Saturday, December 31, 2011

नव वर्ष २०१२ का आगमन - अलविदा २०११ New Year Poetry Welcome 2012 -- New Year Special

कुछ खड़े कर के सवाल
कुछ यादों को समेट
देते हुए थोड़े संदेश
जा रहा है बीता वर्ष

कहीं है आँसू,
कहीं है हर्ष

याद आयेंगे हमें
पटौदी के नवाब,
हज़ारिका लाजवाब
शम्मी कपूर "राजकुमार"
देव आनन्द सदाबहार...
ग़ज़ल जीत, 
जगजीत...
भीमसेन की मधुर तान
याद रखेगा हिन्दुस्तान

साल भर विश्व ने
देखी कईं क्रांतियाँ..
अमरीका में बजा
विरोध का बिगुल
मिस्र-लीबिया-पाकिस्तान
जनता ने ढहाये किले
खत्म हुए कईं हुक्मुरान...

एक क्रान्ति ऐसी ही
भारत में भी छाई है
अन्ना की आँधी ने
दिल में आस जगाई है..
उम्मीद की किरण धूमिल
है जरूर
पर जनचेतना हो ऐसी
कि टूटे नेताओं का गुरूर
भ्रष्टाचार और काले धन पर
अन्ना और रामदेव ने
नेताओं को है घेरा...
मंत्रियों ने ढँका हुआ है
मुखौटे से अपना चेहरा...


रोडरेज के किस्से भी
हो रहें आम हैं..
ऐसा लगता है मानों
झगड़ना ही हमारा काम है
गुस्से को क्यों हम लोग
चलते हैं नाक पर रख कर
"कर्त्तव्यों" पर ध्यान नहीं..
वो रहता है केवल "हक़" पर..

वर्तमान से सीख कल को बुनें
आओ समाज एक नया चुनें
जहाँ परोपकार की आशा हो
प्रेम की बोलें भाषा हो..
न द्वेष हो न ईर्ष्या
और न ही अहंकार
न बदले की भावना से
मचा हुआ हो हाहाकार...
रोजाना
एक शुभ काम करें,
किसी दुखी के चेहरे पर
खिलखिलाती मुस्कान भरें....
लोकपाल का बिल सदन में,
चाहें न पास हो...
एक लोकपाल का हर दिल में
होता फिर भी वास हो...

ये युग हमारा है,
ये समाज हमारा है
वो कल हमारा था
ये आज हमारा है...
समाज के उत्थान से ही
व्यक्ति का उत्थान है
हम बनाते आज है
हम बनाते समाज हैं

आओ फिर एक समाज बुनें
वर्तमान से सीख कल को बुनें
आओ समाज एक नया चुनें


आइये आप और मैं एक प्रण करें। किसी रोते हुए बच्चे को हँसायें.. किसी बुजुर्ग का सहारा बनें...तभी स्वस्थ समाज की स्थापना हो पायेगी और फिर किसी लोकपाल की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
बचपन में किताबों के आरम्भ में "गाँधी जी का जन्तर" आता था। हम कोई भी कार्य करें तो बस यही सोचें कि क्या किसी के चेहरे पर इससे मुस्कान आयेगी? क्या यह कार्य उस व्यक्ति के लिये लाभदायक होगा जो तुमने अब तक का सबसे दुखी चेहरा देखा हो?


********************************************************************
थोड़ा हँस लें...

कुछ घटनाओं पर यदि गाने बजाये जायें तो क्या होंगे..मसलन...

कांग्रेस-भाजपा के रिश्तों पर: 
--कल भी, आज भी, आज भी, कल भी.. कुछ रिश्तें नहीं हैं बदलते कभी...

सोनिया जी जैसे ही कांग्रेस की मीटिंग में आती हैं सभी खड़े हो जाते हैं : 
--"तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो.. तुम्हीं हो...."

साल 2011 और अन्ना:
--"बन्दे में था दम.. वन्देमातरम.."

आडवाणी जी "कुर्सी" के बारे में सोचते हुए:
--"तेरा पीछा न.. मैं छोड़ूँगा सोणिये..भेज दे चाहें...."

राहुल बाबा सुबह सुबह घर से निकलते हुए:
--"नन्हा मुन्ना राही हूँ.. देश का सिपाही हूँ..."

