मेरे एक मित्र मनीष अग्रवाल के हाथ जब एयर इंडिया की टिकट लगी तो जैसे उसके साथ निराशा भी हाथ आई। टिकट पर लिखी हिन्दी पढ़ने के बाद ये बात समझ आ गई कि अपना दिमाग लगाने की बजाय एयर इंडिया के कर्मचारियों ने गूगल आदि वेबसाइटों का सहारा लेना बेहतर समझा। मतलब यह कि हमारे देश जो व्यक्ति अंग्रेज़ी में दो वाक्य लिख सकता है वो उसी वाक्य को हिन्दी में दोहरा नहीं सकता। ये इस देश के लिये बेहद शर्मनाक है।
ज़रा आप भी एक नज़र इस टिकट पर डालें और हिन्दी में लिखे वाक्य को पढ़ने का प्रयाद करें। मेरा दावा है कि यदि आप सच्चे हिन्दी प्रेमी हैं तो शर्म से नजरे झुक जायेंगी और माथे पर बल पड़ जायेंगे।
एयर इंडिया की पहचान विश्व भर में है और उसी से भारत की भी। परन्तु इस तरह की हिन्दी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है। ये चिंता का विषय है। किसी भाषा के हम इतने गुलाम हो जायें कि अपनी भाषा भूल जायें। ये परतंत्रता का परिचय है। आज हमारी सोच गुलाम है और ऐसा लगने लगा है कि अंग्रेज़ी का मतलब विकास हो गया है।
हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने हाल ही में आयोजित एक कवि सम्मेलन में एक किस्से का जिक्र किया।
पहला व्यक्ति: अगर मैं अपने बच्चे को अंग्रेज़ी नहीं सिखाऊँगा तो वो पीछे छूट जायेगा।
दूसरा: यदि तू हिन्दी नहीं सिखायेगा तो वो संस्कार भूल जायेगा।
माना अंग्रेज़ी जरूरी है पर सभी देशवासियों व पाठकों से अनुरोध है कि हिन्दी को नीचा न होनें दें। हिन्दी हमारी शान है। यदि ये पोस्ट या इसकी बात एयर इंडिया के किसी कर्मचारी तक पहुँच जाये तो इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता। शायद कुछ असर पड़े और आगे छपने वाली टिकटों में ऐसी भूल न हो।
जय हिन्द, जय हिन्दी ।
1 comment:
shame on these people, apne aap ko hindustani kehlane ka haq nahi hai inhe.
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