Wednesday, February 23, 2011

प्रेम का एक दिन या हर दिन प्रेम का...वेलेंटाइन डे स्पेशल Spread Love Every Day Valentines Day Special

हमारे देश में कईं सारे "दिवस" मनाये जाते हैं। जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, बाल दिवस, हिन्दी दिवस इत्यादि। ये सभी दिवस या तो हमारे गौरवशाली इतिहास को याद दिलाते हैं या फिर सामाजिक कर्त्तव्यों का अहसास कराते हैं। कईं वर्षों से प्रति वर्ष पूरा देश इन्हें मनाता आ रहा है। या यूँ कहें कि इन "दिवसों" के नाम पर छुट्टी मनाता आ रहा है। इसी तरह से ढेरों "जयन्तियाँ" थोक के भाव में हर महीने आ ही जाती हैं।

खैर पिछले आठ से दस साल से एक और "दिवस" हम भारतीयों की ज़िन्दिगी का हिस्सा बन गया है। जिसका नाम है "वेलंटाइन डे" अब अंग्रेज़ी के "डे" को हिन्दी में दिवस ही बोलेंगे। ये दिवस बाकि सब दिवसों का "बाप" बन कर आया है। सरकार गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर छुट्टी देती है और हम घर में सो कर बिता देते हैं। जबकि इस "वेलेंटाइन डे" पर छुट्टी करते हैं और बाहर घूमने जाते हैं। मैने बिना किसी कारण के इस "डे" को सबका "बाप" नहीं कहा है। एक आँकड़ा देखिये- 1200 करोड़। ये आँकड़ा इस वर्ष वेलेंटाइन डे पर होने वाले पूरे व्यापार का। हम भारतीयों ने 1200 करोड़ रूपये केवल इस "दिवस" को मनाने में खर्च किये। क्या इसको "फ़िजूलखर्च" कहा जा सकता है? ऐसा प्रश्न कईं बार उठता है। "प्यार" के नाम पर इस दिन का व्यापारीकरण किया गया और भारतीय बाज़ार में चुपचाप उतार दिया। ठीक उसी तरह जैसे कोई कम्पनी नया प्रोडक्ट बाज़ार में पेश करती है।

करीबन दस साल पहले जब ये "दिन" भारत के बाज़ार में आया तब किसी ने नहीं सोचा था कि "बाज़ार" में प्यार के दाम में इतना अधिक उछाल आ जायेगा कि बाकि सब ऐतिहासिक दिन पीछे छूट जायेंगे। नई पीढ़ी "प्रेम" के नये फ़ंडे को अपनाती चली गई और आज यह प्रोडक्ट 1200 करोड़ में बिकता है। आने वाले समय में ईद और दीवाली को टक्कर देने वाला है। एक "दिन" से ऊपर उठकर त्योहार की उपाधि पाने से इसे कोई नहीं रोक सकता।

ऐसा नहीं कि इस इन का विरोध किया जाना चाहिये। पर जिस चालाकी से बाज़ार प्रेम को बेच रहा है उस पर बहस होनी चाहिये। एक सप्ताह पहले से ही रेडियो और टीवी वाले इसके कार्यक्रम दिखाने शुरु होते है। इस बार मेरे पास दो मित्रों से एक जैसे एस.एम.एस. आये जिसमें कहा गया कि 14 फ़रवरी को भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव को फ़ाँसी लगाई गई इस लिये हमें ये दिन उनकी याद में भी मनाना चाहिये। ये पढ़कर दिल दुखी हुआ, जिन लोगों ने इस मैसेज को शुरु किया उनपर गुस्सा आया और जो इस"चेन" को आगे बढ़ते गये उनपर दया आई। आप ही बतायें शहीदों के बलिदान को किस तरह से "प्रेम" के बाज़ार में उछाला जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस तरह के मैसेज मोबाइल कम्पनियाँ ही जानबूझ कर शुरु करती हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाये जा सकें। लोगों की भावनाओं के साथ खेलने से उन्हें कोई परहेज नहीं होता।

एक और आँकड़े की मानें तो अमरीका में 14 फ़रवरी के आसपास अधिक तालाक होने शुरु हो गये हैं। पिछले दो सालों में 40 प्रतिशत का उछाल आया है। हमारे देश में भी तालाक की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। पिछले कुछ वर्षों से एक नया शब्द चलन में है "ब्रेक अप"। यानि युवक युवती में कथित "प्यार" हुआ (शायद कुछ वेलेंटाइन डे साथ में बिताये) और फिर अलग हो गये। ऐसा क्यों? प्यार की कीमत क्यों लगाई जाने लगी है? राधा-कॄष्ण के प्रेम की साक्षी यह धरती आज इस एक दिन की मोहताज क्यों बन गई है? २६ जनवरी और १५ अगस्त को भारत-वर्ष से प्यार करें, १४ नवम्बर को बच्चों के साथ प्रेम बाँटें। हर दिन प्रेम का है, तो फिर 14 फ़रवरी का इंतज़ार क्यों करें।

प्रेम की इस संसार को ज़रूरत है.... पर प्रेम के व्यापारीकरण का क्या.....

