Thursday, December 30, 2010

तस्वीरों में देखिये: पैरों में चप्पल पहन कर दिल्ली पुलिस कैसे करती है वी.आई.पी लोगों की सिक्युरिटी और दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर राजनैतिक दलों के बैनरों का मेला Delhi Police in Chappals For VVIP Security and Hoarding Mess At Delhi-UP Border

हाल ही में बुराड़ी, दिल्ली में कांग्रेस पार्टी का महाधिवेशन हुआ। पूरी दिल्ली और खासतौर पर रोहिणी से बस-अड्डे के रास्ते पर ढेरों बैनर व हॉडिंग लगे हुए नजर आये। तीन दिन तक चले इस महा-चिंतन में 10,000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किये गये। बुराड़ी शिविर व उसके आस-पास चप्पे-चप्पे पर इतने पुलिस वाले दिख रहे थे जितने खेल-गाँव की सुरक्षा में भी नहीं दिखे। करीबन दस किलोमीटर तक हर पचास मीटर पर एक या दो पुलिसकर्मी दिखाई दे जाते।
जेब में हाथ डाले खड़ा एक पुलिस-कर्मी


इन्हीं पुलिस वालों में से एक पर हमारी नज़र पड़ गई। वज़ीराबाद चौराहे पर पुल-निर्माण के नज़दीक ही ये महाशय हाथों को जेब में डाले खड़े हुए थे।

जुराब के ऊपर चप्पल
हालाँकि इनकी बीड़ी पीते हुए की फ़ोटो तो नहीं ले पाये पर इनके पैरों की तरफ़ नजर गई तो पता चला कि जूतों की जगह जुराब के ऊपर चप्पल पहने हुए थे। ये आलम है आला नेताओं की सुरक्षा में "तैनात" पुलिस वालों का।

दूसरी तस्वीर है दिल्ली-यूपी बॉर्डर की जिसे यूपी गेट भी कहा जाता है। दिल्ली में जो बैनर अथवा हॉर्डिंग लगाये जाते हैं वे अधिकतर फ़्लाई-ऑवरों पर या मेट्रो के साथ-साथ लगे हुए दिखाई देंगे। पर जैसे ही आप यूपी गेट से गाज़ियाबाद-इंदिरापुरम में दाखिल होंगे आपको ढेर सारे हॉर्डिंग नजर आयेंगे।

राजनैतिक पार्टियों के हॉर्डिंग के पीछे छिपे दिशा निर्देश
और ये सब लगे होंगे दिशा बताने वाले बोर्ड पर। ये सिलसिला आज का नहीं है। मैं कम से कम पाँच साल से देख रहा हूँ। लेकिन तस्वीर पाँच दिन पुरानी है। काँग्रेस पार्टी की जनसभा 10 दिसम्बर को थी (बैनर के मुताबिक) पर ये आज भी आपको टँगा हुआ दिख जायेगा। यही रस्ता आगे चल कर लखनऊ भी जाता है। बोर्ड पर Lucknow का "W" दिखाई दे जायेगा।


कोशिश रहेगी कि तस्वीरों के माध्यम से आप तक कोई खबर पहुँचाई जा सके। इसी कोशिश में शुरू हुई है ये श्रॄंख्ला।

"तस्वीरों में देखिये" के पिछले अंक:

वैष्णौं देवी श्राइन बोर्ड कैसे फ़ैला रहा है प्रदूषण 


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Friday, December 24, 2010

ये चिंगु-चिंगु क्या है? हिमालय की गोद में "चिंगु" का धँधा या फिर गोरखधँधा? Chingu Business in Himalayas

हाल ही में पटनीटॉप जाना हुआ। वहाँ प्राकृतिक व मनमोहक पहाड़ियों के अलावा आपको कुछ नहीं मिलेगा। कोई खास बाज़ार या मालरोड भी नहीं है जो हर हिलस्टेशन पर आपको आमतौर पर मिल जाते हैं। पर हम बात करेंगे चिंगु की।

