धूप छाँव
मंज़िल पर चल पड़े हैं पाँव, कभी है धूप कभी है छाँव
Tuesday, June 26, 2018
ट्विटर व फेसबुक पर मेरी क्षणिकाएँ
Sunday, March 13, 2016
क्षणिकाएँ Kshanikaayein
समय
कितना कहा
रूका ही नहीं
आज शायद
किसी दुश्मन ने
आवाज़ दी होगी!!
दर्द
इसकी भी आदत
पड़ ही जायेगी
ये दर्द अभी नया जो है...
चेहरे
कितना घूमा..
पर मुखौटे ही देखने को मिले
चेहरे कहीं खो गये हैं क्या?
आज आइना भी
मुझसे यही कह रहा है!!
मिलावट
मिलावट का दौर
जारी है
आज तो मैं भी
इससे अछूता नहीं रहा...
माँ
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
Tuesday, February 23, 2016
Satire -JNU - Jat Agitation
#Satire
Freedom 251
Freedom मतलब आज़ादी - JNU मांगे आज़ादी - कश्मीर की आज़ादी
कैसे ?
भारत की बरबादी से!
और जाट?
जाट भी तो भारत को बरबाद ही कर रहें हैं? हरियाणा जला कर..
तो?
JNU के देशद्रोहियों को कैप्टेन पवन जैसे जाटों के सामने खडा कर दो..
मामला सुलझ जायेगा..
और फोर्चुनेर में घूमने वाले जाट?
- बेचारे ग़रीब हैं
Freedom 251 दे दो..
जो लोग ये कहते हैं कि भूतों ने भारत की बरबादी के नारे लगाए..
उनका क्या?
ठीक कहते हैं
भूतों ने लगाये क्योंकि
विडीयो में उमर ख़ालिद था ही नहीं
तो फिर भारत की बरबादी कौन चाहता है?
#FreedomOfExpression आबाद रहे
देश चाहें बरबाद रहे।
#तपन
#Tapan
जय हिन्द
वन्देमातरम्
भारत माता की जय!
Monday, February 15, 2016
Hindi Poem - Radha Krishna Meera Shyam Love
1)
जो राधा से किया कृष्ण ने
जो कृष्ण को मिला राधा से
जब गोकुल छोड़ रहा था कन्हैया
तो राधा ने न रोका
न टोका
और न ही पूछा कि
फिर कब मिलोगे?
न कृष्ण ने दी दिलासा!
राधा की आँखों में
देख लिया होगा प्यार
और राधा ने सुन ली होगी
कान्हा के दिल के सागर से निकली
बांसुरी की वो धुन
फिर बिछड़े तो न मिले..
और अमर हो गया
राधा कृष्ण का
वो निश्छल प्रेम
Love means surrender
Love means faith
Love means losing yourself
2)
प्रेम
मीरा का श्याम से
ज़हर को अमृत बना देने का प्रेम
शबरी और राम का झूठे बेर
खिलाने का निर्मल प्रेम
सीता राम का
समर्पण और कर्त्तव्य-अग्नि
की कसौटी से गुज़रता अविरल प्रेम
Love doesn't demand anything. Where there is demand, there is no love.
Friday, September 25, 2015
आखिर क्यों बेजुबानों को मारा जाता है ईद पर? Stop killing animals on EId
साल में दो मुख्य ईद होती हैं। एक रमजान माह में मीठी ईद जब मुस्लिम भाई सेवइयां बाँट कर सभी के मुँह में मिठास घोलते हैं।
दूसरी ईद तब आती है जब किसी बेज़ुबान की मिठास छीन ली जाती है। ये विरोधाभास क्यों? किसी जानवर को भी जीने का हक़ बनता है।
बलिदान करना है तो अहंकार क्रोध लालच जैसी अनेक बीमारियाँ हैं। उनका करो।
हिन्दू धर्म में भी बलि चढ़ाई जाती थी। किन्तु समय के साथ बदलाव आया है। शुभ काम में अब नारियल फोड़ा जाता है। कलकत्ता का काली मन्दिर एक अपवाद हो सकता है पर भारत के अधिकतर भू भाग में अब मन्दिर में बलि नहीं चढ़ाई जाती।
हर युग में हमें ऐसे महात्मा ज्ञानी मिले जिन्होंने हिन्दू धर्म की कुरीतियों को सही दिशा दी और हमने उसे अपनाया भी।
खुदा ने आदमी भी बनाया और बकरे भैंस ऊँट भी। खुदा ये नहीं चाहेगा कि उसका बनाया इंसान उसी के बनाये पशु को मारे। मैं नहीं समझता वह खुश होगा।
ये ईद केवल इंसानों के लिए नहीं सब के लिए मुबारक हो ऐसी उम्मीद करता हूँ। सेवइयां खिलाएं मिठाइयां बाँटें!
#ईद_मुबारक
जय हिन्द
Monday, September 21, 2015
पल!
सोचा थम जाए
पर फ़िसल जाता है
सोचा गुजर जाए
पर रुक जाता है!
बेवफ़ा है पल
फिर भी
वफ़ा की इससे उम्मीद
रहती है हर पल!
Saturday, April 13, 2013
ऋग्वेद से जानें कितनी है प्रकाश की गति Rigveda - Speed of Light
वेदों में सबसे पुराना है ऋग्वेद है। क्या आप जानते हैं कि ऋग्वेद में सूर्य की प्रकाश की गति कितनी बताई हुई है? 2202 योजन प्रति आधा निमेष।
1 योजन = 9 मील और 16/75 सेकंड होता है एक निमेष।
इसका मतलब हुआ 8/75 सेकंड में 2202 * 9 मील या कहें कि 1 सेकंड में 2202*9/8*75 मील।
ये उतना ही बैठेगा जितना आज हमें किताबों में बताया जाता है। यानि 1,86,000 मील प्रति से. प्रकाश की गति नापने के लिये आधुनिक व वैज्ञानिक तरीके से तैयार यंत्रों की सहायता ली जाती है। उसी गति को हमारे ऋषियों ने उस समय के वैज्ञानिक आधार से निकाला था। कैसे किया ये तो रहस्य है। लेकिन इतना तय है कि उस काल का विज्ञान हमारे आज के समय से कहीं ज्यादा आगे था। जिस ईश्वर की खोज आज हमारे वैज्ञानिक कर रहे हैं उसी ईश्वर को ऋषियों ने योग व ज्ञान के आधार पर जान लिया था।
आप को जहाँ से भी इस तरह की वैदिक जानकारी पता चले कृपया अवश्य बाँटें। एक दिन ऐसा आना चाहिये कि वेदों को स्कूलों में पढ़ाया जाये।
जय हिन्द
वन्दे मातरम
Thursday, March 28, 2013
दिल्ली के किस विधायक ने खर्च किया है कितना फ़ंड - मेरी पहली RTI का जवाब MLA Funds allocated and released to Delhi MLAs - My First RTI
जानकारी के लिये बताता चलूँ कि दिल्ली में एक विधायक को साल में चार करोड़ रू मिलते हैं। 2010-11 तक दो करोड़ मिला करते थे।
पिछले चार सालों में प्रत्येक विधायक को 12 करोड़ रूपये विधायक निधि में मिले हैं।
उत्तरी, दक्षिणी व पूर्वी नगर निगम के क्षेत्र के आधार पर विधायकों को बाँटा गया है। आप देखेंगे कि सभी आँकड़े (लाख रू) के अनुसार हैं। मतलब यदि 400 लिखा है तो उसे चार करोड़ पढ़ें।
जैसे मेरे इलाके शकूर बस्ती से भाजपा के विधायक हैं श्याम लाल गर्ग। काम कुछ खास नहीं किया है, एक फ़ुट-ऑवर ब्रिज बना है जो इस्तेमाल नहीं होता। बकाया राशि 19 लाख, बाकि कहाँ गई, पता नहीं।
नीचे केवल हाई-प्रोफ़ाइल विधायक एवं मंत्रियों के नाम हैं। और 2012-13 (यानि 4 साल में जो उन्होंने खर्चा किया उसके बाद जितनी राशि बची है, वो लिख रहा हूँ। बची हुई राशि हो सकता है कि चुनावी साल यानि इस साल इस्तेमाल हो रही हो, जैसा कि हर नेता करता है।
जिन्होंने सबसे अधिक खर्च किया-
- किरण वालिया (मालवीय नगर, कांग्रेस, मंत्री ) - 1 लाख रू बकाया। सही में काम किया लगता है।
- डा. हर्षवर्धन (कृष्णा नगर से भाजपा विधायक) - एक भी रूपया बाकि नहीं। सारा पैसा अपने इलाके में लगाया।
- नरेंद्र नाथ (शाहदरा, कांग्रेस के विधायक, शायद मंत्री रह चुके हैं)- केवल छह लाख बाकि।
- अरविन्दर सिंह लवली - गाँधी नगर से विधायक, सरकार में मंत्री - मात्र 75000 रूपये बाकी।
सबसे कंजूस (काम के न काज के !)
