Saturday, April 30, 2011

तस्वीरों में देखिये: क्या आपका बच्चा तम्बाकू रहित स्कूल में जाता है? Children And Tobacco Free Schools

कहते हैं कि तम्बाकू सेहत के लिये हानिकारक है। इसलिये सरकार इसका उत्पादन तो नहीं रोकती, पर इस से बनने वाले पदार्थों जैसे सिगरेट आदि के पैकेट पर एक चेतावनी अवश्य छपवा देती है। तम्बाकू न सिर्फ़ सिगरेट पीने वाले बल्कि उस व्यक्ति के आसपास खड़े हुए लोगों के फ़ेफ़ड़ों तक भी पहुँचता है। तम्बाकू की खेती साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी सिगरेट आदि की बिक्री कम कर पाने में असमर्थ महसूस कर रहा है।

खैर आप सोच रहे होंगे कि आज तम्बाकू की बातें क्यों? दरअसल कुछ दिन पहले एक सड़क से गुजरते हुए मुझे एक बोर्ड दिखाई पड़ा। ये बोर्ड एक विद्यालय के बाहर की दीवार पर लगा हुआ था और उस पर लिखा हुआ था- Tobacco Free School. पढ़कर आश्चर्य हुआ। आप भी पढ़ें।



इसका आशय स्पष्ट है। बच्चों में सिगरेट व शराब की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। ये आदत या घर से पड़नी शुरु होती है या फिर स्कूलों से। पर हमारी सरकारों को इन सबसे कोई सरोकार नहीं है। शराब को अब पेट्रोल पम्पों, मॉल व बरिस्तां आदि जैसे खाने-पीने की "विदेशी" दुकानों पर बेचे जाने की तैयारी है। किसी भी स्कूल के बाहर आपको बच्चे सिगरेट पीते हुए दिख जायेंगे।  ये जनता को सोचना है कि वो अपने बच्चे को सिगरेट पीते हुए देखना पसंद करेंगे अथवा नहीं। यदि नहीं तो पहले आपको स्वयं पहल करनी होगी। स्कूल में दाखिला दिलवाने से पहले उस स्कूल का "Tobacco Free School" सर्टिफ़िकेट अवश्य पूछ लें। और यदि हाँ तो ये देश का भार ऐसे "युवा" कँधों पर है जो नि:संदेह वक्त से पहले ही कमजोर पड़ने वाले हैं।

।जय हिन्द।
।वन्देमातरम।
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Saturday, April 23, 2011

"बसन्ती हवा"- केदारनाथ अग्रवाल द्वारा लिखित सदाबहार कविता Basanti Hawa - Written By KedarNath Agarwal

यह पोस्ट धूप-छाँव पर सौंवी पोस्ट है। आशा है कि आप सभी पाठकों को पसन्द आयेगी। आपकी टिप्पणियों से लिखते रहने की प्रेरणा मिलती है। कृपया टिप्पणी अवश्य करें।

शायद पाँचवीं कक्षा की बात होगी। पता नहीं पर काफ़ी समय बीत गया जब ये कविता पढ़ी थी। कुछ वक्त पहले ये दोबारा पढ़ने का मौका मिला। "बसन्ती हवा" का असर इन वर्षों में कम नहीं हुआ है।
वहीं बसन्ती हवा आपके समक्ष फिर ला रहा हूँ। आशा करता हूँ कि कुछ यादें तो आप की भी ताज़ा हो ही जायेंगी। कविता के कुछ पंक्तियों को समझने का दोबारा प्रयास किया है।

"बसन्ती हवा" के दो पद्य अर्थ सहित:

चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।

अर्थ:
महुआ के पौधे की डालियाँ काफ़ी सख्त होती हैं। कवि कहता है कि हवा पेड़ पर इधर-उधर कूदती फ़ाँदती है किन्तु कुछ भी प्राप्त न होने पर नीचे गिर जाती है। फिर वो आम के पेड़ पर जाती है जो महुआ से नरम पेड़ है। किन्तु तभी कोई उसे पुकारता है और वो आम के पेड़ को छोड़ कर खेतों में चली जाती है।


यदि महुआ के वृक्ष को लक्ष्य समझा जाये तो कवि कहता है कि हवा ने अपने लक्ष्य को पाने का अथक प्रयास किया किन्तु असफ़ल रही। फिर वो उस कठिन लक्ष्य को छोड़ सरल लक्ष्य की ओर (आम के पेड़ की ओर) लपकती है। परन्तु वहाँ भी थोड़ी सी कठिनाई आते ही अपने लक्ष्य से भटक जाती है व उस सरल लक्ष्य को भी नहीं पा सकी। 

पहर दो पहर क्या,
अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं!
खड़ी देख अलसी
लिए शीश कलसी,
मुझे खूब सूझी -
हिलाया-झुलाया
गिरी पर न कलसी! 
इसी हार को पा, 
हिलाई न सरसों,
झुलाई न सरसों,
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!


