अभी हाल ही में क्रिकेट के क्षेत्र में एक विवाद पैदा हुआ जो क्रिकेट के जानकारों और इस खेल से अनभिज्ञ, दोनों ही तरह के लोगों के बीच चर्चा का विषय रहा। मुद्दा था हरभजन सिंह ने साइमंड्स को नस्लवादी टिप्पणी करी या नहीं करी। आरोप संगीन था। प्रथम बार में इस आरोप के साबित होने पर देश भर में हड़कम्प मच गया। देश के समाचार परोसने वाले सभी तेज चैनलों में होड़ लग गई कि ऐसे कैसे कोई बिना सुबूत के आरोप लगा सकता है। बात भी सही थी। कानून सुबूत माँगता है। चैनलों का बस चले तो दिन को ४८ घंटों का कर दें और फिर भी इनके मसाले खत्म नहीं होंगे। खैर ये बात फिर कभी उठायेंगे।
अब ज़रा मुद्दे पर फिर रोशनी डालें। अभी हाल ही में मैं रिक्शे में जा रहा था कि एक कार वाला पीछे से होर्न मारने लगा। अब रिक्शे और कार की गति में अंतर तो होता ही है। थोड़ देर लगी उसको साइड होने में। अब जैसे ही कार बगल से गुजरी, उस कार वाले ने रिक्शा वाले को "बिहारी" कह कर सम्बोधित किया। अब चाहें वो रिक्शे वाला हरियाणा से हो, या उत्तर प्रदेश से या राजस्थान से आप उसे "बिहारी" ही कहेंगे। आप चाहें किसी भी महानगर में हों, आपको ये दृश्य नजर आ ही जायेगा। और दलील ये कि बिहार वालों को बिहारी ही तो कहेंगे। बात सही है। पर कम से कम कहने से पहले पूछ तो लिया जाये कि वो बंदा है कहाँ का? दरअसल हम लोगों ने ये नियम बना लिया है, कोई भी मजदूर हो, हम उसे बिहारी ही बोलेंगे। ये आम शब्द है और एक तरह से ये जताने का तरीका है कि मजदूर हम से नीचे दर्जे के लोग हैं। क्या इसे हम सही आचरण कहेंगे? क्या ये जातिवाद व क्षेत्रवादी टिप्पणी नहीं है?
और तब क्या सही है जब ठाकरे साहब उत्तर भारतीय लोगों को बुरा भला बोलते हैं। जब बिहार के लोगों को पीटा जाता है। यही हाल कमोबेश पूर्वी भारत में है। और उत्तर पूर्वी लोगों को बाकि क्षेत्र से अलग समझा जाता है। मीडिया में भी उस तरफ़ के लोगों की खबर न के बराबर होती है। और जब करूणानिधि जैसे नेता द्रविड प्रदेश का नारा देते हैं और हिंदीभाषियों के खिलाफ बोलते हैं। और हमारा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र के आधार पर आरक्षण देना। ये तो जातिवाद कतई नहीं है!!
हम ही ने ठाकरे, करूणानिधि जैसे नेता बनाये हैं, तो हम किस मुँह से कहें कि हम नस्लवाद के खिलाफ हैं। हम तो क्षेत्रवाद और जातिवाद के कट्टर समर्थक हैं। शर्म आनी चाहिये हमें और मीडिया वालों को भी, जिन्होंने खबर को गलत तरीके से पेश किया। कड़वी सच्चाई यही है कि हम सदियों से जाति व क्षेत्र में भेद करते आये हैं और कर रहे हैं। मैं नस्लवाद और जाविवाद व क्षेत्रवाद में कोई अंतर नहीं समझता। क्या आप समझते हैं?
भज्जी ने नस्लवादी टिप्पणी करी या नहीं, सवाल ये नहीं है। सवाल ये है कि हम किस मुँह से विदेश में साफ झूठ बोल रहें हैं कि हम इन सब के खिलाफ हैं। हम लोग झूठे व मतलब परस्त हैं, हमें जब जो अपने मतलब का लगता है हम करते हैं।
जो मुझे लगा मैंने कहा। सवाल उठाना मेरा फर्ज था। जवाब ढूँढना हम सब का।
आगे पढ़ें >>
अब ज़रा मुद्दे पर फिर रोशनी डालें। अभी हाल ही में मैं रिक्शे में जा रहा था कि एक कार वाला पीछे से होर्न मारने लगा। अब रिक्शे और कार की गति में अंतर तो होता ही है। थोड़ देर लगी उसको साइड होने में। अब जैसे ही कार बगल से गुजरी, उस कार वाले ने रिक्शा वाले को "बिहारी" कह कर सम्बोधित किया। अब चाहें वो रिक्शे वाला हरियाणा से हो, या उत्तर प्रदेश से या राजस्थान से आप उसे "बिहारी" ही कहेंगे। आप चाहें किसी भी महानगर में हों, आपको ये दृश्य नजर आ ही जायेगा। और दलील ये कि बिहार वालों को बिहारी ही तो कहेंगे। बात सही है। पर कम से कम कहने से पहले पूछ तो लिया जाये कि वो बंदा है कहाँ का? दरअसल हम लोगों ने ये नियम बना लिया है, कोई भी मजदूर हो, हम उसे बिहारी ही बोलेंगे। ये आम शब्द है और एक तरह से ये जताने का तरीका है कि मजदूर हम से नीचे दर्जे के लोग हैं। क्या इसे हम सही आचरण कहेंगे? क्या ये जातिवाद व क्षेत्रवादी टिप्पणी नहीं है?
और तब क्या सही है जब ठाकरे साहब उत्तर भारतीय लोगों को बुरा भला बोलते हैं। जब बिहार के लोगों को पीटा जाता है। यही हाल कमोबेश पूर्वी भारत में है। और उत्तर पूर्वी लोगों को बाकि क्षेत्र से अलग समझा जाता है। मीडिया में भी उस तरफ़ के लोगों की खबर न के बराबर होती है। और जब करूणानिधि जैसे नेता द्रविड प्रदेश का नारा देते हैं और हिंदीभाषियों के खिलाफ बोलते हैं। और हमारा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र के आधार पर आरक्षण देना। ये तो जातिवाद कतई नहीं है!!
हम ही ने ठाकरे, करूणानिधि जैसे नेता बनाये हैं, तो हम किस मुँह से कहें कि हम नस्लवाद के खिलाफ हैं। हम तो क्षेत्रवाद और जातिवाद के कट्टर समर्थक हैं। शर्म आनी चाहिये हमें और मीडिया वालों को भी, जिन्होंने खबर को गलत तरीके से पेश किया। कड़वी सच्चाई यही है कि हम सदियों से जाति व क्षेत्र में भेद करते आये हैं और कर रहे हैं। मैं नस्लवाद और जाविवाद व क्षेत्रवाद में कोई अंतर नहीं समझता। क्या आप समझते हैं?
भज्जी ने नस्लवादी टिप्पणी करी या नहीं, सवाल ये नहीं है। सवाल ये है कि हम किस मुँह से विदेश में साफ झूठ बोल रहें हैं कि हम इन सब के खिलाफ हैं। हम लोग झूठे व मतलब परस्त हैं, हमें जब जो अपने मतलब का लगता है हम करते हैं।
जो मुझे लगा मैंने कहा। सवाल उठाना मेरा फर्ज था। जवाब ढूँढना हम सब का।