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Monday, June 13, 2011

कांग्रेस की आपातकालीन बैठक में छाये रहे अन्ना व रामदेव Emergency Congress Meet - Anna, Ramdev discussed

हाल ही में रामदेव व अन्ना हजारे के अनशन प्रकरण के बीच कांग्रेस ने सोनिया जी के निवास पर आपातकालीन बैठक बुलाई। वहाँ पहुँचे मनमोहन, सोनिया, राहुल और दिग्विजय सिंह। हमारे संवाददाता ने उनकी बातचीत सुनी। आईये आप भी पढ़ें बैठक के अंदर का हाल।

मनमोहन सिंह: मैडम जी, राहुल बाबा व अन्य मंत्रीगण। जैसा कि आप जानते हैं कि अन्ना व रामदेव हम पर दबाव डाल रहे हैं। मैंने सोचा है कि...
राहुल गाँधी (बीच में टोकते हुए): अरे रुकिये मनमोहन जी। मम्मी आप बताइये कैसे निपटा जाये इस अनशन के अंटशंट से।
सोनिया जी: अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है। उत्तर प्रदेश में चुनाव भी सर पर हैं। इन सबसे बचने का उपाय तो प्रियंका ही हो सकती है।
राहुल: मतलब दीदी भी अनशन करेगी?
सोनिया जी: अरे नहीं.. पर यदि उत्तर प्रदेश लाज बचानी है तो हम उसे चुनाव प्रचार में उतार सकते हैं।
दिग्विजय सिंह: राहुल बाबा, मैडम ठीक कह रही हैं। रामदेव व अन्ना को संघ का एजेंट घोषित करा देते हैं।

तभी न जाने कहाँ से उमा भारती आ धमकती हैं। सभी एकदम आश्चर्यचकित हो जाते हैं।

उमा: दिग्गी राजा.. कैसे हो....जिस तरह मध्य प्रदेश से तुम्हें हटाया था उसी तरह से उत्तर प्रदेश से भी तुम्हें साफ़ कर देंगे। मैं आ गई हूँ...
दिग्विजय सिंह: अरे उमा जी.. आइये..धन्यभाग हमारे। बड़े दिनों से किसी ने हमें दिग्गी राजा नहीं कहा था। उत्तर प्रदेश हमारा है उमा जी। राहुल बाबा हमारे साथ हैं..
मनमोहन जी: हाँ उमा जी राहुल बाबा की जय हो। वैसे भी हमारी सरकार वहाँ किसानों के लिये नये नये प्रोजेक्ट के बारे में सोच रही है। वहाँ पंचायत होगी.. गाँव वालों से मिलेंगे और हम अपनी नीतियाँ लोगों तक पहुँचायेंगे.. हम...
सोनिया जी: मनमोहन जीईईईईईईई...
मनमोहन सिंह: सॉरी मैडम... मैं भावनाओं में बह गया था...
राहुल जी: डॉक्टर साहब आप मौन रहा करिये.. बोलने का काम मेरा और मम्मी जी का है। राईट मॉम?
सोनिया जी: यस बेटा! मनमोहन जी, आप तब बोला कीजिये जब मीडिया हमसे घोटालों के बारे में पूछे। बाकि समय बीच में टाँग न अड़ायें।
मनमोहन सिंह (मायूस होते हुए): ओके मैडम...

उमा भारती एक नजर राहुल बाबा की ओर देखती हैं फिर वापस चला जाती हैं...

बैठक में थोड़ी देर के अंतराल के बाद.....

