Monday, November 28, 2011

चर्चा में: शरद पवार, कोलावरी डी और विदेशी पूँजी निवेश Sharad Pawar, Kolaveri Di, Foreign Direct Investment

पिछले सप्ताह हमारे देश में तीन महत्त्वपूर्ण घटनायें हुईं। पहली शरद पवार को हरविंदर सिंह द्वारा मारा गया थप्पड़, दूसरा कोलावेरी डी का तमिल गीत और तीसरा विदेशी पूँजी का भारत में बढ़ता निवेश।

बात शरद पवार की। महाराष्ट्र में उनके चीनी के कारखाने हों या रियल एस्टेट का कारोबार। वे विश्व के सबसे रईस बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। और देश के कृषि मंत्री भी। हमारा देश शुरू से ही कृषि प्रधान देश रहा है। इस लिहाज से यह मंत्री पद महत्त्वपूर्ण पदों में से एक है। पिछले दस वर्षों में लाखों किसानों ने या तो आत्महत्या की है या फिर खेती छोड़ी है। यह देश के लिये बेहद खतरनाक संदेश है। उस पर उनका आईसीसी के कार्यों में भी घुसे रहने का मतलब है पूरी तरह से कृषि मंत्रालय पर ध्यान न देना। उसपर किसान की जमीन पर भू माफ़ियाओं व बिल्डरों का कब्जा होना। उन्हीं के ही राज्य के विदर्भ क्षेत्र में किसानों का आत्महत्या करना। कितने ही विवाद हैं और कितनी ही समस्यायें। इन सब के लिये कोई नीति ही नहीं है। बहरहाल उन पर थप्पड़ मारने की घटना को हँसी में लेने की बजाय गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। इस थप्पड़ का मतलब देश के लोगों का सरकार के ऊपर से विश्वास का उठना है। यह थप्पड़ उस लोकतंत्र पर भी है जहाँ जिन नेताओं को हम चुन कर संसद भेजते हैं उन्हीं पर भरोसा नहीं कर पाते। यह सरकार की विफ़लता झलकाता है। नेताओं व सरकार पर से भरोसा उठना बेहद चिन्ताजनक व दुखद है। यह घटना दुखद है। पर क्या सरकार पर अथवा नेताओं पर इन सबका असर पड़ेगा? यह कहना कठिन है। क्या नेता व मंत्री व अफ़सर अपनी ज़िम्मेदारी समझ पायेंगे? सवाल बहुत है पर निकट भविष्य में इनके जवाब मिलने कठिन हैं।

आगे चलें तो सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए खुदरा बाज़ार में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी है। मैं कोई वित्त विशेषज्ञ नहीं  हूँ लेकिन यदि मैं दो सदी पीछे जाऊँ तो पाता हूँ कि गलती हमने ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में आ जाने की भी की थी। गाँधी जी ने स्वदेशी अपनाने का आंदोलन भी किया था। आज वही कांग्रेस विदेशियों को अपने देश में आने का निमंत्रण दे रही है। ग्लोबलाइज़ेशन के इस दौर में यह गलत नहीं है। 49 प्रतिशत तक ठीक है क्योंकि विदेशी कम्पनी का कब्जा नहीं हो पायेगा किन्तु पचास फ़ीसदी से अधिक निवेश का आशय स्पष्ट है कि देश में विदेशियों का कब्जा होगा। सरकार की दलील है कि किसान को पूरा पैसा मिलेगा और महँगाई पर रोक लगेगी। इससे छोटे कारोबारियों को नुकसान भी नहीं होगा। हमारे देश में टाटा, रिलायंस, बिड़ला, प्रेमजी व न जाने कितने ही बड़े नाम व कॉर्पोरेट घराने हैं जो खुदरा कारोबार में आ सकते हैं या फिर आ चुके हैं। क्या सरकार इन कम्पनियों को इतना काबिल नहीं बना सकती? क्या जब देश के कॉर्पोरेट घराने खुदरा बाज़ार में कारोबार करेंगे तो सस्ता सामान मुहैया नहीं करा सकते? ऐसा विदेशी कम्पनी में क्या होता है जो देशी में नहीं? क्या खुदरा नीति देश की कम्पनियों के लिये नहीं बदल सकती कि किसानों तक पूरा पैसा पहुँचे? ऐसा क्यों है कि हम हर बार पश्चिम की ओर मुँह कर के खड़े हो जाते हैं। क्यों नहीं हम स्वयं में सुधार करते? विदेशी ही हमारे देश को चलायेंगे तो यह हमारी कमजोरी है और हमारी विफ़लता। वॉल्मार्ट आदि केवल खाद्य उत्पादन ही नहीं बल्कि घर की सभी वस्तुयें जैसे फ़र्नीचर, बर्तन आदि भी बेच सकेंगे।  जो अर्थशास्त्री हैं वे ही इस पर रोशनी डाल सकते हैं कि देशी कम्पनियाँ क्यों नहीं वो काम कर सकतीं जो विदेशी आ कर करेगी? क्या गारंटी है कि चीनी कम्पनियाँ हमारे देश के छोटे व्यवसायों को नुकसान नहीं पहुँचायेंगी जो पहले ही खतरे से जूझ रहे हैं?