पटनीटॉप में दो-तीन पार्क हैं और एक मंदिर है। बाबा नाग मंदिर। हजारों साल पहले कोई ब्रह्मचारी बाबा हुए हैं। उन्हीं का यह मंदिर है। टैक्सी वाले यहाँ जरूर आपको ले कर आते हैं। मंदिर के लिये 20-25 सीढ़ियाँ उतरनी थीं। और वहाँ पर थीं करीबन आठ से दस दुकानें। हमें देखते ही सबने चिल्लाना और आवाज़ लगाना शुरु कर दिया। "सर, हमारे यहाँ आइये, चिंगु देखिये".... "चिंगु  देखने के लिये यहाँ आयें.."। एक ने तो हमसे वादा ले लिया कि हम मंदिर दर्शन के बाद उसके यहाँ आयें। तब तक हमारे मन में चिंगु को देखने और उससे मिलने की जिज्ञासा उत्पन्न हो चुकी  थी। हमने सोच लिया था कि चाहें दुकान से कुछ खरीदें या नहीं खरीदें, चिंगु से जरूर मिलेंगे।

दर्शन के पश्चात उसी दुकान पर हम पहुँच गये। हम अंदर घुसे उसके कुछ सेकेंड बाद उस दुकानदार ने दुकान पर पर्दा डाल दिया। तब तक भी चिंगु  से हम अनभिज्ञ थे। अब शुरु होती है चिंगु की कहानी। उसने कुछ इस तरह से बताना शुरू किया कि हम बस सुनते चले गये। उसने एक शॉल दिखाया। उसी को उसने चिंगु का नाम दिया। चिंगु एकतरह का शॉल होता है जो बहुत ही गर्म होता है और विशेष प्रकार की भेड़ से बनता है। उसने बताया कि पहले उस भेड़ को मारा जाता था पर अब उसको मारते नहीं हैं। उसके बच्चे के बाल उतार कर इस शॉल को बनाया जाता है। ये एक स्पेशल शॉल है जो सर्दियों में गर्म करता है और गर्मियों में बिस्तर पर चादर का काम कर सकता है। उसके ऊपर कुछ पानी के  छीँटे मारो और पंखा खोल दो। बस। कहानी मजेदार रूप ले चुकी थी और हम वहीं बैठे थे।

दुकानदारी एक कला है। आपको बेकार से बेकार चीज़ भी ऐसे बतानी है कि ग्राहक को लगे कि बस उसी के लिये ही यह चीज़ बनी है और उसके बिना ग्राहक का जीवन अधूरा है अब आगे की कहानी सुनें- चिंगु हमें छह हजार में मिलने वाला  था। पर उसके साथ मिलने वाले थे चादर-तकिये के दो सेट। उसके साथ मिल रहा था एक मखमली कम्बल। उसके साथ थी एक लोई (एक तरह की शॉल)। ये चार-पाँच चीज़े एक "फ़ैमिली-पैक" बनाती है। छह हजार में इतना कुछ। और उसने एक सेमी-पश्मीना शॉल भी देने का वादा किया जो अंगूठी में से भी निकल जाती है। ये उसने हमें करके दिखाया। आँखें फ़टी की फ़टी रह गईं।