दिग्विजय सिंह: मैडम ओबामा ने जिस तरह से लादेन जी को मरवाया था वो मुझसे देखा नहीं गया। कोई मानवाधिकार नाम की चीज़ नहीं है क्या विश्व में?
सोनिया जी: अरे दिग्विजय जी आप कौन सा विषय उठा रहे हैं? हम अन्ना पर चर्चा कर रहे हैं।
दिग्विजय सिंह: ओह.. हाँ.. उस घटना कि याद आते ही तन बदन में आग लग जाती है। पता नहीं कहाँ से याद आ गया सब कुछ। अब नहीं बोलूँगा।
सोनिया जी (जनता से): हमारे महासचिव का बयान उनका निजी बयान समझा जाये कांग्रेस का नहीं।
राहुल बाबा: एक काम करते हैं। थोड़ी माँगें मान लेते हैं.. बाकि कल पर टाल देते हैं।
सोनिया जी: सही कह रहे हो बेटा।
राहुल बाबा: चलो जी मीटिंग ऑवर।
मनमोहन सिंह: पर मीटिंग ऑवर कैसे? अभी तो हमने कोई निर्णय लिया ही नहीं।
राहुल बाबा: आपको कोई निर्णय लेना भी नहीं है। हमारे पास प्रणव मुखर्जी हैं। वे सम्भाल लेंगे। आप बस 2जी, कलमाड़ी, कनिमोझी को सम्भाले रखिये। आपका मुखौटा हमारे लिये कितना जरूरी है आप नहीं जानते। मेरा वैसे भी एक गाँव में रात गुजारने का प्लान है।
दिग्विजय सिंह: सही बात है। और मैं संघ के किसी और एजेंट को ढूँढता हूँ। ये रामदेव और अन्ना का राग कब तक अलापूँगा। वैसे आप लोग कहें तो "आस्था" चैनल पर केस कर दें? सुना है कि वो चैनल बालकृष्ण का है?
सोनिया जी: क्या कह रहे हैं दिग्विजय जी? करवाईये पड़ताल...बाय राहुल.. टेक केयर...

बैठक समाप्ति ओर.. लेकिन तभी...
अरे ये क्या? ये कौन आ गया.. बैठक में एक बार फिर सन्नाटा...

सुषमा स्वराज नाचती हुई दाखिल हुईं... 


"ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का.. इस देश का यारों....क्या कहना ये देश है दुनिया का गहना...."


और फिर वापस चली जाती हैं...

मनमोहन सिंह: ये सुषमा जी यहाँ किस मक़सद से आईं थीं।
दिग्विजय सिंह: अरे हमारे राहुल बाबा की तारीफ़ों के क़सीदे पढ़ने के लिये.. उन्हें वीर जवान कहा गया है। वे ही इस देश के सच्चे जवान हैं। बाकि सब तो संघ के एजेंट.....

पर्दा गिरता है...
समाप्त....


गुस्ताखियाँ हाजिर हैं आप को कैसा लगा और आप किस तरह की गुस्ताखियाँ पढ़ना पसंद करेंगे? जरूर बताइयेगा। 

नोट:
सुषमा स्वराज ने राजघाट पर जाने अनजाने गाना गाया हो.. नाचीं हों.. राजघाट का अपमान किया हो या नहीं...उसे भूल जाते हैं.. मनमोहन सिंह जी मौन थे मौन हैं मौन रहेंगे... तो उन्हें भूल जाते हैं। सोनिया जी कांग्रेस की ही नहीं बल्कि इस देश की मैडम हैं और राहुल गाँधी बाबा...ये आप और मैं गाँठ बाँध लेते हैं... 
दिग्विजय सिंह फ़ेसबुक पर डॉगविजय सिंह के नाम से मशहूर हो रहे हैं। संघ को साम्प्रदायिक बताने वाले कांग्रेस के नेताओं को इतिहास नहीं पता जब पंडित नेहरू ने सन 62-63 में संघ से उनके चीन युद्ध में सहायता करने के लिये गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का आग्रह किया था.....शायद नेहरू गलत थे (?)

खैर ये सब भूल जाते हैं.....पर याद रखनी होगी एक बात

इस देश को दुनिया का गहना बनाना है। जो देश में हाल-फ़िलहाल हो रहा है वो इस देश के लिये आवश्यक था। यदि आप आक्रोश में हैं तो इसका सही इस्तेमाल कीजिये। मैंने कईं कमेंट पढ़े, फ़ेसबुक पर पढ़ा.. "अनशन से कुछ नहीं होना.. राजनीति है... सब बकवास है... इस देश का कभी भला नहीं होगा..."... ये सब नकरात्मक बातें हैं। ये इस देश का दुर्भाग्य कहा जायेगा कि युवाओं में  नकरात्मकता का इस कदर प्रभाव है। 

परन्तु इन सब के बीच एक और गीत मेरे जहन में अनायास ही आ जाता है...और मन शांत हो जाता है...

