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Tuesday, March 1, 2011

राष्ट्रगान फिर फ़ँसा विवादों में-स्कूल ने बदले राष्ट्रगान के शब्द National Anthem Controversy Strikes Again

हाल ही में एक खबर पढ़ी। उत्तर प्रदेश के एक गाँव के स्कूल में "जन गण मन" को बदला गया। उसके कुछ शब्दों में हेर-फ़ेर किया गया। जब किसी ने इसकी शिकायत करी तो प्रशासन ने स्कूल के प्रधानाचार्य को नोटिस भिजवा दिया। स्कूल प्रशासन का कहना है कि उन्होंने शब्दों को इसलिये बदला क्योंकि वे अंग्रेजी राजा किंग जॉर्ज पंचम के लिये कहे गये थे।

अम्बेडकर नगर जिले के एक गाँव के निजी स्कूल स्कूल के प्रबन्धक रघुनाथ सिंह स्कूल के बच्चों को जो राष्ट्रगान गवाते है उसमें ‘भारत भाग्य विधाता’ के स्थान पर ‘स्वर्णिम भारत निर्माता’ तथा ‘तव शुभ आशीष मांगे’ के स्थान पर ‘तव शुभकामना मांगे’ तथा ‘अधिनायक’ के स्थान पर ‘उत्प्रेरक’ शब्द गाया जा रहा है।
राष्ट्रगान के इस विवाद के बारे में कईं बार पढ़ा है। आइये जानते हैं कि आखिर माजरा है क्या। बात 1911 की है जब काँग्रेस ने रविंद्र नाथ टैगोर से अंग्रेज़ी राजा जॉर्ज पंचम के सम्मान में गीत लिखने को कहा। काँग्रेस राजा को खुश करना चाहती थी क्योंकि उन्होंने बंगाल के विभाजन को रोकने में भूमिका निभाई थी। कहते हैं कि उसके कुछ समय के पस्चात के बाद रविंद्रनाथ ने "जन गण मन" लिख कर कांग्रेस को दिया। जिसे दिसम्बर में काँग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए जॉर्ज के समक्ष गाया गया था। बस इसी के बाद विवाद खड़ा होना शुरू हो गया।

पर वे शब्द हैं कौन से जो विवादित हैं?
जन गण मन अधिनायक जय हे: इस पंक्ति में "अधिनायक" (super hero) कह कर किसे संबोधित किया जा रहा है?
भारत भाग्य विधाता: यहाँ भारत का "भाग्य -विधाता" कौन है?
गाये तव जय गाथा: "तव" और "जय गाथा" शब्द भी विवादित माने गये हैं क्योंकि इस पंक्ति में किस की जीत की बात हो रही है?

रविंद्रनाथ के करीबी बताते हैं कि जब काँग्रेस ने गाना लिखने का आग्रह किया था उसके बाद कुछ दिनों तक वे काफ़ी परेशान रहे। फिर उन्होंने ये गीत लिखा जो उस "भाग्य विधाता" के नाम था जो भारत के साथ सदियों से रहा है और भारत को सभी कठिनाइयों से उबार रहा है। खैर अधिवेशन में खुद रविंद्रनाथ ने सर्वप्रथम इस राष्ट्रगान को गाया था।
और 24 जनवरी 1950 को ये गीत हमारा राष्ट्रगीत बन गया।

क्या सही है क्या गलत ये समझना तब अधिक कठिन हो जाता है जब इतिहास पुराना पड़ता चला जाता है और रह जाते हैं तो केवल कुछ तर्क। और चूँकि भारतीय इतिहास सबसे पुराना है और कईं तरह के बदलावों से गुजरा है इसलिये इसको समझने में और दिक्कतें आती हैं। बुद्धिजीवी अपने हिसाब से शब्दों की परिभाषा निकालते आये हैं और हम तक सही बात पहुँच नहीं पाती। चाहें वंदे मातरम हो या "जन गण मन" विवाद दोनों के साथ है... चलो फिर क्यों न हम "सारे जहाँ से अच्छा.." गुनगुना शुरु कर दें....

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा..
वन्देमातरम.

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