छह हजार में छह तरह के कपड़े इस महँगाई में सही सौदा है। पर कहानी अभी बाकी थी। इसका आभास हमें नहीं लग पाया। उसने और आगे बताना शुरू किया। उसने एक रजिस्टर निकाला जिस पर जम्मू-कश्मीर सरकार का कोई डिपार्टमेंट का नाम था। शायद जम्मू-कश्मीर का केवल नाम था, मैं पूरा पढ़ नहीं पाया। उस रजिस्टर में सैकड़ों लोगों की लिस्ट थी और उनके नाम-पते व फ़ोन नम्बर दर्ज थे। दरअसल असली बात तो आगे आनी थी। चिंगु को हमने 21 महीनें से लेकर पाँच साल तक के बीच में इस्तेमाल करना था जिसके बाद उस डिपार्टमेंट का ही एक आदमी हमारे घर आयेगा और हमसे यह शॉल ले जायेगा। वो ये देखने भी घर आयेगा कि हम इस शॉल का सही इस्तेमाल कर भी रहें हैं या नहीं। हम हैरान थे... शॉल वापस ले जायेगा!!! उसके साथ वापस होंगे 75% रूपये जो हमने शॉल को खरीदने में लगाये। यानि कुल 1500 रूपये में हमें पाँच आईटम मिलने वाले थे। और 21 महीने बाद हमें मिलेगा एक और कम्बल!!

कुछ समझ नहीं आ रहा था..बार बार उस रजिस्टर में नाम और जगह पढ़ीं। गुजरात, दिल्ली, चेन्नई, राजस्थान, यूके कोई ऐसी जगह नहीं जो नहीं लिखी हुई। हमने पूछा कि हम दिल्ली कैसे लेकर जायेंगे। जवाब मिला पार्सल हो जाता है। उसके 300 रूपये अलग से लगेंगे। और 600 रू उनके विभाग का रजिस्ट्रेशन चार्ज। उसने हमें बताया कि उनके ऑफ़िस सभी जगह पर हैं, उसने हमें लिस्ट दिखाई। हमें उस लिस्ट में कनॉट प्लेस दिखाई दिया पर उसमें पूरा पता नदारद था!!

इतनी आकर्षक स्कीम। कभी नहीं सुनी। लेकिन चिंगु वापस लेकर इन्हें क्या फ़ायदा होगा? यहीं हमने उससे पूछा। जवाब मिला कि चिंगु शॉल का कपड़ा 21 महीने के इस्तेमाल के बाद और निखर जाता है। उस शॉल से फिर एक कपड़ा बनेगा जिससे तीन शॉलें और बनेंगी और हर शॉल की कीमत होगी एक लाख रू से भी ज्यादा। कहानी ने चकरा दिया था। हमने यहाँ तक कहा कि हम घर में पूछ कर ही इतना बड़ा फ़ैसला करेंगे। तब वो दुकानदार हमें अपने फ़ोन से बात कराने को राजी हो गया, पर हमें दुकान से वापस नहीं जाने दे रहा था। कोई हमें अपना फ़ोन देने और एस.टी.डी कराने तक को राजी कैसे हो सकता है?

हम जैसे-तैसे वापस हॉटल आ गये। समझ नहीं पा रहे थे कि ये कैसा धँधा है? या फिर एक बहुत बड़ा गोरख धँधा। मैंने अपने फ़ोन पर ही इंटेरनेट पर चिंगु के बारे में जानना चाहा तो मुझे दो-तीन साईट और मिली जिन पर इस "खेल" का जिक्र था। वहाँ से पता चला कि यह "खेल" मनाली, शिमला में भी फ़ैला हुआ है। कुछ शिकायतें मिलीं जिन्हें चिंगु का फ़ैमिली-पैक पार्सल नहीं हो पाया। यही चिंगु हमें कटरा शहर में भी एक दुकान पर देखने को मिला। दुकानदार की रेट लिस्ट के मुताबिक चिंगु आपको छह हजार से साठ हजार या लाखों तक में भी मिल जायेगा। मुझे नहीं लगता कि ये क्वालिटी पर निर्भर करता है बल्कि इस पर कि ग्राहक कितना मालदार है।