- मुख्य मंत्री शीला दीक्षित (नई दिल्ली से विधायक) - 3.5 करोड़ की राशि बाकि। माना कि नई दिल्ली का इलाका सबसे साफ़ सुथरे और वीआईपी इलाकों में आता है पर इसका मतलब ये कतई नहीं कि आप काम है न करें।
- मंगत राम सिंघल(आदर्श नगर, मंत्री) - 2.5 करोड़ बाकी।
- राज कुमार चौहान (मंगोल पुरी, कांग्रेस) - मंत्री 2012-13 के आखिर तक बकाया 3 करोड़|
- हारून युसुफ़ (बल्लीमारान - गालिब का घर है जहाँ, कांग्रेस सरकार में मंत्री) - बकाया 4 करोड़। क्या करते हैं भई...आखिरी साल के लिये बचाया लगता है..
- जगदीश मुखी (जनकपुरी, भाजपा में अग्रणी) - लोकसभा भी जीते हैं। भाजपा का गढ़। 2 करोड़ बकाया।
- विजय कुमार मल्होत्रा - (विधानसभा में विपक्ष के नेता, ग्रेटर कैलाश से विधायक) - एक करोड़ बकाया राशि। कुछ काम भी कर लिया करिये जनाब।
ये हुई न बात!
मतीम अहमद(सीलम पुर), सुभाष चोपड़ा(कालकाजी), डा. हर्षवर्धन (कृष्णा नगर), सुभाष सचदेवा (मोतीनगर) वे नाम हैं जिन्होंने सारी पूँजी अपने क्षेत्र में लगाई है।
बिजेंद्र सिंह (नांगलोई जाट ) - केवल एक हजार बचा है।
मित्रों, यदि आप में से कोई इसकी प्रति मँगवाना चाहता है तो मुझे ईमेल कर सकता है। मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि मैं कोई भी RTI की scanned copy अपने ब्लॉग पर शेयर नहीं कर सकता।
ये केवल बड़े नाम हैं।
ये केवल शुरुआत भर है। मैं आगे भी RTI दाखिल करता रहूँगा और आप सबको सूचित करूँगा।
घर बैठे RTI कैसे दाखिल करें - यहाँ जानें।
जय हिन्द
वन्देमातरम
MLA Funds Allocation and Usage
घर बैठे RTI कैसे करें दाखिल How to submit RTI Application on internet
Step 1 -www.rtination.com पर जायें।
Step 2 - Submit RTI पर क्लिक करें।
Step 3 - वहाँ फ़ॉर्म में अपने बारे मं बतायें व अपना सवाल लिख दें।
Step 4 - ये साईट आपसे केवल 150 रू लेगी और आपके सवाल को ठीक से ड्राफ़्ट करेगी व ये भी बतायेगी कि आपका प्रश्न किस मंत्रालय व विभाग के अंतर्गत आता है।
Step 5 - आपको एक Document आपके ईमेल पर आयेगा। आप उसको स्कैन करिये। उस पर हस्ताक्षर कर के वापिस ईमेल कर दीजिये।
Step 6 - आपके हस्ताक्षर करी हुई प्रतिलिपि को rtination मंत्रालय व विभाग को भेज देगा। आपका काम हो गया।
सूचना का अधिकार आपका हक़ है।
अधिक जानकारी के लिये आप मुझे लिख सकते हैं। या फिर दी गई साईट पर भी जा सकते हैं।
Saturday, February 23, 2013
पहचान....
थोड़ा इंसान
थोड़ा शैतान
छुपाये हैं..
मुखौटे
कुछ लगाये हैं
थोड़ी पहचान
छुपाये हैं...
क्या आप जानते हैं कि भारत में व्यक्ति की औसत आयु कितनी है? विश्व में सबसे कम और सबसे ज्यादा औसत आयु किस देश में है? Average Age of a person in India and in World
अधिक जानकारी के लिये: World Bank
जय हिन्द
वन्देमातरम
Monday, February 18, 2013
क्या आप जानते हैं चिड़ियाघर की शुरुआत कहाँ हुई और भारत में कुल कितने चिड़िया घर हैं? Why Zoos are necessary?
अभी पिछले दिनों परिवार के साथ दिल्ली के चिड़ियाघर जाना हुआ। हजारों लोग, सैंकड़ों गाड़ियाँ एक के बाद एक आई जा रहीं थीं। अच्छी खासी भीड़ थी उस दिन। वैसे तो दस-पन्द्रह रूपये की टिकट है लेकिन यदि आपको भीड़ की धक्का मुक्की से बचना है तो प्रशासन आपको सौ रूपये की टिकट भी दे रहा है। काफ़ी बड़े हिस्से में बना हुआ है चिड़ियाघर। सभी तरह के पशु-पक्षी आपको मिल जायेंगे। शेरे, चीता, गीदड़ हाथी से लेकर जिराफ़, हिरन, नील गाय, चिम्पैंजी आदि भी। जानकारी के लिये बता दूँ कि भारत का एकमात्र गुरिल्ला मैसूर के चिड़ियाघर में है।
इन पशुओं को देखकर एक बात दिमाग में आई कि आखिर चिड़ियाघर की आवश्यकता क्या है? हम शेर को एक बड़े इलाके में रखते हैं, जहाँ वो घूम तो सकता है पर जंगल की तरह जहाँ जी में आये जा नहीं सकता। उसे एक छोटा सा इलाका मिल जाता है और उसके व मैदान के बीच एक गड्ढा होता है। मुझे विश्वास है कि कुछ सालों में वो शिकार करना भी भूल जायेगा। और जिन जंगली जानवरों के बच्चे चिड़ियाघर में जन्म लेते होंगे उनको तो कभी उनकी असली शक्ति का पता ही नहीं चलेगा। चिड़ियाघर में दो चीतों को तो एक छोटे से पिंजरे में डाल रखा था। चीता जो पृथ्वी पर सबसे अधिक गति से दौड़ लगा सकता है उसे पिंजरे में रहकर कैसा लग रहा होगा आप सोच सकते हैं... ऐसे ही भालू, जिराफ़, गीदड़.. सभी की एक सी हालत... चिड़ियाघर की जगह इन पशुओं को वनजीव अभयारण्य (sanctuary) में भेजना चाहिये जहाँ वे ठीक से साँस तो ले सकें...
चिड़ियाघर की शुरुआत 1500 ई.पू (BC) में मिस्र (Egypt) में हुई। फिर चीन व यूनान (Greece) में भी ये चलन में आये। गूगल पर ढूँढा तो पता चला कि इनकी जरूरत शोध करने व लोगों में पशुओं की जानकारी देने के लिये पड़ी। वैज्ञानिक इन पर शोध करते हैं। और कहीं कहीं पर विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण हेतु इनका प्रयोग होता है।
पर क्या जीवन भर इन पशुओं को गुलाम रखना इतना जरूरी है? मानव अपनी शक्ति का दिखावा कर रहा है। पर किन पर? बेजुबानों पर....विदेशों में चिड़ियाघर में जीवों की देखरेख के लिये कुछ मानक(standards) होते होंगे पर मुझे नहीं लगता कि भारत में इस तरह का कुछ भी होगा जहाँ इंसान ही जानवरों की तरह समझे जाते हों। जिस तरह हम फ़ाईव स्टार हॉटल के कमरे में ज़िन्दगी नहीं गुज़ार सकते उसी तरह ये पशु भी जंगल में जाने के लिये तड़पते होंगे। PETA आदि संस्था इस विषय पर लड़ रही हैं। वहीं दूसरी और कुछ बुद्धिजीवी चिड़ियाघरों को सही भी मानते हैं। www.whyzoos.com पर बताया हुआ है कि किस तरह से चिड़ियाघर जानवरों को लम्बे समय तक जीवित रखने में सहायक है व आखिर इनकी आवश्यकता है क्या।
भारत में इन " पशु जेलों" की तादाद 38 है, जिसकी लिस्ट आप विकीपीडिया पर देख सकते हैं।
वन्देमातरम
जय हिन्द
Monday, February 11, 2013
हवा...
