Sunday, May 29, 2011

भूले बिसरे गीत में इस बार रफ़ी और मुकेश की आवाज़ में सदाबहार नग़में Songs of Rafi And Mukesh : Old Hindi Movie Songs

भूले बिसरे गीत के पहले अंक में प्यासा फ़िल्म के गीतों को सुना। आज के अंक में चार गीत ले कर आया हूँ एक बार फिर श्वेत-श्याम युग से। ये गीत आज भी नये से लगते हैं और इसलिये शायद इन्हें सदाबहार गीतों का दर्जा दिया गया है। रेड एफ़.एम को यदि छोड़ दें (क्योंकि ये बाप के जमाने के गाने नहीं सुनाते) तो तकरीबन सभी एफ़.एम वाले पुराने गीतों का एपिसोड जरूर सुनाते हैं।


क्योंकि गीत को मशहूर और सदाबहार बनाने में इसके पीछे के कलाकार यानि गायक, गीतकार व संगीत कार का भी पूरा योगदान होता है इसलिये हर गीत के साथ इसको मशहूर बनाने वाले पर्दे के पीछे की उन महान हस्तियों के भी नाम दिये गये हैं।


गीत १.
मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया...हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया।

इस गीत के बोलों को यदि आत्मसात कर लिया जाये तो जीने की कला आ जाये!!!



फ़िल्म : हम दोनों (1961)
गायक : मो. रफ़ी
संगीत: जयदेव
गीतकार: साहिर लुधियानवी




गीत २. ये मेरा दीवानापन है


फ़िल्म : यहूदी (1958)
गायक : मुकेश
संगीत: शंकर, जयकिशन
गीतकार: शहरयार
कलाकार: दिलीप कुमार, मीना कुमारी


गीत ३. तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी






गायक: मुकेश
संगीत: रोशन
गीतकार: साहिर लुधियानवी
फ़िल्म : दिल ही तो है।


गीत ४. किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार...
मुकेश की आवाज़ का जादू सर चढ़ कर बोलता है। और ये गीत दिल के अंदर तक छू कर जीना सिखा जाता है!!!

फ़िल्म: अनाड़ी
गीतकार: शैलेंद्र
संगीत: शंकर जयकिशन
गायक: मुकेश


आने वाले अंकों में श्वेत - श्याम युग जारी रहेगा और एक बार फिर लेकर आयेंगे सदाबहार गीत (दादाजी के जमाने से)। कुछ तो बात थी उन गीतों में... आपका क्या ख्याल है?
आगे पढ़ें >>

Wednesday, May 25, 2011

क्या आप जानते हैं भारत में पर्यटकों की कितनी संख्या है? Tourism In India - New Series

क्या आप जानते हैं पर्यटन हमारे देश भारत का सबसे बड़ा सेवा उद्योग (Service Industry) है? भारत की जीडीपी का 6.23 प्रतिशत इसी क्षेत्र से आता है और रोजगार में इसका हिस्सा करीबन नौ प्रतिशत है। भारत में प्रतिवर्ष 50 लाख विदेशी सैलानी आअते हैं। विदेशियों में अमरीका और ब्रिट्घेन से सबसे ज्यादा लोग आते हैं। आँकड़ें बताते हैं कि देसी सैलानियों की तादाद 56 करोड़ के करीब है!! आगे आँकड़ें सुनकर चौंकियेगा नहीं। 2008 में हमने केवल पर्यटन से ही 100 अरब अमरीकी डॉलर का कारोबार किया था जो 2018 तक तीन सौ अरब अमरीकी डॉलर हो जाने का अनुमान है। 

आँकड़ों से एक बात स्पष्ट रूप से उभरती है कि हम यदि चाहें तो हमारे देश में इतने पर्यटन स्थल हैं कि अरबों खरबों की कमाई हो सकती है व रोजगार को बढ़ावा मिल सकता है। इस देश में विदेशियों के साथ दुर्व्यवहार होता है फिर भी इनकी संख्या में कमी नहीं आई है। इसके पीछे कारण है हमारे देश का गौरवशाली इतिहास, ऐतिहासिक किले व स्मारकें इत्यादि। यदि हम ऐतिहासिक स्थलों को सम्भाल नहीं पाये तो इनकी संख्या जरूर घटेगी। आज से करीबन चार वर्ष पूर्व धूप-छाँव पर आमेर के किले के बारे में लिखा था। उस किले की दशा देख कर यही लगा कि वो अपनी अंतिम साँसें  ले रहा हो। 