ममता दीदी को प्रणब दादा कैसे मनाते होंगे?:
--"कोई हसीना जब रूठ जाती है तो....और भी..."

जनता के थूकने, रोडरेज, भ्रष्टाचार, दुराचार आदि के आचरण पर.. यानि हम पर:
--"हम तो भई जैसे हैं, वैसे रहेंगे...."


नववर्ष 2012 आपके एवं आपके समस्त परिवार के लिये शुभकारी हो।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:


जय हिन्द
वन्देमातरम


आज से तीन वर्ष पूर्व मैंने यह लिखा था 
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Tuesday, December 27, 2011

वैदिक गणित की श्रृंखला, भाग-दो ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम का एक उदाहरण Learning Unconventional Methods - Vedic Mathematics Part -2

वैदिक गणित से बड़े अंकों का गुणा कितनी तेज़ी से हो जाता है यह हमने पिछले भाग में जाना। "वेद" का अर्थ होता है ज्ञान। हमारे चारों वेद ज्ञान के अथाह समन्दर हैं जिससे हम ज्ञान की असंख्य बूँदें निकाल सकते हैं। इस सागर में डुबकी लगा सकते हैं व जीवन-ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। इन्हीं वेदों में छिपा है वैदिक गणित भी। गणित की जटिलता को बड़ी सरलता से समाप्त करता है यह गणित। हमने जो उदाहरण पिछले भाग में जाना था वह "निखिलं नवतश्चरम दशत:" था।

मेरे मित्र अभिषेक ने जानना चाहा था कि क्या 73*77 को हम जल्दी से गुणा कर सकते हैं?
आइये पहले जानते हैं कि आज के अंग्रेज़ी माध्यम से हम किस तरह से Multiply करते हैं:

    7 3
   *7 7
--------
   51 1
5 11  *
-----------
5621

अब जानते हैं वैदिक गणित का हल:
7 3
7 7
--------------------------
(7*7 बायें के दोनों अंक का गुणा =  49)
(Top-left * Right Bottom) + (Top-Right*Bottom Left) = 7*7 + 7*3 = 70
अंतिम दोनों अंकों का गुणा = 3 * 7 = 21

4 9 0
   7 2 1
------------------------
5621

Algebra की दृष्टि से:

मान लीजिये ये दो संख्यायें हैं: ax+b, cx+d
यानि (ax+b) * (cx+d) = acx^2 + (ad + bc)x + bd

और अब x=10 मानिये और 73*77 का उत्तर निकालिये

इसे ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम कहते हैं।

निखिलं नवतश्चरमं दशत: सूत्र का एक उदाहरण और देते चलें:

मान लीजिये आपको 18 का square निकालना है:
(यहाँ "/" का अर्थ Divide से नहीं है)

18 * 18 = (18 + 8) / (8*8)  = 26/64 = (26+6)/4 = 324 (उत्तर)


इसी तरह:

या 12*12 = (12+2)/(2*2) = 14/4 = 144 (उत्तर)

ऊपर दिये गये उदाहरणों में 18 व 12 संख्यायें 10 से क्रमश: 8 व 2 अधिक हैं इसलिये उनमें 8, 2 जोड़े हैं।

इसी तरह नीचे दिये गये उदाहरणों में संख्यायें 100 से कम हैं।
या 92*92 = (92 - 8)/(8*8) = 84/64 = 8464
96*96 = (96-4)/(4*4) = 92/16 = 9216

989*989 = (989-11)/(11*11) = 978/121 = 978121 (उत्तर) 
कितना समय लगा??? पाँच सेकंड? या पाँच मिनट.. कैलकुलेटर से भी जल्दी है यह!!!!

988*988 = (988-12)/(12*12)= 976/144 = 976144

आने वाले अंकों में हम हर सूत्र को विस्तार में जानेंगे।

वैदिक गणित के सोलह सूत्र इस प्रकार हैं:

१. एकाधिकेन पूर्वेण Recurring Decimals
२. निखिलं नवतश्चरमं दशत: (Multiplication/Division)
३. ऊर्ध्वतिर्यग्भ्यां (Multiplication/Division of Quadratic Numbers)
४. परावर्त्य योजयेत (Division, Partial Fractions)
५. शून्यं साम्यसमुच्चये (Simple Equation, Cubic Equations, Quadratic Equations Find x types)
६. (आनुरूप्ये) शून्यमन्यत (Factorization)
७. संकलनव्यवकलनाभ्यां (Factorization/H.C.F)
८. पूरणापूरणाभ्यां Biquadratic equations, Multiple Simultaneous equations (Three equations, three variables)
९. चलनकलनाभ्यां
१०. यावदूनम (Squaring, Cubing etc)
११. व्यष्टिसमष्टि
१२. शेषाण्यंकेन
१३. सोपान्त्यद्वयमन्तयं
१४. एकन्यूनेन पूर्वेण
१५. गुणितसमुच्चय:
१६. गुणकस्मुच्चय: (Factorization and Differential Calculus)

ऊपर दिये गये सूत्रों की मदद से हम Multiplication, Division, Partial Fractions, Square, Cube, Quadratic Equations, Simple equations, Cubic equations, factorization, H.C.F, Differential Calculus, Square root, Cube roots, Pythagoras Theorem, Analytical Conics व Apollonius' Theorem जैसे जटिल Topics से गुजरेंगे।

आशा है आपको यह प्रयास पसंद आयेगा। चूँकि मैं भी नया ही सीख रहा हूँ तो चूक होने पर क्षमा कीजियेगा। सहयोग मिलता रहा है तो हम मिलकर इस प्राचीन गणित को फिर से जीवित कर सकेंगे। आप भी बच्चों को ये "तेज़" गणित सिखायें।

भाग एक : वैदिक गणित की एक नई श्रूंख्ला - भाग एक Vedic Mathematics Series - Learn Un-Conventional ways of Multiplication Division

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Sunday, December 25, 2011

अटल बिहारी वाजपेयी जी की पाँच बेहतरीन कवितायें...आओ मन की गाँठें खोलें....Atal Bihari Vajpayee Birthday

पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज जन्मदिन है। आज उनकी कवितायें पढ़ने का मन किया...।
उनकी कविताओं में उनका अनुभव झलकता है। राजनीति से कभी बेचैन दिखाई पड़ते हैं तो कभी आज के हालात पर दुखी। जीवन और मृत्यु का संघर्ष दिखाई देता है तो मौत से ठन जाने की बातें करते हैं। अदम्य साहस... ऊँचाई एकाकी होती है....

"आओ मन की गाँठें खोलें" से वे प्रेम से रहने और मन मुटाव दूर करने की सीख दे जाते हैं..शायद इसीलिये वे राजनीति में भी अपने प्रतिद्वंदियों के चहेते बने रहे...

1. आओ फिर से दिया जलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ


2. ऊँचाई

 ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,

पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।

जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,


किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।

जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।

ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।

भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।

धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,

किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।


न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।


मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।


3. कौरव कौन, कौन पांडव


कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|



4. मौत से ठन गई।

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।


मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

5. आओ मन की गाँठें खोलें.

यमुना तट, टीले रेतीले, घास फूस का घर डंडे पर,
गोबर से लीपे आँगन में, तुलसी का बिरवा, घंटी स्वर.
माँ के मुँह से रामायण के दोहे चौपाई रस घोलें,
आओ मन की गाँठें खोलें.
बाबा की बैठक में बिछी चटाई बाहर रखे खड़ाऊँ,
मिलने वालों के मन में असमंजस, जाऊं या ना जाऊं,
माथे तिलक, आंख पर ऐनक, पोथी खुली स्वंय से बोलें,
 
आओ मन की गाँठें खोलें.
सरस्वती की देख साधना, लक्ष्मी ने संबंध ना जोड़ा,
मिट्टी ने माथे के चंदन बनने का संकल्प ना तोड़ा,
नये वर्ष की अगवानी में, टुक रुक लें, कुछ ताजा हो लें,
आओ मन की गाँठें खोलें.

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Friday, December 23, 2011

बेल्लारी जिले के हम्पी में स्थित हैं विजयनगर साम्राज्य के प्राचीनतम मंदिर Hampi Temples & Monuments, Bellary District, Karnataka - Incredible Bharat

आज अतुल्य भारत में सैर करेंगे राजनैतिक दृष्टि से सबसे "संवेदनशील" माने जाने वाले भाजपा शासित राज्य की। घबराइये नहीं लेख में कोई राजनीति नहीं है। बहुत साफ़-सुथरा लेख है। पर बात यहाँ होगी अवैध खनन के मामले में भाजपा के गले की हड्डी बने बेल्लारी जिले की। बेल्लारी जहाँ भाजपा ने रेड्डी बँधुओं से नाता तोड़ा और उपचुनाव हारा, वो भी जमानत जब्त करवा कर!!