गालों को चूम जाती है
सिर सहलाती-
पीठ थपथपाती है
तो कभी
तेज़ आँधी- तूफ़ान सी
सब कुछ उड़ा ले जाती है
कभी गर्म तो कभी सर्द
बहती रहती है
हवा के रुख से ही
मोड़ लेती है
पर जब हवा चलना छोड़ दे
तो
थम जाता है सफ़र...
Tuesday, July 24, 2012
उनकी आँखों में भी ख्वाब बसते हैं.... Pitney Bowes Visit to Gopal Dham - Shelter for Poor Children
गोपालधाम सेवाभारती द्वारा संचालित एक संस्था है जो देश के विभिन्न स्थानों से आये बच्चों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाती है। यहाँ कश्मीर, पूर्वोत्तर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, उड़ीसा आदि राज्यों से बच्चे आये हुए हैं। एक से लेकर दसवीं तक के बच्चों को सीबीएसई की शिक्षा दी जाती है। इन्हें साहिबाबाद के सरस्वती विद्या मन्दिर में पढ़ाया जाता है। इनमें से कुछ बच्चे अनाथ हैं, कुछ के माता पिता ने उग्रवाद, नक्सलवाद आदि कारणों से यहाँ भेजा हुआ है। सड़क से करीबन दो सौ मीटर की दूरी पर बने इस धाम में दो-तीन पार्क हैं, झूले हैं, पेड़ पौधे हैं और गौशाला भी है।
कक्षा |
कमरे |
प्रांगण |
हम वहाँ अपने साथ कहानियों की कुछ पुस्तकें, स्टेशनरी का सामान इत्यादि ले कर पहुँचे। वहाँ पहुँचकर व यह जानकर हम दंग रह गये कि ये बच्चे सुबह चार बजे उठते हैं व रात दस बजे तक सोते हैं। इसबीच पढ़ाई, खेल, सोना आदि दिनचर्या का हिस्सा है। एक बड़े से हॉल में पहली से लेकर चौथी तक की कक्षायें हो रहीं थीं। हॉल की दीवार पर स्वामी विवेकानन्द जी का बड़ा सा बैनर लगा हुआ था व सरस्वती जी, भारत माता, ओ३म की तस्वीर थी। चौथी कक्षा में महाराणा प्रताप व शिवाजी की भी तस्वीरें थीं। चौथी कक्षा तक करीबन -३० - ३५ -विद्यार्थी हैं व इससे ऊपर की कक्षाओं में साठ के करीब विद्यार्थी पढ़ते हैं। हमने उन बच्चों के ग्रुप बनाये और उनके साथ कहानी-कवितायें सुनने व पढ़ने लगे। मुझे याद है सुमित और सोनू.. दो भाई हैं.. क्या शानदार तरीके से पढ़ी उन्होंने कहानी की वो किताब। सुमित तो लगातार हर पुस्तक पढ़ने को आतुर था। उन सभी ने कागज़ का "कैटरपिलर" बनाया हुआ था। एक बच्चे का नाम था रवि डी। पहले तो मुझे समझ नहीं आया फिर बच्चों ने ही समझाया कि स्कूल में चार रवि हैं....:-)
वहीं दलवीर सिंह भी मिला। उसे हारमोनियम व तबला बजाने का शौक था। उसने हमें वन्देमातरम बजा कर सुनाया। कुछ देर तक हॉल में वन्देमातरम गूँज उठा। वो ज़ाकिर हुसैन को नहीं जानता था। पर उसकी आँखों में कुछ वैसे ही ख्वाब दिख रहे थे। उसने और उसी के कुछ साथियों ने देशभक्ति से ओतप्रोत के गीत भी सुनाया। कुछ लोग चित्रकारी करने लगे तो कुछ हमारे एक साथी से डांस सीखने लगे। हमने खो-खो व हैंड बॉल के लिये टीमें बना दी और फिर क्या था.. हम भी बच्चों में बच्चे बन गये...
कभी कभी बच्चे हमें सिखा जाते हैं.. बिना कारण हँसना.. लगातार खेलते रहना.. क्या खूब खेले थे वे.. गजब की तेज़ी...एक घंटा और निकल गया था... और देखते ही देखते जाने का समय हो गया था। हमने तस्वीरें खिंचाईं, उन्हें Kinder Joy नामक चॉकलेट दीं और वापसी की तैयारी करने लगे। खेल कर पसीने आ रहे थे.. पर थकान बिल्कुल न थीं। उन बच्चों की आँखों में सपने थे.. सपने धौनी, सचिन बनने के.. सपने फ़ौज में जाने के...एक से बढ़कर एक कलाकार... हमारे देश में ऐसे ही अनगिनत बच्चे हैं जो सचिन-सहवाग-ए.आर रहमान बनने की चाह लिये अपनी ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं...क्या इनके ख्वाबों के लिये आप और हम थोड़ा भी समय नहीं निकाल सकते?
अजय, हैप्पी, रवि डी, करछी, अंडा (दलबीर) ये कुछ ऐसे नाम हैं जिन्हें शायद मैं कभी न भूल पाऊँ... इनके साथ गुज़ारे हमारे तीन घंटे भी कम लगने लगे थे।
चलते चलते कुछ चित्र
कतार में बैठे बच्चे |
पुस्तक पढ़ने में मस्त |
"कैटरपिलर" |
गीत सुनाता हुआ अजय |
रवि डी, दलवीर, हैप्पी, अजय व साथी |
डांस करते हुए बच्चे |
हम सब |
पार्क |
छोटा सा मन्दिर |
"हे वीर हृदयी युवकों, यह मन में विश्वास रखो कि अनेक महान कार्य के लिये तुम सबका जन्म हुआ है" - स्वामी विवेकानन्द |
जय हिन्द
Monday, April 9, 2012
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता Girl Child And Hypocrisy In Indian Society
नोट: लेख लम्बे होने का खेद है किन्तु इससे छोटा करने की गुंजाईश नहीं थी।
हम गाय की पूजा करते हैं, गंगा-यमुना-सरस्वती को पूजते हैं, हिमालय एवं गिरिराज जी को देवता मानते हैं, बादल एवं वर्षा पूजनीय हैं, नभ, सूर्य, चँद्रमा, तारे, मिट्टी, कलश, जल, वायु, धरती, पशु, पक्षी -ये सब हमारे पूजनीय हैं। किसी न किसी कारण से कभी हम गऊ माता को रोटी खिलाते हैं तो कभी पीपल के पेड़ में जल देते हैं, तुलसी जी की पूजा करते हैं तो व्रतों में चाँद व तारों को देखकर व्रत खोलते हैं, सूर्य नमस्कार करते हैं और बारिश के लिये इंद्र की पूजा करते हैं। यदि हम इन सभी बातों पर गौर करें तो हम प्रकृति की पूजा करते हैं। प्रकृति के हर उस हिस्से की जिसे हम अभी देख रहे हैं। व्यक्ति से लेकर पत्थर तक, पहाड़, नभ से लेकर धरती तक जिसे हम देख सकते हैं उसी की पूजा करते हैं।
लेकिन आज बात परमात्मा की नहीं। बात है प्रकृति की। बात है सत्य के उस हिस्से की जिसे हम अनदेखा कर देते हैं। बात उस शक्ति की जो अर्धनारीश्वर रूप में शिव के साथ तो है पर शिव को मानने वाला यह समाज इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाता। यहाँ देवी के नवरात्रे मनाये जाते हैं, वैष्णौ देवी की कठिन यात्रा की जाती है, श्रीगंगा जी के घाट पर जाकर "पाप" धोये जाते हैं पर लड़की का होना अभिशाप से बदतर समझा जाता है या बना दिया जाता है।
कुछ बातें समझ से परे हो जाती हैं। लड़की के जन्म पर आज भी गाँव तो क्या शहर में भी अफ़सोस जताया जाता है। रीति-रिवाज़ ही कुछ ऐसे बन गये हैं। आदिवासी इलाकों में स्त्री की क्या हालत होती होगी यह सोच ही नहीं पाता हूँ। अफ़सोस इस बात का नहीं कि लड़की के होने पर दुखी क्यों होते हैं पर अफ़सोस इस बात का है कि समाज में यह बात गहराई तक अपनी पैठ बना चुकी है। ये समाज की जड़ों तक पहुँच कर समाज को नारी का शत्रु बना दिया है। पर यहाँ औरत ही औरत की शत्रु नज़र आती है। हालाँकि ये विचार उस पीढ़ी के विचार हैं जब लड़कियाँ घरों से बाहर नहीं निकलती थीं। पर फिर भी ..आखिरकार ऐसी नौबत आई ही क्यों? क्यों नहीं लड़का और लड़की एक समान माना जाता है? क्यों सरकारों को विज्ञापन जरिये यह नारे लगाने पड़ते हैं या फिर "लाडली" जैसी योजनायें शुरू करनी पड़ती हैं?
