Tuesday, November 30, 2010

समोसे के शौकीन लालू और कर्नाटक-आंध्र में रेड्डी बँधुओं का दखल Election Result-Laloo's Samosa, Karnataka-Andhra-Media

दृश्य एक


चुनावों में हार के बाद, ज़ोर का झटका ज़ोर से पड़ने के बाद लालू और पासवान ड्राइंग-रूम बात करते हुए सुने गये।

लालू जी (गाते हुए): जाने कहाँ गये वो दिन.....कहते थे मेरे राज में .....
पासवान जी: क्या गा रहे हो लालू जी? बीड़ी जलई रे और मुन्नी बदनाम के युग में ये भी कोई गाना हुआ।
लालू जी: अरे पासवान साहिब..ये युग की बात नहीं..समय की बात है। वो भी क्या दिन थे जब समोसा हमें प्यारा हुआ करता था।

जब तक रहेगा समोसा में आलू..तब तक रहेगा बिहार में लालू....


शायद उस युग में जब मेवे, मटर और नूडल्स के समोसे बाज़ार में बिक रहें हैं आलू के बिना भी समोसा तैयार हो रहा है तो बिहार ने भी लालू बिन बिहार का रास्ता चुनने का इरादा कर लिया है।

और राहुल बाबा का कोई कमेंट नहीं आया बिहार पर?
राहुल गाँधी: मेरे इरादे अभी भी मज़बूत हैं। युवा भारत युवाओं के लिये वोट देगा। मैं अपनी पार्टी के लिये काम करता रहूँगा। और मेरी पार्टी देश के लिये..
जनता: राहुल जी, आप देश के लिये कब काम करेंगे? मंत्री बन कर देश चलाइये…

राहुल बाबा कुछ ऐसा सोच रहे हैं शायद:

लोगों को ख्वाब दिखाये थे जन्नत के हमने,
लोगों ने जहन्नुम भी नसीब न कराया हमें...

दृश्य दो

उधर कर्नाटक में भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे जा रहे हैं। और आँध्र में जगनमोहन ने सोनिया जी की नाकमें दम कर रखा है। सुनने में आया है कि गडकरी और मैडम दोनों ने एक मीटिंग की है। उसी की एक झलक:

नितिन गडकरी: क्या हम कुछ नहीं कर सकते?
सोनिया जी: दुनिया जानती है कि दोनों राज्यों में एक ही ग्रुप ने नाटक मचा रखा है।
गडकरी जी: रेड्डी बँधु!!!
सोनिया जी: इनके और जगनमोहन रेड्डी के सम्बन्ध बड़े ही मधुर हैं। वे ही जगन को उकसा रहे हैं और जगन अपने चैनल पर हमारे लिये भला-बुरा कह रहा है।
गडकरी जी: सिर्फ़ बुरा ही कह रहा है, भला नहीं। हा हा।
सोनिया जी: ज्यादा दाँत मत फ़ाड़िये, आपकी सरकार उन्हीं की वजह से चल रही है। कर्नाटक में उनकी कितनी चलती है ये आप भी जानते हैं।
गडकरी जी: तभी तो हम लोग चुप हैं। ऊपर से आजकल कुमारस्वामी ने भी नाक में दम कर रखा है। समझ में नहीं आता कि क्या किया जाये।
सोनिया जी: एक ही तरीका है। किसी तरह से सुप्रीमकोर्ट रेड्डी ब्रदर्स को फ़टकार लगा दे और लगाम लगाये तो साँप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। क्या ख्याल है?
गडकरी जी: लगता है आपको सुप्रीमकोर्ट की आदत सी हो गई है। कभी कभी लगता है कि कोर्ट नहीं होता तो आपकी सरकार कैसे चलती? जगन के दबाव में रोसैया जी को हटा दिया।
मैडम सोनिया: रोसैया को हटा हमने नये "रिमोट" किरण रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया है। हमारा शुभचिन्तक है वो।
गडकरी जी: पर जब राज्य के अधिकतर विधायक राजशेखर रेड्डी के मरने के बाद जगन की वकालत कर रहे थे तब आपने उन्हें क्यों नहीं बनाया?
मैडम: आप राजनीति में कच्चे हैं तभी कुछ नहीं कर पा रहे। जगन को बनाते तो रेड्डी बँधु आँध्र में भी तहलका मचा देते। उन्होंने हमारे राज्य में भी अवैध खनन किया है लेकिन अभी सामने नहीं आ रही है ये बात।
अब हम तेलंगाना से एक डिप्टी सी.एम. लाकर लोगों को भी खुश करने वाले हैं!!
गडकरी जी: मान गये आपको। लोग यूँ ही आपको मैडम नहीं बुलाते। एक ही पार्टी के सी.एम और डिप्टी सी.एम. ।
मैडम हमें भी कुछ गुर सिखा दीजिये। मैं भी सर बनना चाहता हूँ। इतने सारे रेड्डी ऊपर से ये येद्दि....ओह....

