Tuesday, March 29, 2011

गुस्ताखियाँ हाजिर हैं: मनमोहन-गिलानी की बातचीत का फ़ोन टेप Manmohan Gilani Phone Talks Leak - Gustaakhiyaan Haajir Hain


कल भारत और पाकिस्तान का मैच है। पर दुनिया में मैच से ज्यादा उस "मिलन" को लेकर बातें चल रही हैं जो मनु भाई और गिल्लू (गिलानी जी) के बीच होने वाली है। पर मैं आप लोगों को वो बातें बताने जा रहा हूँ जो इन दोनों के बीच मैच से पहले ही हो चुकी हैं। बात तब की है जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराया था। जैसे ही भारत जीता तो पाकिस्तान व भारत का सेमीफ़ाइनल भी तय हो गया। उस रात हमारे मनमोहन जी भी जागे हुए थे। वैसे तो उनकी रातों की नींद पिछले दो सालों से गायब है (जब से वे दूसरी बार सत्ता में आये हैं)। लेकिन वो रात खास थी। सोनिया जी ने उनके कान में "कुछ" फ़ूँक दिया था।

अगली सुबह उन्होंने वही किया जो सोनिया जी ने कहा था।

सुबह तड़के ही गिलानी जी के "पर्सनल" फ़ोन के घंटी बजी... ट्रिन ट्रिन....
गिलानी जी: हैलो...
मनमोहन जी: हैलो.. गिल्लू?
गिलानी जी: ओये मनु..तू? इस वक्त...इतनी सुबह....
मनमोहन जी: यार गिल्लू.. एक जरूरी गल है...
गिलानी जी: हाँ हाँ बता यार... कोई परेशानी है? हमने तो कल कोई बम भी नहीं फ़टवाया भारत में... फिर कैसे मेरी याद आ गई?
मनमोहन जी: यार.. बात दर असल यह है कि भारत कल ऑस्ट्रेलिया से क्वार्टर फ़ाइनल जीत चुका है और सेमीफ़ाइनल मोहाली में पाकिस्तान से है।
गिलानी जी: हाँ... तो?
मनमोहन जी: तू समझा नहीं गिल्लू? भाई मैं यहाँ आफ़त में हूँ.. कोई न कोई परेशानी आई रहती है..शशि थरूर, कॉमनवेल्थ से लेकर विकीलीक्स तक.... मुझे नींद ही नहीं आ रही है...
गिलानी जी: बता दोस्त मैं तेरे किस काम आ सकता हूँ। मैं भी यहाँ कम परेशान नहीं हूँ.. इन तालिबानियों को जितना भी खिलाओ पिलाओ... हर समय तंग करते रहते हैं...आर्थिक ढाँचा अस्त-व्यस्त हुआ पड़ा है। सारा बजट अमेरिका और चीन से हथियार लेने में निकल जाता है।
मनमोहन जी: वो सब छोड़... जनता का ध्यान इस समय भारत-पाक के मैच पर है। ये बिल्कुल सही समय है... एक काम करते हैं। मैच देखने का मैं तुझे न्यौता देता हूँ। तू बस आ जाइयो... पूरी दुनिया हमारी वार्त्ता पर नजर रखेगी...
गिलानी जी: और हम दोनों दोस्त फिर से ऐश करेंगे...भोली जनता का ध्यान आतंकवाद, भ्रष्टाचार से निकल कर "अमन की आशा" में ;लग जायेगा... बहुत खूब!! क्या चाल चली है ... मजा आ गया...
मनमोहन जी: हाँ.. तो फिर मैच पर "मिलन" पक्का?
गिलानी जी: हाँ हाँ बिल्कुल पक्का है जी... मिल बैठेंगे दो यार.. मैं.. तू.. और....
मनमोहन जी:.. अरे अरे..मैं नहीं पीता भाई....

कहकर फ़ोन काट दिया....
मनमोहन जी (सोचते हुए)... सोनिया जी न होती तो आज मेरा क्या होता....