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यों है..
ज़ख्म हर सर पे हर एक हाथ में पत्थर क्यों है....

हालाँकि वेलेंटाइन डे बीते 10 दिन के करीब हो गये हैं फिर भी मुझे लगा कि अपनी बात तो कभी भी कही जा सकती है।
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Sunday, February 20, 2011

जब विदेश मंत्री ने पढ़ा पुर्तगाली भाषण एक माइक्रोपोस्ट Foreign Minister read Portugal Minister's Speech : A Micropost

पिछले सप्ताह विदेश मंत्री ने जब संयुक्त राष्ट्र में पुर्तगाल के विदेशमंत्री का भाषण पढ़ा तो बेहद शर्म महसूस हुई। विदेश मंत्री किसी देश का चेहरा होता है। शर्म तब भी महसूस  हुई जब उन्होंने बड़ी ही बेशर्मी से कहा कि ये कोई "बड़ी" बात नहीं है। याद कीजिये अटल बिहारी वाजपेयी ने जब संयुक्त राष्ट्र ने हिन्दी में भाषण पढ़ा। ये बात सुनकर और पढ़कर जितना गौरव महसूस हुआ उतनी शर्म आज महसूस हो रही है। ऐसे मंत्री हमारा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो किसी और का लिखा भाषण तो पढ़ते ही हैं ऊपर से भाषण देने से पहले एक बार उसकी "प्रूफ़ रीडिंग" भी नहीं करते। उन्हें यह पता ही नहीं होता कि वे क्या पढ़ रहे हैं। दु:खद शर्मनाक...
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Thursday, February 10, 2011

क्या आप जानते हैं? भारत की विलुप्तप्राय: प्रजातियाँ.....आइये, इनकी रक्षा करें India's Endangered Species.. Let us save them

आज दो सप्ताह बाद कोई पोस्ट ब्लॉग पर कर रहा हूँ। देरी से पोस्ट के लिये क्षमा चाहता हूँ पर क्या करें व्यस्तता चीज़ ही ऐसी है। आज का लेख राजनैतिक नहीं है, सामाजिक भी नहीं है वरन आज का लेख मेरे और आपके जीवन से जुड़ा हुआ है। पूरी जीवन संरचना जिस पर टिकी हुई है और भूगोलशास्त्री व जीव विज्ञानी जिस मुद्दे को सबसे अहम मानते हैं, उसी पर आधारित है आज का लेख। ज्यादा भूमिका न बाँधते हुए मुद्दे पर आते हैं।

क्या आप जानते है भारत में चीतों की कितनी संख्या है? 10, 20, 100 या 1000? जी नहीं...10 भी नहीं। बल्कि सरकारी विभाग की मानें तो भारत से चीता पूरी तरह विलुप्त हो चुका है। एक पेय पदार्थ की एड में जब "चीता भी पीता है" देखते हैं तब कभी यह ख्याल नहीं आया कि जिस चीते की ये बात कर रहे हैं वो भारत में है ही नहीं। एक भी नहीं!! ये रौंगटे खड़े कर देने वाली कड़वी सच्चाई है। आज हम चीते की बात जब उठा रहे हैं तब  उन जानवरों का भी जिक्र करेंगे जो अब चीते की राह पकड़ चुके हैं। चीते की रफ़्तार को पूरी दुनिया मानती है अब उसी रफ़्तार से इन जंगली पशु-पक्षियों का सफ़ाया भी हो रहा है।
चीता: केवल तस्वीरों में ही देखिये...

क्या आप जानते हैं भारत में  हमारे साथ कम से कम स्तनपायी(Mammals) जीवों की 397 प्रजातियाँ, पक्षियों की 1232, सरीसृपों (Reptiles) की 460, मछलियों की 2546 और कीट-पतंगों की 59, 353 प्रजातियाँ भी निवास करती हैं। भारत 18,664 तरह के पेड़-पौधों का घर भी है। भारत का कुल क्षेत्रफ़ल विश्व का 2.4 प्रतिशत ही है लेकिन जैव विविधता में भारत का योगदान 8 प्रतिशत है। 

किसी पारिस्थितिक प्रणाली (Ecological System) में पाई जाने वाली जैव विविधता से उसके स्वास्थ्य का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। जितनी स्वस्थ जैव विविधता (Bio-Dioversity) होगी उतना ही स्वस्थ इकोलोजिकल सिस्टम भी होगा। लेकिन चोरी छुपे शिकार और प्राकृतिक पर्यावास के छिनने से जानवरों के विलुप्त होना का खतरा पैदा हो गया है।

