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Sunday, February 19, 2012

महाशिवरात्रि पर विशेष - डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी MahaShivratri - Damru wale baba teri leela hai nyaari

हर हर महादेव


कल महाशिवरात्रि है। भारत के अधिकांश हिस्से में यह कल मनाई जायेगी। किन्तु कुछ भक्त इसे आज के दिन भी मनाते हैं। कहते हैं इस दिन शिव जी की शादी हुई थी इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। ऐसा भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। यहां रात्रि शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। परमात्मा ही ज्ञानसागर है जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है।

अधिक जानकारी के लिये :

कुछ सप्ताह पूर्व मुझे एक ऐसा गीत मिला जिसकी मुझे बरसों से तलाश थी। तलाश क्या थी.. भूल गये थे कि कभी ये गीत भी सुना करते थे.. .। मेरे दादाजी को यह गीत बहुत पसन्द था। वे सुनते तो हम भी सुनते। शायद हमारे सभी के घर में सुना जाता हो....

इस गीत के बोल इंटेरनेट पर कहीं भी नहीं मिले थे। तो इसलिये सोचा कि इंटेरनेट पर यह आसानी से उपलब्ध होना चाहिये। महाशिवरात्रि से अच्छा दिन कोई और नहीं हो सकता था...

यह मात्र एक गीत अथवा भजन नहीं है। इस गीत में एक अद्भुत कथा का वर्णन है.. इस कथा में ज्ञान है.. सीख है.. मन की चंचलता है.. मान है ..अभिमान है.. अपमान है.....शिव है.. परमात्मा है... 

ये कथा इतनी सरल है कि स्वयं ही समझ आ जायेगी...
आइये शिव और पार्वती के इस सुन्दर किस्से को गायें और इससे मिलने वाली सीख को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें|
इसका ऑडियो भी इंटेरनेट पर मिल जायेगा।


डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....जय जय भोले भंडारी
शिव शंकर महादेव त्रिलोचन कोई कहे त्रिपुरारी
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी

शिव हो कर के ही तो तुमने इस जग का कल्याण किया
अमृत के बदले में खुद ही तुमने तो विषपान किया
दूज का चंद्र बिठाया माथे गंगा की जटाओं में
पर्वत राज की पुत्री के संग विचरे सदा गुफ़ाओं में
सचमुच हो कैलाशपति नहीं कोई चार दीवारी
डमरू वाले...डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी

तेरे ही परिवार की उपमा भूमिजन ऐसे गाते हैं
सिंह-बैल पशु होकर हमको प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं
जहरीले सब साँप और बिच्छू अंग अंग लिपटाये हैं
जैसे अपने शत्रु भी सब तुमने गले लगाये हैं
घोर साँप बेबस हो देख क चूहें की सरदारी...
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी

न कोई पद्वी का लालच मान और अपमान है क्या
सुख दुख दोनों सदा बराबर घर भी क्या श्मशान भी क्या
खप्पर डमरू सिंहनाद त्रिशूल ही तेरे भूषण हैं
उनको तुमने गले लगाया जो इस जग के दूषण हैं
तुझको नाथ त्रिलोकी पूजें कह कर के त्रिपुरारी
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी..

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अजर अमर हैं पार्वती-शिव और कैलाश पे रहते हैं
आओ उनके जीवन का हम सुंदर किस्सा कहते हैं
बैठे बैठे उमा ने एक दिन मन में निश्चय ठान लिया
शिव जी की आज्ञा लेकर लक्ष्मी के घर प्रस्थान किया
शंकर ने चाहा भी रोकना किन्तु मन में आया है
प्रभु इच्छा बिन हिले न पत्ता ये उन ही की माया है
मन ही है बेकार में जो संकल्प-विकल्प बनाता है
जिधर चाहता है मन उधर ये प्राणी दौड़ के जाता है
मन सब को भटकाये जग में क्या नर और क्या नारी....
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....

पार्वती चल पड़ी वहाँ से मन में हर्ष हुआ भारी
लक्ष्मी के महलों में मेरा स्वागत होगा सुखकारी
अकस्मात मिलते ही सूचना मुझे सामने पायेंगी
अपने आसन से उठ मुझ को दौड़ के गले लगायेंगी
हाथ पकड़ कर बर जोरी मुझे आसान पर बिठलायेंगी
धूप दीप नैवद्य से फिर मेरा सम्मान बढ़ायेंगी
पर जो सोचा पार्वती ने हुआ उससे बिल्कुल उलटा
लक्ष्मी ने घर आयी उमा से पानी तक भी न पूछा
उलटा अपना राजभवन उसको दिखलाती फिरती थी
नौकर चाकर धन वैभव पर वो इठलाती फिरती थी
अगर मिली भी रूखे मन से वो अभिमान की मारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....

