Saturday, August 25, 2007

रक्षा बंधन

राखी के त्योहार से हर कोई परिचित है। ये उन त्योहारों में से एक है जो किसी धर्म, जाति विशेष से संबन्ध नहीं रखता।
ये वो त्योहार है जिसने हिंदू रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ को प्रेम के बँधन में बाँधा। ये वो त्योहार है जिसने राजा पुरू को युद्ध में सिकंदर को मारने से रोका, क्योंकि पुरू की कलाई में सिकंदर की बीवी की राखी बँधी थी।

यूँ तो आमतौर पर राखी बहन बाँधती है.. पर ऐसा हमेशा ज़रूरी नहीं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रानी शचि ने पति इंद्र को वृत्र नामक राक्षस से युद्ध के लिये जाने से पूर्व इसी प्रकार धागा बाँधा था।
यम-यमुना और द्रौपदी-कृष्ण का जिक्र किये बिना ये त्योहार अधूरा है।

इसी त्योहार और भाई बहन के रिश्ते को समर्पित ,एक छोटी सी कविता लिखी है। आशा है आपको पसंद आयेगी।

भाई बहन के प्रेम का,
है अजब अनोखा बंधन,
प्यार भी तकरार भी,
सच्चा है, और है ये कंचन॥

भाई बहन की करता रक्षा,
सारी खुशियाँ कर देता अर्पण,
पल पल भाई का ध्यान रखना,
जानता है बहन का मन॥

जिस दिन रानी कर्णावती ने,
बाँधा हुमायूँ की कलाई पे धागा,
वो दिन इतिहास का था स्वर्णिम,
जब रिश्ते का मान बढ़ा गया धागा॥

इस अनूठे बँधन को,
शब्दों में बयां करना है मुश्किल,
जहाँ तकरार में प्रेम घुलता है और,
कच्चे धागे से बँधते हैं दिल॥


आभार,
तपन शर्मा
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Tuesday, August 14, 2007

60 का हुआ भारत

ये कविता मैंने पिछले साल लिखी थी..पर आज भी इसमें "वर्ष" को छोड़ कोई और बदलाव की आवश्यकता नहीं पड़ी :-(


60 का हुआ भारत,
61 में किया प्रवेश
सैकड़ों बदलाव देखे हमने,
फ़िर भी वैसा अपना देश |

तब भी नहीं थी खाने को,
दो वक्त की सूखी रोटी,
अब भी इस देश में,
आधी जनता भूखी है सोती |

47 में भी हुए थे,
मजहब के नाम पर दंगे..
आज भी आये दिन,
होते रहते हैं ये अड़ंगे |

कभी सोने की चिड़िया था,
तब अंग्रेज़ों ने लूटा था भारत
अब भी भारत लुटता है,
नेताओं से कहाँ है राहत ?

पर बदलाव तो आया है..

आज हर क्षेत्र मे,
भ्रष्टाचार का साया है
पहले पंजाब में खौफ़ था,
आज कशमीर से कन्याकुमारी तक,
आतंक ही आतंक छाया है |

क्या दिन और क्या रात,
सरहद पर जगते हैं जवान,
यहाँ नेता शान से सोते,
उन्हीं का कफ़न तन पर तान |

वो ज़माना और था,
जब प्रेमचन्द की रचनायें
बिकती थी खड़े खड़े |
आजकल 'वीमेंस एरा' और,
'स्टारडस्ट' का ज़माना है,
उपन्यास सड़ते हैं पड़े पड़े |

नेह्रू जी ने तिरंगा फ़हराया था,
दिया था निर्भयता से,
देश के नाम संदेश,
आज दिन में भी डरे डरे,
प्रधानमन्त्री को टीवी पर से,
देेखता है सारा देश |

पतंग उड़ाना कभी,
अपनी शान थी होती,
आज इसे उड़ाने पर,
कड़ी पाबंदी है होती |

60 साल में ये हालत है.
आगे क्या होगा ?
ये सोच कर मन घबरता है,

ट्रक के पीछे पढ़करः
"100 में से 99 बेईमान
फ़िर भी मेरा भारत महान"
"भारत" अपनी किस्मत पर,
मन ही मन,
कभी हँसता, कभी रोता,
अपनी ही गलियों में खोता जाता है...
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