आज फिर वार्त्ता हो रही है.. कल फिर होगी.. वार्त्ताओं का दौर जारी रहेगा। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने वार्त्ता का दाँव खेला। मिला कारगिल... हर बार वार्त्ता.. हर बार बातचीत... हर बार एक नई जगह..हर बार युद्ध... कभी बलूचिस्तान पर हमारे मनमोहन सिंह अपनी खिल्ली उड़वाते हैं... कभी कश्मीर पर चर्चा... इस बार कश्मीर में भारत या पाकिस्तान की जीत की खुशी में पटाखे फ़ोड़ने पर पाबंदी लगाई गई है.... हालात पिछले साठ बरसों से नहीं सुधरे...तो क्या अब भी चर्चाओं से मामला सुलझाने के आसार हैं? या ये केवल एक राजनैतिक दाँव है... 

28 हजार की क्षमता वाले इस मैदान में महज सात हजार टिकट बिके हैं। बाकि हैं वीआईपी पास..जनता????

जो भी हो.. कल 30 मार्च 2011 की तारीख इतिहास जरूर बनायेगी। एक खेल मैदान पर खेला जायेगा तो दूसरी ओर होंगे राजनीति के वे खिलाड़ी जो अपनी "विकेट" बचाने के लिये खेल रहे हैं। आप भी जरूर देखियेगा..दोनों खेल...देखें जीत किसकी होती है!!!

धूप-छाँव के नियमित स्तम्भ


गुस्ताखियाँ हाजिर हैं

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Thursday, March 24, 2011

फिर एक धमाका कर जाओ... 23 March 1931 Salute Shaheed Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru

एसेम्बली में वो एक धमाका..

ज़ालिम अंग्रेज़ों को चेता गया
सोई जनता को जगा गया...

तब देश हमारा परतंत्र था
अंग्रेज़ों के आतंक से त्रस्त था

पर तुमने वो धमाका किया क्यों?
अपने बचपन को
अपनी जवानी को
यूँ सस्ते में खो दिया क्यों?

क्या तुम्हें भविष्य का अंदाज़ा था
ये देश कितने दिन आज़ाद रहेगा
क्या तुमने मन में सोचा था (?)

तुम गलत थे भगत!!!
तुम गलत थे...

ये देश आज भी गुलाम है..
जहाँ सिर्फ़ पैसे को ही सलाम है..
यहाँ जनता गूँगी बैठी है...
यहाँ नेता बहरे बैठे हैं...
ताकत के गुरूर में
कुर्सी पर ऐंठे बैठे हैं...

सोने की चिड़िया की इस धरती पर
भुखमरी का ऐसा साया है...
जहाँ "ममता" नहीं निर्ममता है
और "माया", "राज" छाया...

23 मार्च का वो इंकिलाबी दिन
जब तुम हँसे देश रोया था..
आज तारीख भूल गया ये देश...
नहीं जानता क्या खोया था...

भगत तुम्हारी आज फिर
महसूस होती जरूरत है...
एक और एहसान कर जाओ...
सोई जनता जगा जाओ..


फिर एक धमाका कर जाओ...
फिर एक धमाका कर जाओ...
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Thursday, March 17, 2011

शहर धुँए में कैद है Shahar Dhuey Mein Qaid Hai - Poem

शहर धुँए में कैद है
दम घुट रहा है....
पर दुनिया की सबसे बड़ी
प्रदूषण - रहित बस सेवा
चलाने वाले इस शहर के पास
इस धुँए से बचने के लिये
कोई सी.एन.जी नहीं !!!

यहाँ दिन-दहाड़े कत्ल होता है
इन्सानियत का....
जो पैदा करता है जेसिकायें व राधिकायें
और रोज़ सहम जाता है शहर..
"रे बैन" का काला चश्मा लगा कर
घूमते हैं लोग...
नज़र चुराते हैं दूध पी रही बिल्ली की तरह..
जैसे कुछ दिख ही नहीं रहा हो
उस रंगीन चश्मे के पीछे...

फ़ुटऑवर ब्रिज और फ़्लाईऑवरों
से गुजरते वाहन..लोग...
तोड़ते हैं उम्मीदों का पुल..
मनों में घोला जाता है "तारकोल"
और रौंदी जाती हैं खुशियाँ
"रोडरोलर" के तले...
और तैयार हो जाती है ईर्ष्या व द्वेष
की एक मज़बूत सड़क..