भारत में इतने पर्यटन स्थल हैं, इतनी खूबसूरत स्थान व ऐतिहासिक स्थल हैं कि हमें स्वयं भी नहीं पता। कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात-राजस्थान से पूर्वोत्तर की सुंदरता अतुल्य है। शायद इसलिये भारत-सरकार भी "अतुल्य भारत" का प्रचार कर रही है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, दिल्ली व उत्तर-प्रदेश में सबसे अधिक विदेशी आते हैं वहीं देशी पर्यटकों के लिये आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश व तमिलनाडु पसंदीदी राज्य हैं। 

कुछ और आँकड़े आप तक पहुँचाना चाहूँगा। ताजमहल को देखने के लिये 30 लाख पर्यटक हर साल आते हैं। तमिलनाडु में हैं 34000 मंदिर।आने वाले अंकों में धूप-छाँव पर आप जान सकेंगे राज्यवार पर्यटक स्थल। प्रत्येक राज्य में कौन सी जगह हैं जिन्हें आप देखने के लिये जा सकते हैं। आप काज़ीरंगा अभयारण्य, बौद्धगया का महाबोद्धी मंदिर, हम्पी के स्मारक व अजंता-एलोरा समेत अनेको अनेक स्मारक व स्थलों के बारे में जानेंगे।

दिल्ली का लाल किला अब सफ़ेद रंग में रंगा जा रहा है। पुरातत्व विभाग कहता है कि लाल किला का रंग शुरु से लाल नहीं रहा इसलिये ऐसा किया जा रहा है। 

दिल्ली का लाल किला



अगले अंक में हम जम्मू-कश्मीर से अपनी यात्रा शुरु करेंगे। आपको ये प्रयास कैसा लगा कृपया अवश्य बतायें।

।जय हिन्द।
।वन्देमातरम।
आगे पढ़ें >>

Sunday, May 22, 2011

इस देश की सबसे उपेक्षित भाषा संस्कृत को कैसे सीख रहा है शत्रु देश चीन The Sanskrit Tale On Enemy's Land - China Learning The Language We Ignore Most

आज तक आपने चीन की हरक़तों के बारे में सुना होगा। कराची में पाकिस्तान की सहायता से, बंगाल की खाड़ी  में बंग्लादेश से मदद और भारतीय महासागर में श्रीलंका , तीनों दिशाओं से भारत के ऊपर नज़र रखे हुए है। अरूणाचल प्रदेश व कश्मीर में घुसपैठ जारी है। फिर भी भारत सरकार सोई हुई है। पता नहीं किस बात से डरते हैं हम? पर आज मैं आपको जो बताने जा रहा हूँ वो सुनकर आप भी उसी तरह से हैरान हो जायेंगे जिस तरह से मैं हो गया था।

जिस भाषा की कद्र उसके अपने देश में नहीं होती वो भाषा हमारे पड़ोसी शत्रु देश में शोभायमान हो रही है। जिस भाषा को एक सम्प्रदाय की भाषा मान कर हमारी सरकार केवल वोट बैंक की खातिर नजरअंदाज़ करती रही है वही भाषा चीन में अध्ययन का विषय बनी हुई है। मैं बात कर रहा हूँ हमारी मातृभाषा हिन्दी से भी अधिक उपेक्षित भाषा व हिन्दी की जननी संस्कृत की। जी हाँ इस देश की सबसे पुरानी भाषा संस्कृत जिसे आज हिन्दुओं की भाषा माना जाता है।