आज हम बात इन्हीं जीव-जन्तुओं की करेंगे जो अपना दर्द बोल कर नहीं समझा सकते।


पहला नम्बर है "Save Tiger" मिशन के बाघ का । भारत का राष्ट्रीय पशु सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक हैं। खाल और विभिन्न अंगों की भारी कीमत के चलते इनका शिकार किया जाता है। देश में अब केवल 1411  बाघ ही बचे हैं।


एशियाई शेर: गुजरात के गिर वन में अब करीब 411  शेर बचे है। पर्यावरण क्षरण, जल प्रदूषण और शिकार के लिये जानवरों की कमी के कारण यह प्रजाति संकट में है।






काली गर्दन वाला सारस (Black Necked Crane): यह जम्मू कश्मीर का राज्य पक्षी है। जैविक दबावों, झीलों और दलदली क्षेत्रों के सूखने और बढ़ते प्रदूषण के चलते, अब अत्यन्त दुर्लभ है।


पश्चिमी ट्रैगोपैन (Western Tragopan): हिमालय के निकटवर्ती स्थानों में पाये जाने वाली एक दुर्लभ तीतर प्रजाति। शिकार और पर्यावास क्षरण (Habitat Degradation) के कारण संकट में है।


गिद्ध: यह प्रमुख रूप से मृत-पशु माँस पर निर्भर है। पशुओं में बड़े  पैमाने पर डाइक्लोफ़ेनेक दवा के इस्तेमाल के कारण आज इनकी संख्या 97 से 99 प्रतिशत तक कम हो गई है।


हिम तेंदुआ (Snow Leopard): हिमालय की ऊँचाईयों मे पाईजाने वाली बिल्ली की अत्यन्त फ़ुर्तीली प्रजाति। चोरी छिपे इसके शिकार और शिकार के लिये जानवरों कीकमी के कारण इसकी संख्या में भारी कमी आई है।

लाल पांडा (Red Panda): वृक्षों पर रहने वाला पूर्वी हिमालय का स्तनपायी जीव। वनों का सफ़ाया होने से इसके पर्यावास में हुई कमी के कारण आबादी में जबर्दस्त कमी आई है।


सुनहरा लंगूर (Golden langoor): ब्रह्मपुत्र नदी के आसपास पाया जाता है। अब इनकी संख्या तेजी से घत रही है।






भारतीय हाथी (Indian Elephant): राष्ट्रीय विरासत पशु। हाथी दाँत के लिये चोरी छिपे शिकार और पर्यावास के नष्ट होने कारण संकटग्रस्त। जंगलों में केवल 26000  हाथी बचे हैं।




एक सींग वाला एशियाई गैंडा (Indian One-Horn Rhino): कभी गंगा के मैदानी इलाकों में बहुतायत में था, लेकिन सींग की वजह से इसके अत्याधिक शिकार और प्राकृतिक पर्यावास के चलते आज जंगलों में करीब  2100 गैंडे ही बचे हैं।




दलदली क्षेत्र का हिरण (Swamp Deer): यह हिरण मूल रूप से भारत और नेपाल में पाया जाता है; पर्यावास क्षरण और अन्य नृविज्ञानी (Anthropogenic Pressure)  दबावों के कारण इनकी संख्या घटी है।


ओलिव रिडले कछुआ (Olive Ridle Turtle): भारत के पूर्वी तट पर पाया जाने वाला सबसे छोटा कछुआ। केवल ओड़िशा तट पर भारी संख्या में अंडे देता है। प्रजनन स्थलों की संख्या में कमी, मछलियों के जालों मेम फ़ँस जाने और समुद्री जल के बढ़ते प्रदूषण के कारण इनकी आबादी को खतरा हो गया है।



ये केवल 12 हैं। ऐसे न जाने कितने ही और जीव जन्तु हैं जिनके बारे में हम सोचते नहीं हैं। जो आज विलुप्त होने की कगार पर हैं। बाघ हमारा ध्यान खींच सकता है क्योंकि वह एक राष्ट्रीय पशु है परन्तु बाकि ग्यारह भी उतने ही आवश्यक हैं। हमारा कर्त्तव्य है कि हम इन्हें बचा कर रखे। ये हमारी धरोहर हैं। इनके न होने के बारे में हम सोच भी नहीं सकते।

आइये एक  मिशन में सब साथ दें। Save Tiger ही नहीं "Save All Endangered Species" का लक्ष्य बनायें। आइये इस नेक काज को लोगों तक पहुँचायें। भारत के कोने कोने तक यह जागृति लाना ही एकमात्र लक्ष्य है। जीव रहेंगे तो हम जिंदा रहेंगे। जीव से ही सृष्टि टिकी है और उसी से हमारा जीवन।

नोट: चीता विलुप्त हो चुका है। आईये बाकियों को सहेजें।


स्रोत: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी 2011 का कैलेंडर।

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