हमने चिंगु नहीं खरीदा। हो सकता है कि आप भी कभी न कभी इस तरह की स्कीम से रू-ब-रू हुए हों। नहीं हुए तो हिमालय की इन हसीन वादियों का एक चक्कर काट आईये। कहीं न कहीं ये "चिंगु" आपको मिल ही जायेगा। क्या आप ये "चिंगु" अपने घर ले जाना चाहेंगे? यदि हाँ तो इसके बारे में अन्य लोगों को बतायें क्योंकि तीन ग्राहक बनाने पर आपको और भी बहुत कुछ मिलने की "गारंटी" मिलेगी। और यदि नहीं खरीदें तो मेरी तरह लोगों तक इस "आकर्षक" व सम्मोहित कर देने वाली स्कीम के बारे में जरूर बतायें। वैसे चिंगु खरीदना हो या नहीं, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर आप एक बार जरूर होकर आयें।


"धरती पर यदि स्वर्ग है तो यहीं है यहीं है यहीं है"

॥जय हिन्द॥




धूप-छाँव में पढ़िये दो नियमित स्तम्भ:
गुस्ताखियाँ हाजिर हैं
क्या आप जानते हैं?
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Tuesday, December 21, 2010

क्या आप जानते हैं? क्या है सीमा सड़क संगठन और ड्राईवरों को कैसे बना रहा है अपने शब्दों से जागरूक Border Roads Organization Slogans

संविधान के अनुसार सड़क निर्माण की जिम्मेदारी किसी भी राज्य की सरकार की होती है। हम सभी जानते हैं कि सीमा की सुरक्षा सर्वोपरि है और हमारी सेना इस कार्य में दिन-रात लगी रहती है। सीमा की सड़कों को देश की अन्य सड़कों से जल्दी से जल्दी जोड़ा जाये जिससे यातायात में सुविधायें बढ़ सकें एवं सीमावर्ती क्षेत्रों के मार्गों को सुगम बनाया जाये इसी के मद्देनजर सीमा सड़क संगठन या Border Roads Organization की स्थापना की गई।
सीमा सड़क संगठन (BRO) का लोगो

7 मई 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसकी स्थापना की व इसके प्रथम चेयरमैन बने। आज इसके निदेशक, लेफ़्टिनेंट जनरल एम.सी बधानी हैं। यह संगठन उत्तर व उत्तर-पूर्वी राज्यों में तत्पर्ता से कार्य कर रहा है। इसे हिमालय की ठंड व राजस्थान की रेत और तपतपाती गर्मी से जूझना पड़ता है और पहाड़ी राज्यों के कठिन रास्तों से भी गुजरना होता है।

सीमा सड़क संगठन की वेबसाईट पर जारी ये संदेश पढ़िये:


"हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विषम क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण केवल कंक्रीट और सीमेन्ट से नहीं हुआ है बल्कि इसमे भारत के सीमा सड़क संगठन के वीर जवानों का खून भी शामिल है । कई वीरों ने कार्य करते हुए ड्यूटी के दौरान अपनी जान गवांई है । इन वीरो के लिए , जो सदा खतरों से खेलते हैं और मौत पर हंसते हैं, उनके  लिए ड्यूटी हमेशा पहले रही है । ये सभी वीर भारत के विभिन्न भागों से आते हैं और अपने देश की सुरक्षा के लिए न केवल हमेशा तत्पर रहते हैं बल्कि पड़ोसियों को खुशहाल बनाने में भी भरपूर योगदान दिया है ।"

हम सभी जानते हैं कि दिल्ली व अन्य किसी भी बड़े शहर में हर व्यक्ति अपनी जान हथेली पर लेकर सुबह घर से बाहर कदम रखता है। अपने आप को पायलट समझते कुछ ड्राईवर सड़कों पर घूम रहे होते हैं जिनसे बच पाना एक वीरता पुरस्कार से कम नहीं होता। सड़क किनारे आपको इस तरह के वाक्य अमूमन मिल जायेंगे जो आपको आगाह करते रहेंगे कि आप गाड़ी धीमे चलायें।

