जी हाँ। तो ये है आजकल का सबसे गर्म सवाल। इस विषय पर हमारे देश में पिछले कईं वर्षों से बहस जारी है। जब से समाचार चैनलों की संख्या में तेज़ी हुई है, इस विषय पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। सबसे ताज़ा उदाहरण बना है क्रिकेट में मनोरंजन के लिये विदेशी बालाओं के द्वारा किया जाने वाला डांस। अब तंग कपड़ों में कोई हिरोइन रीमिक्स गाने का वीडियो करे तो उस गाने पर लोग शादियों में डीजे पर आधी रात तक थिरकते नज़र आयेंगे। पूरी रात चलने वाली पेज थ्री की पार्टियों में, जिसमें नेता, अभिनेता सब शामिल होते हैं, उसमें पूरी शिरकत करते हैं। लेकिन वही लोग इन विदेशी बालाओं के नृत्य पर सवाल उठाते हैं। जिनकी पार्टियों में "बार" में रोक लगने पर वही बार बालायें नाचती दिखाई देती हैं वही "चीयर लीडर्स" के डांस पर उंगली उठाये हुए हैं।
हर इंसान का सोचने का अपना अलग नजरिया होता है, इसलिये सवाल ये नहीं उठाऊँगा कि नृत्य अश्लील है या नहीं। ये आप लोगों पर निर्भर करता है। पर एक और बात है जो मुझे सोचने पर मजबूर करती है कि मैं एक महान ऐतिहासिक संस्कृति की धरोहर वाले भारत के खोखले होते संस्कारों का गवाह बनता जा रहा हूँ।
घटना हैदराबाद के मैच की है। इन्हीं विदेशी नर्तकियों में से किसी की शिकायत आती है कि जहाँ वे नाच रही थीं उसके ठीक पीछे लोग भद्दी टिप्पणियाँ व इशारे कर रहे थे। वे घबरा गईं हैं। जो लोग घर की औरतों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं उनसे इससे ज्यादा क्या उम्मीद की जा सकती है? सवाल ये नहीं कि उन्होंने कैसे कपड़े पहने हैं। ये उनका पेशा है और जैसा आयोजक कहेंगे वे वैसा ही करेंगी। हम ही ने उन्हें अपने घर बुलाया था। वे खुद अपनी मर्जी से कतई नहीं आईं हैं। पर इस घटना के बाद वे दोबारा आने से पहले सोचेंगी। विदेश में भारत की जो छवि बनी हुई है उस पर ये घटना दाग के समान है और छवि धूमिल हो गई है। इसमें कोई संशय नहीं है। अश्लील नृत्य किया हो अथवा नहीं किया हो परन्तु हमारे देश में जो बेइज़्ज़ती हुई है उसको शालीनता तो नहीं कह सकते?? कह सकते हैं क्या?? ये हमारे बनाये हुए ही संस्कार हैं। अगर हम कहते हैं कि वे नर्तकियाँ गलत हैं तो सही तो हम भी नहीं?? पहले हम अपने गिरेबान में क्यों नहीं झाँकते?
आये दिन हो रहा दुर्व्यवहार हमारा ही पैदा किया हुआ है। पहले हम क्यों नहीं सुधरते? नर्तकियों को बुलाया जाता है फिर उन्हीं पर रोक लगाई जाती है। ये हास्यास्पद है और भारत की पूरे विश्व में बदनामी करवाने के लिये काफी है। हम लोग मेहमान को भगवान कहते हैं और उसी का ही निरादर करते हैं। अब समझ आया कि ईश्वर इस धरती पर दोबारा जन्म लेने से क्यों घबराता है!!!
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हर इंसान का सोचने का अपना अलग नजरिया होता है, इसलिये सवाल ये नहीं उठाऊँगा कि नृत्य अश्लील है या नहीं। ये आप लोगों पर निर्भर करता है। पर एक और बात है जो मुझे सोचने पर मजबूर करती है कि मैं एक महान ऐतिहासिक संस्कृति की धरोहर वाले भारत के खोखले होते संस्कारों का गवाह बनता जा रहा हूँ।
घटना हैदराबाद के मैच की है। इन्हीं विदेशी नर्तकियों में से किसी की शिकायत आती है कि जहाँ वे नाच रही थीं उसके ठीक पीछे लोग भद्दी टिप्पणियाँ व इशारे कर रहे थे। वे घबरा गईं हैं। जो लोग घर की औरतों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं उनसे इससे ज्यादा क्या उम्मीद की जा सकती है? सवाल ये नहीं कि उन्होंने कैसे कपड़े पहने हैं। ये उनका पेशा है और जैसा आयोजक कहेंगे वे वैसा ही करेंगी। हम ही ने उन्हें अपने घर बुलाया था। वे खुद अपनी मर्जी से कतई नहीं आईं हैं। पर इस घटना के बाद वे दोबारा आने से पहले सोचेंगी। विदेश में भारत की जो छवि बनी हुई है उस पर ये घटना दाग के समान है और छवि धूमिल हो गई है। इसमें कोई संशय नहीं है। अश्लील नृत्य किया हो अथवा नहीं किया हो परन्तु हमारे देश में जो बेइज़्ज़ती हुई है उसको शालीनता तो नहीं कह सकते?? कह सकते हैं क्या?? ये हमारे बनाये हुए ही संस्कार हैं। अगर हम कहते हैं कि वे नर्तकियाँ गलत हैं तो सही तो हम भी नहीं?? पहले हम अपने गिरेबान में क्यों नहीं झाँकते?
आये दिन हो रहा दुर्व्यवहार हमारा ही पैदा किया हुआ है। पहले हम क्यों नहीं सुधरते? नर्तकियों को बुलाया जाता है फिर उन्हीं पर रोक लगाई जाती है। ये हास्यास्पद है और भारत की पूरे विश्व में बदनामी करवाने के लिये काफी है। हम लोग मेहमान को भगवान कहते हैं और उसी का ही निरादर करते हैं। अब समझ आया कि ईश्वर इस धरती पर दोबारा जन्म लेने से क्यों घबराता है!!!