आजकल भारत में छठी कक्षा से ही अपनी भाषा चुनने की स्वतंत्रता मिल जाती है। बच्चे जर्मन, फ़्रैंच व स्पेनिश जैसी भाषाओं को संस्कृत से ऊपर मानते हुए चुनते हैं क्योंकि ये भाषायें आगे चलकर नौकरी दिलवाने में मदद करती हैं। यानि वो भाषा जिसे इस देश की राष्ट्रभाषा बनना चाहिये था वो राजनीति व जटिल पाठ्यक्रम के कारण हाशिये पर जाती जा रही है।

चलिये भारत की बात छोड़ते हैं और चीन की बात करता हूँ। चीन के पीकिंग विश्वविद्यालय की बात करें तो वहाँ पर संस्कृत विषय पर 1960 से अध्ययन व लोगों को संस्कृत सिखाने का कार्यचल रहा है। इसे जी ज़ानलिन की छत्रछाया में देश में प्रसिद्धि मिली। करीबन 2000 वर्ष पूर्व बौद्ध गुरुओं के माध्यम से संस्कृत चीन तक पहुँची। यहाँ 60 विद्यार्थी संस्कृत पढ़ते हैं व कईं पुस्तकों का संस्कृत से चीनी भाषा में अनुवाद भी करते हैं। यहाँ के विद्यार्थियों में जबर्दस्त लगन है और सटीक उच्चारण सीखने की इच्छा भी है।

नई दिल्ली से चीनी विश्वविद्यालय पढ़ाने के लिये गये संस्कृत विद्वान सत्यव्रत शास्त्री जी ने बताया कि तिब्बत में बहुत सी हस्तलिखित पुस्तकें हैं जो संस्कृत से तिब्बती व चीनी भाषा में अनूदित है किन्तु संस्कृत में मिलनी दुर्लभ है। वे कहते हैं कि अब वक्त आ गया है कि हम इस भाषा की कद्र करें व इसको पहचानें। वे आगे बताते हैं कि चीनी विद्यार्थी बहुत तेज़ी से इस भाषा को सीख रहे हैं। ये विद्यार्थी पी.एच.डी कर रहे हैं। ये लोग भगवद गीता और कालिदास की कुमारसम्भव में अध्ययन कर रहे हैं। 
आपको यदि यकीन न हो तो आप अंग्रेज़ी दैनिक "हिन्दू" के इस लिंक पर जा कर इसके बारे में अधिक जान सकते हैं।

ये बात दुखी करती है कि जिस देश में वैदिक शिक्षा व संस्कृत अनिवार्य करनी चाहिये उस देश की आज की कथित "युवा" पीढ़ी को इन दोनों के बारे में ही ज्ञान नहीं है। कोई राज्य वैदिक शिक्षा शुरु करते भी हैं तो स्वयं को "धर्मनिरपेक्ष" कहने वाली कुछ पार्टियाँ टाँग अड़ाने से बाज नहीं आती हैं। ये वोट-बैंक की राजनीति हमारे देश को विपरीत दिशा में ले जा रही है। समय आ गया है संस्कृत के पाठ्यक्रम में सुधार  करने का जिससे बच्चों में इसके प्रति दिलचस्पी बढ़े व इस भाषा को उचित सम्मान मिल सके। क्या ऐसे मिल सकेगा इसे सम्मान? आज पहली बार मैं चीन के साथ खड़ा हो रहा हूँ।  घर की भाषा को घर में इज़्ज़त नहीं मिल रही और शत्रु देश उसे पूज रहा है। अचम्भा!!! हैरानी!!! दु:ख!!! खुशी!!! सब कुछ है इस खबर में....