इसके कुछ कारण मैं सोच पाता हूँ - पहला, लड़का कमाता है और लड़की नहीं। पर आज के समय में दोनों ही कमाते हैं। दूसरा, लड़की पराया धन होती है और किसी दूसरे के घर चली जायेगी। शादी में खर्चा होगा। इसका एक अहम कारण दहेज-प्रथा भी है जो शहरी-रईसों में भी उतनी ही चलन में है जितनी यूपी-बिहार के गाँवों में। तीसरा कारण वंश का आगे बढ़ना माना जा सकता है। और यदि हम यह मानें कि अनपढ़ लोगों में लड़का-लड़की को अलग दृष्टि से देखते हैं तो यह कहना भी गलत होगा। पंजाब एवं हरियाणा में लड़का-लड़की का अनुपात सबसे कम है और यह दोनों ही राज्य शिक्षा एवं धन दोनों ही तरह से सुदृढ़ राज्य हैं। या इतने पिछड़े भी नहीं हैं। तो क्या यह मान लें कि पुरुष प्रधान समाज में वंश का आगे बढ़ाना एक प्रमुख कारण हो सकता है कन्या-भ्रूण हत्या का? लड़की के होने पर दुखी होने का? क्यों हर कोई लड़का होने का ही आशीर्वाद देता है? क्या कोई इसका एक कारण बता सकता है? हालाँकि मेरा पूरा विश्वास है कि भविष्य में ये भेद दूर हो जायेगा।
संसार तीन चीज़ों से चल रहा है - धन, ताकत एवं ज्ञान। यानि लक्ष्मी, शक्ति व सरस्वती देवियाँ। इनकी तो हम दीवाली व नवरात्रि में पूजा करते हैं। यदि हम पत्थर के टुकड़े टुकड़े कर दें इतने बारीक की जब हम माइक्रोस्कोप में देखें तो हमें एटम यानि अणु दिखाई दें वहीं अणु जो हमारे अंदर हैं। इन्हीं से बनता है हमारा शरीर भी। इन्हें कहते हैं क्वार्क। एटम से भी छोटा पार्टिकल। इनमें भार होता है, इनमें शक्ति होती है। वही शक्ति जो हम सब में है, वही शक्ति जो वायु में भी है और पत्थर में भी। जो पर्वत में , चट्टान में, नदी-झरनों में है। वही शक्ति जो पशु-पक्षी में है। वही शक्ति जिसकी हम पूजा करते हैं। जब देवियों की पूजा हो सकती है, कंजकों को पूजा जाता है तो लड़की होने पर मातम क्यों मनाया जाता है? और फिर नारी ही तो पुरुष को जन्म देती है....
मनुस्मृति में कहा है:
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होता है वहाँ देवताओं का निवास होता है।
फिर इतनी सी बात समझने में इतनी देर क्यों लगा रहा है हमारा समाज?
भाग-२
इंतज़ार के वे पल सबसे लम्बे लग रहे थे.....हर माँ को मेरा प्रणाम
दिन दस दिसम्बर २०११, रात्रि नौ बजे। हम अस्पताल में थे। मेरी पत्नी वहाँ भर्ती थी। हमारी डॉक्टर शहर में नहीं थी। हालाँकि स्टाफ़ पूरा ध्यान रख रहा है। वो रात उसके प्रसव-पीड़ा का भयानक दर्द उठा। इतना भयानक कि मैं और मम्मी मेरी पत्नी के साथ लगातार खड़े रहे और उसका हौंसला बढ़ाते रहे। किन्हीं कारणों से रात को डिलीवरी नहीं हो पाई। हमें बताया गया कि हमारी डॉक्टर सुबह आयेगी। उन्होंने हमसे बात भी करी और यकीन दिलाया कि जैसे ही आवश्यकता पड़ेगी वे चली आयेंगी। पर वो रात काटनी कठिन होती जा रही थी। कभी कभी ऐसा होता है कि आप कोई जरूरी काम कर रहे होते हैं इसलिये नींद को टालते रहते हैं पर हमारी तो नींद ही उड़ चुकी थी। एक ओर पत्नी की चीखें और लगातार दिये जाने वाले इंजेक्शन व ग्लूकोज़ तो दूसरी ओर था इंतज़ार.... सुबह का इंतज़ार..
सुबह के पाँच बज चुके थे। पत्नी की स्थिति में कोई सुधार नहीं। उसे बहलाया कि सुबह हो गई है तो डॉक्टर भी आ जायेगी। इंतज़ार खत्म होता दिखाई दे रहा था। पर तभी हमें बताया गया कि सिज़ेरियन ऑप्रेशन किया जायेगा और डॉक्टर आठ-नौ बजे तक आयेंगी। इंजेक्शन व ग्लूकोज़ दोनों निरंतर जारी थे। बच्चे की हृदयगति कम हो रही थी। एक समय आँख से आँसू आते हुए रोकने पड़ गये। सांत्वना देते देते कब अपनी सांत्वना खोने लगे हमे पता ही नहीं लगा.... इतना दर्द, इतनी पीड़ा.. शायद ईश्वर ने मुझे इसलिये उस रात वहाँ रोका था कि मैं जान सकूँ कि इस धरती पर जिसके माध्यम से मैंने जन्म लिया उस जननी का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर क्यों है!!
और तभी मैथिली शरण गुप्त ने भी कहा कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरियसी।
बहरहाल समय गुजरता गया और हम वैसे ही उस कमरे में खड़े रहे। इंतज़ार के वे पल सबसे लम्बे लग रहे थे। एक एक पल बरस लग रहा था। पौने दस बजे हमारी डॉक्टर आईं और उन्होंने ऑप्रेशन की मोहर लगाई। मेरी पत्नी को ऑप्रेशन थियेटर ले जाया गया। हम लोग उसके साथ थे। पिछली रात जो दर्द उठा था वो अभी उसके साथ था। बीस मिनट का इंतज़ार और साढ़े दस बजते ही हमारे घर श्रीलक्ष्मी का आगमन हुआ। और हमारे चेहरे पर मुस्कान छा गई। फ़ोन घुमाये गये और खुशखबरी बाँटी गई।
एक लड़की जब माँ बनती है तो उसका दूसरा जन्म होता है। यह कहावत सुनी थी देखी नहीं थी। लड़की के जीवन में जो बदलाव आते हैं वे एक लड़के के जीवन में नहीं आ सकते। शारिरिक व मानसिक बदलावों से जूझती है एक भारतीय नारी। शादी के बाद अपना घर छोड़ना होता है और किसी और घर में जाकर बाकि की ज़िन्दगी बितानी होती है। मैं सोच भी नहीं पा रहा हूँ कि यदि मुझे ऐसा करने को कहा जाये तो क्या मैं रह पाऊँगा? क्या कोई लड़का ऐसा कर भी सकता है? इस पुरूष प्रधान समाज में स्त्री को ही यह भार उठाना पड़ता है। शायद ईश्वर ने बच्चे को जन्म देने के लिये इसलिये भी स्त्री को चुना क्योंकि वह पुरुष से अधिक संयमशील है। उसे यह ज्ञात था कि एक स्त्री ही इस चुनौती को निभा सकती है। नौ महीने तक की शारीरिक व मानसिक तकलीफ़ झेलना कोई हँसी खेल तो नहीं!!