आखिर में बात करते हैं कोलावरि डी की। आमतौर पर वही गाने सुनते हैं जिनके बोल हमें समझ आते हैं या यूँ कहें कि जिन भाषाओं की हमें जानकारी है। पर संगीत शायद एक ऐसा माध्यम है जिसने आदि काल से एक दूसरे को जोड़ा हुआ है। संगीत हर दिल में है। कहते हैं कि संगीत की अपनी कोई भाषा नहीं होती। इसीलिये शायद कोलावरि डी आज उत्तर भारत में भी हिट है। आज दिल्ली के रेडियो चैनलों पर तमिल गीत सुनने को मिल रहा है। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि फ़िल्म "थ्री" रजनीकांत के दामाद की फ़िल्म है इसलिये यह गाना मशहूर हुआ है। कुछ लोग इसे महज इत्तेफ़ाक या भाग्य भी मानते हैं। लेकिन जब रजनीकांत का कोई तमिल गाना दिल्ली में नहीं बजा (या कहें कि मुझे याद नहीं रहा) तो उनके दामाद का गाना बजना महज एक संयोग तो नहीं। पर फिर भी यदि ऐसा हुआ है तो यह देश की एकता के लिहाज से अच्छा संयोग है। अनेकता में एकता यदि ऐसे संयोग से और प्रगाढ़ हो सकती है तो कहने ही क्या!!! 


जय हिन्द
वन्देमातरम
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरियसी
आगे पढ़ें >>

Friday, November 25, 2011

ग़मों का दौर भी आये तो मुस्कुरा के जियो : फ़िल्म हमराज़ (1967) Film Humraaz Mahendra Kapoor, Sahir Ludhiyanvi

आज भूले-बिसरे गीत में फ़िल्म हमराज़ के सदाबहार गीत। १९६७ में आई इस फ़िल्म के निर्माता निर्देशक थे बी.आर.चोपड़ा व इसमें अभिनय किया था सुनील दत्त, राज कुमार, मुमताज़, सारिका, मदन पुरी,इफ़्तेखार,
बलराज साहनी व जीवन ने। फ़िल्म का संगीत था रवि का व इस के गाने लिखे थे उर्दू शायर साहिर लुधियानवी जी ने।
इस फ़िल्म में गीत गाये हैं महेंद्र कपूर जी ने। मोहम्मद रफ़ी व किशोर कुमार के बीच में महेंद्र कपूर ने अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। आज की पीढ़ी रफ़ी, किशोर को तो जानती ही होगी पर पता नहीं क्यों मुझे
महेंद्र कपूर के गाये हुए गाने व उनकी आवाज़ बेहद पसंद है। इस फ़िल्म के सभी गीत इन्होंने ही गाये हैं।