चलते चलते विशेष:

हाल ही में नीरा राडिया, बरखा दत्त, वीर सांघवी के बातचीत के टेप सामने आकर उनका राजनैतिक पार्टियों, खासतौर से काँग्रेस सरकार से "रिश्ता" उजागर हो चुका है।
मीडिया के मन में कुछ ऐसा चल रहा है:

हमें मालूम है सारी हक़ीकत लेकिन,
आँख मूँद कर बैठने का मजा ही कुछ और है!!!

भारत में इतनी परेशानियाँ हैं और इतने विवाद हैं, कि हम सभी कहीं न कहीं उनका हिस्सा बनते हैं दुखी होते हैं। दुखी व परेशान होना उपाय नहीं है। जो भ्रष्टाचार व अन्य बुराइयाँ हम समाज व राजनीति में देखते हैं उन मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी है। "गुस्ताखियाँ  हाजिर हैं" स्तम्भ की शुरुआत इसी मिशन का एक हिस्सा है। यहाँ हँसी मजाक भी होगा और गम्भीर मुद्दे भी उठाये जायेंगे। ये आवाज़ आगे और बुलंद होगी यही उम्मीद है।
अगले सप्ताह नईं गुस्ताखियों के साथ फिर हाजिर होंगे। तब तक के लिये नमस्कार।

गुस्ताखियाँ जारी हैं.....

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Saturday, November 27, 2010

क्या आप जानते हैं भाग-१- दिल्ली का नाम कैसे पड़ा और २६ नवम्बर क्यों है खास? (माइक्रोपोस्ट) Name of Delhi and Significance of 26 November

"गुस्ताखियाँ हाजिर हैं" की शुरुआत के बाद आज से धूप-छाँव पर आ रहा है एक और नियमित स्तम्भ- "क्या आप जानते हैं"?

"क्या आप जानते हैं"  के छोटे से स्तम्भ में लम्बा-चौड़ा लेख नहीं अपितु आप के लिये होगी रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी। चाहें इतिहास हो, विज्ञान, भूगोल, घर्म या अन्य कोई भी और विषय हो। यदि आप भी इन विषयों के बारे में कोई जानकारी बाँटना चाहें तो कमेंट अथवा ईमेल के जरिये जरूर सम्पर्क करें। 

दिल्ली का नाम कैसे पड़ा?


भारत की राजधानी है दिल्ली। मीडिया वाले कभी इसे दिल वालों की दिल्ली तो कभी दरिंदों की दिल्ली कहकर बुलाते हैं। इसका इतिहास आज से पाँच हजार पहले पांडवों के समय का बताते हैं जब ये पांडवों की राजधानी हुआ करती थी और इसका नाम इंद्रप्रस्थ हुआ करता था। हम ये भी जानते हैं कि अंग्रेजों ने कलकत्ता के बाद 1911 में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। पर क्या आप जानते हैं दिल्ली का नाम कैसे "दिल्ली" पड़ा कैसे?