बात होगी विजयनगर की। बात है हम्पी की।

उत्तरी कर्नाटक के बेल्लारी जिले में स्थित एक गाँव है जिसका नाम है हम्पी। विजयनगर साम्राज्य के अवशेषों के बीच में स्थित है हम्पी। विजयनगर साम्राज्य के समय से ही यह इलाका धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यहाँ पर है विरुपक्ष मंदिर और कईं स्मारक। हम्पी के इसी मंदिर और अवशेषों के लिये यूनेस्को ने इसे अपनी पुरातत्व विरासत में शामिल किया है। जुलाई 2011 में जिला प्रशासन ने इस गाँव व मुख्य सड़क को तुड़वा दिया है।

हम्पी का नाम पड़ा है तंगभद्रा नदी के नाम पर। दरअसल तंगभद्रा का प्राचीन नाम था पम्पा। और पम्पा से कन्नड़ में आया हम्पे और फिर बना हम्पी। कईं वर्षों तक इसे विरुपक्षपुरा के नाम से भी जाना जाता रहा है।

रामायण में हम्पी का जिक्र किष्किंधा के तौर पर होता है। जहाँ वानर राज बालि व सुग्रीव का राज्य माना गया। विजयनगर के महत्त्वपूर्ण इलाके के लिये हम्पी जाना जाता है। यह साम्राज्य 1336 से 1565 तक अस्तित्व में रहा। यह दक्षिण भारत का अंतिम हिन्दू साम्राज्य था। तालिकोट के युद्ध में बीजापुर, गोलकोंडा व अहमदनगर के मुस्लिम राज्यों ने विजयनगर को हराया।

हम्पी अपने वास्तुकला के लिये जाना जाता है। इस पूरे क्षेत्र में बड़े बड़े पत्थर हैं जिनसे हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। भारत के पुरातत्व विभाग को इस क्षेत्र से मंदिर व प्राचीन अवशेष मिले हैं।

बैंग्लोर से 353 किमी दूर तंगभद्रा नदी के किनारे बसा है हम्पी गाँव। यहाँ पर लोगों की खेती व विरुपक्ष मंदिर से आय होती है। कर्नाटक सरकार प्रति वर्ष नवम्बर माह विजयनगर उत्सव मनाती है। चूँकि इस क्षेत्र में भारी तादाद में खनिज पदार्थ पाये जाते हैं इसलिये कईं वर्षों से यहाँ खनन चल रहा है। और "बेल्लारी बँधु" आंध्र व कर्नाटक सरकारों से मिलीभगत कर "अवैध खनन" कर रहे हैं। विश्व की विरासत में से एक हम्पी और तंगभद्रा नदी पर बना बाँध दोनों ही सरकारी उपेक्षा झेल रहा है।

हम्पी में हिन्दू मंदिर बहुत हैं। विरुपक्ष मंदिर, हज़ारा राम मंदिर, कृष्णा मंदिर व विट्ठल मंदिर इनमें प्रमुख हैं।

न जाने क्यों कब तक हम्पी जैसे अनेकानेक किले, मंदिर व अन्य धरोहरें सरकारी उपेक्षा की भेंट चढ़ जायेंगे। रही सही कसर हम पूरी कर देते हैं। कभी किलों में थूक कर तो कभी चट्टानों पर "आई लव यू" की घोषणा कर।

हम्पी के चित्र:


विरूपक्ष मंदिर

360 डिग्री तक फ़ैला हम्पी का विहंगम दृश्य

विट्ठल मंदिर

हम्पी के मंदिर


भारत में अनेक पर्यटन स्थल हैं, इस श्रृंख्ला का एकमात्र मक़सद उन स्थलों को सभी तक पहुँचाना ताकि पर्यटकों व सरकार तक इन स्थलॊं की पीड़ा पहुँचाई जा सके व पर्यटन भारतीय अर्थव्यवस्था का एक मज़बूत स्तम्भ बन सके।