न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो  


न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो
ग़मों  का  दौर  भी  आये  तो  मुस्कुरा  के  जियो
न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो


घटा  में  छुपके  सितारे  फ़ना  नहीं  होते
अँधेरी  रात  में  दिए  जला  के  चलो
न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो



ये  ज़िन्दगी  किसी  मंजिल  पे  रुक  नहीं  सकती
हर  इक  मक़ाम  पे  क़दम  बढ़ा  के  चलो
न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो



नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...
ऐसे ही जग में, आती हैं सुबहें,
ऐसे ही शाम ढले...
हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

शबनम के मोती, फूलों पे बिखरे,
दोनों की आस फले  ...
हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

बलखाती बेलें, मस्ती में खेलें ,
पेड़ों  से  मिल  के  गले ...
हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

नदिया  का  पानी , दरिया  से  मिल  के,
सागर  की  और  चले  ...
हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

भूले बिसरे गीत के अन्य गीत

जय हिन्द
वन्देमातरम

आगे पढ़ें >>

Tuesday, November 22, 2011

क्या आप जानते हैं- भारत की सबसे बड़ी झीलें कौन सी हैं व विश्व का सबसे लम्बा रेलवे प्लेटफ़ार्म कहाँ पर है? Longest Railway Platform In The World, Largest Lakes Of India

क्या आप जानते हैं के इस अंक में आज हम जानेंगे भारत की सबसे बड़ी झीलों व भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे बड़े रेलवे प्लेटफ़ार्म के बारे में।

कश्मीर की वूलर झील के बारे में हम पहले से ही जान चुके हैं। गौरतलब है कि यह झील एशिया की भी सबसे बड़ी झील है। 

चिल्का झील (पुरी, ओड़ीशा)


अन्य झीलों की बात करें तो जिक्र आता है ओड़ीशा की चिल्का झील का। यह झील खारे पानी की सबसे बड़ी झील है व बंगाल की खाड़ी में जा कर मिलती है। चिल्का झील पुरी, खुर्द व गंजम जिलों तक फ़ैली हुई है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह झील बहुत सारे पशुओं व पेड़-पौधों के लिये जीवन दायिनी है जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। सर्दियों में इस झील पर 160 से भी अधिक तरह के पक्षी अपना डेरा जमाते हैं। इस झील में कैस्पियन सागर, बैकल झील व अरल सागर से लेकर रूस, मंगोलिया व दक्षिण-पूर्व एशिया, लद्दाख और हिमालय से पक्षी आते हैं। ये पक्षी 12000 कि.मी से भी अधिक का सफ़र तय कर चिल्का झील तक पहुँचते हैं। इस झील की लम्बाई 64 कि.मी है। जी हाँ आपने सही पढ़ा है....

सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) में स्थित गोविंद वल्लभ पंत सागर देश की सबसे बड़ी कृत्रिम रूप से तैयार की गई झील है। इसका नाम भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत जी के नाम से पड़ा।  वे 1950 से 1954 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। उत्तराखंड के बड़े राजनेताओं में से एक रहे। इस झील की गहराई 38 फ़ीट है।

कोल्लेरू (आंध्र प्रदेश)
साफ़ पानी की सबसे बड़ी झील कोल्लेरू झील है। आंध्रप्रदेश की यह झील कृष्णा व गोदावरी नदियों के संगम से बनी सबसे बड़ी झील है। बुडामेरू व तम्मिलेरू मौसमी नदियाँ भी इसी झील में आकर मिलती हैं।
245 वर्ग किमी तक फ़ैली यह झील आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। कारण इंसान का लोभ। 42 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अब खेती के लिये लिया जा रहा है, जगह जगह झील ने सूखना शुरु कर दिया है। करीबन दो करोड़ पक्षियों का यह आशियाना धीरे धीरे उजड़ रहा है। यहाँ के पक्षियों की संख्या को देखते हुए वर्ष 1999 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया।

