पधारो साअभी हाल ही में राजस्थान की यात्रा करने का अवसर मिला। यात्रा के शुरू में ही राजस्थान की गर्मी और दिल्ली की तरह ही चिलचिलाती धूप का मंजर सोचे बैठा था। यात्रा शुरू हुई और कुछ ऐसे दृश्य देखने को मिले...
दूर दूर तक पेड़ और पहाड़ियाँ..
सोचा कि ये धरती और भी हरी भरी होती यदि यहाँ की मिट्टी ऐसी न होती...
पृथ्वी राज चौहान की धरती,
अजयमेरू में पुष्कर जी को प्रणाम किया
और आगे बढ़ गये..
जी हाँ अजयमेरू का ही बिगड़ा हुआ शब्द है अजमेर..
पुष्कर में मौसम को देख कर अंदाजा लगाना शुरू हो गया था
कि 300 कि मी दूर उदयपुर में कैसा मौसम होने वाला है..
पहाड़ी रस्ता ऐसा कि अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाये कि हम हिमाचल, उत्तरांचल या पूर्वांचल में नहीं अपितु रेगिस्तान को सुशोभित करती
अरावली पहाड़ियों पर चले जा रहे हैं..
राजस्थान में संगमरमर का काम काफ़ी होता है..
रास्ते में कुछ ऐसे दृश्य भी देखने को मिले.. शायद बारिश का पानी भर गया है... पानी के बीचों बीच खड़े ये पेड़ शायद यही कहानी बयां कर रहे हैं..
पूरे दिन के सफ़र के बाद हम उदयपुर पहुँचे..
आगे बढ़ने से पहले उदयपुर के बारे में बता देना उचित रहेगा। राजस्थान को मूलतः दो भागों में बाँटा जाता है.. मारवाड़ और मेवाड़.. उदयपुर मेवाड़ में आता है।
इस शहर को वीर राणा सांगा के पुत्र और महाराणा प्रताप के पिता, उदय सिंह ने बनवाया था इसी लिये इस का नाम उदयपुर पड़ गया..फ़व्वारों
(
ये चित्र अंतरजाल से लिया गया है)
व झीलों का शहर है उदयपुर..
ये है फ़तह सागर झील.. ये राणा फ़तह सिंह के द्वारा बनाई गई
अरावली वाटिका को देखते हुए फ़िर हम पहुँचे
प्रताप स्मारक.. यहाँ से मेवाड़ और उदयपुर की जो गाथा हमने सुननी शुरू की उसे सुनकर आज भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं और इस धरती के राजपूतों के प्रति अपने आप नतमस्तक हो जाता हूँ..
ज़रा बोर्ड पर लिखी इस कविता को पढ़िये..
एक एक पंक्ति जैसे उन शूरवीरों की कहानी कह रही हो.. जिन्होंने
न कभी किसी मुगल शासक की गुलामी करी और न ही अंग्रेज़ों को मेवाड़ की इस धरती पर राज करने दिया...काश सभी राजा ऐसे ही होते..
महाराणा प्रताप और चेतक... कहते हैं कि ये मूर्ति प्रताप और चेतक की कद काठी की ही है..
प्रताप का कद था सात फ़ीट से भी ज्यादा!!!
हल्दीघाटी के युद्ध में जब चेतक को चोट पहुँची तो प्रताप के सेनापति(जो प्रताप क हमशक्ल लगता था) ने प्रताप को रणभूमि से चले जाने को कहा और खुद प्रताप का मुकुट धर के युद्ध लड़ने लगा। लेकिन वो मानसिंह के सैनिकों के द्वारा पहचाना गया.. क्योंकि उसकी म्यान में एक ही तलवार थी!!!
चित्र को दोबारा देखिये..
प्रताप अपने साथ दो तलवारें रखते थे..निहत्थे पर उन्होंने कभी वार नहीं किया..
कुछ और पंक्तियाँ इस वीर योद्धा के नाम
कईं किमी तक के क्षेत्र में फ़ैली फ़तह सागर झील की 2 और झलकियाँ...
और फ़िर है पिछोला झील..
उदयपुर की शोभा बढ़ाती इन झीलों के मध्य में
लेक पैलेस और
जल महल नाम के 2 महल शामिल हैं जो उदयपुर को विश्व प्रसिद्ध करते हैं..
गौरतलब है अरूण नायर / लिज़ हर्ले की शादी यहीं पर हुई, और रवीना टंडन ने भी यहीं पर विवाह समारोह किया था..
एक रात के लिये यदि कमरा चाहिये तो 2.5 लाख रुपय तक खर्च करने पड़ सकते हैं..
अभी वर्तमान के महाराणा सिटी पैलेस में रहते हैं.. सिटी पैलेस में कैमरा ले जाने के 200 रू थे इसी लिये फ़ोटो लेने में असमर्थ रहा..
महाराणा की एक दिन की कमाई है मात्र 9 लाख (रू में..)
अब आप सोच ही सकते हैं सिटी पैलेस कितना खास रहा है। यहाँ पर्यटकों के लिये रात को विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं..
सिटी पैलेस का एक हिस्सा संग्रहालय है.. एक कार्यक्रम आयोजन के काम आता है..और एक में महाराणा स्वयं रहते हैं..अपना रक्त बहा कर जिन वीरों ने इस धरती को पवित्र रखा, वहाँ के राजा साल में 9-10 महीने बाहर रहते हैं..
महाराणा सूर्यवंशी हैं इसीलिये सिटी पैलेस में एक विशाल सोने का सूर्य हुआ करता था, परंतु इमेरजेंसी के दौरान हमारी प्रधानमंत्री जी ने उसको वहाँ से हटवा दिया... सफ़ेद टोपी वालों के सुपुर्द हो गया महाराणाओं का सूर्य!!!
सिटी पैलेस के बाद हमने रूख किया
हल्दीघाटी का.. जहाँ महाराणा प्रताप और जयपुर के राजा मानसिंह के बीच हुआ था... बादशाह अकबार प्रताप से डरते थे तो उन्होंने जयपुर के राजा को युद्ध में भेजा।जयपुर के राजा मानसिंह अकबर की पत्नी जोधाबाई के भाई थे।
घाटी को हल्दीघाटी क्यों कहते हैं इसका पता आपको यहाँ के पत्थरों और चट्टानों को देख कर लग जायेगा..
घोड़े पर हैं प्रताप और हाथी पर हैं मानसिंह..
ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि घोड़े के चेहरे पर हाथी का मुखौटा लगा हुआ है.. ऐसा इसीलिये किया गया ताकि हाथी घोड़े को छोटा बच्चा समझे..
जैसे ही महाराणा ने भाले से मानसिंह पर वार करने का प्रयास किया, हाथी ने सूँड में पकड़ी हुई तलवार से चेतक की एक टाँग को घायल कर दिया.. प्रताप रण भूमि को अपने सेनापति को सौंप वहाँ से जंगल की और भागे..घायल चेतक उन्हें 4-5 किमी दूर ले गया.. प्रताप के प्रति एक जानवर की स्वामिभक्ति को देख कर शक्ति सिंह (प्रताप का भाई जो अकबर से मिल गया था) का भी हृदय परिवर्तन हुआ और वो प्रताप की रक्षा के लिये दौड़ पड़ा..
प्रताप उसके पश्चात जंगल में ही रहे..
वीरों की भूमि को प्रणाम.. इतिहास में अपना नाम अमर कर गये राणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे योद्धा..
शत् शत् नमन