पार्वती से बोली वो जिसको त्रिपुरारी कहते हैं
कहाँ है तेरा पतिदेव सब जिसे भिखारी कहते हैं
चिता और त्रिशूल फ़ावड़ी फ़टी हुई मृगछाला है
ऐसी ही जायदाद को ले के कहाँ पे डेरा डाला है?
पार्वती ने सुना तो उसकी क्रोध ज्वाला भड़क उठी
होंठ धधकते थे दोनों और बीच में जिह्वा भड़क उठी
बोली उमा कि तुमने चाहे मेरा न सम्मान किया
बिन ही कारण मेरे पति का तुमने है अपमान किया
उन्हें भिखारी कहते हुए कुछ तुमको आती लाज नहीं
सच ये है कि तेरे पति को भीख बिना कोई काज नहीं
वही भिखारी बन के राजा शिवि के यहाँ गया होगा
या फिर बामन बन के राजा बलि के यहाँ गया होगा
जहाँ भी देखा उसने वहीं पर अपनी झोली टाँगी थी
ऋषि दधिचि से हड्डियों तक की उसने भिक्षा माँगी थी
शंकर को तो जग वाले कहते हैं भोले भंडारी....
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....

पार्वती ने लक्ष्मी को यूँ जली और कटी सुनाई थी
फिर भी वो बोझिल मन से कैलाश लौट के आई थी
अन्तर्यामी ने पूछा क्यों चेहरा ये उदास हुआ
सब बतलाया कैसे लक्ष्मी के घर उपहास हुआ
बोली आज से अन्न जल को बिल्कुल नहीं हाथ लगाऊँगी
भूखी प्यासी रह कर के मैं अपने प्राण गवाऊँगी
मेरा जीवन चाहते हैं फिर मेरा कहना भी कीजे
जैसा मैं चाहती हूँ वैसा महल मुझे बनवा दीजै
महल बनेगा गृह प्रवेश पर लक्ष्मी को बुलवाना है
मेरी अंतिम इच्छा है उसको नीचा दिखलाना है
उससे बदला लूँगी मैं देखेगी दुनिया सारी....
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....

शंकर बोले पार्वती से मन पर बोझ न लाओ तुम
भूल जाओ सब कड़वी बातें और मन शांत बनाओ तुम
मान और अपमान है क्या बस यूँ ही समझा जाता है
दुखी वही होता है जो ऊँचे से नीचे आता है
उसे सदा ही डर रहता है जो ऊँचा चढ़ जायेगा
जो बैठा है धरती पर उसे नीचे कौन बिठायेगा
इसीलिये हमने धरती पर आसन सदा बिछाया है
मान और अपमान से हट कर आनंद खूब उठाया है
मेरी मानो गुस्सा छोड़ो इस में है सुख भारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....

पार्वती ने ज़िद न छोड़ी, रोना धोना शुरु किया
शंकर ने विश्वकर्मा को तब भेज संदेशा बुला लिया
विश्वकर्मा से शम्भु बोले तुम इसका कष्ट मिटा दीजै
जैसे भवन उमा चाहती हैं वैसा इसे बनवा दीजै
पार्वती तब खुश होकर विश्वकर्मा को समझाने लगीं
जो कुछ मन में सोच रखा था सब उनको बतलाने लगीं
बोली बीच समन्दर में एक नगर बसाना चाहती हूँ
चार हो जिसके दरवाज़े वो किला बनाना चाहती हूँ
गर्म और ठंडे ताल-तलैया सुंदर बाग-बगीचे हों
साफ़-सुहानी सड़कें  हों और पक्के गली गलीचे हों
मेरे रंगमहल की तुम छत में भी सोना लगवा दो
सोने के हों घर दरवाजे बीच में हीरे जड़वा दो
झिलमिल फ़र्शों में हो रंगबिरंगी मीनाकारी...
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....

सोने की दीवार-फ़र्श और आँगन भी हों सोने के
मंच-पलंग के साथ साथ सब बरतन भी हों सोने के
मतलब ये के आज तलक न बना किसी का घर होवे
उसको जब लक्ष्मी देखे झुक गया उसी का सर होवे
विश्वकर्मा ने अपने अस्त्र ब्रह्म लोक से मँगवाये
भवन कला का सब सामान वो साथ साथ ही ले आये
आदिकाल से विश्वकर्मा एक ऐसे भवन निर्माता थे
चित्र मूर्ति भवन बाग, वो सभी कला के वो ज्ञाता थे
आँखें मूँद के अपने मन में जो संकल्प उठाते थे
आँखें खोल के देखते थे बस वहीं भवन बन जाते थे
ऐसा ही एक चमत्कार विश्वकर्मा ने दिखलाया था
बीच समन्दर उन्होंने एक अनूठा भवन बनवाया था
ठाठ-बाठ और धर्मपान सब उसके थे मनुहारी
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....

मन में पार्वती ने जो सोचा था उससे बढ़कर था
मतलब ये की लक्ष्मी के महलों से लगता था सुंदर था
उमा बोली अब चलिये प्रभु उसमें एक यज्ञ रचाना है
सब देवों के साथ साथ लक्ष्मी को भी बुलवाना है
दोनों आये नगर में आज उमा को हर्ष अपार हुआ
स्वर्ण महल दिखलाकर बोली मेरा सपन साकार हुआ
बोली इसका गृहप्रवेश भी करना है त्रिपुरारी...
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....