हम होंगे कामयाब... हम होंगे कामयाब....हम होंगे कामयाब एक दिन...
हो हो मन में है विश्वास..पूरा है विश्वास.....हम होंगे कामयाब एक दिन...
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Saturday, January 15, 2011

प्या़ज़ के बढ़ते दामों के बीच मजबूर मनमोहन को मिला अटल का सहारा और प्याज के जमाखोरों के खिलाफ़ एक छोटी सी अपील Manmohan Met Atal Onion Issue | An Appeal to All Against Onion Traders and Hubs

ज से करीबन बारह वर्ष पूर्व दिल्ली में भाजपा की सरकार को प्याज़ ने ऐसा रुलाया कि आजतक भाजपा ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा नहीं पाया है। इसलिये जब भी प्याज के दाम बढ़ते हैं तब राजनैतिक गलियारे में हलचल शुरु हो जाती है।

ऐसा नहीं है कि केवल प्याज़ की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इजाफ़ा हर चीज़ के दामों में हुआ है। सभी सब्ज़ियाँ महँगी हुईं हैं। जो सब्जी पच्चीस रूपये में एक किलो होती थी वो अब 250 ग्राम रह गई है। लेकिन प्याज़ की बात ही कुछ और है। हमारे प्रणव मुखर्जी और मनमोहन जी को इसकी चिंता सता रही है।

पिछले बीस बरसों में जब से गठबँधन सरकारें शुरू हुई हैं तब से "मजबूर" होना एक रिवाज़ बन गया है। स्व नरसिंह राव जी। उन से "मजबूर" तमगा प्रधानमंत्री को मिलना प्रारम्भ हुआ। जो फिर श्री गुजराल और देवेगौड़ा जी को भी मिला। नरसिंहराव की सरकार में वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सम्भालने वाले मनमोहन आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। चाहें गुजराल हों या देवेगौड़ा या फिर मनमोहन सभी को काँग्रेस पार्टी ने मजबूरी में कुर्सी पर बैठाया। पार्टी भी मजबूर और पीएम साहब भी मजबूर।

देवेगौड़ा और मनमोहन के बीच देश की जनता ने अटल जी की भी सरकार देखी। जब अटल ने कुर्सी सम्भाली तब न तो पार्टी मजबूर थी और न ही प्रधानमंत्री। पर गठबँधन का नियम है-मजबूर प्रधानमँत्री मजबूत गठबँधन। बस यही उसूल तब भी चल निकला। ममता दीदी उस जमाने में भी सरकार में थीं, अब भी हैं। तब जयललिता ने अटल को गिराया अब करूणानिधि ने रुला रहे हैं।
तो आप लोग समझ ही गये होंगे कि हमारे प्रधानमंत्री कितने और क्यों मजबूर हैं? ये अब जगजाहिर है।

2004 में अटल और मनमोहन में कुछ इस तरह गीत-संवाद हुआ था-
अटल: तेरी दुनिया से दूर, चले होके "मजबूर" हमें याद रखना....
मनमोहन सिंह: जाओ कहीं भी सनम, तुम्हें इतनी कसम हमें याद रखना....


पवार की पावर, राजा की मनमानी से दो-चार होते दिखते "मनु" भाई उन्हीं बातों को याद करते जब राजनीति के बूढ़े शेर अटल बिहारी वाजपेयी के पास पहुँचे-

मनमोहन: अटल जी, ये आप ने कहाँ फ़ँसा दिया। मैं तो कहीं का नहीं रहा।
अटल: क्या हुआ मनमोहन जी? खैरियत?
मनमोहन: कहाँ की खैरियत??आप को तो सब पता है गठबँधन की सरकार क्या बला होती है!!
अटल जी: पर मनमोहन जी, मैंने तो कभी गठबँधन (शादी) किया नहीं था इसलिये फ़ँसा। आप तो अनुभवी व्यक्ति हैं।
मनमोहन: ज़िन्दगी की गाड़ी और राजनीति में फ़र्क होता है। राजनीति में आते ही मैं भी काला हो गया हूँ। कुछ उपाय सुझायें।
अटल: मैं तो ये सोच ही रहा था कि आप यदि वित्त विभाग में ही रहते तो अच्छा था कहाँ राजनीति के अखाड़े में टूट पड़े। देखिये मैं तो अब बीमार रहता हूँ तो राजनीति से भी दूर ही हो गया हूँ। एक सुझाव देता हूँ। बीमारी का नाटक कीजिये और संन्यास ले लीजिये।
मनमोहन: ये बात तो आपने दुरुस्त कही। पर...पर...पर....
अटल: आपकी गाड़ी "पर" पर क्यों अटक गई? आपको मेरी बीमारी तो नहीं लग गई? अगला शब्द कब बोलेंगे?
मनमोहन: अरे नहीं नहीं, मैं तो ये सोच रहा था कि मैडम बुरा तो नहीं मान जायेंगी?