दरअसल दिल्ली का नाम कैसे पड़ा इस बारे में कईं तरह की कहानियाँ हैं। ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि वर्ष 50 ईसा पूर्व (BC) में मौर्य राजा हुआ करते थे धिल्लु या दिलु। उन्होंने इस शहर का निर्माण किया और इसका नाम दिल्ली पड़ गया। कुछ कहते हैं कि तोमरवंश के राजा ने इस जगह का नाम "ढीली" रखा क्योंकि राजा धव का बनाया हुआ लोहे का खम्बा कमजोर था और उसको बदला गया। यही "ढीली" शब्द बाद में बदल का दिल्ली हो गया। तोमरवंश  के दौरान जिन सिक्कों की परम्परा थी उन्हें "देहलीवाल" कहा करते थे। तो कुछ जानकार दिल्ली को "दहलीज़" का अपभ्रंश मानते हैं। क्योंकि गंगा की शुरुआत इसी "दहलीज़" से होती है यानि दिल्ली के बाद होती है। कुछ का मानना है कि दिल्ली का नाम पहले धिल्लिका था।

मतलब यह कि जिस दिल्ली को आप और मैं जानते  हैं उसका इतिहास इतना पुराना है कि उसका असली नाम अब कोई नहीं जानता। दिल्ली को "इंद्रप्रस्थ" बुलाये जाने के बारे में आप लोगों का क्या ख्याल है?

२६ नवम्बर क्यॊं है हमारे लिये खास?

२६ नवम्बर २००८ को पाकिस्तानी आतंकियों ने मुम्बई पर हमला किया। उसके बाद से हमारी सरकार यही राग अलाप रही है कि पाकिस्तान को नहीं छोड़ेंगे। अब इस पाकिस्तानी राग की आदत सी पड़ गई है। नये नये मुख्यमंत्री  पृथ्वीराज चौहाण राष्ट्रगान के दौरान वहाँ से चले जाते हैं तो आप समझ सकते हैं कि कितना गम्भीर होकर हमारे राजनेता काम कर रहे हैं और कितना राष्ट्रप्रेम उनके मन में है।

खैर इस २६ नवम्बर को सभी जानते हैं पर एक और २६ नवम्बर हमारे लिये अहम है। 1949 में इसी दिन हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ था जो २६ जनवरी 1950 से लागू किया गया।

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Sunday, November 21, 2010

जब राहुल टकराये भिखारी से और यम से नगर निगम व दिल्ली सरकार के कर्मचारियों की हुई मुक्का-लात Rahul met Beggar, Municipal and Delhi Govt. Workers vs. Yamraj

मेठी में एक भिखारी कुछ इस अंदाज़ में भीख माँग रहा था- भगवान के नाम पर दे दे "बाबा", अल्लाह के नाम पर दे दे "बाबा"।

वहीं से राहुल जी गुजर रहे थे।

राहुल गाँधी: तुमने पुकारा और हम चले आये, कहाँ है तुम्हारा घर... कोई बतलाये, तुमने पुकारा और हम चले आये। अमेठी मेरा संसदीय क्षेत्र है। मेरा ही नहीं मेरे परिवार का भी घर है। तुम किस जगह रहते हो?
भिखारी: राहुल बाबा, आप मेरे घर का क्या करेंगे? मैं तो जहाँ जगह मिलती है वहाँ बैठ जाता हूँ।
राहुल जी: तो फिर मैं आज रात कहाँ रुकूँगा? मैंने तो मीडिया को अमेठी आने को कह दिया था। ओह...
भिखारी: राहुल जी, आप अमेठी के लिये बहू क्यों नहीं ले आते? हर कोई यही चाहता है...
राहुल जी: आप सही कहते हैं। जल्द ही आपको खुशखबरी सुनने को मिलेगी। पर आप इतने उत्सुक क्यों हैं?
भिखारी: आप को दुल्हन मिलेगी जो आपके लिये अच्छा खाना बनायेगी और फिर हमें भी राहत मिलेगी जो आप हमारे यहाँ आते हैं। जिन गरीबों के पास खाने को रोटी नहीं वो आपको रोटी खिलाता है।
राहुल: तुम दलित हो? मुसलमान हो?
भिखारी: नहीं राहुल बाबा।
राहुल: फिर मैं तुम्हारे घर नहीं रुक सकता।

वहाँ से राहुल चल देते हैं। रास्ते में एक रिपोर्टर से टकरा जाते हैं। पीछे भिखारी बुड़बुड़ा कर रह जाता है (दलित गरीब और ब्राह्मण गरीब में क्या अंतर है?)