पिछले दिनों एक बात की और जानकारी हासिल हुई। "श्री" कहते हैं लक्ष्मी को, सम्पूर्ण विश्व को.. इसका व्यापक अर्थ हो सकता यह तो मालूम था। पर हम पुरूष के नाम के आगे "श्री" और स्त्री के नाम के आगे "श्रीमति" क्यों लगाते हैं यह नहीं ज्ञात था। शब्दों के सफ़र से यह शंका भी दूर हो गई कि हम पुरूषों ने स्त्री से उनका "श्री" लेकर स्वयं अपने नाम के आगे लगाकर गर्व महसूस कर रहे हैं। हद है...
मुनव्वर राणा की कुछ पंक्तियाँ माँ को समर्पित हैं:
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
किसी को घर मिला हिस्से में या दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती
ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती है
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रही
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में है
अंत में:
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
हर माँ को मेरा सलाम... मातृत्व की परिभाषा मैं नहीं कर सकता.....
Sunday, March 4, 2012
पानी - जीवन अथवा मौत - Save Water, Crisis, Riots in Mumbai over Water
माँगा था पानी,
ताकि रह सके ज़िन्दा..
बुझा सके प्यास..
पर उसे मिली मौत
महज ग्यारह बरस का
था वो..बच्चा...
जहाँ एक ओर
अकेले भारत में
बन जाती है
दस हजार करोड़ की
इंडस्ट्री..
मिनरल वॉटर के नाम पर
वहीं पीने के पानी
की एक बूँद
को तरस जाता है
आधे से ज्यादा देश...
जमीन के अंदर समाये हुए
पानी की एक एक बूँद
को हम..
निचोड़ लेना चाहते हैं..
गटक लेना चाहते हैं
पूरी की पूरी नदी...
ताकि सूख जाये वह
समन्दर तक पहुँचने से पहले ही...
वो जमाना और था
जब भरता था घड़ा
बूँद बूँद...
अब बिस्लेरी का जमाना है
और बिकती है प्यास...
महज पन्द्रह रूपये लीटर...
सेवा के वे "रामा प्याऊ"
कहीं खो गये हैं शायद...
गुमनामी के गटर में
जिसका पानी पीती है
वो दुनिया
जहाँ आज भी भरा जाता है घड़ा...
बूँद.. बूँद...
नोट: जब मुझे यह पता चला कि मुम्बई में पानी के लिये सात लोग मारे गये तो अनायास ही यह कविता बन पड़ी....
Sunday, February 19, 2012
महाशिवरात्रि पर विशेष - डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी MahaShivratri - Damru wale baba teri leela hai nyaari
कल महाशिवरात्रि है। भारत के अधिकांश हिस्से में यह कल मनाई जायेगी। किन्तु कुछ भक्त इसे आज के दिन भी मनाते हैं। कहते हैं इस दिन शिव जी की शादी हुई थी इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। ऐसा भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। यहां रात्रि शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। परमात्मा ही ज्ञानसागर है जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है।
अधिक जानकारी के लिये :
कुछ सप्ताह पूर्व मुझे एक ऐसा गीत मिला जिसकी मुझे बरसों से तलाश थी। तलाश क्या थी.. भूल गये थे कि कभी ये गीत भी सुना करते थे.. .। मेरे दादाजी को यह गीत बहुत पसन्द था। वे सुनते तो हम भी सुनते। शायद हमारे सभी के घर में सुना जाता हो....
इस गीत के बोल इंटेरनेट पर कहीं भी नहीं मिले थे। तो इसलिये सोचा कि इंटेरनेट पर यह आसानी से उपलब्ध होना चाहिये। महाशिवरात्रि से अच्छा दिन कोई और नहीं हो सकता था...
यह मात्र एक गीत अथवा भजन नहीं है। इस गीत में एक अद्भुत कथा का वर्णन है.. इस कथा में ज्ञान है.. सीख है.. मन की चंचलता है.. मान है ..अभिमान है.. अपमान है.....शिव है.. परमात्मा है...
ये कथा इतनी सरल है कि स्वयं ही समझ आ जायेगी...
आइये शिव और पार्वती के इस सुन्दर किस्से को गायें और इससे मिलने वाली सीख को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें|
इसका ऑडियो भी इंटेरनेट पर मिल जायेगा।
डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....जय जय भोले भंडारी
शिव शंकर महादेव त्रिलोचन कोई कहे त्रिपुरारी
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी
शिव हो कर के ही तो तुमने इस जग का कल्याण किया
अमृत के बदले में खुद ही तुमने तो विषपान किया
दूज का चंद्र बिठाया माथे गंगा की जटाओं में
पर्वत राज की पुत्री के संग विचरे सदा गुफ़ाओं में
सचमुच हो कैलाशपति नहीं कोई चार दीवारी
डमरू वाले...डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी
तेरे ही परिवार की उपमा भूमिजन ऐसे गाते हैं
सिंह-बैल पशु होकर हमको प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं
जहरीले सब साँप और बिच्छू अंग अंग लिपटाये हैं
जैसे अपने शत्रु भी सब तुमने गले लगाये हैं
घोर साँप बेबस हो देख क चूहें की सरदारी...
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी
न कोई पद्वी का लालच मान और अपमान है क्या
सुख दुख दोनों सदा बराबर घर भी क्या श्मशान भी क्या
खप्पर डमरू सिंहनाद त्रिशूल ही तेरे भूषण हैं
उनको तुमने गले लगाया जो इस जग के दूषण हैं
तुझको नाथ त्रिलोकी पूजें कह कर के त्रिपुरारी
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी..
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अजर अमर हैं पार्वती-शिव और कैलाश पे रहते हैं
आओ उनके जीवन का हम सुंदर किस्सा कहते हैं
बैठे बैठे उमा ने एक दिन मन में निश्चय ठान लिया
शिव जी की आज्ञा लेकर लक्ष्मी के घर प्रस्थान किया
शंकर ने चाहा भी रोकना किन्तु मन में आया है
प्रभु इच्छा बिन हिले न पत्ता ये उन ही की माया है
मन ही है बेकार में जो संकल्प-विकल्प बनाता है
जिधर चाहता है मन उधर ये प्राणी दौड़ के जाता है
मन सब को भटकाये जग में क्या नर और क्या नारी....
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
पार्वती चल पड़ी वहाँ से मन में हर्ष हुआ भारी
लक्ष्मी के महलों में मेरा स्वागत होगा सुखकारी
अकस्मात मिलते ही सूचना मुझे सामने पायेंगी
अपने आसन से उठ मुझ को दौड़ के गले लगायेंगी
हाथ पकड़ कर बर जोरी मुझे आसान पर बिठलायेंगी
धूप दीप नैवद्य से फिर मेरा सम्मान बढ़ायेंगी
पर जो सोचा पार्वती ने हुआ उससे बिल्कुल उलटा
लक्ष्मी ने घर आयी उमा से पानी तक भी न पूछा
उलटा अपना राजभवन उसको दिखलाती फिरती थी
नौकर चाकर धन वैभव पर वो इठलाती फिरती थी
अगर मिली भी रूखे मन से वो अभिमान की मारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
पार्वती से बोली वो जिसको त्रिपुरारी कहते हैं
कहाँ है तेरा पतिदेव सब जिसे भिखारी कहते हैं
चिता और त्रिशूल फ़ावड़ी फ़टी हुई मृगछाला है
ऐसी ही जायदाद को ले के कहाँ पे डेरा डाला है?