प्रधानमंत्री मजबूर, सरकार मजबूर..पर क्या आप और हम मजबूर हैं? बात कर रहे थे प्याज़ की। मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा कि क्या प्याज़ इतना जरूरी है कि हम उसके बिना नहीं  रह सकते? क्या नवरात्रि में साल के अठारह दिन हम बिना प्याज़ का खाना नहीं खाते? क्या सावन के महीने में हम प्याज़ बंद नहीं करते? इन सभी सवालों का जवाब यदि "हाँ" है तो- यदि हम प्याज़ की खपत कम कर दें तो क्या इसकी कीमत कम नहीं होगी? जमाखोर कब तक गोदामों में प्याज़ रखेंगे? याद रखिये ये नेता ही जमाखोर हैं। यहीं आग लगाते और बुझाते हैं। प्याज़ नेताओं को रुला सकता है पर यदि "हम" एक हो जायें तो कुछ भी कर सकते हैं। आप सभी पाठकों से अपील है-प्याज़ के आगे, जमखोरों के आगे मजबूर न हों। मजबूत बनें।
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Tuesday, November 30, 2010

समोसे के शौकीन लालू और कर्नाटक-आंध्र में रेड्डी बँधुओं का दखल Election Result-Laloo's Samosa, Karnataka-Andhra-Media

दृश्य एक


चुनावों में हार के बाद, ज़ोर का झटका ज़ोर से पड़ने के बाद लालू और पासवान ड्राइंग-रूम बात करते हुए सुने गये।

लालू जी (गाते हुए): जाने कहाँ गये वो दिन.....कहते थे मेरे राज में .....
पासवान जी: क्या गा रहे हो लालू जी? बीड़ी जलई रे और मुन्नी बदनाम के युग में ये भी कोई गाना हुआ।
लालू जी: अरे पासवान साहिब..ये युग की बात नहीं..समय की बात है। वो भी क्या दिन थे जब समोसा हमें प्यारा हुआ करता था।

जब तक रहेगा समोसा में आलू..तब तक रहेगा बिहार में लालू....


शायद उस युग में जब मेवे, मटर और नूडल्स के समोसे बाज़ार में बिक रहें हैं आलू के बिना भी समोसा तैयार हो रहा है तो बिहार ने भी लालू बिन बिहार का रास्ता चुनने का इरादा कर लिया है।

और राहुल बाबा का कोई कमेंट नहीं आया बिहार पर?
राहुल गाँधी: मेरे इरादे अभी भी मज़बूत हैं। युवा भारत युवाओं के लिये वोट देगा। मैं अपनी पार्टी के लिये काम करता रहूँगा। और मेरी पार्टी देश के लिये..
जनता: राहुल जी, आप देश के लिये कब काम करेंगे? मंत्री बन कर देश चलाइये…

राहुल बाबा कुछ ऐसा सोच रहे हैं शायद:

लोगों को ख्वाब दिखाये थे जन्नत के हमने,
लोगों ने जहन्नुम भी नसीब न कराया हमें...

दृश्य दो

उधर कर्नाटक में भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे जा रहे हैं। और आँध्र में जगनमोहन ने सोनिया जी की नाकमें दम कर रखा है। सुनने में आया है कि गडकरी और मैडम दोनों ने एक मीटिंग की है। उसी की एक झलक:

नितिन गडकरी: क्या हम कुछ नहीं कर सकते?
सोनिया जी: दुनिया जानती है कि दोनों राज्यों में एक ही ग्रुप ने नाटक मचा रखा है।
गडकरी जी: रेड्डी बँधु!!!
सोनिया जी: इनके और जगनमोहन रेड्डी के सम्बन्ध बड़े ही मधुर हैं। वे ही जगन को उकसा रहे हैं और जगन अपने चैनल पर हमारे लिये भला-बुरा कह रहा है।
गडकरी जी: सिर्फ़ बुरा ही कह रहा है, भला नहीं। हा हा।
सोनिया जी: ज्यादा दाँत मत फ़ाड़िये, आपकी सरकार उन्हीं की वजह से चल रही है। कर्नाटक में उनकी कितनी चलती है ये आप भी जानते हैं।
गडकरी जी: तभी तो हम लोग चुप हैं। ऊपर से आजकल कुमारस्वामी ने भी नाक में दम कर रखा है। समझ में नहीं आता कि क्या किया जाये।
सोनिया जी: एक ही तरीका है। किसी तरह से सुप्रीमकोर्ट रेड्डी ब्रदर्स को फ़टकार लगा दे और लगाम लगाये तो साँप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। क्या ख्याल है?
गडकरी जी: लगता है आपको सुप्रीमकोर्ट की आदत सी हो गई है। कभी कभी लगता है कि कोर्ट नहीं होता तो आपकी सरकार कैसे चलती? जगन के दबाव में रोसैया जी को हटा दिया।
मैडम सोनिया: रोसैया को हटा हमने नये "रिमोट" किरण रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया है। हमारा शुभचिन्तक है वो।
गडकरी जी: पर जब राज्य के अधिकतर विधायक राजशेखर रेड्डी के मरने के बाद जगन की वकालत कर रहे थे तब आपने उन्हें क्यों नहीं बनाया?
मैडम: आप राजनीति में कच्चे हैं तभी कुछ नहीं कर पा रहे। जगन को बनाते तो रेड्डी बँधु आँध्र में भी तहलका मचा देते। उन्होंने हमारे राज्य में भी अवैध खनन किया है लेकिन अभी सामने नहीं आ रही है ये बात।
अब हम तेलंगाना से एक डिप्टी सी.एम. लाकर लोगों को भी खुश करने वाले हैं!!
गडकरी जी: मान गये आपको। लोग यूँ ही आपको मैडम नहीं बुलाते। एक ही पार्टी के सी.एम और डिप्टी सी.एम. ।
मैडम हमें भी कुछ गुर सिखा दीजिये। मैं भी सर बनना चाहता हूँ। इतने सारे रेड्डी ऊपर से ये येद्दि....ओह....

चलते चलते विशेष:

हाल ही में नीरा राडिया, बरखा दत्त, वीर सांघवी के बातचीत के टेप सामने आकर उनका राजनैतिक पार्टियों, खासतौर से काँग्रेस सरकार से "रिश्ता" उजागर हो चुका है।
मीडिया के मन में कुछ ऐसा चल रहा है:

हमें मालूम है सारी हक़ीकत लेकिन,
आँख मूँद कर बैठने का मजा ही कुछ और है!!!

भारत में इतनी परेशानियाँ हैं और इतने विवाद हैं, कि हम सभी कहीं न कहीं उनका हिस्सा बनते हैं दुखी होते हैं। दुखी व परेशान होना उपाय नहीं है। जो भ्रष्टाचार व अन्य बुराइयाँ हम समाज व राजनीति में देखते हैं उन मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी है। "गुस्ताखियाँ  हाजिर हैं" स्तम्भ की शुरुआत इसी मिशन का एक हिस्सा है। यहाँ हँसी मजाक भी होगा और गम्भीर मुद्दे भी उठाये जायेंगे। ये आवाज़ आगे और बुलंद होगी यही उम्मीद है।
अगले सप्ताह नईं गुस्ताखियों के साथ फिर हाजिर होंगे। तब तक के लिये नमस्कार।

गुस्ताखियाँ जारी हैं.....

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Sunday, November 21, 2010

जब राहुल टकराये भिखारी से और यम से नगर निगम व दिल्ली सरकार के कर्मचारियों की हुई मुक्का-लात Rahul met Beggar, Municipal and Delhi Govt. Workers vs. Yamraj

मेठी में एक भिखारी कुछ इस अंदाज़ में भीख माँग रहा था- भगवान के नाम पर दे दे "बाबा", अल्लाह के नाम पर दे दे "बाबा"।