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स्रोत : विकीपीडिया

जय हिन्द
वन्देमातरम
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरीयसी
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Tuesday, December 20, 2011

कर्म करो तुम ज्ञान से, श्रेष्ठ ज्ञान है धर्म । कर्म योग ही धर्म है, धर्मयोग ही कर्म ॥ - रूस द्वारा भग्वद्गीता पर पाबन्दी Russia Bans Bhagvad Geeta Text

रूस में गीता पर कोहराम मचा हुआ है। कुछ लोगों का कहना है कि इसमें उग्रवाद को बढ़ावा दिया गया है। भाई को भाई से लड़वाया गया है। लड़ाई की शिक्षा दी गई है।

मेरा मत:
श्रीकृष्ण ने गीता का पाठ उस अर्जुन को दिया जो युद्ध क्षेत्र में अपने हथियार डाल देता है। यदि हमारे सैनिक पाकिस्तान व चीन के सामने युद्ध के मैदान में हाथ खड़े कर दें..तो? वे गोली चलाने से घबराने लगे तो?
यह शिक्षा उस अर्जुन को दी गई जो अपने कर्त्तव्य से दूर भाग रहा था। उस अर्जुन को जिसमें संदेह ही संदेह भरा हुआ था। जिसे अपने कर्म का ध्यान नहीं था..जिसे अपने धर्म का ज्ञान नहीं.. जो कर्मयोग से भटक गया था। 

कृष्ण कहते हैं:

कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फ़लेषु कदाचन.. अर्थात कर्म करो फल की इच्छा न करो...

वे कहते हैं कि यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि: भवति भारत.. जब जब धर्म की हानि होती है तब तब वे जन्म लेते हैं।

कृष्ण आत्मा व परमात्मा का ज्ञान देते हैं। वे मुक्ति की बात करते हैं। वे कर्म करने की बात करते हैं। वे धर्म का पालन करने की बात करते हैं। परमात्मा आदि से अनादि तक है। शरीर नश्वर है। जीवन व मृत्यु तो बस आत्मा के लिये एक पड़ाव है। वे कहते हैं कि कर्म का त्याग न करो अपितु त्याग भाव से कर्म करो। वे निराकार परमात्मा को समझाने की कोशिश करते हैं। वे कहते हैं कि "वे" अजन्मा हैं.. वे आदिकाल में भी थे आज भी हैं और हमेशा रहेंगे... वे आत्मा के काल-चक्र को समझाते हैं। वो आत्मा जो शरीर को केवल वस्त्र की तरह पहनता है। आत्मा को कर्म करने के लिये शरीर धारण करना होता है चाहें मनुष्य का हो अथवा पशु का। आत्मा अपने पिछले कर्म व इच्छाओं के कारण ही शरीर का त्याग करता है या नया शरीर धारण करता है। कर्मानुसार ही फल की प्राप्ति होती है।


वे कहते हैं कि तीन तरह के कर्म होते हैं: कर्म, अकर्म व विकर्म। कर्म तो कर्म है ही, विकर्म होता है वह कर्म जो किसी इच्छा के लिये किया जाये और अकर्म होता है वह कर्म जिसे करने के पश्चात आप उसके फल की इच्छा नहीं करते अपितु परमात्मा जो भी देता है उसे मान लेते हैं। अकर्म ही श्रेष्ठ है। कोई भी कार्य अथवा कर्म करते हुए कब "मैं" का भाव आ जाये तो उस कर्म का लाभ ही क्या? कोई भी कार्य करें तो परमात्मा के लिये ही हो।

और भी गूढ़ बातें इसमें कहीं गई हैं जो मुझ जैसे मूढ़ को कम ही समझ आती है। लेकिन इतना समझ आता है कि जीवन जीने की सीख देती है यह पुस्तक। इस पुस्तक को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित किया जाये अथवा नहीं इसमें मैं कुछ नहीं कहना चाहता। करें तो अच्छा न करें तो भी अच्छा। यदि हम इस पुस्तक को पढ़ लें व इसकी बारीकियों को व शिक्षाओं को अपने जीवन शैली में उतार लें तो शायद धरती स्वर्ग बन जाये या यूँ कहें कि लोकपाल की आवश्यकता ही न पड़े जिसके कारण आज राजनीति में हड़क्म्प मचा हुआ है। इस पुस्तक पर पाबन्दी लगायें या न लगायें लेकिन इस पुस्तक की आवाज़ व सत्यता को कोई समाप्त नहीं कर सकता। गीता का ज्ञान केवल द्वापर युग तक ही सीमित नहीं है वो उससे पहले भी था आज भी है और प्रकृति के अंत तक रहेगा।

