Monday, December 29, 2008

जय हिन्द, जय हिन्दी, जय हिन्दयुग्म!!!

२८ दिसम्बर को हिन्दयुग्म ने अपना वार्षिकोत्सव मनाया। मैं भी इस आयोजन का साक्षी बना। हिन्दी भवन, दिल्ली में आयोजित इस समारोह में ’हंस’ सम्पादक राजेन्द्र यादव के अलावा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गणितज्ञ प्रो॰ भूदेव शर्मा, अंतर्राष्ट्रीय खेल कमेंटेटर प्रदीप शर्मा और कपार्ट, ग्रामीण विकास मंत्रालय के सदस्य डॉ॰ सुरेश कुमार सिंह अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। डा. श्याम सखा ’श्याम’ ने मंच संचालन किया। दोपहर २.३० बजे से जो समा बँधा वो शाम ६.३० बजे तक चला। हिन्दयुग्म के कवियों ने काव्यपाठ किया और पाठकों को सम्मान मिला। हॉल पूरी तरह से खचाखच भरा हुआ था। १५० से ऊपर लोग वहाँ आये हुए थे। हिन्दयुग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी (bharatwasi001@gmail.com) ने हिन्दी ब्लॉगिंग करना सिखाया। कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लाई और हर अतिथिगण हिन्दयुग्म की इस पहल और कार्यों का कायल हो गया। हर किसी ने युग्म की मदद करने का वायदा किया। राजेंद्र जी ने जब कहा कि वे खुद ब्लॉगिंग करना सीखना चाहते हैं तो इससे बढ़कर और बात क्या हो सकती थी? युग्म को आगे बढ़ाने में जितने भी कार्यकर्ता लगे हुए हैं, हर किसी के लिये हर्ष का दिन है। मैं भी आज खुश हूँ। १८ महीने पहले पिछले वर्ष अप्रेल में हिन्दयुग्म से जुड़ा था। आज मुझे गर्व महसूस हो रहा है कि वो भाषा जिसे मैं समझता था कि बाकि भाषाओं के मुकाबले पिछड़ रही है, आज उसी भाषा के लिये मैं काम कर रहा हूँ और हिन्दयुग्म लोगों को ये रास्ता दिखा रहा है।

अधिक जानकारी के लिये: http://kavita.hindyugm.com/2008/12/celebration-of-hind-yugm-annual.html
जय हिन्द, जय हिन्दी, जय हिन्दयुग्म!!!
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Saturday, December 20, 2008

हिन्द-युग्म: 28 दिसम्बर 2008 को हिन्द-युग्म मनाएगा वार्षिकोत्सव (मुख्य अतिथि- राजेन्द्र यादव)

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राजस्थान की गोलमा: लोकतंत्र का मजाक, विडम्बना या मजबूरी

कल राजस्थान में मंत्रियों ने शपथ ली। जिन्होंने शपथ ली उनमें एक राज्यमंत्री हैं गोलमा देवी। बात उनकी इसलिये करनी पर रही है क्योंकि पढ़ाई के मामले में पिछड़े राज्यों में से एक राजस्थान की यह राज्यमंत्री कभी स्कूल नहीं गई। ये पूर्ण रूप से अशिक्षित हैं। शपथ पढ़ नहीं पाई। हस्ताक्षर की जगह अंगूठा लगाया। ये शर्मनाक है। ये लोकतंत्र की विडम्बना है जो ऐसे अनपढ़ लोग हमारे मंत्री बने बैठे हैं। जरा थोड़ा पीछे जाते हैं। किरोड़ी लाल मीणा साहब इससे पहले भाजपा में थे। भाजपा ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया। जनाब बागी हो गये और अपने साथ अपनी पत्नी और दो अन्यों को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़वा दिया। और कमाल की बात ये कि ये चारों ही चुनाव जीत गये। अब कांग्रेस को तो पूरे १०० विधायक मिले नहीं, तो उन्हें निर्दलियों का साथ लेना था। सो पेशकश की गई किरोड़ी लाल जी से। इन्होंने खुद तो मंत्री पद नहीं लिया पर अपनी पत्नी को जरूर दिलवा दिया। ये लोकतंत्र की मजबूरी है क्या? लोगों ने ऐसा क्या देखा गोलमा देवी में? क्या लोग अभी भी नहीं समझे कि हमें समझदार और शिक्षित व्यक्ति नेता के रूप में चाहिये? क्या उम्मीदवार और मंत्री बनने के लिये कितनी शिक्षा कम से कम होनी चाहिये,ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जाना चाहिये? ये नेता लोग तो करेंगे नहीं। इनका अपना खुद का नुकसान जो होगा। कांग्रेस और गहलोत सरकार की यह कैसी मजबूरी? सरकार बनाना इतना जरूरी कि गोलमा देवी को मंत्री पद दे दिया? मुझे कांग्रेस सरकार से ज्यादा गुस्सा लोगों पर आ रहा है। क्या गहलोत सरकार के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था? क्या लोगों को अपने क्षेत्र व प्रदेश की तरक्की नहीं चाहिये? हमें अब ये जागरूकता फैलानी चाहिये ऐसे लोग हमारे नेता न बनें। फ़ैसला हमें लेना है।
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