
कल भारत और पाकिस्तान का मैच है। पर दुनिया में मैच से ज्यादा उस "मिलन" को लेकर बातें चल रही हैं जो मनु भाई और गिल्लू (गिलानी जी) के बीच होने वाली है। पर मैं आप लोगों को वो बातें बताने जा रहा हूँ जो इन दोनों के बीच मैच से पहले ही हो चुकी हैं। बात तब की है जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराया था। जैसे ही भारत जीता तो पाकिस्तान व भारत का सेमीफ़ाइनल भी तय हो गया। उस रात हमारे मनमोहन जी भी जागे हुए थे। वैसे तो उनकी रातों की नींद पिछले दो सालों से गायब है (जब से वे दूसरी बार सत्ता में आये हैं)। लेकिन वो रात खास थी। सोनिया जी ने उनके कान में "कुछ" फ़ूँक दिया था।
अगली सुबह उन्होंने वही किया जो सोनिया जी ने कहा था।
सुबह तड़के ही गिलानी जी के "पर्सनल" फ़ोन के घंटी बजी... ट्रिन ट्रिन....
गिलानी जी: हैलो...
मनमोहन जी: हैलो.. गिल्लू?
गिलानी जी: ओये मनु..तू? इस वक्त...इतनी सुबह....
मनमोहन जी: यार गिल्लू.. एक जरूरी गल है...
गिलानी जी: हाँ हाँ बता यार... कोई परेशानी है? हमने तो कल कोई बम भी नहीं फ़टवाया भारत में... फिर कैसे मेरी याद आ गई?
मनमोहन जी: यार.. बात दर असल यह है कि भारत कल ऑस्ट्रेलिया से क्वार्टर फ़ाइनल जीत चुका है और सेमीफ़ाइनल मोहाली में पाकिस्तान से है।
गिलानी जी: हाँ... तो?
मनमोहन जी: तू समझा नहीं गिल्लू? भाई मैं यहाँ आफ़त में हूँ.. कोई न कोई परेशानी आई रहती है..शशि थरूर, कॉमनवेल्थ से लेकर विकीलीक्स तक.... मुझे नींद ही नहीं आ रही है...
गिलानी जी: बता दोस्त मैं तेरे किस काम आ सकता हूँ। मैं भी यहाँ कम परेशान नहीं हूँ.. इन तालिबानियों को जितना भी खिलाओ पिलाओ... हर समय तंग करते रहते हैं...आर्थिक ढाँचा अस्त-व्यस्त हुआ पड़ा है। सारा बजट अमेरिका और चीन से हथियार लेने में निकल जाता है।
मनमोहन जी: वो सब छोड़... जनता का ध्यान इस समय भारत-पाक के मैच पर है। ये बिल्कुल सही समय है... एक काम करते हैं। मैच देखने का मैं तुझे न्यौता देता हूँ। तू बस आ जाइयो... पूरी दुनिया हमारी वार्त्ता पर नजर रखेगी...
गिलानी जी: और हम दोनों दोस्त फिर से ऐश करेंगे...भोली जनता का ध्यान आतंकवाद, भ्रष्टाचार से निकल कर "अमन की आशा" में ;लग जायेगा... बहुत खूब!! क्या चाल चली है ... मजा आ गया...
मनमोहन जी: हाँ.. तो फिर मैच पर "मिलन" पक्का?
गिलानी जी: हाँ हाँ बिल्कुल पक्का है जी... मिल बैठेंगे दो यार.. मैं.. तू.. और....
मनमोहन जी:.. अरे अरे..मैं नहीं पीता भाई....
कहकर फ़ोन काट दिया....
मनमोहन जी (सोचते हुए)... सोनिया जी न होती तो आज मेरा क्या होता....
आज फिर वार्त्ता हो रही है.. कल फिर होगी.. वार्त्ताओं का दौर जारी रहेगा। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने वार्त्ता का दाँव खेला। मिला कारगिल... हर बार वार्त्ता.. हर बार बातचीत... हर बार एक नई जगह..हर बार युद्ध... कभी बलूचिस्तान पर हमारे मनमोहन सिंह अपनी खिल्ली उड़वाते हैं... कभी कश्मीर पर चर्चा... इस बार कश्मीर में भारत या पाकिस्तान की जीत की खुशी में पटाखे फ़ोड़ने पर पाबंदी लगाई गई है.... हालात पिछले साठ बरसों से नहीं सुधरे...तो क्या अब भी चर्चाओं से मामला सुलझाने के आसार हैं? या ये केवल एक राजनैतिक दाँव है...
28 हजार की क्षमता वाले इस मैदान में महज सात हजार टिकट बिके हैं। बाकि हैं वीआईपी पास..जनता????
जो भी हो.. कल 30 मार्च 2011 की तारीख इतिहास जरूर बनायेगी। एक खेल मैदान पर खेला जायेगा तो दूसरी ओर होंगे राजनीति के वे खिलाड़ी जो अपनी "विकेट" बचाने के लिये खेल रहे हैं। आप भी जरूर देखियेगा..दोनों खेल...देखें जीत किसकी होती है!!!
धूप-छाँव के नियमित स्तम्भ