"विकसित" देशों में शामिल होने की चाह लिये...
हर दिन होता है मानवता का खून...
रोज़ बढ़ाते हैं हम सीने में जल रही
उस आग का जी.डी.पी...
उसी "आग" के धुँए में घुट रहा है
"नैशनल क्राइम कैपिटल"
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Saturday, March 12, 2011

तस्वॊरों में देखिये: दिल्ली में हो रहे विकास की एक तस्वीर Development In Delhi In Pictures

आप सभी इस बात से वाकिफ़ हैं कि आजकल "Development" यानि विकास बहुत ज्यादा हो रहा है खासतौर पर मेट्रो शहरों में। इन्हीं मेट्रो शहर में से एक है हमारी दिल्ली जहाँ राष्ट्रकुल खेल या कहें कि भ्रष्टकुल खेलों की वजह से "विकास" की रफ़्तार कुछ ज्यादा ही अधिक है।
इसी तरह का विकास मेरे इलाके रानी बाग में भी शुरु हुआ। उसी विकास की दो तस्वीरें आप लोगों के समक्ष रख रहा हूँ।

रानी बाग में एक बहुत पुराना पीपल का पेड था जो कि विकास की भेंट चढ़ गया। बदले में मिला एक फ़ुट ऑवर ब्रिज। जिस जगह इस ब्रिज को बनाया गया है, इस ब्रिज का वैसे तो कोई खास इस्तेमाल होना नहीं है, फिर भी यदि कोई इसके सहारे सड़क पार करना भी चाहे तो आप नीचे की तस्वीर पर एक बार नज़र जरूर डालें।
ट्रांसफ़ॉर्मर पर खत्म होता फ़ुटऑवरब्रिज

गौर से देखने पर आप पायेंगे कि जहाँ पर ये ब्रिज खत्म हो रहा है उस जगह पर एक बड़ा सा ट्रांसफ़ॉर्मर पहले से ही मौजूद है। अब आप ही बतायें कि यदि कोई चाहे भी तो भी इसका प्रयोग किस तरह कर सकता है?

प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल के पोस्टरों से लदा फ़ुटऑवर ब्रिज

एक बात और बताते जायें कि इसका उद्घाटन दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष माननीय जयप्रकाश अग्रवाल जी अपनी पदयात्रा के दौरान कर चुके हैं। वे यहाँ से गुजरे और इसको चालू करते  चले गये।
शायद इसी को विकास कहते हैं।

विकास की एक और झलक आपको दिखाता हूँ। पिछले माह ही धूप-छाँव पर "विलुप्तप्राय: जीवों" के बारे में एक पोस्ट डाली थी। यदि आप ध्यान देंगे तो पायेंगे कि जीवों के विलुप्त होने का मुख्य कारण उनके रहने के स्थान का तेजी से  हो रहा क्षरण है। पिछले 20 दिनों से हमारे घर के आसपास एक बंदर का आतंक फ़ैला हुआ है। घर के पीछे जहाँ फ़ुटऑवरब्रिज बना हुआ है उसके साथ ही बहुत सारे पेड़ भी हैं। आजकल वे भी लगातार काटे जा रहे हैं। कहते हैं कि यहाँ से एक सड़क बनाई जायेगी जो गंतव्य स्थानों की दूरी को 15 मिनट तक कम कर देगी। एक तस्वीर उसकी भी देखते चलें। मेरा मानना है  कि इन पेड़ों की कटाई के कारण ही ये बंदर सड़क पार आ कर घरों में घुस रहा है।

मुख्य सड़क के पीछे काटे जा रहे पेड़

जंगलों की कटाई के कारण ही आजकल तेंदुओं के शहर में घुसने जिसे वाकये बढ़ते जा रहे हैं। पर हम "सभ्य" लोग इन सब बातों से बेखबर केवल एक ही राह पर चलते हैं जिसे हमने अपने लिये "विकास" का नाम दिया है और अपनी  "गुमराही" पर "गुमान" करते हुए खुशफ़हमी में जी रहे हैं।

"तस्वीरों में देखिये" जारी रहेगा....
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Friday, March 4, 2011

कर्नाटक क्रिकेट में कुम्बले और श्रीनाथ को राजनेताओं ने फ़ेंकी बाऊंसर और गुगली..Karnataka Cricket Ticket Distribution - Kumble Srinath Attacked By Politicians