अर्थ:
फिर वही हवा अलसी के खेतों में घुस गई। अलसी के फूल टहनियों से इस तरह से जुड़ होते हैं कि उन्हें तोड़ना कठिन हो जाता है। हवा ने भी भरसक प्रयत्न किया किन्तु तोड़ न सकी। फिर वह सरसों के खेतों में गई। पर चूँकि वो अलसी में असफ़ल रही थी इसलिये उसने सरसों के फूलों को तोड़ने का प्रयास तक नहीं किया। 


कभी कभार जीवन में किसी हार से हम इतने  दुखी हो जाते हैं कि हर लक्ष्य कठिन मालूम होता है। हम निराशा से घिरे होने के कारण सरल कार्यों को भी मन लगा कर नहीं करते और उनमें भी असफ़ल होने का भय लगा रहता है।


आगे पढ़िये "केदारनाथ अग्रवाल" की कलम से लिखी एक सदाबहार कविता। 

बसंती हवा
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।


        सुनो बात मेरी -
        अनोखी हवा हूँ।
        बड़ी बावली हूँ,
        बड़ी मस्तमौला।
        नहीं कुछ फिकर है,
        बड़ी ही निडर हूँ। 
        जिधर चाहती हूँ,
        उधर घूमती हूँ,
        मुसाफिर अजब हूँ।


न घर-बार मेरा,
न उद्देश्य मेरा,
न इच्छा किसी की,
न आशा किसी की,
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!


        जहाँ से चली मैं
        जहाँ को गई मैं -
        शहर, गाँव, बस्ती,
        नदी, रेत, निर्जन,
        हरे खेत, पोखर,
        झुलाती चली मैं।
        झुमाती चली मैं! 
        हवा हूँ, हवा मै
        बसंती हवा हूँ।


चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में 
लहर खूब मारी।


        पहर दो पहर क्या,
        अनेकों पहर तक
        इसी में रही मैं!
        खड़ी देख अलसी
        लिए शीश कलसी,
        मुझे खूब सूझी -
        हिलाया-झुलाया
        गिरी पर न कलसी! 
        इसी हार को पा,
        हिलाई न सरसों,
        झुलाई न सरसों,
        हवा हूँ, हवा मैं
        बसंती हवा हूँ!


मुझे देखते ही
अरहरी लजाई,
मनाया-बनाया,
न मानी, न मानी;
उसे भी न छोड़ा - 
पथिक आ रहा था,
उसी पर ढकेला;
हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी!
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
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Wednesday, April 20, 2011

शहीदों की जाति बताकर किसने किसका अपमान किया? Freedom Fighters Caste, Political Parties and Our Society

पिछले दिनों काँग्रेस की किसी साईट पर भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु की जातियाँ बताईं गईं। कौन जाट व कौन ब्राह्मण ये बताया गया। इस पर एक-दो खबरिया चैनलों ने शहीदों के अपमान को लेकर पूरे दिन "देशभक्ति" के नारे लगाये। खबरिया चैनलों के द्वारा "मुँह" में जबरदस्ती बात डालने पर शहीदों के परिवार वाले आगे आये फिर भाजपा ने भी इसका विरोध कर दिया। एक या दो दिन ही बीते थे कि भाजपा की किसी वेबसाईट पर भीमराव अंबेडकर की जाति बताये जाने पर बवाल खड़ा किया गया। जो भाजपा एक और मुद्दा सोचकर आगे बढ़ने का विचार करने ही वाली थे एकदम से "बैकफ़ुट" पर आ गई।

प्रश्न ये उत्पन्न हो रहा है कि जिस देश में सभी के नाम के साथ ही जाति जुड़ जाती हो उस देश में यदि इन शहीदों व महापुरुषों की जातियों का उल्लेख हुआ भी हो तो लोगों को क्यों परेशानी होती है? "पंडित जवाहरलाल नेहरू इस देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे"। ये "ब्रह्म"वाक्य बच्चे के दिल और दिमाग पर तब छा जाता है जब उसको ठीक से लिखना भी नहीं आता। तो नेहरू एक कश्मीरी पंडित थे। इस वाक्य में परोक्ष रूप से उनकी जाति छिपी है। कोई इन मीडिया वालों को समझाओ भई। अम्बेडकर के जन्मदिवस पर देश छुट्टी मनाता है, नेता दलितों की कॉलोनियों में जाते हैं। क्या फिर भी कोई ये कहेगा कि अम्बेडकर की जाति नहीं पता!! सोचने वाली बात यह है कि यदि अम्बेडकर दलित न होते तो भी क्या स्कूलों व दफ़्तरों में अवकाश होता?