।जय हिन्द।
।वन्देमातरम।
आगे पढ़ें >>

Thursday, May 19, 2011

भूले बिसरे गीत- धूप छाँव पर एक नई श्रृंख्ला की शुरुआत Old Songs - New Series on Dhoop Chaaon

मेरे पिछले लेख में मैंने आज के गानों को जमकर कोसा। बहुत बुरा-भला कहा। किन्तु वो कोसना अकारण नहीं था। धूप-छाँव पर आज से भूले-बिसरे गीत लेकर एक नईं श्रृंख्ला लेकर आ रहा हूँ। जो पाठक पुराने गीतों के शौकीन हैं उनकी यादें तो ताज़ा होंगी ही परन्तु जो उन्हें नहीं भी सुनते मेरा प्रयास रहेगा कि वे भी पुराने गानों के मुरीद बन जायें। हर अंक में किसी एक फ़िल्म के गीतों को लेकर आऊँगा।

आज की फ़िल्म है- प्यासा। चूँकि ये मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्मों में से एक है इसलिये इस फ़िल्म के गीतों की तरफ़ मेरा झुकाव लाज़मी है।

गीत १. जिन्हें नाज़ है हिन्द पे वो कहाँ हैं?
इस अंक का पहला गीत वो है जिस गीत में इतनी सच्चाई थी जिसे सुनने के बाद सरकार ने रोक लगा दी थी...

गीत २. ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है...
इस दुनिया में इतना दर्द छुपा हुआ है जिसे बखान करना नामुमकिन  है, किन्तु इस गीत के जरिये वो संवेदना दिलों तक पहुँचती है जब एक कलाकार अपनी कला को किसी दूसरे के नाम पर "बिकते" हुए देखता है।

गीत ३. जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला..
एक बार फिर.. दर्द... इस बार एक प्रेमी के नज़र से दर्द के एक अलग रूप देखने को मिलता है।

गीत ४. जाने क्या तूने कही.. जाने क्या मैंने  सुनी..
वहीदा रहमान जब गुरुदत्त को अपनी ओर बुलाती हैं तब...


गीत ५. सर जो तेरा चकराये... 
आज के मस्ती वाले गीत सुनें और इसको सुनिये। इस गाने को सुनने के बाद सिर का दर्द सही में गायब हो जायेगा। जॉनी वॉकर की मस्ती व एक्टिंग को सलाम...

और अंत में,
गीत ६. तंग आ चुके हैं गम-ए-ज़िन्दगी से हम..
इस गीत की खासियत यह है कि इस गीत में संगीत नहीं है!!! रफ़ी के प्रशंसक कहते हैं कि जब मोहम्मद रफ़ी गाते हैं तो संगीत की ज़रूरत ही क्या है।


आशा करता हूँ कि इस श्रृंख्ला का यह पहला अंक आपको पसंद आ या होगा। हालाँकि अभी मुझे नहीं पता कि कितने और अंक मैं धूप-छाँव पर आपके लिये ला सकूँगा।
फ़िल्मों के बीच राजनैतिक/सामाजिक लेख जारी रहेंगे।  कोशिश यही रहेगी कि आपका मनोरंजन कर सकूँ और नई जानकारी आप तक पहुँचाऊँ।

धन्यवाद।
।वन्दे मातरम।
आगे पढ़ें >>

Tuesday, May 17, 2011

भारतीय राजनीति में क्या मायने हैं विधानसभा चुनावों के परिणामों के (माइक्रोपोस्ट) Indian Politics And Assembly Election 2011 Results

मैं कोई चुनावी विशेषज्ञ नहीं हूँ इसलिये छोटी सी पोस्ट ही लिख पाया पर हाल-ए-राजनीति इससे बयां हो ही जायेगी।

इस बार के विधानसभा चुनावों के परिणाम दो सबसे बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के लिये अच्छे नहीं रहे पर बाजी मरी है छोटे राजनैतिक दलों ने।

यदि आप कांग्रेस की केरल और बंगाल में हूई जीतों का आकलन करें तो पायेंगे कि केरल में कांग्रेस  ने 82 में से महज 38 सीटें जीतीं। वो तो भला हो मुस्लिम लीग का जिसे 24 में से 20 सीट प्राप्त हुईं। वैसे तो मुस्लिम लीग भी साम्प्रदायिक पार्टी है पर फिर भी कांग्रेस को एक ही पार्टी साम्प्रदायिक नजर आती है। केरल में वैसे भी हर बार सत्ता पलटती है फिर भी यूपीए बड़ी कशमकश के बाद महज 2 सीटें ही आम बहुमत से अधिक ले पाई। बंगाल में भी तॄणमूल कांग्रेस के तिनके के सहारे ही सत्ता तक कांग्रेस पहुँच पाई। तमिलनाडु में दहाई के आँकड़े तक भी न पहुँच पाने के बाद पुड्डुचेरी में भी बुरी तरह हारी। 