वहीं से राहुल जी गुजर रहे थे।

राहुल गाँधी: तुमने पुकारा और हम चले आये, कहाँ है तुम्हारा घर... कोई बतलाये, तुमने पुकारा और हम चले आये। अमेठी मेरा संसदीय क्षेत्र है। मेरा ही नहीं मेरे परिवार का भी घर है। तुम किस जगह रहते हो?
भिखारी: राहुल बाबा, आप मेरे घर का क्या करेंगे? मैं तो जहाँ जगह मिलती है वहाँ बैठ जाता हूँ।
राहुल जी: तो फिर मैं आज रात कहाँ रुकूँगा? मैंने तो मीडिया को अमेठी आने को कह दिया था। ओह...
भिखारी: राहुल जी, आप अमेठी के लिये बहू क्यों नहीं ले आते? हर कोई यही चाहता है...
राहुल जी: आप सही कहते हैं। जल्द ही आपको खुशखबरी सुनने को मिलेगी। पर आप इतने उत्सुक क्यों हैं?
भिखारी: आप को दुल्हन मिलेगी जो आपके लिये अच्छा खाना बनायेगी और फिर हमें भी राहत मिलेगी जो आप हमारे यहाँ आते हैं। जिन गरीबों के पास खाने को रोटी नहीं वो आपको रोटी खिलाता है।
राहुल: तुम दलित हो? मुसलमान हो?
भिखारी: नहीं राहुल बाबा।
राहुल: फिर मैं तुम्हारे घर नहीं रुक सकता।

वहाँ से राहुल चल देते हैं। रास्ते में एक रिपोर्टर से टकरा जाते हैं। पीछे भिखारी बुड़बुड़ा कर रह जाता है (दलित गरीब और ब्राह्मण गरीब में क्या अंतर है?)

रिपोर्टर: सर, एक बात बतायें। आपने या आपकी सरकार ने दलितों व मुसलमानों के लिये क्या किया है?
राहुल: हमने दलितों व पिछड़ों को आरक्षण दिया है। और मुसलमानों के लिये......ह्म्म्म्म
रिपोर्टर: सुना है कि आपकी सरकार नीतीश सरकार का फ़ार्मूला लगा रही है। उन्होंने मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के लिये रोजगार योजना चालू की थी जिसके तहत उन्हें कढ़ाई बुनाई व अन्य रोजगार शिक्षा मुफ़्त दी जा रही है। और जो कुछ वे बना रही हैं उन्हें बेच कर आमदनी भी हो रही है जिससे उनका विकास हो रहा है।
राहुल: मुझे सिब्बल जी से बात करनी होगी फिर कोई टिप्पणी करूँगा।

(पर्दा गिरता है)

२००५ में विश्व बैंक के अनुसार भारत के ४१ फ़ीसदी लोग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा (१.२५ डालर प्रति दिन यानि ६२ रूपये प्रतिदिन) से भी नीचे है। हालाँकि इस आँकड़े में सुधार हुआ है जब १९८२ में भारत के साठ फ़ीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे थे। शहर में लोग औसतन २१.६ रू और गाँव में महज १४.३ रू प्रतिदिन कमाते है। सोच सकते हैं कि हालत कितनी खराब है। मुझे मालूम है कि ये ब्लॉग पढ़ने वाले १००० रूपये प्रतिदिन से अधिक कमाई करते होंगे। पर रौंगटे तब खड़े हो जाते हैं जब यह पता चले कि दुनिया के एक-तिहाई गरीब भारत में हैं। और जब राजनेता आरक्षण के नाम पर दलित गरीब व अन्य गरीब में अंतर करते हैं तो आप समझ सकते हैं कि एक गरीब पर क्या गुजरती होगी। फिर क्यों न वो भी आरक्षण की माँग करे?

और अधिक जानने के लिये यहाँ जायें।
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नगर निगम और दिल्ली सरकार के कर्मचारी मरने के बाद ऊपर यमराज के पास पहुँचे।

यमराज: कुछ साल पहले दिल्ली में इमारत गिरी थी, उसका जिम्मेवार कौन था?
कर्मचारी: यम जी, उसका जिम्मेवार तो आपकी बहन यमुना थीं।
यमराज: तुम लोगों की ये हिम्मत!!!!! गुस्ताख।
कर्मचारी: वह यमुना नदी के किनारे था और बाढ़ की वजह से इसकी नींव कमजोर पड़ गई थी।
यमराज: इमारत गिरने पर तुम दोनों जागे और फिर आनन फ़ानन में ३८ इमारतों को खाली करने का नोटिस भेज दिया। ये भी न सोचा कि वे लोग बाद में कहाँ रहेंगे?
कर्मचारी: वो हमने ...वो उनके लिये टैंट..
यमराज: जब मकान बन रहे होते हैं, तुम लोग तब पैसा खाते हो और मकान गिरने के बाद उसका इल्जाम यमुना पर लगाते हो!!! तुम्हीं लोगो ने ही इतना बड़ा अक्षरधाम और खेलगाँव यमुना के रास्ते में उसके ऊपर ही बनवा दिया। तब तो तुम्हें विदेशी कमाई नजर आ रही थी। अब बोलो? उन बेघरों को उसी अक्षरधाम और खेल गाँव में क्यों नहीं ठहरा दिया?
कर्मचारी: वो..वो... ऐसा कैसे करते हम?...