अभी अपनी जम्मू यात्रा के दौरान कुछ ऐसे ही वाक्य BRO की तरफ़ से लिखे हुए देखे। कुछ अलग लगे इसलिये आप के साथ साझा करने चाहे:

  • Keep Your Nerves On The Sharp Curves
  • This is the Highway, Don't Think it a Runway
  • Licence to Drive not to Fly
  • इतनी जल्दी क्या है प्यारे, रुक कर देख प्रकृति के नजारे
  • If Married, Divorce Speed
और ये सबसे अच्छा लगा:
  • रफ़्तार का शौक है तो पी.टी.ऊषा बनो!!!

॥जय जवान, जय हिन्द॥

"क्या आप जानते हैं"  के छोटे से स्तम्भ में लम्बा-चौड़ा लेख नहीं अपितु आप के लिये होगी रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी। चाहें इतिहास हो, विज्ञान, भूगोल, घर्म या अन्य कोई भी और विषय हो। यदि आप भी इन विषयों के बारे में कोई जानकारी बाँटना चाहें तो कमेंट अथवा ईमेल के जरिये जरूर सम्पर्क करें।
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Saturday, December 18, 2010

तस्वीरों में देखिये: वैष्णौं देवी श्राइन बोर्ड कैसे फ़ैला रहा है प्रदूषण और रात में साँझी छत से कैसा दिखता है कटरा का शहर Shrine Board Carelessness Causing Pollution?

हाल ही में वैष्णौं देवी जी के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। भीड़ कम होने के कारण तसल्ली से दर्शन कर सके वरना आप जानते ही हैं कि पाँच घंटे की चढ़ाई और पाँच सेकंड के लिये भी दर्शन दुर्लभ होते हैं।

केवल दिल्ली में ही नहीं हर जगह ही विकास का चेहरा दिख रहा है। बाणगंगा से भवन की तरफ़ जाते हुए आप पुरानी बल्ब की लाइटों की जगह ट्यूब लाईट की नई दूधिया से नहाये हुए रास्तों से गुजरेंगे। हमारा ध्यान इस ’विकास’ की ओर नहीं जाता यदि हमें पहाड़ी पर पड़े हुए ये बल्ब दिखाई नहीं दिखते। उन्हीं पुराने बल्बों में से एक की यह झलक:

ऐसे एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों बल्ब यात्रा के दौरान आपको मिल जायेंगे। क्या इन बल्बों को उठाने के बारे में कुछ सोच रहा है श्राईन बोर्ड या फिर वैष्णौं देवी की यह पहाड़ी जो लोगों द्वारा फ़ेंकी गई प्लास्टिक की बोतलों व चिप्स के रैपरों से "शोभायमान" हो रही है अब बिजली के इन बल्ब से होने वाले रासायनिक प्रदूषण का भी स्वाद चखती रहेगी?

चलते चलते देखते चलिये दूसरी तस्वीर: कटरा का पवित्र शहर कुछ ऐसा दिखता है यह साँझी छत से।



अगले अंक में जानिये "सीमा सड़क संगठन" अपने शब्दों से कैसे कर रहा है लोगों को जागरुक
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Friday, December 10, 2010

तुम्हीं हो कल, आज हो तुम...

कोयल की कूक तुम्हीं से,
हर शे’र की बहर हो तुम।
खेतों का लहलहाना तुम से

सागर की लहर हो तुम॥

चाँद की चाँदनी तुम से,
कली का मुस्कुराना तुम
मिट्टी की सुगँध तुम्हीं से,
बहारों का हो आना तुम॥
 

हीरे की चमक तुम्हीं से
घटाओं का छा जाना तुम।
प्रेम का है स्पर्श तुम्हीं से
शाम का ढल जाना तुम॥

कविता का आगाज़ तुम्हीं से,
मधुर संगीत का साज़ हो तुम।
कविता पूरी होती तुम्हीं से,
तुम्हीं हो कल, आज हो तुम।
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Sunday, December 5, 2010

