भ्रष्टाचार से "काली" पड़ी
एक कढ़ाई को
इंतज़ार है एक ऐसे "स्क्रॉच ब्राईट" का
जो दाग धो सके दशकों के
जो आकाओं ने उसको दिये हैं,
भ्रष्टाचार की अग्नि में झोंक-झोंक कर....
धरती जो कराह रही है
जिसे लगी प्यास है
दिल में जिसे आस है...
उस बादल की जो
बरसेगा और
भीतर जल रही अग्नि को
बुझायेगा...
वो बादल आज आकाश में है...
वो ज्वालामुखी आज फ़टने को है...
वो जलजला आज आने को है...
"आज़ाद" जिसके कण कण में है..
आज़ादी जिसके मन में है..
वो "अन्ना" आज का "गाँधी" है..
वो धूल उड़ाती आँधी है...
बहत्तर बरस का ये "युवा" है..
जहाँ चाहता है,
रुख वहाँ हवा का है...
आज उसके संग हो लो...
केवल नेताओं का नहीं...
अपना भी "काला" रंग धो लो...
यदि बनाते हम यही अपना "मिशन" है
तभी सफल होता ये अनशन है...
अन्ना के बारे में अब सभी लोग जान चुके हैं। इसलिये कुछ नहीं कहूँगा। सभी से केवल इतना ही आग्रह है कि जहाँ अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन हम सभी जानते हैं कि कहीं न कहीं हम भी भ्रष्टाचार का हिस्सा बने हैं.. कभी रिश्वत दी है (जाने-अनजाने डोनेशन वगैरह के माध्यम से ही सही) या ली है। इसलिये ये जंग हमारी स्वयं से है अपने ही समाज से है जिसका हम अंग हैं। ये कठिन है...परन्तु तभी शायद अन्ना का अनशन सफल माना जा सकता है... कहते हैं कि घर के बाहर सुधार करने से पहले घर के भीतर सुधार की आवश्यकता है। पर हम शायद अभी ये न समझ पायें.... आशा करूँगा कि अनशन अंतहीन न हो... वरना "अन्ना" और "जे.पी." पैदा होते रहेंगे..अनशन करते रहेंगे.. परन्तु स्थिति नहीं सुधरने पायेगी।
वन्देमातरम..
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