पार्वती ने सुना तो उसकी क्रोध ज्वाला भड़क उठी
होंठ धधकते थे दोनों और बीच में जिह्वा भड़क उठी
बोली उमा कि तुमने चाहे मेरा न सम्मान किया
बिन ही कारण मेरे पति का तुमने है अपमान किया
उन्हें भिखारी कहते हुए कुछ तुमको आती लाज नहीं
सच ये है कि तेरे पति को भीख बिना कोई काज नहीं
वही भिखारी बन के राजा शिवि के यहाँ गया होगा
या फिर बामन बन के राजा बलि के यहाँ गया होगा
जहाँ भी देखा उसने वहीं पर अपनी झोली टाँगी थी
ऋषि दधिचि से हड्डियों तक की उसने भिक्षा माँगी थी
शंकर को तो जग वाले कहते हैं भोले भंडारी....
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
पार्वती ने लक्ष्मी को यूँ जली और कटी सुनाई थी
फिर भी वो बोझिल मन से कैलाश लौट के आई थी
अन्तर्यामी ने पूछा क्यों चेहरा ये उदास हुआ
सब बतलाया कैसे लक्ष्मी के घर उपहास हुआ
बोली आज से अन्न जल को बिल्कुल नहीं हाथ लगाऊँगी
भूखी प्यासी रह कर के मैं अपने प्राण गवाऊँगी
मेरा जीवन चाहते हैं फिर मेरा कहना भी कीजे
जैसा मैं चाहती हूँ वैसा महल मुझे बनवा दीजै
महल बनेगा गृह प्रवेश पर लक्ष्मी को बुलवाना है
मेरी अंतिम इच्छा है उसको नीचा दिखलाना है
उससे बदला लूँगी मैं देखेगी दुनिया सारी....
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
शंकर बोले पार्वती से मन पर बोझ न लाओ तुम
भूल जाओ सब कड़वी बातें और मन शांत बनाओ तुम
मान और अपमान है क्या बस यूँ ही समझा जाता है
दुखी वही होता है जो ऊँचे से नीचे आता है
उसे सदा ही डर रहता है जो ऊँचा चढ़ जायेगा
जो बैठा है धरती पर उसे नीचे कौन बिठायेगा
इसीलिये हमने धरती पर आसन सदा बिछाया है
मान और अपमान से हट कर आनंद खूब उठाया है
मेरी मानो गुस्सा छोड़ो इस में है सुख भारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
पार्वती ने ज़िद न छोड़ी, रोना धोना शुरु किया
शंकर ने विश्वकर्मा को तब भेज संदेशा बुला लिया
विश्वकर्मा से शम्भु बोले तुम इसका कष्ट मिटा दीजै
जैसे भवन उमा चाहती हैं वैसा इसे बनवा दीजै
पार्वती तब खुश होकर विश्वकर्मा को समझाने लगीं
जो कुछ मन में सोच रखा था सब उनको बतलाने लगीं
बोली बीच समन्दर में एक नगर बसाना चाहती हूँ
चार हो जिसके दरवाज़े वो किला बनाना चाहती हूँ
गर्म और ठंडे ताल-तलैया सुंदर बाग-बगीचे हों
साफ़-सुहानी सड़कें हों और पक्के गली गलीचे हों
मेरे रंगमहल की तुम छत में भी सोना लगवा दो
सोने के हों घर दरवाजे बीच में हीरे जड़वा दो
झिलमिल फ़र्शों में हो रंगबिरंगी मीनाकारी...
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
सोने की दीवार-फ़र्श और आँगन भी हों सोने के
मंच-पलंग के साथ साथ सब बरतन भी हों सोने के
मतलब ये के आज तलक न बना किसी का घर होवे
उसको जब लक्ष्मी देखे झुक गया उसी का सर होवे
विश्वकर्मा ने अपने अस्त्र ब्रह्म लोक से मँगवाये
भवन कला का सब सामान वो साथ साथ ही ले आये
आदिकाल से विश्वकर्मा एक ऐसे भवन निर्माता थे
चित्र मूर्ति भवन बाग, वो सभी कला के वो ज्ञाता थे
आँखें मूँद के अपने मन में जो संकल्प उठाते थे
आँखें खोल के देखते थे बस वहीं भवन बन जाते थे
ऐसा ही एक चमत्कार विश्वकर्मा ने दिखलाया था
बीच समन्दर उन्होंने एक अनूठा भवन बनवाया था
ठाठ-बाठ और धर्मपान सब उसके थे मनुहारी
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
मन में पार्वती ने जो सोचा था उससे बढ़कर था
मतलब ये की लक्ष्मी के महलों से लगता था सुंदर था
उमा बोली अब चलिये प्रभु उसमें एक यज्ञ रचाना है
सब देवों के साथ साथ लक्ष्मी को भी बुलवाना है
दोनों आये नगर में आज उमा को हर्ष अपार हुआ
स्वर्ण महल दिखलाकर बोली मेरा सपन साकार हुआ
बोली इसका गृहप्रवेश भी करना है त्रिपुरारी...
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
शंकर सोचें खेल प्रभु का नहीं समझ में आता है
जो जितना खुश होता है उतने ही आँसू बहाता है
फिर भी उन्होंने पार्वती का बिल्कुल दिल नहीं तोड़ा था
जो कुछ वो कहती जातीं थीं हाँ में हाँ ही जोड़ा था
दे स्तुति देवताओं को निमंत्रण भिजवाया था
विशर्वा पंडित जी को पूजा के लिये बुलाया था
विष्णु-लक्ष्मी ब्रह्म इंद्र सभी देवता आये थे
बीच समन्दर स्वर्ण महल देख सभी हर्षाये थे
हाथ पकड़ कर लक्ष्मी का तब पार्वती ले जाती हैं
सोने की ईंटों से बना वो महल उसे दिखलाती हैं
और कहती हैं देख रही हो चमत्कार त्रिपुरारी का
भिक्षु तुमने कहा जिसे यह महल है उसी भिखारी का
देखने आई है ये देखो देखो ये दुनिया सारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
रोशनदान खिड़की दरवाज़े, फ़र्श तलक है सोने का
तेरा महल अब नहीं बराबर मेरे महल के कोने का
शंकर बोले पार्वती मन में अज्ञान नहीं भरते
समझबूझ वाले व्यक्ति झूठा अभिमान नहीं करते
इतने में पूजा का मंडप सज-धज कर तैयार हुआ
शंकर उमा ने हवन कियाऔर नभ में जयजय कार हुआ
ऋषि विशर्वा विधि विधान से मंत्र पढ़ते जाते थे
बारीकि से पूजन की वे क्रिया समझाते थे
पूर्ण आहुति पड़ी तो सब देवों ने फूल बरसाये थे
साधु देवता ब्राह्मण सब भोजन के लिये बिठाये थे
फिर सब को दे दे के दक्षिणा सब का ही सम्मान किया
खुशी खुशी सब देवताओं ने माँगी विदा प्रस्थान किया
जय जय से नभ गूँज उठा सब हर्षित थे नर नारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
अंत में शिवजी ने आचार्य को अपने पास बुलाया था
ऋषि विशर्वा ने आकर तब चरणों में शीश झुकाया था...
शंकर बोले आप के आने से हम सचमुच धन्य हुए
माँगो जो भी माँगना चाहो हम हैं बहुत प्रसन्न हुए
पंडित बोला क्या सचमुच ही मेरी झोली भर देंगे
अभी अभी जो कहा आपने वचन वो पूरा कर देंगे
शंकर बोले हाँ हाँ तेरे मन में कोई शंका है
मेरा वचन सत्य होता है ये तीन लोक में डंका है
तूने हमें प्रसन्न किया और अब है तेरी बारी...
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
शीश नवा कर बोला वो प्रभु अपना वचन सत्य कर दीजै
हे भोले भंडारी मैं माँगूँगा वो वर दीजै
सिद्ध बीच ये सोने का जो आपने भवन बनाया है
यही मुझे दे दीजिये मेरा मन इस ही पे आया है
जिसने भी ये शब्द सुने तो सुन के बड़ा आघात हुआ
उमा के मन पर तो सचमुच जैसे था वज्रपात हुआ
बोली उमा ऐ ब्राह्मण तुमने सोई कला जगाई है
मेरी अरमानों की बस्ती में एक आग लगाई है
मेरा है ये श्राप कि आखिर इक दिन वो भी आयेगा
हरी भरी तेरी दुनिया का नाम तलक मिट जायेगा
ऐसे काल के चक्कर में ये बस्ती भी खो जायेगी
उस दिन तेरी सोने की नगरी भी राख हो जायेगी
तेरा दीया बुझेगा एक दिन होगी रात अंधियारी...