मुझे रूस के लोगों से कोई शिकायत नहीं क्योंकि शायद वे इस ब्रह्म सत्य को समझ ही नहीं पा रहे हैं। पश्चिम से लोग आत्मिक व आध्यात्मिक ज्ञान हेतु भारत आते हैं तो उसका कारण भारत की आधात्मिकता की जड़ें भग्वद्गीता में होना ही है। मुझे उनपर क्रोध नहीं आ रहा है, वे बैन करना चाहें तो कर सकते हैं।

पूरी गीता में कहीं भी "हिन्दू" धर्म की बात नहीं कही गई है। क्योंकि तब कोई मजहब था ही नहीं। "हिन्दू" शब्द ही नहीं था। केवल मानवता थी, कर्म था, धर्म था। उसमें जिस धर्म की बात कही गई है उसे हम मजहब या रिलीजन से न तोले। धर्म का शाब्दिक अर्थ किसी भी भाषा में मिलना कठिन है। यहाँ धर्म का आशय पिता का धर्म, पुत्री का धर्म, पत्नी का, माँ का, सेवक का धर्म, राजा का धर्म आदि धर्मों से है।

अर्जुन युद्ध क्षेत्र के मध्य में क्षत्रिय धर्म से भटक जाता है। उसे दुशासन या दुर्योधन का अधर्म दिखाई नहीं देता। वो मोहवश अपना गांडीव छोड़ देता है और तब श्रीकृष्ण उससे कहते हैं:


कर्म करो तुम ज्ञान से, श्रेष्ठ ज्ञान है धर्म ।
कर्म योग ही धर्म है, धर्मयोग ही कर्म ॥

जय हिन्द
वन्देमातरम

नोट: जल्दबाजी में लिखा गया लेख है, त्रुटि सम्भव है।
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Sunday, December 18, 2011

क्या आप जानते हैं में इस बार कुछ रोचक जानकारियाँ Interesting Facts - Did You Know?

क्या आप जानते हैं की श्रृंख्ला में आज हैं कुछ रो़चक तथ्य:

  • ऑस्ट्रेलिया ही एकमात्र महाद्वीप है जिसमें एक भी सक्रिय ज्वालामुखी नहीं है।
  • मनुष्य के पैर में छब्बीस हड्डियाँ हैं।
  • जितनी ऑक्सीजन हम साँस के द्वारा लेते हैं उसका 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा हमारा दिमाग इस्तेमाल करता है।
  • हमारी धरती पर एक मिनट में छह हजार बार बिजली गिरती है।
  • जब 1878 में पहली बार फ़ोन डायरेक्ट्री बनी थी तब उसमें केवल पचास नाम थे। एक शोध के मुताबिक हमारे देश में नलों से ज्यादा मोबाईल हैं। मतलब यह कि जिस देश में आधी से ज्यादा आबादी के पास पीने को शुद्ध पानी नहीं उसमें आप मुफ़्त बात अवश्य कर सकते हैं।
  • आर्कटिक महासागर विश्व का सबसे छोटा महासागर है।
  • अंग्रेज़ी भाषा का सबसे पुराना शब्द है "Town"।
  • 111,111,111 x 111,111,111 = 12,345,678,987,654,321
  • अफ़्रीकी हाथी के मुँह में केवल चार दाँत होते हैं।
  • गिरगिट की जीभ उसके शरीर से दो गुनी लम्बी होती है।
  • व्हेल मछली उलटी दिशा में नहीं तैर सकती।
  • हाथी अपनी सूँड में पाँच लीटर तक पानी रख सकता है।
  • टिड्डे का खून सफ़ेद रंग का होता है।
  • न्यूटन की उम्र तेईस वर्ष की थी जब उन्होंने  पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल की खोज करी थी।

  • मगरमच्छ को रंगों की पहचान में कठिनाई होती है।
  • हैरानी की बात यह है कि मगरमच्छ अपनी जीभ नहीं हिला सकता है।
क्या आप जानते हैं के अन्य लेख