पिछले कुछ समय से राजनेता किसी न किसी गलत कारणों से खबरों का हिस्सा बन रहे हैं। कॉमनवेल्थ, 2जी, एस-बैंड घोटाला तो कभी सीवीसी की नियुक्ति पर सवाल। कभी महाराष्ट्र से घोटालों की बू आती है तो कभी कर्नाटक। आंध्रप्रदेश में तेलंगाना जल कर धू-धू सुलग रहा है और राजनेता तसल्ली से रोटी सेंक रहे हैं। जगन मोहन रेड्डी बगावती तेवर अपनाये हुए हैं तो इसलिये कांग्रेस ने चिरंजीवी का हाथ थामा। "हाथ" तो करूणानिधि भी थाम रहे हैं। उन्हें शायद यह लग रहा है कि "हाथ" के सहारे वे आम आदमी का साथ पा लेंगे। केरल में लॉटरी घोटाले में कांग्रेस और लेफ़्ट गुत्त्थम-गुत्था हो रहे हैं। चुनाव आने वाले हैं तो हर तरफ़ सियासती रस्साकशी का माहौल है।

ऐसा बहुत कम होता है जब कांग्रेस और भाजपा जिन्हें देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियाँ माना जाता है, दोनों के सुर एक हों। ऐसा भी कम ही दिखाई पड़ता है जब राजनेताओं ने खेल संस्थाओं में गद्दी न हड़प रखी हो। अरूण जेटली डीडीसीए में, नरेंद्र मोदी गुजरात क्रिकेट में काबिज हैं तो राजीव शुक्ला बरसों से क्रिकेट बोर्ड में "कमाई" कर रहे हैं। और अपने शरद पवार को कैसे कोई भुला सकता है। लेकिन हाल ही में कुछ अलग देखने को मिला जब कुम्बले और श्रीनाथ कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष नियुक्त हुए तो भला नेता कैसे चुप बैठेंगे। उन्हें तो काटो मानो खून नहीं।

पिछले दिनों क्रिकेट खेल प्रेमियों पर टिकटों की बिक्री के समय बेंग्लुरु में लाठीचार्ज हुआ। इस मौके पर भाजपा और कांग्रेस ने विधानसभा में हंगामा किया। जी हाँ दोनों पार्टियाँ एक साथ..सही पढ़ा आपने। दोनों पक्ष के कुछ नेताओं ने कुम्बले और श्रीनाथ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये। भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे शिष्ट खिलाड़ियों में इन दोनों की गिनती की जाते तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। दरअसल कर्नाटक में इस बार एक व्यक्ति को केवल एक पास दिया जाना था। भाजपा के एक विधायक ने कहा कि उन्हें विधायक के तौर पर केवल एक पास मिला है इसलिये वे अपने परिवार को साथ नहीं ले जा पा रहे। इन्हें कौन समझाये कि यदि आपको इतना ही शौक है तो आप टिकट क्यों नहीं खरीदते। ऊपर से उनका कहना यह भी है कि वे "आम आदमी" नहीं हैं। इन शब्दों से आपको इन नेताओं के आगे हम लोगों की औकात पता चल गई होगी। कॉंग्रेस विधायक कहते हैं कि कुम्बले और श्रीनाथ के रिश्तेदार उनसे पास के बदले में 5000 रूपये की माँग कर रहे हैं।

हाल ही में एक अखबार में छोटी सी कहानी पढ़ी थी। एक मंत्री जी थे जो ईमानदारी से काम करते थे। एक पैसा भी हेर-फ़ेर नहीं करते। एक दिन उनको कुछ हजार रूपये की जरूरत पड़ी। उनकी पत्नी ने कहा कि पार्टी फ़ंड से रूपये उधार ले लो और तीन दिन में लौटा देना। उन्होंने कहा कि पहले तुम ये लिख कर दे दो कि इन तीन दिनों में मुझे मृत्यु नहीं आयेगी उस सूरत में मैं उधार ले लूँगा। आज के राजनेता ऐसे नहीं हैं। शायद किसी की कलम से गलत कहानी लिखी गई।

खैर, आप ही बतायें कुर्सी के लालची ये सियासी दल इन दोनों खिलाड़ियों को कैसे जीने देंगे?
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Tuesday, March 1, 2011