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
सुना आपने जग वालों भयंकर उमा का श्राप था जो
पंडित और नहीं था कोई रावण का ही बाप था वो
बीच समन्दर बसी हुई वो सोने ही की लंका थी
जो कुछ कहा उमा ने वो सच होने में क्या शंका थी
पार्वती के शाप ने फिर एक दिन वो रंग दिखलाया था
पवनपुत्र ने एक दिन सोने की लंका को राख बनाया था
राम और रावण के बीच भड़क उठी थी रण ज्वाला
रहा न उसके कुल में कोई पानी तक देने वाला
"सोमनाथ" जो औरों को जितना भी दुख पहुँचाता है
ऐसे ही द्ख सागर में वो डूब एक दिन जाता है
शंकरपार्वती की जय जय सब बोलें नर नारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी
हर हर महादेव: हर जन, हर व्यक्ति में महादेव का वास है, बस देखने व समझने की दृष्टि चाहिये।
शिव जी के रूद्राष्टक के हिन्दी अनुवाद को यहाँ पढ़ें।
जय हिन्द
वन्देमातरम
Tuesday, February 14, 2012
प्रेम एक दिन का मोहताज नहीं.. Valentines Day Special
धरती की प्यास बुझाता है
तो नहीं पूछता
कि क्या दोगी बदले में..
न कर पाता है
धरती का आलिंगन
न ही छू पाता है उसको
बस प्रेम की एक बरसात
भिगो देती है धरती
और कर देती है तर बतर.....
लहलहा उठते है खेत
और मदमस्त हो जाते
पशु-पक्षी-मानव
धरती की गोद में...
हर सुबह
सूरज लेता है
अँगड़ाई,
जगाता है धरती को
और कर देता है रोशन
चारों ओर
बिना यह सोचे कि
क्या मिलेगा उसे
धरती को जिंदा रख कर!!
सागर की
ऊँची उठती लहरें
जब स्पर्श करना चाहती हैं,
चूमना चाहती हैं
चाँद को
तब चाँद भी मुस्कुराता हुआ
बस बिखेर देता है चाँदनी
और रात के अँधेरे में
निखर उठता है सागर भी...
चाँद के प्रेम में..
लहरों का वेग बढ़ता चला जाता है
चाँद को पाने की चाह में...
घॄणा-ईर्ष्या-द्वेष के
इस दौर में,
इंसान ने चुना है एक दिन
प्रेम करने के लिये
प्रेम भी
चढ़ा दिया गया है भेंट
बाज़ारवाद की
खो गये हैं मायने प्रेम करने के
प्रेमी-प्रेमिका के लिये भी...
अब किताब में
सूखा हुआ गुलाब का फूल नहीं मिलता..
और न ही कोई बनाता है "पेन फ़ेंड"
फ़ास्ट पीढ़ी ने बदल दिया चलन
और बदलते हैं प्रेमी
हर बरस, हर महीने
हर दिन, हर पल..
कपड़ों के
फ़ैशन और स्टेटस के अनुसार...
प्रेम आलिंगन में नहीं..
प्रेम चुम्बन में नहीं...
प्रेम रूह का रूह से है..
प्रेम इंसानियत में है...
प्रेम आँखों के पानी में है..
सहलाते हुए हाथों में है...
प्रेम मौन में है..
प्रेम ईश्वर है...
प्रेम कन्हैया का राधा से है...
कृष्ण का सुदामा से है
प्रेम शबरी का राम से है,
और मीरा का श्याम से है...
प्रेम में कोई शर्त नहीं
प्रेम में कोई नहीं है बँधन ...
प्रेम केवल है समर्पण..
प्रेम कल भी था और है आज भी..
प्रेम एक दिन का मोहताज नहीं...!!
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हमने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू..
हाथ से छू कर इसे रिश्तों का इल्जाम न दो...
सिर्फ़ अहसास है ये रूह से महसूस करो..
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ने दो...
Spread Love Every Day
Thursday, February 2, 2012
धूप छाँव के आँकड़े और अल्पविराम....WebSite Statistics And Break from Blogging
आज से ठीक पाँच वर्ष पूर्व जनवरी 2007 में मैंने ब्लॉगिंग के क्षेत्र में कदम रखा। तभी इस ब्लॉग का नामकरण हो गया था - धूप-छाँव। और मेरा पहला पोस्ट था
कौन है सबसे कामयाब निर्देशक??
ईश्वर है सबसे बड़ा निर्देशक...ईश्वर ही हम सब के जीवन की कहानियाँ खुद ही लिख रहा है, निर्देशन कर रहा है..कमाल की बात है..इतने बड़े नाटक को अकेले ही निर्देशित कर रहा है !!और कमाल् तो इस बात का है..हम किरदार हैं और हम ही नहीं समझ पा रहे हैं के हमारे साथ क्या करवाया जाने वाला है..पर निर्देशक गुणी है..हमारा बुरा नहीं होने देगा...इस बात का पूर्ण विश्वास है..पर कम से कम ये तो बता देता के कौन सा किरदार कितनी देर तक् स्टेज पर रहेगा!!!
यह दो-चार पंक्तियाँ हीं थीं मेरा पहला पोस्ट। हैरानी होती है मुझे भी। पर बच्चा तो शुरु में छोटे कदम ही रखता है।
धूप-छाँव पर इन पाँच वर्षों में बहुत कुछ बदला है। समय भी बदला है, मैं भी और मेरे लेखों में भी बदलाव आया है। इंटेरनेट जगत में ब्लॉगिंग भड़ास निकालने का एक माध्यम बनता जा रहा है। तो इसी भड़ास-क्षेत्र में मैंने राजनैतिक व सामाजिक विषयों से लेखन प्रारम्भ किया। धूप-छाँव पर आप काफ़ी राजनैतिक और सामाजिक लेख पढ़ सकते हैं। धीरे धीरे राजनैतिक लेखों से ऊब सी होने लगी और यही सोच कर ध्यान वैज्ञानिक, शिक्षाप्रद व ज्ञानवर्धक लेखों पर गया। नवम्बर 2010 से मैंने "क्या आप जानते हैं", "गुस्ताखियाँ हाजिर हैं" व "तस्वीरों में देखिये" नामक तीन नये स्तम्भ शुरु किये। इनमें रोचक जानकारी भी है और "गुस्ताखियाँ..." जैसे स्तम्भ में राजनैतिक/सामाजिक कटाक्ष भी शामिल है। हाल ही में "भूले बिसरे गीत" व "अतुल्य भारत" जैसे स्तम्भ भी आये हैं जिनमें हम उन गीतों को देखते-सुनते हैं जो सदाबहार हैं। कुछ रेडियो चैनलों ने बाप के जमाने के गाने सुनाने शुरु किये तो लगा कि उन्हें दादा के जमाने के गानों से अवगत कराया जाये। "अतुल्य भारत" वो स्तम्भ है जिसमें भारत के वो दर्शनीय स्थल हैं जिन पर हर भारतीय को गर्व होना चाहिये व उसके बार में पता होना चाहिये। प्रयास बस इतना कि भारत की धरोहर कहीं खो न जाये।
नवम्बर २०१० में ही धूप-छाँव को नया रंग-रूप दिया। ईमेल के माध्यम से हर पोस्ट पाठक तक पहुँचाने की व्यवस्था की। तकनीक का फ़ायदा उठाया। फ़ेसबुक व ट्विटर भी ब्लॉग से जुड़ गये। २००९-२०१० के दौरान मेरे लेखों की तादाद में गिरावट आई क्योंकि मैं हिन्दयुग्म की वेबसाईट से जुड़ चुका था। हिन्दयुग्म का साथ छूटा तो वापस अपने ब्लॉग पर आया। इस बार tapansharma.blogspot.com को अप्रेल २०११ में dhoopchhaon.com बनाया। आँकड़ों पर नजर डालेंगे तो पायेंगे वर्ष २००७ में चौबीस, २००८ में 33, 2009 में महज तीन, 2010 में 18 लेख पोस्ट किये गये। वहीं २०११ में इनकी संख्या 86 हो गई। यानि एक साल में करीबन नब्बे लेख। यही वह दौर था जब राजनीति व सामाजिक लेखों/कविताओं से निकलकर मैंने ज्ञानवर्धक, गीत-संगीत व अतुल्य भारत जैसी श्रृंख्लाओं की ओर रुख किया। इन लेखों के कारण न केवल मेरे अपने ज्ञान मेंबढोतरी हुई अपितु मैं पाठकों तक अच्छी सामग्री पहुँचाने में भी कामयाब रहा। Alexa Ranking में ब्लॉग की रैंक पचास लाख से बढ़कर साढ़े पाँच लाख तक पहुँच गई। यह सब मित्रों व प्रशंसकों के कारण ही संभव हो पाया जो एक छोटा सा हिन्दी ब्लॉग एक बार तो भारत की पहली पचास हजार वेबसाईटों में शुमार हो गया था। और वो भी तब जब इसको केवल मैं अकेला ही चला रहा था। महीने में जहाँ चार पोस्ट हुआ करतीं थीं वहीं २०११ में इनकी संख्या महीने में आठ तक हो गईं।