ये सब छोड़िये। जहाँ लोग गाड़ियों के पीछे "जाट का छोरा" व "गुज्जर मेल" जैसे शब्द लिख कर अपनी जाति स्वयं बताते हों और गर्व महसूस करते हों तो उस देश में यदि शहीदों की जाति को किसी पुस्तक व साईट पर लिख भी दिया तो क्या गुनाह किया? जब लोग खुद को अनुसूचित जाति व जनजाति में शामिल करवाने के लिये रेल की पटरियों पर सो जाते हैं, वाहनों में आग लगा देते हैं, रास्ते बंद कर देते हैं तो फिर अम्बेडकर, भगत सिंह की जाति पता चल जाने पर कौन सा पहाड़ टूट जायेगा?

हाँ, एक बात जो कॉंग्रेस के मुख पत्र "संदेश" में कही गई कि सुखदेव सॉंडर्स की "हत्या" में शामिल थे। ये बात थोड़ी खटकती है। ऐसा लगता है कि इस पार्टी के मुताबिक केवल "गाँधीवादी" ही देशभक्त व शहीद थे। अन्य स्वतंत्रता सेनानी महज हत्यारे व क़ातिल थे। इस बात को मुद्दा बनाया जा सकता था। खैर इस देश में मुद्दों की कमी नहीं है। हर रोज़ हर पल नया मुद्दा। मीडिया वालों को चौबीसों घंटे काम जो चाहिये। तो ये एक और मुद्दा उठाकर क्या लाभ!

जाते जाते - जाति इस देश से कभी नहीं जायेगी ये एक सत्य है। जाति हमारी पहचान है। आप इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में दाखिले का पर्चा भरेंगे तो उसमें भी आपको अपनी "केटेगरी" बतानी पड़ेगी। अनुसूचित जाति/जनजाति के हैं तो बल्ले बल्ले। पास हों या फ़ेल, बाबू के बेटे हों व चाहें आप को आरक्षण की जरूरत हो या न हो, आपका दाखिला पक्का। जहाँ घर्म के आधार पर कॉलेजों में दाखिला होता हो वहाँ जाति तो छोटी रह जाती है। किसी ने सच ही कहा है- जाति कभी नहीं जाती। गाँठ बाँध लें, यही जाति आपके काम आने वाली है।


।वंदेमातरम।
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Friday, April 15, 2011

अब प्राईवेट एफ़.एम पर भी सुना सकेंगे खबरें । खबरें फ़टाफ़ट-एक माइक्रोपोस्ट News Bulletin On Private FM Channels

मार्च के अंतिम सप्ताह में सरकार ने ये घोषणा करी है कि प्राईवेट एफ़. एम. चैनल भी समाचार सुना सकेंगे। गौरतलब है कि अब तक प्राईवेट चैनलों पर समाचार सुनाये जाने पर रोक लगी हुई थी। चैनल अपनी सुविधा से अलग अलग तरह खबरें हम लोगों तक पहुँचाते थे। आप में से बहुत लोगों ने ऑल इंडिया रेडियो पर खबरें जरूर सुनी होंगी। इन खबरों की अवधि आमतौर पर पाँच मिनट से आधे घंटे तक होती है। पाँच मिनट वाली खबरें हर घंटे प्रसारित होती हैं व आधे घंटे की दिन दो से तीन बार।

प्राईवेट चैनल मनोरंजन को परोसते हैं इसलिये इसकी व्यावसायिकता को ध्यान में रखते हुए फ़िलहाल इन पर प्रसारित खबरों की अवधि दो से पाँच मिनट रखने का प्रस्ताव है। ये खबरें आकाशवाणी ही इन चैनलों को देगा और चैनल ज्यों की त्यों अपने एफ़.एम पर सुनायेंगे। अगले दो से तीन महीने में उम्मीद है कि सरकार इस प्रस्ताव को अंतिम रूप दे देगी। देखना दिलचस्प होगा कि श्रोतागण इस कदम को किस तरह से लेते हैं क्योंकि आकाशवाणी पर जैसे ही खबरें आती हैं अधिकतर "शहरी" लोग चैनल बदल लेते हैं। सरकार का ये कदम कितना "हिट" होता है यह तो वक्त ही बतायेगा।
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Tuesday, April 12, 2011

