Saturday, January 15, 2011

प्या़ज़ के बढ़ते दामों के बीच मजबूर मनमोहन को मिला अटल का सहारा और प्याज के जमाखोरों के खिलाफ़ एक छोटी सी अपील Manmohan Met Atal Onion Issue | An Appeal to All Against Onion Traders and Hubs

ज से करीबन बारह वर्ष पूर्व दिल्ली में भाजपा की सरकार को प्याज़ ने ऐसा रुलाया कि आजतक भाजपा ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा नहीं पाया है। इसलिये जब भी प्याज के दाम बढ़ते हैं तब राजनैतिक गलियारे में हलचल शुरु हो जाती है।

ऐसा नहीं है कि केवल प्याज़ की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इजाफ़ा हर चीज़ के दामों में हुआ है। सभी सब्ज़ियाँ महँगी हुईं हैं। जो सब्जी पच्चीस रूपये में एक किलो होती थी वो अब 250 ग्राम रह गई है। लेकिन प्याज़ की बात ही कुछ और है। हमारे प्रणव मुखर्जी और मनमोहन जी को इसकी चिंता सता रही है।

पिछले बीस बरसों में जब से गठबँधन सरकारें शुरू हुई हैं तब से "मजबूर" होना एक रिवाज़ बन गया है। स्व नरसिंह राव जी। उन से "मजबूर" तमगा प्रधानमंत्री को मिलना प्रारम्भ हुआ। जो फिर श्री गुजराल और देवेगौड़ा जी को भी मिला। नरसिंहराव की सरकार में वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सम्भालने वाले मनमोहन आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। चाहें गुजराल हों या देवेगौड़ा या फिर मनमोहन सभी को काँग्रेस पार्टी ने मजबूरी में कुर्सी पर बैठाया। पार्टी भी मजबूर और पीएम साहब भी मजबूर।

देवेगौड़ा और मनमोहन के बीच देश की जनता ने अटल जी की भी सरकार देखी। जब अटल ने कुर्सी सम्भाली तब न तो पार्टी मजबूर थी और न ही प्रधानमंत्री। पर गठबँधन का नियम है-मजबूर प्रधानमँत्री मजबूत गठबँधन। बस यही उसूल तब भी चल निकला। ममता दीदी उस जमाने में भी सरकार में थीं, अब भी हैं। तब जयललिता ने अटल को गिराया अब करूणानिधि ने रुला रहे हैं।
तो आप लोग समझ ही गये होंगे कि हमारे प्रधानमंत्री कितने और क्यों मजबूर हैं? ये अब जगजाहिर है।

2004 में अटल और मनमोहन में कुछ इस तरह गीत-संवाद हुआ था-
अटल: तेरी दुनिया से दूर, चले होके "मजबूर" हमें याद रखना....
मनमोहन सिंह: जाओ कहीं भी सनम, तुम्हें इतनी कसम हमें याद रखना....


पवार की पावर, राजा की मनमानी से दो-चार होते दिखते "मनु" भाई उन्हीं बातों को याद करते जब राजनीति के बूढ़े शेर अटल बिहारी वाजपेयी के पास पहुँचे-

मनमोहन: अटल जी, ये आप ने कहाँ फ़ँसा दिया। मैं तो कहीं का नहीं रहा।
अटल: क्या हुआ मनमोहन जी? खैरियत?
मनमोहन: कहाँ की खैरियत??आप को तो सब पता है गठबँधन की सरकार क्या बला होती है!!
अटल जी: पर मनमोहन जी, मैंने तो कभी गठबँधन (शादी) किया नहीं था इसलिये फ़ँसा। आप तो अनुभवी व्यक्ति हैं।
मनमोहन: ज़िन्दगी की गाड़ी और राजनीति में फ़र्क होता है। राजनीति में आते ही मैं भी काला हो गया हूँ। कुछ उपाय सुझायें।
अटल: मैं तो ये सोच ही रहा था कि आप यदि वित्त विभाग में ही रहते तो अच्छा था कहाँ राजनीति के अखाड़े में टूट पड़े। देखिये मैं तो अब बीमार रहता हूँ तो राजनीति से भी दूर ही हो गया हूँ। एक सुझाव देता हूँ। बीमारी का नाटक कीजिये और संन्यास ले लीजिये।
मनमोहन: ये बात तो आपने दुरुस्त कही। पर...पर...पर....
अटल: आपकी गाड़ी "पर" पर क्यों अटक गई? आपको मेरी बीमारी तो नहीं लग गई? अगला शब्द कब बोलेंगे?
मनमोहन: अरे नहीं नहीं, मैं तो ये सोच रहा था कि मैडम बुरा तो नहीं मान जायेंगी?

प्रधानमंत्री मजबूर, सरकार मजबूर..पर क्या आप और हम मजबूर हैं? बात कर रहे थे प्याज़ की। मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा कि क्या प्याज़ इतना जरूरी है कि हम उसके बिना नहीं  रह सकते? क्या नवरात्रि में साल के अठारह दिन हम बिना प्याज़ का खाना नहीं खाते? क्या सावन के महीने में हम प्याज़ बंद नहीं करते? इन सभी सवालों का जवाब यदि "हाँ" है तो- यदि हम प्याज़ की खपत कम कर दें तो क्या इसकी कीमत कम नहीं होगी? जमाखोर कब तक गोदामों में प्याज़ रखेंगे? याद रखिये ये नेता ही जमाखोर हैं। यहीं आग लगाते और बुझाते हैं। प्याज़ नेताओं को रुला सकता है पर यदि "हम" एक हो जायें तो कुछ भी कर सकते हैं। आप सभी पाठकों से अपील है-प्याज़ के आगे, जमखोरों के आगे मजबूर न हों। मजबूत बनें।

3 comments:

Unknown said...

मै इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ , अगर लोग प्याज खाना छोड दे तो जमाखोर कब तक उन्हे अपने गोदामो मे रख पायेंगे और मजबूर होकर उनहे प्याज को सडने से बचाने के लिए बाजार मे लाना पडेगा

पर हम India के लोग है हमे महंगी चीजे खरीदने मे अपनी शान नजर आती है....कभी कभी तो लगता है हम, कितने मूर्ख इंसान है हम

Unknown said...

मै इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ , अगर लोग प्याज खाना छोड दे तो जमाखोर कब तक उन्हे अपने गोदामो मे रख पायेंगे और मजबूर होकर उनहे प्याज को सडने से बचाने के लिए बाजार मे लाना पडेगा

पर हम India के लोग है हमे महंगी चीजे खरीदने मे अपनी शान नजर आती है....कभी कभी तो लगता है हम, कितने मूर्ख इंसान है हम

Bhupendra M S Khatri said...

thats great....
my family has already given up buying and eating onion
the power is with us
lets show that its true