राष्ट्रगान फिर फ़ँसा विवादों में-स्कूल ने बदले राष्ट्रगान के शब्द National Anthem Controversy Strikes Again

हाल ही में एक खबर पढ़ी। उत्तर प्रदेश के एक गाँव के स्कूल में "जन गण मन" को बदला गया। उसके कुछ शब्दों में हेर-फ़ेर किया गया। जब किसी ने इसकी शिकायत करी तो प्रशासन ने स्कूल के प्रधानाचार्य को नोटिस भिजवा दिया। स्कूल प्रशासन का कहना है कि उन्होंने शब्दों को इसलिये बदला क्योंकि वे अंग्रेजी राजा किंग जॉर्ज पंचम के लिये कहे गये थे।

अम्बेडकर नगर जिले के एक गाँव के निजी स्कूल स्कूल के प्रबन्धक रघुनाथ सिंह स्कूल के बच्चों को जो राष्ट्रगान गवाते है उसमें ‘भारत भाग्य विधाता’ के स्थान पर ‘स्वर्णिम भारत निर्माता’ तथा ‘तव शुभ आशीष मांगे’ के स्थान पर ‘तव शुभकामना मांगे’ तथा ‘अधिनायक’ के स्थान पर ‘उत्प्रेरक’ शब्द गाया जा रहा है।
राष्ट्रगान के इस विवाद के बारे में कईं बार पढ़ा है। आइये जानते हैं कि आखिर माजरा है क्या। बात 1911 की है जब काँग्रेस ने रविंद्र नाथ टैगोर से अंग्रेज़ी राजा जॉर्ज पंचम के सम्मान में गीत लिखने को कहा। काँग्रेस राजा को खुश करना चाहती थी क्योंकि उन्होंने बंगाल के विभाजन को रोकने में भूमिका निभाई थी। कहते हैं कि उसके कुछ समय के पस्चात के बाद रविंद्रनाथ ने "जन गण मन" लिख कर कांग्रेस को दिया। जिसे दिसम्बर में काँग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए जॉर्ज के समक्ष गाया गया था। बस इसी के बाद विवाद खड़ा होना शुरू हो गया।

पर वे शब्द हैं कौन से जो विवादित हैं?
जन गण मन अधिनायक जय हे: इस पंक्ति में "अधिनायक" (super hero) कह कर किसे संबोधित किया जा रहा है?
भारत भाग्य विधाता: यहाँ भारत का "भाग्य -विधाता" कौन है?
गाये तव जय गाथा: "तव" और "जय गाथा" शब्द भी विवादित माने गये हैं क्योंकि इस पंक्ति में किस की जीत की बात हो रही है?

रविंद्रनाथ के करीबी बताते हैं कि जब काँग्रेस ने गाना लिखने का आग्रह किया था उसके बाद कुछ दिनों तक वे काफ़ी परेशान रहे। फिर उन्होंने ये गीत लिखा जो उस "भाग्य विधाता" के नाम था जो भारत के साथ सदियों से रहा है और भारत को सभी कठिनाइयों से उबार रहा है। खैर अधिवेशन में खुद रविंद्रनाथ ने सर्वप्रथम इस राष्ट्रगान को गाया था।
और 24 जनवरी 1950 को ये गीत हमारा राष्ट्रगीत बन गया।

क्या सही है क्या गलत ये समझना तब अधिक कठिन हो जाता है जब इतिहास पुराना पड़ता चला जाता है और रह जाते हैं तो केवल कुछ तर्क। और चूँकि भारतीय इतिहास सबसे पुराना है और कईं तरह के बदलावों से गुजरा है इसलिये इसको समझने में और दिक्कतें आती हैं। बुद्धिजीवी अपने हिसाब से शब्दों की परिभाषा निकालते आये हैं और हम तक सही बात पहुँच नहीं पाती। चाहें वंदे मातरम हो या "जन गण मन" विवाद दोनों के साथ है... चलो फिर क्यों न हम "सारे जहाँ से अच्छा.." गुनगुना शुरु कर दें....

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा..
वन्देमातरम.

वन्देमातरम पर विवाद (सम्बन्धित लेख)
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