खड़गपुर रेलवे स्टेशन (मिदनापुर-पश्चिम, पं. बंगाल)
आइये अब जानते हैं विश्व के सबसे बड़े रेलवे प्लेटफ़ार्म के बारे में। यह स्टेशन है पश्चिम बंगाल ( माफ़ कीजिये पश्चिम बंगा...पता नहीं ये नाम क्यों रखा है ममता दीदी ने.. बड़ी कठिनाई से बोला जाता है..) का खड़गपुर रेलवे स्टेशन। इस स्टेशन के प्लेटफ़ार्म की लम्बाई है 1.072 किमी। प्रारम्भ में यह प्लेटफ़ार्म 716 मीटर लम्बा था पर इसे पहले 833 मी और फिर बाद में अभी के जितना लम्बा किया गया। खड़गपुर का प्लेटफ़ार्म विश्व में सबसे लम्बा है। यह शहर मिदनापुर पश्चिम जिले में स्थित है। हम सभी जानते हैं कि खड़गपुर आईआईटी के लिये जाना जाता है। भारत की सबसे बड़ी रेलवे वर्कशॉप भी यहीं पर है।

हमारे भारत में गर्व करने के लिये न जाने कितने ही स्थान, झील, नदी, पहाड़ आदि हैं। प्राकृतिक ही नहीं अपितु किले, महल मीनार आदि अनगिनत स्थान हैं किन्तु फिर भी हम इन पर गर्व नहीं करते। भारत को भूल विदेशों की ओर देखते हैं। इसका एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि हम अपने देश को, स्वदेश को पहचानते ही नहीं। इसीलिये ऐसे लेख हमारी जानकारी बढ़ाते हैं। मैं स्वयं भी इन सबसे अनजान रहा हूँ। मुझे भारत और भारतीय पर गर्व है।

आने वाले लेखों में वो बातें जो विदेशी हमारे बारे में कहते हैं, भारत को मानते हैं। अध्यात्म व गौरवशाली इतिहास होंगे धूप-छाँव के मुख्य बिंदु।

जय हिन्द
वन्देमातरम


आगे पढ़ें >>

Friday, November 18, 2011

एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तिल... मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं... फ़िल्म इजाज़त के गीत - भाग २ Film Izaazat, Old Hindi Movies Songs

फ़िल्म- इजाज़त
गीतकार-गुलज़ार
गायिका-आशा भोंसले
संगीतकार-राहुल देव बर्मन

हिन्दी फ़िल्म "इजाज़त" सुबोध घोष की बंगाली फ़िल्म "जातुगृह" से प्रेरित है। यह उन गिनी चुनी फ़िल्मों में से एक है जिन्हें गुलज़ार ने निर्मित किया। फ़िल्म में मुख्य भूमिकायें नसीरूद्दीन शाह, रेखा व अनुराधा पटेल ने निभाई हैं।

मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं

मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं
सावन के कुछ भीगे दिन रखे हैं
और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पडी हैं
वो रात बुझा दो, मेरा सामान लौटा दो

पतझड़ हैं कुछ, 
हैं ना ...
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में एक बार पहन के लौटाई थी
पतझड़ की वो शांख अभी तक काँप रही हैं
वो शांख गिरा दो, 
मेरा वो सामान लौटा दो...

एक अकेले छतरी  में जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे आधे गिले, सुखा तो मैं ले आयी थी
गीला मन शायद, बिस्तर के पास पडा हो
वो भिजवा दो, 
मेरा वो सामान लौटा दो...

एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तिल
गीली मेहंदी की खुशबू, झूठमूठ के शिकवे कुछ
झूठमूठ के वादे भी, सब याद करा दो
सब भिजवा दो, 
मेरा वो सामन लौटा दो...

एक इजाजत दे दो बस
जब इस को दफ़नाऊँगी 
मैं भी वही सो जाऊँगी...