हाल ही में वैदिक गणित भी प्रारम्भ किया गया। इस उम्मीद से कि वेदों के इस अथाह सागर में डुबकी लगाई जाये। और फिर कबीर का दोहा।
2010 नवम्बर में 650 लोगों ने पढ़ा तो जनवरी 2012 आते आते तीन हजार लोगों ने इस ब्लॉग को एक महीने में पढ़ा। यानि एक दिन में सौ हिट। छोटे से ब्लॉगर के लिये इससे बड़ी बात क्या हो सकती है।
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रुद्राष्टक का हिन्दी अनुवाद: रामनवमी विशेष Rudrashtak Translated In Hindi Ram Navmi Special
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मित्रों, आप लोगों के सहयोग के कारण ही मैं थोड़ा बहुत लिख पाता हूँ। फ़ेसबुक व ब्लॉग पर आप लोगों के कमेंट्स (टिप्पणीयाँ) मेरा उत्साहवर्धन करती आईं हैं। और इसी कारण मैं निरंतर लिखता रहा हूँ। पर फ़िलहाल मैंने ब्लॉगिंग से अल्प विराम लेने का विचार किया है। इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि मैं ब्लॉगिंग छोड़ रहा हूँ। पर केवल अल्प विराम लेने का निश्च्य किया है। हालाँकि पूरी तरह से ब्लॉगिंग नहीं छूटेगी, पर काफ़ी हद तक अनियमित अवश्य हो जायेगी। मसलन महीने में एक या दो या फिर वो भी नहीं.... माइक्रोपोस्ट भी हो सकती है.. फ़िलहाल कुछ नहीं पता.. पर इतना पक्का है कि महीने में पाँच-छह लेखों की नियमितता नहीं रहेगी। जब भी मौका मिलेगा लेख लिखूँगा। अल्पविराम के दौरान फ़ेसबुक व ट्विटर जारी र्रहेंगे।
चित्रों में आप देख सकते हैं कि पाठकों की संख्या का ग्राफ़ लगातार ऊपर गया है। हर श्रृंख्ला के लिये लगातार लिखते रहने का जोश भी अलग ही रहा। लगातार बढ़ती लोकप्रियता के मध्य में इस तरह का विराम लेना बहुत कठिन निर्णय रहा पर हर श्रृंख्ला के लिये दिमाग में हर वक्त कुछ न कुछ चलता ही रहता था और तैयारी भी काफ़ी करनी पड़ती थी। ऑफ़िस व पारिवारिक व्यस्तताओं के कारण मेरे लिये समय निकालना कठिन हो रहा है। ब्लॉगिंग से ब्रेक लेने का निर्णय सरल नहीं था पर इस दौरान स्वयं को भी समय देना कठिन हो रहा था। यह समय मैं अपने स्वयं के साथ बिताने व समझने में और मेरे भीतर जो अज्ञानता का अँधेरा है उसे मिटाने में लगाना चाहता हूँ। बीच बीच में लेख लिखता रहूँगा पर अल्पविराम के बाद एवं नई शक्ति व स्फ़ूर्ति के संचार के साथ और अधिक सशक्त लेख के साथ वापसी होगी, ऐसा विश्वास है।
आप सभी मित्रों, प्रशंसकॊं एवं आलोचकों का धन्यवाद जिन्होंने मेरे ब्लॉग को अब तक सराहा। आपका स्नेह एवं आशीर्वाद निरंतर बना रहे यही कामना है...
मंजिल पर चल पड़े हैं पाँव, कभी है धूप.. कभी है छाँव...
जय हिन्द
वन्देमातरम
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी
Monday, January 30, 2012
आईये फिर से गुनगुनायें - मिले सुर मेरा तुम्हारा Mile Sur Mera Tumhara Republic Day Special
1988 के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रथम बार इसे दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया। लोक सेवा संचार परिषद ने दूरदर्शन और संचार मंत्रालय के सहयोग से इस गीत का निर्माण किया। इसे लिखा था पीयूष पांडेय ने और इसके निर्माता थे आरती गुप्ता, कैलाश सुरेंद्रनाथ व लोक सेवा संचार परिषद। इस गीत को संगीतबद्ध किया था अशोक पाटकी और Louis Banks ने। एक ही पंक्ति को चौदह भाषाओं में गाया गया था। वे भाषायें थीं- हिन्दी, कश्मीरी, उर्दू, पंजाबी, सिन्धी, तमिल, कन्नड़, मलयालम, बंगाली, असमी, उडिया, गुजराती व मराठी। गीत में शामिल थे अभिनेता कमल हसन, अमिताभ बच्चन, मिथुन, जीतेंद्र, हेमा मालिनी, शर्मिला टैगोर, ओम पुरी, दीना पाठक, मीनाक्षी शेषाद्री, गायिका लता मंगेशकर, कार्टूनिस्ट मारियो मिरांडा, खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण, नरेंद्र हिरवानी, वेंकतराघवन, अरूण लाल, सैयद किरमानी, नर्तिका मल्लिका साराभाई व अन्य।
एक समय ऐसा भी आ गया था जब इसे राष्ट्रगान के बराबर दर्जा दिया जाने लगा था। मुझे याद है कि बोल समझ आते नहीं थे पर हम गुनगुनाते अवश्य थे।
राष्ट्रप्रेम और अनेकता में एकता का प्रतीक यह गीत क्या आज भी सामयिक है? जहाँ कभी केरल व तमिलनाडु लड़ते हैं, कभी तेलंगाना की आग लगती है, कभी महाराष्ट्र और बिहार में युद्ध छिड़ता है तो कभी एक समाज और कभी दूसरा समाज किसी न किसी कारण से सड़कों पर दिखाई देता है। इस विषय कुछ कहा नहीं जा सकता।
गणतंत्र दिवस राष्ट्र का गौरव है। इस वर्ष हम 63वाँ गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। तो क्यों उन दागों को याद करें जो हमारे इतिहास का हिस्सा हैं? क्या हम सभी बैर नहीं भुला सकते? क्या जो भूत में बीत गया उसे याद रखना आवश्यक है? क्या हम फिर से एक ही सुर में सुर मिला सकते हैं? क्या दोबारा वही गीत गुनगुना सकते हैं। हाँ, हम ऐसा कर सकते हैं... मन में विश्वास हो तो यह मुमकिन है। प्रेम और करूणा का भाव हो तो हम भारत के इस दौर को स्वर्णिम इतिहास बना सकते हैं। भविष्य हमें आशा भरी निगाहों से देख रहा है। वर्तमान को सुधारें, भविष्य को सँवारें।
मिले सुर मेरा तुम्हारा
विकीपीडिया से लिये गये बोल
बीस साल बाद २६ जनवरी २०१० को Zoom TV द्वारा इसी गीत को दोबारा रिकॉर्ड किया गया और नाम रखा गया : "फिर मिले सुर मेरा तुम्हारा"। परन्तु यह गीत उतना सम्मान व प्रसिद्धि नहीं पा सका जितना पसंद पहले वाला गीत किया गया। अब का गीत 16 मिनट से अधिक का है जबकि पिछला गीत छह मिनट का था। इस गीत को भी Louis Banks ने संगीत दिया।
फिर मिले सुर मेरा तुम्हारा
जय हिन्द
वन्दे मातरम