केवल एक असम ऐसा प्रदेश रहा जहाँ गोगोई के कार्यकाल को सराहा गया जिसके बलबूते एक अपनी चिपक्षी पार्टियों को एक अच्छे अंतर से हराने में कामयाब हुई। यदि प्रमुख विपक्षी दलों असम गण परिषद और भाजपा एकजुट होतीं तो कुछ टक्कर दे सकतीं थीं।

अब यदि बात करें भाजपा की तो केरल बंगाल और तमिलनाडु में वो पहले ही शून्य पर थीं। बंगाल में एक आध सीट भी उसके लिये काफ़ी है। बाकि राज्यों में भी वोट प्रतिशत बढ़ा है जो इसके लिये अच्छा माना जा सकता है। पर असम में अगप से तालमेल न बैठाने का खामियाज़ा भाजपा को भुगतना पड़ा जो पहले से भी कम सीटें हासिल कर पाई।

अब इस देश में पाँच ताकतवर महिलायें हो गईं हैं। एक आँटी हैं, एक अम्मा, एक बहन जी, एक दीदी और एक इन सब की मैडम!! देखना है कि नारी शक्ति इस देश में क्या गुल खिलाती है। आँटी के काम काज को अब सराहा नहीं जाता। न हीं अब कुछ खास रहा है। बहन जी और अम्मा करप्शन के सागर में पहले  ही डुबकी लगा चुकी हैं। पाठक भूल गये हों तो याद दिला दिया जाये कि उनके पास से साड़ियाँ और सैंडल बरामद हो चुके हैं। दीदी बंगाल की कंगाली को दूर करने में कामयाब होंगी या नहीं ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा पर दीदी और अम्मा केंद्र की राजनीति पर असर जरूर डालेंगी क्योंकि इन दोनों पार्टियों से आने वाले राज्य सभा के सांसदों की संख्या भी 8-10 तक बढ़ सकती हैं।
आगे पढ़ें >>

Saturday, May 14, 2011

फ़िल्मों और गीतों में बढ़ते हुए अपशब्दों के बीच क्या होगा आने वाले संगीत का भविष्य? Use Of Abuse Words In Hindi Songs & Movies

धूप-छाँव पर पहले भी एक लेख छप चुका है जिसमें "गाँव और गाली" को एक समान कहा गया था। फ़िल्मों में गालियों का चलन बढ़ता जा रहा है। कुछ लोग इसको सही मानते हैं और कहते हैं कि इससे सब कुछ "असली" लगता है। चूँकि हम लोग गाली देते हैं और फ़िल्में तो समाज का आईना होती हैं इसलिये इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये। फिर भी सेंसर बोर्ड इन फ़िल्मों को "ए" सर्टोफ़िकेट दे कर पास कर देता है। पिछले कुछ वर्षों से ऐसी फ़िल्में आने लगी हैं जिन्हें "डबल मीनिंग" की कैटेगरी में रखा जाता है।

मेरी बात से अधिकतर पाठक सहमत होंगे कि पुरानी फ़िल्मों के गानों में आज के मुकाबले शब्दों पर बड़ा जोर दिया जाता था। पहले जहाँ शब्दों के मतलब को ध्यान में रखकर गाना लिखा जाता था वहीं आज संगीत को तरजीह दी जाने लगी है। शब्द चाहें अंग्रेज़ी के हों, हिन्दी पंजाबी अरबी अथवा कोई ऐसी भाषा जो समझ से परे हो जाये पर संगीत "सॉलिड" होना चाहिये। आजकल फ़टाफ़ट गीत संगीत का जमाना है। मैं संगीत का कोई ज्ञानी नहीं हूँ लेकिन इतना जरूर कह सकता हूँ कि "फ़ास्ट फ़ूड" की भाँति ही "फ़ास्ट संगीत", संगीत की आत्मा की हत्या अवश्य कर रहा है। हाल ही में जगजीत सिंह को यह कहने पर मजबूर होना पड़ा कि ग़ज़ल को आज के दौर में कोई नहीं पूछता। ऐसा लगता है कि आजकल गीत केवल तुकबंदी पर ही चल रहे हैं। आप "चार बज गये पार्टी अब भी बाकि है..." जैसे आज के सुपरहिट गाना उठा लीजिये। तुकबंदी के अलावा कुछ नहीं है। 