छोटी सी कहानी से

छोटी सी कहानी से, 
बारिशों की पानी से
सारी वादी भर गयी,

ना जाने क्यों, दिल भर गया,
ना जाने क्यों, आँख भर गयी

शाखों पे पत्ते थे,पत्तों पे बूंदे थी
बूंदो में पानी था,पानी में आंसू थे

दिल में गिल भी थे,पहले मिले भी थे
मिलके पराये थे, दो हमसाये थे


जय हिन्द
वन्दे मातरम

आगे पढ़ें >>

Tuesday, November 15, 2011

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जाति व धर्म के आधार पर मिल रही "प्रोत्साहन राशि" एक रिश्वत है? Delhi Government Schools, Religion Caste Based Schemes

सुनने में आया है कि दिल्ली सरकार की ओर से एक स्कीम सरकारी स्कूलों में चल रही है। जिसके तहत हर एक या दो महीने में सरकार की ओर से कभी पाँच सौ, कभी सात सौ तो कभी पन्द्रह सौ रूपये बच्चों के अभिभावकों को दिये जाते हैं। लेकिन केवल अनुसूचित जाति/जनजाति/पिछड़े और अल्पसंख्यक (अधिकतर
मुसलमानों) को ही। दिल्ली सरकार इसे प्रोत्साहन राशि कहती है। उसपर आलम यह है कि बच्चे स्कूल आते नहीं हैं। और ग्रेड्स मिलेंगे इसलिये पढ़ते नहीं हैं। हमारी एक रिश्तेदार हैं जो हाल ही में सरकारी स्कूल में अध्यापिका के तौर पर लगी हैं उन्होंने बताया कि बच्चे स्कूल उन्हीं दिनों आते हैं जब उन्हें पता लगता है कि "प्रोत्साहन राशि" मिलने वाली है।

यह है सरकारी विद्यालयों का हाल। अब प्रश्न यह उठता है कि बच्चों को पढ़ाने के लिये प्रोत्साहन राशि क्या एक "भीख" की तरह नहीं है? जहाँ लेने वाला भीख माँग रहा है क्योंकि वो स्कूल ही तभी आ रहा है। उसे पढ़ने का कोई उत्साह नहीं है। उसको पढ़ना नहीं है अपितु भीख माँगनी है। दूसरी ओर देने वाला भी भीख माँग रहा है। यह भीख है वोटों की। वे वोट जो उसे अगली बार फिर कुर्सी तक पहुँचायेंगे। सत्ता की गद्दी हथियाने में मदद करेंगे। चूँकि चुनावों के दौरान पैसे बाँटना अपराध है तो ये कानूनी रूप से "प्रोत्साहन राशि" के नाम पर रिश्वत दी जा रही है।

बच्चों को पढ़ाने के लिये उन्हें किताबें, यूनिफ़ार्म मुफ़्त दी जाती हैं। यह बेहद अच्छा कदम है। आठवीं तक के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने से ही हम शिक्षित हो सकेंगे। दिल्ली नगर निगम में ग्यारहवीं तक मुफ़्त शिक्षा का प्रावधान है। वैसे हम लोग साक्षरता दर देखते हैं। जो बढ़ तो रही है लेकिन शिक्षित दर नहीं देखते। लोगों में शिक्षा का अभाव है। साक्षर तो वो भी है जिसे अपने हस्ताक्षर करने आते हैं परन्तु क्या हम उसे शिक्षित कर पायें हैं? शिक्षित होने क्या लक्षण हैं ये मुझे नही पता। मैं तो गली में कूड़ा फ़ैलाने वालों को भी अशिक्षित करार दे देता हूँ या फिर हेलमेट को सर पर मगाने कि जगह जो हाथ में हेल्मेट पहनते हैं। बहरहाल हम बात कर रहे थे मुफ़्त शिक्षा की। सरकार यह कदम नि:संदेह एक बेहतरीन प्रयास है और दूरगामी भी। लेकिन इतने सब के बीच "प्रोत्साहन राशि" को मैं रिश्वत समझता हूँ। रिश्वत इसलिये भी क्योंकि यह केवल एस.सी,
एस.टी और मुसलमानों के लिये ही है। स्कोलरशिप केवल इन वर्गों के लिये ही क्यों हैं? फिर चाहें परिवार की आय कितनी ही हो।