विकीपीडिया के अनुसार:

अक्षरधाम को सन २००० अप्रैल में बनाने की इजाजत डी.डी.ए ने दी। और नवम्बर २००० में बनना शुरु हुआ। नवम्बर २००५ में यह बनकर तैयार हुआ। जमीन के नीचे मजबूती के लिये १५ फ़ीट तक ५० लाख ईंटें लगाईं गई। और इस तरह यमुना के ठीक ऊपर कंक्रीट का जाल बिछा दिया गया और उसका रास्ता बदल दिया गया। यमुना तो और बेहतर करने की बजाय अब खेलगाँव बना दिया गया और नदी से नाला बना दिया गया है।
आप सोच रहे होंगे कि यमराज ने कर्मचारियों को नरक भेजा या स्वर्ग? उन्होंने उन्हें वापस मृत्युलोक भेज दिया। वे नहीं चाहते थे कि यमलोक में भी भ्रष्टाचार फ़ैले।
(पर्दा गिरता है)


भारत में इतनी परेशानियाँ हैं और इतने विवाद हैं, कि हम सभी कहीं न कहीं उनका हिस्सा बनते हैं दुखी होते हैं। दुखी व परेशान होना उपाय नहीं है। जो भ्रष्टाचार व अन्य बुराइयाँ हम समाज व राजनीति में देखते हैं उन मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी है। "गुस्ताखियाँ  हाजिर हैं" स्तम्भ की शुरुआत इसी मिशन का एक हिस्सा है। यहाँ हँसी मजाक भी होगा और गम्भीर मुद्दे भी उठाये जायेंगे। ये आवाज़ आगे और बुलंद होगी यही उम्मीद है।
अगले सप्ताह नईं गुस्ताखियों के साथ फिर हाजिर होंगे। तब तक के लिये नमस्कार।

गुस्ताखियाँ जारी हैं.....
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Saturday, November 13, 2010

"गुस्ताखियाँ हाजिर हैं" :नया स्तम्भ Socio-Political Sarcastic Humour New Series Part-1

मित्रों, पहली बार हास्य-व्यंग्य की खट्टी-मीठी चटनी लेकर आपके समक्ष नया स्तम्भ ला रहा हूँ -
"गुस्ताखियाँ हाजिर हैं"

आज की कहानी के पात्र:

मैडम सोनिया जी, आडवाणी जी, अम्मा जी, करूणानिधि और बाबा रामदेव।

(पर्दा उठता है)

आडवाणी जी:
सोनिया जी, आप मेरे जन्मदिन पर क्या तोहफ़ा दे रही हैं?
सोनिया जी
: आडवाणी जी, वैसे तो मुझे लोग मैडम के नाम से बुलाते हैं, पर फिर भी मैं आपको नाराज़ न करते हुए आपके सवाल का जवाब देती हूँ। काँग्रेस सोच रही है, नहीं नहीं, मैं सोच रही हूँ कि आपको कुछ मंत्रियों के इस्तीफ़े उपहार में दिये जायें।
आडवाणी जी: वाह मैडम जी, वाह!! राहुल बाबा को मेरा आशीर्वाद देना, वे मेरे पास गुलदस्ता ले कर आये थे। उनसे बात करके अच्छा लगा।
सोनिया जी
: पर आडवाणी जी, इतनी नज़दीकियाँ अच्छी नहीं। लोग क्या सोचेंगे। खासतौर पर आपकी पार्टी आपके बारे में क्या सोचेगी।
आडवाणी जी: वो तो मेरे बारे में वैसे भी अब कुछ भी नहीं सोचते। बुढ़ापे में अब तो भगवान राम का ही सहारा।

बाबा रामदेव (नेपथ्य) : आप लोग गहरी साँस लेते हुए स्विस बैंक से काला धन वापिस क्यों नहीं मँगाते ?  जनता का लाखों करोड़ो रुपया वहाँ जमा है।