बात करते हैं फ़िल्मों की। पहले की फ़िल्में पूरा परिवार साथ बैठ कर देखा करता था। धीरे धीरे ऐसी फ़िल्में बननी कम हो गईं। और आज ये आलम है कि हमें सोचना पड़ता है कि आखिरी बार पूरा परिवार कौन सी फ़िल्म देखने साथ गया था? फ़िल्मों में संवादों में गाली के  बाद उनके नामों में गाली डाल दी गई। ज़िन्दगी को "साली" बना दिया गया। कुछ गालियाँ इतनी आम हो गई हैं कि ऐसा लगने लगा है कि यदि ये न होती तो हम बोलना ही न सीख पाते।

खैर, फ़िल्मों के बाद कमोबेश यही हाल गानों का होता प्रतीत हो रहा है। कुछ गाने ऐसे बनने लगे जो सुनने में तो अच्छे  लगते हों पर उन्हें आप परिवार के साथ देख नहीं सकते। पर आज जो हाल में चलन है उसको देखते हुए ऐसा लगने लगा है कि अब गाने सुन भी नहीं सकते।

हालाँकि किसी को भी साला-साली बनाने की शुरुआत 1974 की फ़िल्म "सगिना" में हो गई थी जब दिलीप कुमार "साला मैं तो साहब बन गया" गाते हैं। उसके बाद जहाँ तक मुझे याद है फ़िल्म "रंगीला" में  क्या करें क्या न करें... गाने में इसी शब्द का प्रयोग हुआ है और फिर फ़िल्म "जोश" में भी शाहरुख इसी शब्द को गाते दिखाई पड़े। वैसे कुछ लोग इसे गाली नहीं मानते। फिर "रंग दे बसन्ती" के एक गाने  में भी यही शब्द इस्तेमाल हुआ। आप ही बताइये "Character Dheela" गाने में "साला" लगाने कि क्या तुक बनती है? हाल ही में आये "दम मारो दम" फ़िल्म के शीर्षक गीत को ही ले लीजिये। जयदीप साहनी ने क्या सोच कर इसके गीत लिखे ये तो वे ही बतायें। आज भी असली "दम मारो दम" और आज के गीत की तुलना कर के देख लीजिये। चाहें गीत हो अथवा संगीत।

आने वाली पीढ़ी स्वच्छ संगीत के दर्शन कर भी सकेगी अथवा नहीं ये कहना कठिन है। पर जो मिलावट आज परोसी जा रही है और रियालिटी शो के जरिये जो गायक बनाये जा रहे हैं उससे संगीत की राह दुर्गम अवश्य लग रही है।

। वन्देमातरम ।

आगे पढ़ें >>

Sunday, May 8, 2011

दोरजी खांडू का निधन और पूर्वोत्तर राज्यों से होते सौतेले व्यवहार के बीच प्रधानमंत्री के नाम पत्र Death Of Dorji Khandu, North-East States Ignored By Media - Letter to Prime Minister

माननीय मनमोहन जी,

सर्वप्रथम आपकी सरकार को बधाई देता हूँ कि आप की यूपीए सरकार को तीन बरस होने वाले है। परन्तु शायद आप भी इस बात से सहमत होंगे कि इस बार प्रधानमंत्री की कुर्सी आपके लिये काँटों भरा ताज रहा है। आज मेरे पत्र लिखने का खास कारण है।