इंजीनियरिंग में दाखिले के लिये आरक्षण है। आईपी में यदि आप दाखिले का फ़ार्म भरते हैं तो उसमें आप पायेंगे कि आपका धर्म व जाति पूछी होती है। और यदि कोई ऑपशन आपको नहीं पायेगा तो वो है "जनरल" श्रेणी का। खैर आरक्षण का यह मापदंड मेरी समझ से परे हो जाता है जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये कम से कम दो लाख रूपये चाहियें। जो गरीब है, जो महंगाई की मार सह रहा है वो दो लाख रूपये कहाँ से लायेगा? फिर चाहें आप उसे आरक्षण ही क्यों न दें। इसका आशय स्पष्ट है कि दाखिला अमीर अनुसूचित जाति जनजाति व अल्पसंख्यकों को ही मिल रहा है। उन्हें आरक्षण दे कर क्या फ़ायदा?

आरक्षण की जिस बैसाखी से कांग्रेस ने भारत के लोगों को सहारा देने की कोशिश की थी वही बैसाखी इस देश को तोड़ रही है। कांग्रेस ने इलाज करने की बजाय इस बैसाखी का मोहताज बना दिया। ये बैसाखी अब सहारा नहीं है बल्कि खुद एक बीमारी बन गई है जो हमें खोखला कर रही है। क्योंकि ये बीमारी वोट लेने का जरिया मात्र बन कर रह गई है। मुसलमानों के वोट। दलितों के वोट। मुसलमानों व दलितों को प्रोत्साहन राशि का लोभ
दिया जा रहा है। जातिगत या धर्म के आधार पर आरक्षण इस देश को तोड़ रहा है।

आरक्षण आर्थिक आधार पर क्यों नहीं हो सकता? क्या ब्राह्मंण या अगड़ी जाति के लोग गरीब नहीं हो सकते? क्या इस प्रोत्साहन राशि के प्रलोभन की वजह से बच्चे पढ़ेंगे? मुझे तो नहीं लगता। उन्हें पैसा तो मिल रहा है लेकिन पढ़ाई नहीं। वे पढ़्ने के लिये नहीं पैसे लेने के लिये स्कूल आ रहे हैं। उनकी पढ़ाई करने की इच्छा ही नहीं रही है। उन्हें यूनिफ़ार्म दी जाये, उन्हें किताबें दें, उन्हें दोपहर का भोजन दें। यह सब बेहद आवश्यक है। परन्तु उन्हें ऐसी शिक्षा भी दी जाये कि आगे चल कर वे बैसाखी का सहारा न लें। और यदि यह सब हो रहा है तो आर्थिक आधार पर हो न कि जातिगत व धर्म के आधार पर.. क्योंकि आज महँगाई के दौर में गरीबी एक अभिशाप की तरह है और गरीब की कोई जाति नहीं होती।

दिल्लॊ सरकार की वेबसाईट जहाँ आप को तरह तरह की स्कीमें मिल जायेंगीं:
http://delhi.gov.in/wps/wcm/connect/doit_welfare/Welfare/Home/Services-+Schemes

जय हिन्द
वन्देमातरम

आगे पढ़ें >>

Friday, November 11, 2011

भूले बिसरे गीत: खाली हाथ शाम आई है, खाली हाथ जायेगी..... जब आशा भोंसले और पंचम दा ने गुलज़ार के गीतों में जान डाल दी Old Hindi Songs RD Burman, Asha Bhosle, Gulzar - Film Izaazat