क्या आप जानते हैं? कनॉट प्लेस का इतिहास और सहारा के रेगिस्तान में कितने भारत समा सकते हैं? Connaught Place and Sahara Desert

आज बात करते हैं सहारा के रेगिस्तान की। अफ़्रीका के महाद्वीप में कईं देशों में फ़ैला यहा रेगिस्तान विश्व का सबसे बड़ा रेगिस्तान है। ये इतना बड़ा है कि उत्तर अफ़्रीका के सभी देशों में यह फ़ैला हुआ है और एक तरह से यह पूरे यूरोप जितना बड़ा है|

अफ़्रीका के जिन 12 देशों में यह फ़ैला हुआ है वे हैं: अल्जीरिया, चाड, मिस्र, एरीत्रिया, लीबिया, माली, मौरिशियाना, मॉरोक्को, नाइजर, सूदान, ट्यूनिशिया व पश्चिमी सहारा। इसकी लम्बाई 4800 किमी है व यह 1800 किमी चौड़ा है। इसका अनुमानित क्षेत्रफल 94 लाख sq.km है जो कि भारत से करीबन तीन गुना अधिक है। यानि हमारे जैसे तीन देश सहारा में समा सकते हैं। अरब के रेगिस्तान से यह चार गुना बड़ा है। चीन का गोबी इसका सातवाँ हिस्सा है व दक्षिणी अफ़्रीका का कालाहारी रेगिस्तान भी इसका दसवाँ हिस्सा ही है।
नासा द्वारा अंतरिक्ष से लिया गया एक चित्र

लीबिया का रेगिस्तान
कैसे आता है भँवर?

जब भी कभी पानी का तेज बहाव किसी भी तरह की रुकावट से टकराता है, उसी समय उसमें कईं तरह के चक्कर बन जाते हैं और पहले से भी अधिक तीव्रता से घूमने लगता है। यही टकराव भँवर पैदा करता है। नदी में ये चट्टान के टकराने मात्र से उत्पन्न हो जाता है जबकि बड़े समुद्र में दो विपरीत दिशा से आने वाली विशाल लहरें इसकी उत्पत्ति का कारण बनती हैं।
यह एक पूर्णत: प्राकृतिक क्रिया है। नार्वे में विश्व के दो सबसे ताकतवर भँवर 37 किमी प्रति घंटा और 28 किमी प्रति घंटा के रफ़्तार से आते हैं।

चलते चलते:
आपने दिल्ली के कनॉट प्लेस के बारे में तो सुना ही होगा। ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया के तीसरे बेटे प्रिंस आर्थर को "ड्यूक औफ़ कनॉट" की उपाधि दी गई थी। कनॉट आयरलैंड में एक जगह का नाम हुआ करता था। उन्हीं के नाम पर आज के सी.पी का नाम रखा गया। इसके आर्किटेक्ट थे रॉबर्ट रसैल और इसका निर्माण 1929 से 1933 के बीच किया गया।
क्या आप जानते हैं कि इस नाम से देहरादून में ही नहीं बल्कि हांगकांग और लंदन में भी जगह हैं। राजनेताओं ने इसका नाम बदल कर राजीव चौक रख दिया। सरकारी कागज़ों में बेशक इसका नाम बदल दिया हो पर दिल्ली के दिल में बना यह लोगों के लिये अभी भी सी.पी ही है।

"क्या आप जानते हैं"  के छोटे से स्तम्भ में लम्बा-चौड़ा लेख नहीं अपितु आप के लिये होगी रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी। चाहें इतिहास हो, विज्ञान, भूगोल, घर्म या अन्य कोई भी और विषय हो। यदि आप भी इन विषयों के बारे में कोई जानकारी बाँटना चाहें तो कमेंट अथवा ईमेल के जरिये जरूर सम्पर्क करें। 
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