शुक्रवार बीस जुलाई। स्थान गोपाल धाम, भापौरा-लोनी रोड, गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश। मेरी कम्पनी Pitney Bowes के हम सत्रह लोग रहे होंगे। सुबह नौ बजे से हम लोग वहाँ पहुँचने शुरु हो गये थे। तीन लगातार शुक्रवार गोपाल धाम जाने के कार्यक्रम का यह दूसरा सप्ताह था। पिछले सप्ताह हमारी कम्पनी के अन्य साथी यहाँ बच्चों को चित्रकारी और कागज़ से विभिन्न प्रकार की कलाकारी सिखाने आये थे....। शुक्रवार हम लोग उनके साथ कहानी-कविता सुनने सुनाने, हँसने बोलने और खेलने के लिये गये और आने वाले शुक्रवार को होगा स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रम व गीत-संगीत की मस्ती।
गोपालधाम सेवाभारती द्वारा संचालित एक संस्था है जो देश के विभिन्न स्थानों से आये बच्चों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाती है। यहाँ कश्मीर, पूर्वोत्तर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, उड़ीसा आदि राज्यों से बच्चे आये हुए हैं। एक से लेकर दसवीं तक के बच्चों को सीबीएसई की शिक्षा दी जाती है। इन्हें साहिबाबाद के सरस्वती विद्या मन्दिर में पढ़ाया जाता है। इनमें से कुछ बच्चे अनाथ हैं, कुछ के माता पिता ने उग्रवाद, नक्सलवाद आदि कारणों से यहाँ भेजा हुआ है। सड़क से करीबन दो सौ मीटर की दूरी पर बने इस धाम में दो-तीन पार्क हैं, झूले हैं, पेड़ पौधे हैं और गौशाला भी है।
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कक्षा |
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कमरे |
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प्रांगण |
हम वहाँ अपने साथ कहानियों की कुछ पुस्तकें, स्टेशनरी का सामान इत्यादि ले कर पहुँचे। वहाँ पहुँचकर व यह जानकर हम दंग रह गये कि ये बच्चे सुबह चार बजे उठते हैं व रात दस बजे तक सोते हैं। इसबीच पढ़ाई, खेल, सोना आदि दिनचर्या का हिस्सा है। एक बड़े से हॉल में पहली से लेकर चौथी तक की कक्षायें हो रहीं थीं। हॉल की दीवार पर स्वामी विवेकानन्द जी का बड़ा सा बैनर लगा हुआ था व सरस्वती जी, भारत माता, ओ३म की तस्वीर थी। चौथी कक्षा में महाराणा प्रताप व शिवाजी की भी तस्वीरें थीं। चौथी कक्षा तक करीबन -३० - ३५ -विद्यार्थी हैं व इससे ऊपर की कक्षाओं में साठ के करीब विद्यार्थी पढ़ते हैं। हमने उन बच्चों के ग्रुप बनाये और उनके साथ कहानी-कवितायें सुनने व पढ़ने लगे। मुझे याद है सुमित और सोनू.. दो भाई हैं.. क्या शानदार तरीके से पढ़ी उन्होंने कहानी की वो किताब। सुमित तो लगातार हर पुस्तक पढ़ने को आतुर था। उन सभी ने कागज़ का "कैटरपिलर" बनाया हुआ था। एक बच्चे का नाम था रवि डी। पहले तो मुझे समझ नहीं आया फिर बच्चों ने ही समझाया कि स्कूल में चार रवि हैं....:-)
वहीं दलवीर सिंह भी मिला। उसे हारमोनियम व तबला बजाने का शौक था। उसने हमें वन्देमातरम बजा कर सुनाया। कुछ देर तक हॉल में वन्देमातरम गूँज उठा। वो ज़ाकिर हुसैन को नहीं जानता था। पर उसकी आँखों में कुछ वैसे ही ख्वाब दिख रहे थे। उसने और उसी के कुछ साथियों ने देशभक्ति से ओतप्रोत के गीत भी सुनाया। कुछ लोग चित्रकारी करने लगे तो कुछ हमारे एक साथी से डांस सीखने लगे। हमने खो-खो व हैंड बॉल के लिये टीमें बना दी और फिर क्या था.. हम भी बच्चों में बच्चे बन गये...
कभी कभी बच्चे हमें सिखा जाते हैं.. बिना कारण हँसना.. लगातार खेलते रहना.. क्या खूब खेले थे वे.. गजब की तेज़ी...एक घंटा और निकल गया था... और देखते ही देखते जाने का समय हो गया था। हमने तस्वीरें खिंचाईं, उन्हें Kinder Joy नामक चॉकलेट दीं और वापसी की तैयारी करने लगे। खेल कर पसीने आ रहे थे.. पर थकान बिल्कुल न थीं। उन बच्चों की आँखों में सपने थे.. सपने धौनी, सचिन बनने के.. सपने फ़ौज में जाने के...एक से बढ़कर एक कलाकार... हमारे देश में ऐसे ही अनगिनत बच्चे हैं जो सचिन-सहवाग-ए.आर रहमान बनने की चाह लिये अपनी ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं...क्या इनके ख्वाबों के लिये आप और हम थोड़ा भी समय नहीं निकाल सकते?
अजय, हैप्पी, रवि डी, करछी, अंडा (दलबीर) ये कुछ ऐसे नाम हैं जिन्हें शायद मैं कभी न भूल पाऊँ... इनके साथ गुज़ारे हमारे तीन घंटे भी कम लगने लगे थे।
चलते चलते कुछ चित्र
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कतार में बैठे बच्चे |
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पुस्तक पढ़ने में मस्त |
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"कैटरपिलर" |
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गीत सुनाता हुआ अजय |
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रवि डी, दलवीर, हैप्पी, अजय व साथी |
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डांस करते हुए बच्चे |
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हम सब |
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पार्क |
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छोटा सा मन्दिर |
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"हे वीर हृदयी युवकों, यह मन में विश्वास रखो कि अनेक महान कार्य के लिये तुम सबका जन्म हुआ है" - स्वामी विवेकानन्द |
वन्देमातरम
जय हिन्द
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