दोरजी खांडू को आप जानते ही होंगे। वे सेना में कार्यरत रहे और 71 के युद्ध के पश्चात उन्हें गोल्ड मैडल से भी नवाज़ा गया। वे बाद में चार बार जनता द्वारा चुने भी गये। बाद में अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए हैलीकॉप्टर  दुर्घटना में उनकी असमय मृत्यु हो गई। पर ये मृत्यु कईं प्रश्न खड़े कर गई है। पिछले दो वर्षों में कईं बार हैलीकॉप्टर दुर्घटनायें हुई हैं। जिनमें से दो बार तो इस देश के दो मुख्यमंत्री मारे गये हैं। गोल्ड मैडल विजेता सैनिक अधिकारी की इस तरह हुई हत्या होगी यह उन्होंने भी नहीं सोचा होगा। हम पूरी दुनिया पर राज करने की बात करते आये हैं। इसरो एक के बाद एक सैटेलाईट अंतरिक्ष में भेज रहा है। वैज्ञानिक और सेना दोनों के पास ही यदि आधुनिक तकनीकें हैं तो मुख्यमंत्री को ढूँढने में चार दिन से ऊपर का समय कैसे लग जाता है? कहीं न कहीं तो गुंजाईश अवश्य है।

दोरजी खांडू की मृत्यु होती है और आपके मंत्री उनकी मृत्यु की पुष्टि होने से पहले ही दु:ख संदेश मीडिया को दे देते हैं। पुष्टि से पहले!!! यी हैं आपकी सरकार के विदेश मंत्री श्री एस.एम. कृष्णा जी। आपका ध्यान मैं मीडिया की ओर भी ले जाना चाहता हूँ। हमारी मीडिया के द्वारा जिस तरह से उत्तर-पूर्व क्षेत्र को नजर अंदाज़ किया जा रहा है वो आप तक पहुँचाना जरूरी महसूस कर रहा हूँ। श्री खांडू की मौत हुई पर हमारा मीडिया ओसामा और ओबामा के नामों को गुनगुना रहा था। ओबामा उनके लिये भगवान बना हुआ है। इतनी बार तो शायद आपका नाम भी न लिया हो। सुबह अखबार टटोले तो पहले पन्ने पर कही पर बड़ी तो कहीं पर छोटी खबर दिखाई दी। खैर इन सब के बीच एक समाचार पत्र ऐसा भी रहा जिसने श्री खांडू के निधन का कोई समाचार नहीं छापा!!! कम से कम पहले पन्ने पर तो नहीं। 

दूसरी ओर हमारा नम्बर एक दुश्मन चीन उत्तर-पूर्व राज्यों में अपनी पैठ जमाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। परन्तु आपकी सरकार उसे भी नजर-अंदाज़ कर रही है। किस बात का खौफ़ है आपको? क्या आप चीन से डरते हैं? अमरीका द्वारा ओसामा को मारे जाने के पश्चात आपकी सेना के अधिकारी छाती ठोंक कर कह रहे थे कि हम भी ऐसा कर सकते हैं। पर क्या आपकी सरकार में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुसने की हिम्मत है? जो चीन ओसामा के पाकिस्तान में मारे जाने के बाद भी पाकिस्तान का साथ दे रहा है उस चीन को माकूल जवाब देने में क्या आपकी सरकार समर्थ है?

आपके पास जब टू-जी आदि घोटालों से समय मिल जाये तो कृपया उत्तर-पूर्व के लोगों पर भी नजर डालियेगा। कहीं ऐसा न हो कि आने वाला वक्त भारत को बाईस राज्यों से जाने।


आज मातृ दिवस है। भारत माता के लिये आपसे निवेदन है कि हर राज्य को इस एक देश की माला में पिरोये रखें। आप सभी पाठकों से निवेदन है कि हम लोग ही पूर्वोत्तर के लोगों को पराया समझते हैं तो सरकार से कैसे हम कुछ आशा कैसे कर सकते हैं?
"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरीयसी" : जननी और मातृभूमि दोनों स्वर्ग से भी महान हैं। 


| जय हिन्द |
| वन्दे मातरम |
आगे पढ़ें >>