हाल ही में पटनीटॉप जाना हुआ। वहाँ प्राकृतिक व मनमोहक पहाड़ियों के अलावा आपको कुछ नहीं मिलेगा। कोई खास बाज़ार या मालरोड भी नहीं है जो हर हिलस्टेशन पर आपको आमतौर पर मिल जाते हैं। पर हम बात करेंगे चिंगु की।
पटनीटॉप में दो-तीन पार्क हैं और एक मंदिर है। बाबा नाग मंदिर। हजारों साल पहले कोई ब्रह्मचारी बाबा हुए हैं। उन्हीं का यह मंदिर है। टैक्सी वाले यहाँ जरूर आपको ले कर आते हैं। मंदिर के लिये 20-25 सीढ़ियाँ उतरनी थीं। और वहाँ पर थीं करीबन आठ से दस दुकानें। हमें देखते ही सबने चिल्लाना और आवाज़ लगाना शुरु कर दिया। "सर, हमारे यहाँ आइये, चिंगु देखिये".... "चिंगु देखने के लिये यहाँ आयें.."। एक ने तो हमसे वादा ले लिया कि हम मंदिर दर्शन के बाद उसके यहाँ आयें। तब तक हमारे मन में चिंगु को देखने और उससे मिलने की जिज्ञासा उत्पन्न हो चुकी थी। हमने सोच लिया था कि चाहें दुकान से कुछ खरीदें या नहीं खरीदें, चिंगु से जरूर मिलेंगे।
दर्शन के पश्चात उसी दुकान पर हम पहुँच गये। हम अंदर घुसे उसके कुछ सेकेंड बाद उस दुकानदार ने दुकान पर पर्दा डाल दिया। तब तक भी चिंगु से हम अनभिज्ञ थे। अब शुरु होती है चिंगु की कहानी। उसने कुछ इस तरह से बताना शुरू किया कि हम बस सुनते चले गये। उसने एक शॉल दिखाया। उसी को उसने चिंगु का नाम दिया। चिंगु एकतरह का शॉल होता है जो बहुत ही गर्म होता है और विशेष प्रकार की भेड़ से बनता है। उसने बताया कि पहले उस भेड़ को मारा जाता था पर अब उसको मारते नहीं हैं। उसके बच्चे के बाल उतार कर इस शॉल को बनाया जाता है। ये एक स्पेशल शॉल है जो सर्दियों में गर्म करता है और गर्मियों में बिस्तर पर चादर का काम कर सकता है। उसके ऊपर कुछ पानी के छीँटे मारो और पंखा खोल दो। बस। कहानी मजेदार रूप ले चुकी थी और हम वहीं बैठे थे।
दुकानदारी एक कला है। आपको बेकार से बेकार चीज़ भी ऐसे बतानी है कि ग्राहक को लगे कि बस उसी के लिये ही यह चीज़ बनी है और उसके बिना ग्राहक का जीवन अधूरा है। अब आगे की कहानी सुनें- चिंगु हमें छह हजार में मिलने वाला था। पर उसके साथ मिलने वाले थे चादर-तकिये के दो सेट। उसके साथ मिल रहा था एक मखमली कम्बल। उसके साथ थी एक लोई (एक तरह की शॉल)। ये चार-पाँच चीज़े एक "फ़ैमिली-पैक" बनाती है। छह हजार में इतना कुछ। और उसने एक सेमी-पश्मीना शॉल भी देने का वादा किया जो अंगूठी में से भी निकल जाती है। ये उसने हमें करके दिखाया। आँखें फ़टी की फ़टी रह गईं।
छह हजार में छह तरह के कपड़े इस महँगाई में सही सौदा है। पर कहानी अभी बाकी थी। इसका आभास हमें नहीं लग पाया। उसने और आगे बताना शुरू किया। उसने एक रजिस्टर निकाला जिस पर जम्मू-कश्मीर सरकार का कोई डिपार्टमेंट का नाम था। शायद जम्मू-कश्मीर का केवल नाम था, मैं पूरा पढ़ नहीं पाया। उस रजिस्टर में सैकड़ों लोगों की लिस्ट थी और उनके नाम-पते व फ़ोन नम्बर दर्ज थे। दरअसल असली बात तो आगे आनी थी। चिंगु को हमने 21 महीनें से लेकर पाँच साल तक के बीच में इस्तेमाल करना था जिसके बाद उस डिपार्टमेंट का ही एक आदमी हमारे घर आयेगा और हमसे यह शॉल ले जायेगा। वो ये देखने भी घर आयेगा कि हम इस शॉल का सही इस्तेमाल कर भी रहें हैं या नहीं। हम हैरान थे... शॉल वापस ले जायेगा!!! उसके साथ वापस होंगे 75% रूपये जो हमने शॉल को खरीदने में लगाये। यानि कुल 1500 रूपये में हमें पाँच आईटम मिलने वाले थे। और 21 महीने बाद हमें मिलेगा एक और कम्बल!!