रिपोर्टर: सर, एक बात बतायें। आपने या आपकी सरकार ने दलितों व मुसलमानों के लिये क्या किया है?
राहुल: हमने दलितों व पिछड़ों को आरक्षण दिया है। और मुसलमानों के लिये......ह्म्म्म्म
रिपोर्टर: सुना है कि आपकी सरकार नीतीश सरकार का फ़ार्मूला लगा रही है। उन्होंने मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के लिये रोजगार योजना चालू की थी जिसके तहत उन्हें कढ़ाई बुनाई व अन्य रोजगार शिक्षा मुफ़्त दी जा रही है। और जो कुछ वे बना रही हैं उन्हें बेच कर आमदनी भी हो रही है जिससे उनका विकास हो रहा है।
राहुल: मुझे सिब्बल जी से बात करनी होगी फिर कोई टिप्पणी करूँगा।

(पर्दा गिरता है)

२००५ में विश्व बैंक के अनुसार भारत के ४१ फ़ीसदी लोग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा (१.२५ डालर प्रति दिन यानि ६२ रूपये प्रतिदिन) से भी नीचे है। हालाँकि इस आँकड़े में सुधार हुआ है जब १९८२ में भारत के साठ फ़ीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे थे। शहर में लोग औसतन २१.६ रू और गाँव में महज १४.३ रू प्रतिदिन कमाते है। सोच सकते हैं कि हालत कितनी खराब है। मुझे मालूम है कि ये ब्लॉग पढ़ने वाले १००० रूपये प्रतिदिन से अधिक कमाई करते होंगे। पर रौंगटे तब खड़े हो जाते हैं जब यह पता चले कि दुनिया के एक-तिहाई गरीब भारत में हैं। और जब राजनेता आरक्षण के नाम पर दलित गरीब व अन्य गरीब में अंतर करते हैं तो आप समझ सकते हैं कि एक गरीब पर क्या गुजरती होगी। फिर क्यों न वो भी आरक्षण की माँग करे?

और अधिक जानने के लिये यहाँ जायें।
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नगर निगम और दिल्ली सरकार के कर्मचारी मरने के बाद ऊपर यमराज के पास पहुँचे।

यमराज: कुछ साल पहले दिल्ली में इमारत गिरी थी, उसका जिम्मेवार कौन था?
कर्मचारी: यम जी, उसका जिम्मेवार तो आपकी बहन यमुना थीं।
यमराज: तुम लोगों की ये हिम्मत!!!!! गुस्ताख।
कर्मचारी: वह यमुना नदी के किनारे था और बाढ़ की वजह से इसकी नींव कमजोर पड़ गई थी।
यमराज: इमारत गिरने पर तुम दोनों जागे और फिर आनन फ़ानन में ३८ इमारतों को खाली करने का नोटिस भेज दिया। ये भी न सोचा कि वे लोग बाद में कहाँ रहेंगे?
कर्मचारी: वो हमने ...वो उनके लिये टैंट..
यमराज: जब मकान बन रहे होते हैं, तुम लोग तब पैसा खाते हो और मकान गिरने के बाद उसका इल्जाम यमुना पर लगाते हो!!! तुम्हीं लोगो ने ही इतना बड़ा अक्षरधाम और खेलगाँव यमुना के रास्ते में उसके ऊपर ही बनवा दिया। तब तो तुम्हें विदेशी कमाई नजर आ रही थी। अब बोलो? उन बेघरों को उसी अक्षरधाम और खेल गाँव में क्यों नहीं ठहरा दिया?
कर्मचारी: वो..वो... ऐसा कैसे करते हम?...

विकीपीडिया के अनुसार:

अक्षरधाम को सन २००० अप्रैल में बनाने की इजाजत डी.डी.ए ने दी। और नवम्बर २००० में बनना शुरु हुआ। नवम्बर २००५ में यह बनकर तैयार हुआ। जमीन के नीचे मजबूती के लिये १५ फ़ीट तक ५० लाख ईंटें लगाईं गई। और इस तरह यमुना के ठीक ऊपर कंक्रीट का जाल बिछा दिया गया और उसका रास्ता बदल दिया गया। यमुना तो और बेहतर करने की बजाय अब खेलगाँव बना दिया गया और नदी से नाला बना दिया गया है।
आप सोच रहे होंगे कि यमराज ने कर्मचारियों को नरक भेजा या स्वर्ग? उन्होंने उन्हें वापस मृत्युलोक भेज दिया। वे नहीं चाहते थे कि यमलोक में भी भ्रष्टाचार फ़ैले।
(पर्दा गिरता है)