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Tuesday, December 13, 2011

वैदिक गणित की एक नई श्रूंख्ला - भाग एक Vedic Mathematics Series - Learn Un-Conventional ways of Multiplication Division

भारत का इतिहास व इसकी सभ्यता सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। कोई वस्तु जितनी पुरानी होती जाती है उतने ही उसके टूटने व खराब होने के आसार बढ़ते जाते हैं। परन्तु आज भी भारत यदि अपने स्वाभिमान के साथ टिका हुआ है तो उसका कारण इस देश का इतिहास ही है। जब हम देखते हैं पश्चिम के लोग आध्यात्मिकता के लिये भारत का रूख करते हैं तो गर्व का अनुभव होता है। आध्यात्मिकता ही आज एकमात्र रास्ता है पृथ्वी व विश्व के टिके रहने का। हिन्दू धर्म में आध्यात्मिकता की जो बातें हैं व सीख है उससे पूरा विश्व आकर्षित होता है। भारतीय इतिहास ने राम व कृष्ण को देखा है जो मर्यादा में भी रहते हैं और आदि व अनन्त का रहस्य भी बताते हैं। हमने चरक व सुश्रुत को भी देखा है जिन्होंने शल्य चिकित्सा यानि चीरफ़ाड़ के ऑप्रेशन में महारत हासिल की। आज की भाषा में बात करूँ तो वे उस समय के बहुत बड़े सर्जन थे। हजारों वर्ष पूर्व के सर्जन!! हमने वीर शिवाजी को देखा है, हमने लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगना को भी देखा जो महज तेईस बरस में अंग्रेजों को दाँतों तले उंगलियाँ दबाने पर मजबूर किया। हमने भगत सिंह को देखा, हमने मोहनदास करमचंद गाँधी को भी देखा, हमने स्वामी दयानन्द व राजा राम मोहन राय को देखा जिन्होंने हिन्दू धर्म की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। ऐसा ही शायद ही किसी धर्म में होता हो जब वे स्वयं अपनी गलतियों से सीखें व उसे सुधारने का प्रयास करें। ऐसे साधुओं को मेरा प्रणाम। हमने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। मुगलों, तुगलकों, लोदियों व अंग्रेज़ों का डटकर सामना किया।

हमारे देश में गर्व करने के लिये व सीखने के लिये इतना सब कुछ है फिर भी जब हम पश्चिम का मुँह ताकते हैं तो हैरानी होती है। दरअसल बात यह है कि हम अपना इतिहास भूल चुके हैं। या यूँ कहें कि इतिहास जानते ही नहीं। बराक ओबामा जब कहते हैं आज का विज्ञान भारत के इतिहास में दिये गये वैज्ञानिक उपलब्धियों पर टिका हुआ है तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है। हमने शून्य दिया इस पर हमें गर्व होना चाहिये। जब हमने चिकिसा प्रणाली दी तब गर्व होना चाहिये। जब हमने Trigonometry का सिद्धांत दिया तब गर्व होना चाहिये। मैंने जब नारद पुराण के कुछ पन्ने पलटे तो मैं दंग रह गया कि उसमें ज्योतिष सिखाया गया है और उसमें Trigonometry की Pythagoras Theorem भी है और Heights & Distances के उदाहरण भी। हमें अपने वेदों व उपनिषदों पर गर्व होना चाहिये जिन्होंने आज के विज्ञान की नींव रखी। हमें अपने पूर्वजों पर गर्व होना चाहिये। हमें गीता पर गर्व होना चाहिये जो आज के आध्यात्मिकता की नींव है।

आज से धूप छाँव पर वैदिक गणित का आरम्भ कर रहा हूँ। मैंने अभी हाल ही में इसे पढ़ना शुरू किया और मैं शुरू के कुछ पन्ने पढ़ कर ही हैरान हो गया हूँ। मैं चाहता हूँ कि इस बेहतरीन तकनीक को सभी के साथ बाँटा जाये और सरकार से बार बार अनुरोध करूँगा कि छोटे बच्चों को इसकी शिक्षा दी जाये। ये विदेशी तकनीकों से बिल्कुल अलग है और बेहद सरल है। इसके किसी भी Calculation के लिये आपको केवल पाँच तक का ही पहाड़ा (Table) आने की जरूरत है।