कुछ समझ नहीं आ रहा था..बार बार उस रजिस्टर में नाम और जगह पढ़ीं। गुजरात, दिल्ली, चेन्नई, राजस्थान, यूके कोई ऐसी जगह नहीं जो नहीं लिखी हुई। हमने पूछा कि हम दिल्ली कैसे लेकर जायेंगे। जवाब मिला पार्सल हो जाता है। उसके 300 रूपये अलग से लगेंगे। और 600 रू उनके विभाग का रजिस्ट्रेशन चार्ज। उसने हमें बताया कि उनके ऑफ़िस सभी जगह पर हैं, उसने हमें लिस्ट दिखाई। हमें उस लिस्ट में कनॉट प्लेस दिखाई दिया पर उसमें पूरा पता नदारद था!!
इतनी आकर्षक स्कीम। कभी नहीं सुनी। लेकिन चिंगु वापस लेकर इन्हें क्या फ़ायदा होगा? यहीं हमने उससे पूछा। जवाब मिला कि चिंगु शॉल का कपड़ा 21 महीने के इस्तेमाल के बाद और निखर जाता है। उस शॉल से फिर एक कपड़ा बनेगा जिससे तीन शॉलें और बनेंगी और हर शॉल की कीमत होगी एक लाख रू से भी ज्यादा। कहानी ने चकरा दिया था। हमने यहाँ तक कहा कि हम घर में पूछ कर ही इतना बड़ा फ़ैसला करेंगे। तब वो दुकानदार हमें अपने फ़ोन से बात कराने को राजी हो गया, पर हमें दुकान से वापस नहीं जाने दे रहा था। कोई हमें अपना फ़ोन देने और एस.टी.डी कराने तक को राजी कैसे हो सकता है?
हम जैसे-तैसे वापस हॉटल आ गये। समझ नहीं पा रहे थे कि ये कैसा धँधा है? या फिर एक बहुत बड़ा गोरख धँधा। मैंने अपने फ़ोन पर ही इंटेरनेट पर चिंगु के बारे में जानना चाहा तो मुझे दो-तीन साईट और मिली जिन पर इस "खेल" का जिक्र था। वहाँ से पता चला कि यह "खेल" मनाली, शिमला में भी फ़ैला हुआ है। कुछ शिकायतें मिलीं जिन्हें चिंगु का फ़ैमिली-पैक पार्सल नहीं हो पाया। यही चिंगु हमें कटरा शहर में भी एक दुकान पर देखने को मिला। दुकानदार की रेट लिस्ट के मुताबिक चिंगु आपको छह हजार से साठ हजार या लाखों तक में भी मिल जायेगा। मुझे नहीं लगता कि ये क्वालिटी पर निर्भर करता है बल्कि इस पर कि ग्राहक कितना मालदार है।
हमने चिंगु नहीं खरीदा। हो सकता है कि आप भी कभी न कभी इस तरह की स्कीम से रू-ब-रू हुए हों। नहीं हुए तो हिमालय की इन हसीन वादियों का एक चक्कर काट आईये। कहीं न कहीं ये "चिंगु" आपको मिल ही जायेगा। क्या आप ये "चिंगु" अपने घर ले जाना चाहेंगे? यदि हाँ तो इसके बारे में अन्य लोगों को बतायें क्योंकि तीन ग्राहक बनाने पर आपको और भी बहुत कुछ मिलने की "गारंटी" मिलेगी। और यदि नहीं खरीदें तो मेरी तरह लोगों तक इस "आकर्षक" व सम्मोहित कर देने वाली स्कीम के बारे में जरूर बतायें। वैसे चिंगु खरीदना हो या नहीं, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर आप एक बार जरूर होकर आयें।
"धरती पर यदि स्वर्ग है तो यहीं है यहीं है यहीं है"
॥जय हिन्द॥
धूप-छाँव में पढ़िये दो नियमित स्तम्भ:
गुस्ताखियाँ हाजिर हैं
क्या आप जानते हैं?