रुद्राष्टक का हिन्दी अनुवाद: रामनवमी विशेष Rudrashtak Translated In Hindi Ram Navmi Special

आप सभी पाठकों को राम  नवमी की शुभकामनायें। आज  राम नवमी है तो मैंने सोचा कि क्यों न आज के इस पावन दिवस पर रूद्र की आरती रुद्राष्टकम का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया जाये। पहले भी मैंने कईं बार रुद्राष्टक के हिन्दी अनुवाद को इंटरनेट पर ढूँढा पर कामयाब नहीं हो पाया। तो इस बार मैंने रामचरितमानस से अक्षरश: प्रकाशित करने का सोचा।

मेरी समझ से जब तुलसीदास जी (1532-1623) रामचरितमानस गा रहे थे (क्योंकि रामचरितमानस  एक काव्य है) उस युग में कबीरदास (1440-1518) भी अपनी भक्ति के लिये विख्यात हुए। दोनों ही संत अपने काल के महान संत थे किन्तु दोनों की भक्ति अलग थी। तुलसीदास जी जहाँ साकार श्रीराम के भक्त थे तो वहीं कबीरदास जी निराकारस्वरूप ईश्वर की उपासना करते थे। साकार व निराकार का द्वंद्व इस पृथ्वी पर प्रारम्भ से ही रहा होगा। और आगे भी रहेगा। इसी द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में जगह जगह साकार व निराकार ईश्वर का ध्यान किया है।

रुद्राष्टक स्तोत्र रामचरितमानस के अंतिम काण्ड उत्तरकाण्ड में आता है। शिव की स्तुति करते हुए तुलसीदास जी ने ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार का वो द्वंद्व समाप्त करने का प्रयास किया है व हम जैसे मूढ़ भी आसानी से उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

तो प्रस्तुत है रुद्राष्टकमस्तोत्रम:

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् |
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेङहम् ||१||

अनुवाद:
हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके  स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित), गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ।

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् |
करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोङहम् ||२||

अनुवाद:
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् |
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा लसदभालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा ||३||

अनुवाद:
जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और  गले में सर्प सुशोभित है।

चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् |
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||४||

अनुवाद:
जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ।

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् |
त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेङहं भावानीपतिं भावगम्यम् ||५||

अनुवाद:
प्रचण्ड (रुद्र रूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दु:खों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ। 

कलातिकल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनान्ददाता पुरारी |
चिदानंदसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||६||

अनुवाद:
कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत(प्रलय)  करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु  सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।

न यावद उमानाथपादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् |
न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ||७||

अनुवाद:
हे पार्वती के पति, जबतक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इसलोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है। अत: हे समस्त जीवों के अंदर (हृदय में) निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोङहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् |
जरजन्मदुःखौ घतातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||८||

अनुवाद:
मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। हे प्रभो, बुढ़ापा व जन्म [मृत्यु] दु:खों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें। हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विपेण हरतुष्टये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ||

भगवान रुद्र का यह अष्टक उन शंकर जी की स्तुति के लिये है। जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं, श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं।

मेरा  धार्मिक/आध्यात्मिक  ज्ञान आप पाठकों से कम है इसलिये यदि त्रुटि हुई तो कृपया अवश्य बतायें।
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Saturday, April 9, 2011

अन्ना : आज का गाँधी... Anna Hazaare's Mission.. Make It A Success!!!

भ्रष्टाचार से "काली" पड़ी
एक कढ़ाई को
इंतज़ार है एक ऐसे "स्क्रॉच ब्राईट" का
जो दाग धो सके दशकों के
जो आकाओं ने उसको दिये हैं,
भ्रष्टाचार की अग्नि में झोंक-झोंक कर....

धरती जो कराह रही है
जिसे लगी प्यास है
दिल में जिसे आस है...
उस बादल की जो
बरसेगा और
भीतर जल रही अग्नि को
बुझायेगा...
वो बादल आज आकाश में है...

वो ज्वालामुखी आज फ़टने को है...
वो जलजला आज आने को है...

"आज़ाद" जिसके कण कण में है..
आज़ादी जिसके मन में है..
वो "अन्ना" आज का "गाँधी" है..
वो धूल उड़ाती आँधी है...
बहत्तर बरस का ये "युवा" है..
जहाँ चाहता है,
रुख वहाँ हवा का है...
आज उसके संग हो लो...
केवल नेताओं का नहीं...
अपना भी "काला" रंग धो लो...
यदि बनाते हम यही अपना "मिशन" है
तभी सफल होता ये अनशन है...



