला Life is the bubble Hindi poem

जीवन दरिया, बहता पानी,

जीवन आकाश, अनन्त अनादि,




जीवन प्राण, जीवन वायु,
जीवन रेत, जीवन खेत,
जीवन आशा, जीवन निराशा,
जीवन धूप, जीवन छाँव


जीवन रंग, जीवन संगीत,
जीवन गीत,जीवन मीत,
जीवन हार, जीवन जीत

जीवन डगर, जीवन मंज़िल
जीवन समंदर, जीवन साहिल

जीवन पंछी, जीवन उड़ान,
जीवन आस्था, जीवन विश्वास
जीवन वृक्ष, जीवन समर्पण

जीवन बुलबुला...
क्षणभंगुर!!
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Friday, December 10, 2010

तुम्हीं हो कल, आज हो तुम...

कोयल की कूक तुम्हीं से,
हर शे’र की बहर हो तुम।
खेतों का लहलहाना तुम से

सागर की लहर हो तुम॥

चाँद की चाँदनी तुम से,
कली का मुस्कुराना तुम
मिट्टी की सुगँध तुम्हीं से,
बहारों का हो आना तुम॥
 

हीरे की चमक तुम्हीं से
घटाओं का छा जाना तुम।
प्रेम का है स्पर्श तुम्हीं से
शाम का ढल जाना तुम॥

कविता का आगाज़ तुम्हीं से,
मधुर संगीत का साज़ हो तुम।
कविता पूरी होती तुम्हीं से,
तुम्हीं हो कल, आज हो तुम।
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Saturday, October 30, 2010

त्योहार, बाज़ारवाद और बदलते रिश्ते Commercialization Of Festivals and Changing Relations

त्योहारों के मौसम में
बाज़ार में
प्यार की सेल
लगी है,
लोग
रहीम व कबीर 
के दोहे भूल गये हैं,
उन्हें चॉकलेट द्वारा
बातों में मिठास घोलना
सिखाया जा रहा है।

बाज़ार में महँगे उपहार
रिश्तों को
मज़बूत करना
चाह रहे है
मकान को सुंदर
बनाने के लिये
तरह तरह के
झालर
खरीदे जाते हैं

मन के झालर
उखड़े पड़े हैं,
उन पर गोंद
चिपकी हुई है
शायद महँगे झालर
दीवारों पर से उतरी हुई
सीमेंट और सफ़ेदी
की परत
को ढँक देंते हैं

हर "ब्रैंड"
परिवार और
रिश्तों को मज़बूत
करना चाहता है,
रिश्ते मज़बूत
होते हैं
लोग सामाना खरीदते हैं
उस ब्रैंड से उनका
नया रिश्ता बनता है

घरों को
सर्फ़ से चमकाया,
चमचमाती लाइटों से
सजाया जाता है,
दिल को
साफ़ करने का
कोई साबुन
नहीं मिलता है बाज़ार में!!

लोगों के दिलों में
प्यार व मिठास 
घोलने
के लिये,
ये त्योहार हर साल
आते हैं,
रिश्ते जस के तस हैं
मन की अयोध्या में
राम आयें
या न आयें,
बदलते समय के
बदलते रिश्तों से
बाज़ार हमेशा खुश हैं।

आप सभी पाठकों व मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
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Thursday, January 1, 2009

नव वर्ष की औपचारिकतायें

नव वर्ष की औपचारिकतायें

आगे बढ़ते हुए कहीं हम ये भूल न जायें

साल के आखिरी दिन
किये जाते हैं नये साल से वायदे
खाईं जाती हैं कसमें,
एक दूसरे पर मर मिटने की
शराब सिगरेट न पीने की
सड़क पर न थूकने की
समय पर काम करने की
दूसरों से न लड़ने की
और हर वो काम न करने की
जिसे हम लोग "बुरा" समझते हैं
भेजें जाते हैं ईमेल और स्क्रैप,
बधाई संदेशों का लग जाता है तांता
एस.एम.एस के जरिये,
हर कोई लगा रहता है
औपचारिकतायें निभाने में,
और कहता फिरता है
"नया साल खुशियाँ लाये"
पर ये होता है सिर्फ
साल के पहले और अंतिम दिनों के लिये,
बाद में भुला दिये जाते हैं
किये गये हर वादे
और हर बार की तरह
"नव वर्ष" भी भूल जाता है सब कुछ
निभा जाता है चंद "औपचारिकतायें",
और दे जाता है
सुनामी, अकाल, भूकम्प, बाढ़
और कुछ बम धमाके, आतंकी हमले
दु:ख, शोक, आँसू,
नव वर्ष हम सब को
इन सब से लड़ने की शक्ति दे...

जय हिन्द
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