फ़िल्म- इजाज़त
गीतकार-गुलज़ार
गायिका-आशा भोंसले
संगीतकार-राहुल देव बर्मन

हिन्दी फ़िल्म "इजाज़त" सुबोध घोष की बंगाली फ़िल्म "जातुगृह" से प्रेरित है। यह उन गिनी चुनी फ़िल्मों में से एक है जिन्हें गुलज़ार ने निर्मित किया। फ़िल्म में मुख्य भूमिकायें नसीरूद्दीन शाह, रेखा व अनुराधा पटेल ने निभाई हैं।

खाली हाथ शाम आयी हैं, खाली हाथ जायेगी

खाली हाथ शाम आयी हैं, खाली हाथ जायेगी
आज भी न आया कोई, खाली लौट जायेगी

आज भी न आये आँसू, आज भी न भीगे नैना
आज भी ये कोरी रैना, कोरी लौट जायेगी

रात की सियाही कोई, आये तो मिटाए ना
आज ना मिटाई तो ये, कल भी लौट आयेगी

छोटी सी कहानी से, बारिशों की पानी से

छोटी सी कहानी से, बारिशों की पानी से
सारी वादी भर गयी,

ना जाने क्यों, दिल भर गया,
ना जाने क्यों, आँख भर गयी

शाखों पे पत्ते थे,पत्तों पे बूंदे थी
बूंदो में पानी था,पानी में आंसू थे

दिल में गिल भी थे,पहले मिले भी थे
मिल के पराये थे, दो हमसाये थे
आगे पढ़ें >>

Sunday, November 6, 2011

भूपेंद्र हज़ारिका को भावभीनी श्रद्धांजलि.. गंगा बहती हो क्यूं?.. Bhupendra Hazarika Bharat Lost Voice Of East

यह वर्ष हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिये बेहद दुखदाई रहा है। क्रिकेट, बॉलीवुड व ग़ज़ल के बाद शास्त्रीय संगीत ने भी एक रत्न को खो दिया। बात कर रहा हूँ भूपेंद्र हज़ारिका की। पूर्वी भारत के असम में 1926 में जन्मे भूपेंद्र ने हिन्दी फ़िल्मों में संगीत दिया व गीत भी गाये। उनके योगदान को हम कभी नहीं भूल पायेंगे।
उन्होंने शनिवार पाँच सितम्बर को आखिरी साँस ली।

पद्म भूषण(2001)
दादा साहेब फ़ालके अवार्ड (1992)
असोम रत्न (2009)
संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (2009)

भूपेंद्र हज़ारिका को भावभीनी श्रद्धांजलि।


दिल हूम हूम करे (रूदाली)



गंगा बहती हो क्यूँ


ये गीत आज मैंने पहली बार सुना है... फिर सोचा कि लानत है.. मैने ये पहली बार क्यों सुना...
विनती है एक बार अवश्य सुनें...




जय हिन्द
वन्देमातरम
आगे पढ़ें >>

Wednesday, November 2, 2011

क्या आप जानते हैं अब तक के सबसे निर्मम हत्याकांड के बारे में? Passenger Pigeon Extinction Story

कहते हैं कि भगवान ने इस धरती पर सबसे समझदार जीव जो बनाया है वो है इंसान। पर आज जो मैं आपसे कहने जा रहा हूँ वो आपको अंदर तक झकझोर सकती है। यदि किसी भी पढ़ने वाले में थोड़ा सा भी दिल होगा तो आज का यह लेख आपको सकते में डाल सकता है। मैं चाहता हूँ कि आप इस लेख को ध्यान से पढ़ें।

चित्रों में मुसाफ़िर कबूतर
मानव जाति के प्रारम्भ से लेकर अब तक का सबसे निर्मम हत्याकांड मैं आज आपके समक्ष रख रहा हूँ। अब तक का सबसे निर्मम हत्याकांड.. एक "समझदार (?)" व सामाजिक (?) जीव कितना निर्दयी हो सकता है, कितना आसामाजिक है व इस धरती का सबसे शक्तिशाली जीव होने का किस तरह से फ़ायदा उठाया है ये आपको आज पता चलेगा। हम बेज़ुबान जानवरों व पक्षियों पर किस तरह से अत्याचार करते हैं उसका नमूना आज पेश करूँगा। मैं अपने लेख को सनसनीखेज़ करने के लिये ऐसा नहीं कर रहा हूँ.. मैं कोई टीवी पर टीआरपी बढ़ाने के लिये नहीं ऐसा कह रहा हूँ.. अपितु सच..सच और केवल सच...