भारत में इतनी परेशानियाँ हैं और इतने विवाद हैं, कि हम सभी कहीं न कहीं उनका हिस्सा बनते हैं दुखी होते हैं। दुखी व परेशान होना उपाय नहीं है। जो भ्रष्टाचार व अन्य बुराइयाँ हम समाज व राजनीति में देखते हैं उन मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी है। "गुस्ताखियाँ  हाजिर हैं" स्तम्भ की शुरुआत इसी मिशन का एक हिस्सा है। यहाँ हँसी मजाक भी होगा और गम्भीर मुद्दे भी उठाये जायेंगे। ये आवाज़ आगे और बुलंद होगी यही उम्मीद है।
अगले सप्ताह नईं गुस्ताखियों के साथ फिर हाजिर होंगे। तब तक के लिये नमस्कार।

गुस्ताखियाँ जारी हैं.....
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Saturday, November 13, 2010

"गुस्ताखियाँ हाजिर हैं" :नया स्तम्भ Socio-Political Sarcastic Humour New Series Part-1

मित्रों, पहली बार हास्य-व्यंग्य की खट्टी-मीठी चटनी लेकर आपके समक्ष नया स्तम्भ ला रहा हूँ -
"गुस्ताखियाँ हाजिर हैं"

आज की कहानी के पात्र:

मैडम सोनिया जी, आडवाणी जी, अम्मा जी, करूणानिधि और बाबा रामदेव।

(पर्दा उठता है)

आडवाणी जी:
सोनिया जी, आप मेरे जन्मदिन पर क्या तोहफ़ा दे रही हैं?
सोनिया जी
: आडवाणी जी, वैसे तो मुझे लोग मैडम के नाम से बुलाते हैं, पर फिर भी मैं आपको नाराज़ न करते हुए आपके सवाल का जवाब देती हूँ। काँग्रेस सोच रही है, नहीं नहीं, मैं सोच रही हूँ कि आपको कुछ मंत्रियों के इस्तीफ़े उपहार में दिये जायें।
आडवाणी जी: वाह मैडम जी, वाह!! राहुल बाबा को मेरा आशीर्वाद देना, वे मेरे पास गुलदस्ता ले कर आये थे। उनसे बात करके अच्छा लगा।
सोनिया जी
: पर आडवाणी जी, इतनी नज़दीकियाँ अच्छी नहीं। लोग क्या सोचेंगे। खासतौर पर आपकी पार्टी आपके बारे में क्या सोचेगी।
आडवाणी जी: वो तो मेरे बारे में वैसे भी अब कुछ भी नहीं सोचते। बुढ़ापे में अब तो भगवान राम का ही सहारा।

बाबा रामदेव (नेपथ्य) : आप लोग गहरी साँस लेते हुए स्विस बैंक से काला धन वापिस क्यों नहीं मँगाते ?  जनता का लाखों करोड़ो रुपया वहाँ जमा है।

सोनिया जी
: लगता है कोई हमारी बातें सुन रहा है। आप राम का जिक्र कर रहे थे? आपको तो न राम मिले और न ही कुर्सी। दोनों ने आपको छोड़ दिया।
आडवाणी जी (स्वयं को कुर्सी पर बैठा सोचते हुए): फिर भी मैं राम राज के सपने देखता हूँ और उन्हें अपना आदर्श राजा मानता हूँ।
सोनिया जी
: इस "आदर्श"ता ने तो हमसे हमारा मुख्यमंत्री छीन लिया है पर हमारे पास भी एक राजा है। जो था, है और रहेगा। हम ए.राजा को पा कर धन्य हुए हैं।

बाबा रामदेव
(नेपथ्य): मैं कहता हूँ आप लोग पेट अंदर करते हुए स्विस बैंक से काला धन वापिस लाने का प्रयास क्यों नहीं करते ?