अन्ना के बारे में अब सभी लोग जान चुके हैं। इसलिये कुछ नहीं कहूँगा। सभी से केवल इतना ही आग्रह है कि जहाँ अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन हम सभी जानते हैं कि कहीं न कहीं हम भी भ्रष्टाचार का हिस्सा बने हैं.. कभी रिश्वत दी है (जाने-अनजाने डोनेशन वगैरह के माध्यम से ही सही) या ली है। इसलिये ये जंग हमारी स्वयं से है अपने ही समाज से है जिसका हम अंग हैं। ये कठिन है...परन्तु तभी शायद अन्ना का अनशन सफल माना जा सकता है... कहते हैं कि घर के बाहर सुधार करने से पहले घर के भीतर सुधार की आवश्यकता है। पर हम शायद अभी ये न समझ पायें.... आशा करूँगा कि अनशन अंतहीन न हो... वरना "अन्ना" और "जे.पी." पैदा होते रहेंगे..अनशन करते रहेंगे.. परन्तु स्थिति नहीं सुधरने पायेगी।

वन्देमातरम..
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Thursday, April 7, 2011

गूगल ने दिया एयर इंडिया को धोखा? एयर इंडिया की टिकट पर हिन्दी के हाल InCorrect Hindi Statement On Air India Ticket

तकनीक ने इंसान के दिमाग पर इस कदर राज कर लिया है कि जिस तकनीक को हमने खुद बनाया उस पर हम स्वयं से भी ज्यादा यकीन करने लगे हैं। ऐसा ही एक मुद्दा आज इस लेख में उठा रहा हूँ। गूगल व अन्य कुछ कम्पनियों ने अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद करने की वेबसाइट बनाई है। हिन्दी के हाल से आप सभी वाक़िफ़ हैं। प्राईवेट कम्पनियाँ तो छोड़िये सरकारी जगहों पर भी हिन्दी के हालात कुछ खास बेह्तर नहीं कहे जा सकते।

मेरे एक मित्र मनीष अग्रवाल के हाथ जब एयर इंडिया की टिकट लगी तो जैसे उसके साथ निराशा भी हाथ आई। टिकट पर लिखी हिन्दी पढ़ने के बाद ये बात समझ आ गई कि अपना दिमाग लगाने की बजाय एयर इंडिया के कर्मचारियों ने गूगल आदि  वेबसाइटों का सहारा लेना बेहतर समझा। मतलब यह कि हमारे देश जो व्यक्ति अंग्रेज़ी में दो वाक्य लिख सकता है वो उसी वाक्य को हिन्दी में दोहरा नहीं सकता। ये इस देश के लिये बेहद शर्मनाक है। 

ज़रा आप भी एक नज़र इस टिकट पर डालें और हिन्दी में लिखे वाक्य को पढ़ने का प्रयाद करें। मेरा दावा है कि यदि आप सच्चे हिन्दी प्रेमी हैं तो शर्म से नजरे झुक जायेंगी और माथे पर बल पड़ जायेंगे।

एयर इंडिया की पहचान विश्व भर में है और उसी से भारत की भी। परन्तु इस तरह की हिन्दी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है। ये चिंता का विषय है। किसी भाषा के हम इतने गुलाम हो जायें कि अपनी भाषा भूल जायें। ये परतंत्रता का परिचय है। आज हमारी सोच गुलाम है और ऐसा लगने लगा है कि अंग्रेज़ी का मतलब विकास हो गया है।

हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने हाल ही में आयोजित एक कवि सम्मेलन में एक किस्से का जिक्र किया।
पहला व्यक्ति: अगर मैं अपने बच्चे को अंग्रेज़ी नहीं सिखाऊँगा तो वो पीछे छूट जायेगा।
दूसरा: यदि तू हिन्दी नहीं सिखायेगा तो वो संस्कार भूल जायेगा।

माना अंग्रेज़ी जरूरी है पर सभी देशवासियों व पाठकों से अनुरोध है कि हिन्दी को नीचा न होनें दें। हिन्दी हमारी शान है। यदि ये पोस्ट या इसकी बात एयर इंडिया के किसी कर्मचारी तक पहुँच जाये तो इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता। शायद कुछ असर पड़े और आगे छपने वाली टिकटों में ऐसी भूल न हो।


जय हिन्द, जय हिन्दी ।

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