क्या आपने मुसाफ़िर कबूतरों का नाम सुना है? ऑल इंडिया रेडियो पर मैंने अक्टूबर में इनके बारे में सुना। वो ऐसी जानकारी थी जिसने मेरे होश उड़ा दिया। विकिपीडिया व नेट पर खोजा तो बात 
मुसाफ़िर कबूतर का बच्चा
बिल्कुल सच थी। वही बात मैं आपके साथ बाँट रहा हूँ। उत्तरी अमरीका व कनाडा के पूर्वी हिस्से में आज से सौ साल पहले तक मुसाफ़िर कबूतर जिन्हें अंग्रेज़ी में Passenger Pigeon कहते हैं, पाये जाते थे।

क्या आप जानते हैं इनकी संख्या कितनी थी? पाँच सौ करोड़.... जी हाँ आपने सही पढ़ा.. पाँच सौ करोड़। ये पक्षी इसी हिस्से उड़ा करते थे। कहते हैं कि जब ये झुंड में उड़ा करते थे तब एक मील चौड़ा और 300 मील लम्बा झुंड बन जाता था....एक ऐसा झुंड जो सूर्य की किरणों को ढँक लेता था और धरती पर एक किरण भी नहीं पड़ने देता था। जब वे उड़ते थे तो ऐसा अँधेरा छा जाता था जिसे छँटने में चौदह घंटे से ज्यादा समय लग जाता था। चौदह घंटे तक आसमान में अँधेरा.. जैसे सूर्य ग्रहण लग गया हो.. ज़रा सोच कर देखिये.. पाँच सौ करोड़ पक्षी एक साथ आकाश में उड़ते हुए....

सिनसिनाती के चिड़ियाघर में मरने वाला अंतिम कबूतर
आज मुसाफ़िर कबूतरों की संख्या है शून्य... शून्य। कारण- जब यूरोप से लोगों का आगमन तेज़ हुआ और वे अपने रहने के लिये जगह बनाने लगे तब इन पक्षियों के जंगल काटे गये। 19वीं शताब्दी में गुलामों के लिये इन कबूतरों का सस्ता माँस मिलने लगा था। यह वो दौर था जब इनके घरौंदों को तेज़ी से तोड़ा व इन्हें काटा जाने लगा था। 1800 से 1870 तक इनका आँकड़ा धीरे धीरे कम हो रहा था किन्तु 1890 आते आते ये इतनी तेज़ी से विलुप्त हो गये कि पता ही नहीं चला। सिनसिनाटी चिड़ियाघर में 1 सितम्बर , 1914 को अंतिम पक्षी ने दम तोड़ दिया। यानि करीबन सौ वर्षों में पाँच सौ करोड़ मौतें....

इस सत्य घटना में आपको परेशान कर सकती है..आपके रौंगटे खड़े कर सकती है.. आपको दु:खी कर सकती है.. आपको शर्मिंदा कर सकती है..। जैसे मैं हूँ। मुझे जब इस घटना का पता चला तो मैं शर्मिंदा था स्वयं पर.. मानव जाति पर...अपने स्वार्थ व स्वाद हेतु कितना गिर सकता है इंसान इसका उदाहरण है यह घटना...इसके आगे मैं कुछ नहीं कह सकता.. स्तब्ध...

भारत से विलुप्त होने के कागार पर खड़ी हैं अन्य कुछ प्रजातियाँ भी..

साभार:
http://en.wikipedia.org/wiki/Passenger_Pigeon
http://www.eco-action.org/dt/pigeon.html

जय हिन्द
वन्देमातरम
आगे पढ़ें >>