तभी करूणानिधि जी आते हैं।
करूणानिधि जी: मैडम सोनिया, ये राम-वाम छोड़ो। ये कुछ नहीं होता। हम राम को नहीं मानते। हम ए.राजा को वापिस नहीं बुलायेंगे।
सोनिया जी
: आप निश्चिंत रहें। हमारी पार्टी भी कुछ नहीं करेगी। हमने सुप्रीम-कोर्ट में उनकी शराफ़त का एफ़ीडेविट जमा करवा दिया है। हम उनकी शराफ़त साबित करनेके लिये कानून का सहारा लेंगे।
अम्मा जी: मैडम जी, यदि आप ए.राजा को गद्दी से हटा भी देते हैं, तब भी आपको महारानी की कुर्सी से कोई नहीं हटा पायेगा। हम आपके साथ हैं। (मन में) न जाने कब से सत्ता की मिठाई नहीं चखी है।

बाबा रामदेव (नेपथ्य) : अरे कोई हाथ गर्दन के पीछे से आगे ला कर नाक पकड़ते हुए जनता का पैसा देश में वापस तो लाओ ।
सोनिया जी: आडवाणी जी, आपके यहाँ वक्ता बड़े अच्छे हैं। ये बात तो दुनिया मानती है। सुषमा जी, जेटली जी हों या अन्य बड़े नेता।
आडवाणी जी
: हाँ, नितिन की अगुआई में हम अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। हमारा किला अब अभेद्य है।

जनता(नेपथ्य) : तभी आपकी पार्टी के लोग शब्दों के "बूमरैंग" फ़ेंकते रहते हैं। सुदर्शन चक्र आपके किले पर खुद ही आकर लग गया है।
एक कांग्रेसी: कोई चाहें हमें कितना बुरा भला कह ले पर मैडम जी के लिये एक शब्द भी नहीं सुनेंगे हम। तोड़फ़ोड़ मचा देंगे, आग लगा देंगे।
बाबा रामदेव (नेपथ्य): अरे कोई तो हाथों को पैरों से मोड़कर कमर पर लाते हुए.....

(पर्दा गिरता है)
क्रमश:
अगले अंक में: अन्य पात्रों से मुलाकात और नईं गुस्ताखियाँ।
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क्या आप जानते हैं स्विस बैंकों में इतना पैसा जमा है कि ३० साल तक हम और आप कोई टैक्स न भरें तो भी सरकार का काम बन जाये!!! ३० साल का टैक्स!!!


भारत में इतनी परेशानियाँ हैं और इतने विवाद हैं, कि हम सभी कहीं न कहीं उनका हिस्सा बनते हैं दुखी होते हैं। दुखी व परेशान होना उपाय नहीं है। जो भ्रष्टाचार व अन्य बुराइयाँ हम समाज व राजनीति में देखते हैं उन मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी है। "गुस्ताखियाँ  हाजिर हैं" स्तम्भ की शुरुआत इसी मिशन का एक हिस्सा है। यहाँ हँसी मजाक भी होगा और गम्भीर मुद्दे भी उठाये जायेंगे। ये आवाज़ आगे और बुलंद होगी यही उम्मीद है।
अगले सप्ताह नईं गुस्ताखियों के साथ फिर हाजिर होंगे। तब तक के लिये नमस्कार।

गुस्ताखियाँ जारी हैं.....
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Thursday, November 4, 2010

दीपावली पर बाल-मन की कविता Children Poem on Diwali Festival

छोटे बच्चे प्रणव गौड़ द्वारा दीपावली के त्यौहार पर रचित यह बाल-कविता।
प्रणव (कुश) कुलाची हंसराज स्कूल, दिल्ली में तीसरी कक्षा में पढ़ते हैं और इन्हें शतरंज खेलने का शौक है। इनकी बाल-कवितायें बाल उद्यान पर प्रकाशित होती रही हैं।

दीपों का त्योहार दीवाली।
खुशियों का त्योहार दीवाली॥

वनवास पूरा कर आये श्रीराम।
अयोध्या के मन भाये श्रीराम।।

घर-घर सजे , सजे हैं आँगन।
जलते पटाखे, फ़ुलझड़ियाँ  बम।।

लक्ष्मी गणेश का पूजन करें लोग।
लड्डुओं का लगता है भोग॥

पहनें नये कपड़े, खिलाते है मिठाई ।
देखो देखो दीपावली आई॥

अन्य कवितायें:
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प्रणव गौड़ 'कुश' की होली
गणतंत्र दिवस पर चली छोटी कूची
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चाचा नेहरू कक्षा 1 के एक छात्र की दृष्टि में
दिवाली पर एक बच्चे द्वारा बना चित्र
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