Sunday, November 16, 2008

सच ही कहा था हरिवंश राय ने!!!

डा. हरिवंशराय बच्चन-हिंदी काव्य में एक ऐसे स्तम्भ जिसको हर कोई मानता है। उन्होंने एक कविता लिखी थी मधुशाला। ७५ साल हुए उन बातों को। और आज अचानक कहीं से आवाज़ उठी कि इस कविता की कुछ लाइनें एक धर्म के खिलाफ हैं। या यूँ कहें कि कट्टरपंथियों और धर्म के ठेकेदारों उसके खिलाफ बोल रहे हैं। पिछले शनिवार को अखबार में पढ़ा तो दंग रह गया। निम्न पंक्तियों पर बैन की बात उठी है।


सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।४८।

बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।४९।

मस्जिद को यहाँ कुछ लोगों ने शाब्दिक अर्थ में ले लिया और नाराज़ हो गये हैं। क्या बेतुकी बात है। क्या उन्हें ७५ सालों से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था? या अब तक सोये हुए थे। ये लोग बच्चन की बात समझ ही नहीं पाये। अगर समझ जाते तो ऐसी बचकानी हरकतें नहीं करते। हरिवंश राय आगे लिखते हैं:

बैर कराते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला!!!!

क्या खूब लिखा था... और क्या सच बोला था। अगर उपर्युक्त पंक्ति को पढ़कर हिंदू भी भड़क जायें तो आप समझ सकते हैं कि क्या बवाल उठेगा। मुझे समझ में नहीं आता कि इतना उल्टा सोचने का समय कैसे मिल जाता है। बच्चन साहब ने सच लिखा था, मंदिर मस्जिद बैर ही करा रहे हैं। पर उनकी इस अद्भुत और अद्वितीय कलाकृति पर हि सवाल उठ जायेंगे यकीन मानिये मैंने तो नहीं सोचा था।

वैसे अभी हाल ही में एक शख्स ने आर्य समाज और दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पर बैन का प्रश्न उठाया। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस अपील को खारिज कर दिया। १२५ बरसों से जिस ग्रंथ ने धार्मिक सद्भाव बिगड़ने नहीं दिया तो वो अचानक कैसे आग भड़का सकती है। ऐसी बेतुकी अपीलें इस देश में आये दिन उठती रहती हैं। कोई है जो इन सवालों के जवाब दे सके।

मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।


जय हिंद
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तस्लीमा नसरीन फिर देश के बाहर

सच कड़वा होता है। और इसका स्वाद तस्लीमा नसरीन चख रही है और भुगत भी रही है। तस्लीमा फिर देश के बाहर हैं। अभी अगस्त में ही तो वापस आई थी। मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ और मुस्लिम समाज की कुरीतियों को लिखना बहुत महँगा पड़ रहा है। सरकार कट्टरपंथियों की गुलाम है। यूँ तो इस सरकार से देश के आंतरिक हालात सम्भल नहीं रहे हैं। राज ठाकरे जो असलियत में करता है उस पर बैन नहीं, पर फिल्म पर जरूर बैन लगता है। तस्लीमा को छह महीने की किसी गुप्त शर्त पर भारत में रखा गया। और अब जाने को बोल दिया गया है। आंतरिक सुरक्षा और धर्म निरपेक्षता का हवाला दे कर। इस देश में कलम भी सुरक्षित नहीं। लेखकों को इसके खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिये। एक लेखिका को सच बोलने की सज़ा पहले उसके अपने देश बांग्लादेश में दी गई और अब हमारे देश हिंदुस्तान में। एक तरफ हम कहते हैं कि मेहमान भगवान है दुसरी तरफ हम इस तरह से निकाल देते हैं। क्या सरकार चंद लोगों की गुलाम बन चुकी है? उन्हीं के हाथों की कठपुतली बन चुकी है। कांग्रेस सरकार महज अपना वोट बैंक कायम रखना चाहती है। हर धर्म में कुरीतियाँ होती हैं और उन्हें दूर करने के लिये समय समय पर लोग आते रहे हैं। दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना इसी उद्देश्य करी थी। गलत रीतियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने पर यदि इस तरह बेइज़्ज़ती उठानी पड़ती है तो हर कोई सच बोलने से डरेगा। जो बांग्लादेशी भाग कर सीमा लाँघ कर गैर कानूनी तरह से भारत में घुस आते हैं उनको खिलाफ ये सरकार कुछ नहीं करती। उनके वोटर कार्ड बनाये जाते हैं। क्योंकि वे लोग सरकार और पार्टी को वोट देंगे। लेकिन जो बांग्लादेशी सच्चा है उसको देश से निकाला जाता है फिर उसी वोट की खातिर। ये सरकार बिक चुकी है। इसे केवल अपने वोटों से मतलब है। तस्लीमा को देश में ही सुरक्षा क्यों नहीं दी जाती इस पर सरकार को जवाब देना चाहिये। आप भी माँगिये!!!