सोनिया जी
: लगता है कोई हमारी बातें सुन रहा है। आप राम का जिक्र कर रहे थे? आपको तो न राम मिले और न ही कुर्सी। दोनों ने आपको छोड़ दिया।
आडवाणी जी (स्वयं को कुर्सी पर बैठा सोचते हुए): फिर भी मैं राम राज के सपने देखता हूँ और उन्हें अपना आदर्श राजा मानता हूँ।
सोनिया जी
: इस "आदर्श"ता ने तो हमसे हमारा मुख्यमंत्री छीन लिया है पर हमारे पास भी एक राजा है। जो था, है और रहेगा। हम ए.राजा को पा कर धन्य हुए हैं।

बाबा रामदेव
(नेपथ्य): मैं कहता हूँ आप लोग पेट अंदर करते हुए स्विस बैंक से काला धन वापिस लाने का प्रयास क्यों नहीं करते ?

तभी करूणानिधि जी आते हैं।
करूणानिधि जी: मैडम सोनिया, ये राम-वाम छोड़ो। ये कुछ नहीं होता। हम राम को नहीं मानते। हम ए.राजा को वापिस नहीं बुलायेंगे।
सोनिया जी
: आप निश्चिंत रहें। हमारी पार्टी भी कुछ नहीं करेगी। हमने सुप्रीम-कोर्ट में उनकी शराफ़त का एफ़ीडेविट जमा करवा दिया है। हम उनकी शराफ़त साबित करनेके लिये कानून का सहारा लेंगे।
अम्मा जी: मैडम जी, यदि आप ए.राजा को गद्दी से हटा भी देते हैं, तब भी आपको महारानी की कुर्सी से कोई नहीं हटा पायेगा। हम आपके साथ हैं। (मन में) न जाने कब से सत्ता की मिठाई नहीं चखी है।

बाबा रामदेव (नेपथ्य) : अरे कोई हाथ गर्दन के पीछे से आगे ला कर नाक पकड़ते हुए जनता का पैसा देश में वापस तो लाओ ।
सोनिया जी: आडवाणी जी, आपके यहाँ वक्ता बड़े अच्छे हैं। ये बात तो दुनिया मानती है। सुषमा जी, जेटली जी हों या अन्य बड़े नेता।
आडवाणी जी
: हाँ, नितिन की अगुआई में हम अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। हमारा किला अब अभेद्य है।

जनता(नेपथ्य) : तभी आपकी पार्टी के लोग शब्दों के "बूमरैंग" फ़ेंकते रहते हैं। सुदर्शन चक्र आपके किले पर खुद ही आकर लग गया है।
एक कांग्रेसी: कोई चाहें हमें कितना बुरा भला कह ले पर मैडम जी के लिये एक शब्द भी नहीं सुनेंगे हम। तोड़फ़ोड़ मचा देंगे, आग लगा देंगे।
बाबा रामदेव (नेपथ्य): अरे कोई तो हाथों को पैरों से मोड़कर कमर पर लाते हुए.....

(पर्दा गिरता है)
क्रमश:
अगले अंक में: अन्य पात्रों से मुलाकात और नईं गुस्ताखियाँ।
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क्या आप जानते हैं स्विस बैंकों में इतना पैसा जमा है कि ३० साल तक हम और आप कोई टैक्स न भरें तो भी सरकार का काम बन जाये!!! ३० साल का टैक्स!!!


भारत में इतनी परेशानियाँ हैं और इतने विवाद हैं, कि हम सभी कहीं न कहीं उनका हिस्सा बनते हैं दुखी होते हैं। दुखी व परेशान होना उपाय नहीं है। जो भ्रष्टाचार व अन्य बुराइयाँ हम समाज व राजनीति में देखते हैं उन मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी है। "गुस्ताखियाँ  हाजिर हैं" स्तम्भ की शुरुआत इसी मिशन का एक हिस्सा है। यहाँ हँसी मजाक भी होगा और गम्भीर मुद्दे भी उठाये जायेंगे। ये आवाज़ आगे और बुलंद होगी यही उम्मीद है।
अगले सप्ताह नईं गुस्ताखियों के साथ फिर हाजिर होंगे। तब तक के लिये नमस्कार।

गुस्ताखियाँ जारी हैं.....
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