शंकर सोचें खेल प्रभु का नहीं समझ में आता है
जो जितना खुश होता है उतने ही आँसू बहाता है
फिर भी उन्होंने पार्वती का बिल्कुल दिल नहीं तोड़ा था
जो कुछ वो कहती जातीं थीं हाँ में हाँ ही जोड़ा था
दे स्तुति देवताओं को निमंत्रण भिजवाया था
विशर्वा पंडित जी को पूजा के लिये बुलाया था
विष्णु-लक्ष्मी ब्रह्म इंद्र सभी देवता आये थे
बीच समन्दर स्वर्ण महल देख सभी हर्षाये थे
हाथ पकड़ कर लक्ष्मी का तब पार्वती ले जाती हैं
सोने की ईंटों से बना वो महल उसे दिखलाती हैं
और कहती हैं देख रही हो चमत्कार त्रिपुरारी का
भिक्षु तुमने कहा जिसे यह महल है उसी भिखारी का
देखने आई है ये देखो देखो ये दुनिया सारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....

रोशनदान खिड़की दरवाज़े, फ़र्श तलक है सोने का
तेरा महल अब नहीं बराबर मेरे महल के कोने का
शंकर बोले पार्वती मन में अज्ञान नहीं भरते
समझबूझ वाले व्यक्ति झूठा अभिमान नहीं करते
इतने में पूजा का मंडप सज-धज कर तैयार हुआ
शंकर उमा ने हवन कियाऔर नभ में जयजय कार हुआ
ऋषि विशर्वा विधि विधान से मंत्र पढ़ते जाते थे
बारीकि से पूजन की वे क्रिया समझाते थे
पूर्ण आहुति पड़ी तो सब देवों ने फूल बरसाये थे
साधु देवता ब्राह्मण सब भोजन के लिये बिठाये थे
फिर सब को दे दे के दक्षिणा सब का ही सम्मान किया
खुशी खुशी सब देवताओं ने माँगी विदा प्रस्थान किया
जय जय से नभ गूँज उठा सब हर्षित थे नर नारी..
डमरू वाले... डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....

अंत में शिवजी ने आचार्य को अपने पास बुलाया था
ऋषि विशर्वा ने आकर तब चरणों में शीश झुकाया था...
शंकर बोले आप के आने से हम सचमुच धन्य हुए
माँगो जो भी माँगना चाहो हम हैं बहुत प्रसन्न हुए
पंडित बोला क्या सचमुच ही मेरी झोली भर देंगे
अभी अभी जो कहा आपने वचन वो पूरा कर देंगे
शंकर बोले हाँ हाँ तेरे मन में कोई शंका है
मेरा वचन सत्य होता है ये तीन लोक में डंका है
तूने हमें प्रसन्न किया और अब है तेरी बारी...
डमरू वाले...  डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....

शीश नवा कर बोला वो प्रभु अपना वचन सत्य कर दीजै
हे भोले भंडारी मैं माँगूँगा वो वर दीजै
सिद्ध बीच ये सोने का जो आपने भवन बनाया है
यही मुझे दे दीजिये मेरा मन इस ही पे आया है
जिसने भी ये शब्द सुने तो सुन के बड़ा आघात हुआ
उमा के मन पर तो सचमुच जैसे था वज्रपात हुआ
बोली उमा ऐ ब्राह्मण तुमने सोई कला जगाई है
मेरी अरमानों की बस्ती में एक आग लगाई है
मेरा है ये श्राप कि आखिर इक दिन वो भी आयेगा
हरी भरी तेरी दुनिया का नाम तलक मिट जायेगा
ऐसे काल के चक्कर में ये बस्ती भी खो जायेगी
उस दिन तेरी सोने की नगरी भी राख हो जायेगी
तेरा दीया बुझेगा एक दिन होगी रात अंधियारी...
डमरू वाले...  डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....


सुना आपने जग वालों भयंकर उमा का श्राप था जो
पंडित और नहीं था कोई रावण का ही बाप था वो
बीच समन्दर बसी हुई वो सोने ही की लंका थी
जो कुछ कहा उमा ने वो सच होने में क्या शंका थी
पार्वती के शाप ने फिर एक दिन वो रंग दिखलाया था
पवनपुत्र ने एक दिन सोने की लंका को राख बनाया था
राम और रावण के बीच भड़क उठी थी रण ज्वाला
रहा न उसके कुल में कोई पानी तक देने वाला

"सोमनाथ" जो औरों को जितना भी दुख पहुँचाता है
ऐसे ही द्ख सागर में वो डूब एक दिन जाता है
शंकरपार्वती की जय जय सब बोलें नर नारी..
डमरू वाले...  डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी....
डमरू वाले...  डमरू वाले बाबा तेरी लीला है न्यारी.....
जय जय भोले भंडारी




हर हर महादेव: हर जन, हर व्यक्ति में महादेव का वास है, बस देखने व समझने की दृष्टि चाहिये।


शिव जी के रूद्राष्टक के हिन्दी अनुवाद को यहाँ पढ़ें


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