जय हिंद!!
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Sunday, November 2, 2008

लोकतंत्र की हार

सोचा था कि कविता लिखकर ही ब्लॉग पर पोस्ट करूँगा पर इस देश के हालातों ने मुझे फिर ये लेख लिखने पर मजबूर कर दिया। देश में बहुत ही अफरातफरी सा माहौल है। अंग्रेज़ी में कहते हैं : chaos| एक ओर मंदी मंदी का शोर है, दूसरी ओर बम धमाकों का, तीसरी कहानी ’राज’ की नीतियों पर चल रही है जिसे लोग क्षेत्रवाद कहते हैं, चौथी कहानी पुरानी है मुस्लिम तुष्टिकरण की और आखिरी नई नई कहानी है कथित "हिन्दू आतंकवाद" और मिलिट्री के लोगों की धमाकों में शामिल होने की। इतनी सारी कहानियाँ ... एक साथ.. आम आदमी का दिमाग खराब करने के लिये काफी है.. ऐसे में कविता लिखना, बहुत कठिन लगता है मुझे तो।

पहले बात करते हैं राज ठाकरे की। इस बात को ज्यादा नहीं छुऊँगा। दो हफ्ते पहले रेलवे की परीक्षा के दौरान जो हरकत मनसे के लोगों ने करी वो गलत थी। मुझे उनका विरोध का कारण जायज़ लगा पर विरोध का तरीका नहीं। आप कहेंगे कि मैं क्षेत्रवाद के पक्ष में कैसे? दरअसल लालू प्रसाद जब केवल यादवों की भर्ती के लिये परीक्षा करवायेंगे और यूपी अथवा हरियाणा के यादवों की नहीं बल्कि केवल बिहार के यादवों के लिये... तो विरोध लाज़मी है। मैं भी करता.. यहाँ लालू क्षेत्र और जातिवाद दोनों फैला रहे हैं... केंद्र मंत्री जो ठहरे...जो करेंगे किसी को पता नहीं चलेगा... मीडिया भी इसके लिये दोषी है को सही कारण लोगों तक नहीं पहुँच रहा है.. कर्नाटक और उड़ीसा से भी ९९ फीसदी जब बिहारी चुने जायेंगे तो मुझे नहीं लगता कि विरोध करने में कोई दोराय बचती है। और भी गुल खिलाये हुए हैं हमारे रेल मंत्री जी ने.. पर वो बात अभी नहीं एक और चिंता बाकि है...

देश में जब भाजपा यह कह रही थी कि हर मुसलमान आतंकी नहीं पर हर आतंकी मुसलमान। दूसरा यह कि केंद्र सरकार अफज़ल को अब तक बचाये हुए है केवल वोटों के लिये। तब अचानक ही साध्वी प्रज्ञा पकड़ी जाती हैं मालेगाँव के बम ब्लास्ट में। कहा जाता है कि उनका हिन्दू संगठनों से ताल्लुकात हैं। मुम्बई की पुलिस ने साध्वी को पकड़ते ही नार्को टेस्ट शुरु करवा दिया। जबकि यह टेस्ट तभी होता है जब पक्के सुबूत न हों। कांग्रेस को बहाना मिला और उसने हिन्दू संगठनों पर बैन की बात करी। दसियों धमाके करने वाली सिमी का समर्थन करने वाले मंत्री एक साध्वी के पकड़े जाने पर हिन्दू संगठनों का विरोध करने लगे। एक व्यक्ति के पकड़े जाने से यदि संगठन बुरा हो जाता है तो.....
साध्वी के साथ पकड़े गये हैं सेना के अफसर भी.. इसका मतलब तो यह हुआ कि सेना पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाये!!!

यहाँ से दो बातें हो सकती हैं - एक ..साध्वी और अफ़सर बेकुसूर हैं.. मतलब साफ है महाराष्ट्र सरकार फँसा रही है..यानि राजनैतिक दल अनैतिकता के रास्ते पर धड़ल्ले से चलने लगे हैं और सरकारी तंत्र का गलत फायदा उठाने से बाज नहीं आते। ये हालात भारत में राजनैतिक भविष्य बयां कर रहे हैं...

दो.. साध्वी और सेना के अफसर कुसूरवार हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि केंद्र की नीतियों से अब कथित "हिन्दू आतंकवाद" पैदा हो गया है जो अब तक कभी नहीं था। बम विस्फोट कभी नहीं करवाये गये। ये चिंता का विषय है जब हर धर्म के लोग हिंसा और बम ब्लास्ट करने पर उतर जायेंगे। ऐसा क्यों हो रहा है... इस मुद्दे पर मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री या केंद्र कुछ सोच रहा है वरना हिंदुस्तान के मंदिर कहे जाने वाले संसद पर हमले का आरोपी जिंदा नहीं होता। सेना में आक्रोश फैला हुआ है शायद इसलिय सेना के अफसर भी सरकार के विरूद्ध कार्य कर रहे हैं। यदि मिलिट्री भी बम विस्फोट में शामिल है और यदि ऐसा रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा देश भी पाकिस्तान बन जायेगा...

खैर...खरबूजा चाहें चाकू पर गिरे या चाकू खरबूजे पर.. कटना खरबूजे को ही होगा... चाहें साध्वी कसूरवार हो अथवा बेकसूर.. हार लोकतंत्र होगी..राजतंत्र की होगी..भारत सरकार की होगी...हमारी होगी..हिन्दुस्तान की होगी!!!

दुखी मन से (सुखी है "मनसे"..?? )
जय हिन्द!!
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