वैदिक गणित सोलह सूत्रों से बना है।

आज एक उदाहरण से इस श्रृंख्ला का प्रारम्भ कर रहा हूँ।

मान लीजिये आपको 8 x 7 निकालना है।
आप कहेंगे कि इसका जवाब 56 है। बिल्कुल सही। लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा कि केवल 5 तक का ही Table आने की आवश्यकता है।

8 और 10 में 2 का अंतर है व 7 और 10 में 3 का अंतर है। इन्हें कुछ इस तरह से लिखें:

8   -  2
7   -  3

अब 8 में से 3 को (8-3 = 5)या फिर 7 में से 2 (7 - 2 = 5) को घटायें।
और 2 * 3 निकालें...(2*3=6)  और कुछ इस तरह से लिखें:

8 2
7 3
(8-3)     (2*3)
5 6

जवाब आपके सामने है: 56

इसी तरह से
7 x 6 = 42

7 3
6 4
(6-3)         (3*4)
3 12 (अब इसमें से 1 को 3 में जोड़ें)

उत्तर : 42


इसे आप 100 के Base तक ले जा सकते हैं.. मसलन
99 * 88

99 1
88 12

(88-1) (1*12)
87 12

= 8712

इस प्रश्न का उत्तर निकालने के लिये आपको ज्यादा से ज्यादा 5 सेकंड लगेंगे... वहीं यदि आप किताबी तरीके से इसका उत्तर निकालने का प्रयास करें तो??? शर्त लगा सकता हूँ तीन से चार गुना अधिक समय लगेगा..
जो आपने ऊपर सूत्र जाना है वह है निखिलं नवतश्चरम दशत: । जगद्गुरू स्वामी श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज (1884-1960) का धन्यवाद जिन्होंने वैदिक गणित को सोलह सूत्रों में पिरो कर हम तक पहुँचाया है।

यह तो अभी शुरूआत है। जैसे जैसे मैं आगे के पन्ने पढूँगा मैं आपके साथ बाँटता रहूँगा।

जय हिन्द
वन्देमातरम
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरीयसी।
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Saturday, December 10, 2011

हमसफ़र मेरे हमसफ़र...आज भूले बिसरे गीत का है खास अंक Evergreen Songs From Films Purnima, Humraaz, Yakeen & Mere Humsafar

आज दस दिसम्बर है.. आज से दो वर्ष पूर्व  जीवन में एक खास पड़ाव आया था... इसलिये इस दिन का मेरे लिये खास महत्त्व है..
आज के भूले बिसरे गीत के अंक में शामिल हैं मेरी पसंद के खास गीत..

ये गीत पुराने होते हुए भी नये से क्यों लगते हैं? ये गाने श्वेत श्याम युग के हैं... ये गाने दादा के जमाने हैं.. ये गीत सदाबहार हैं...

हमसफ़र मेरे हमसफ़र पंख तुम परवाज़ हम
ज़िन्दगी का गीत हो तुम, गीत की आवाज़ हम
फ़िल्म : पूर्णिमा, कल्याणजी आनंद जी




तुम  अगर  साथ  देने  का  वादा  करो (फ़िल्म : हमराज़)

तुम  अगर  साथ  देने  का  वादा  करो
मैं  यूँ ही  मस्त  नगमे  लुटता  रहूँ
तुम  मुझे  देख  कर  मुस्कुराती  रहो
मैं तुम्हे  देख  कर  गीत  गाता  रहूँ

कितने  जलवे  फिजाओं  में  बिखरे  मगर
मैंने  अब  तक  किसी  को  पुकारा  नहीं
तुमको  देखा  तो  नज़रें  यह  कहने  लगीं
हमको  चेहरे  से  हटना  गवारा  नहीं
तुम  अगर  मेरी  नज़रों  के  आगे  रहो ,
मैं हर  एक  शय  से  नज़रें  चुराता  रहूँ

तुम  अगर  साथ  देने  का  वादा  करो

मैंने  ख्वाबों  में  बरसों  तराशा  जिसे
तुम  वही  संग-ए -मर्मर  की  तस्वीर  हो
तुम  न  समझो  तुम्हारा  मुक़द्दर  हूँ  मैं
मैं  समझता  हूँ  तुम  मेरी  तकदीर  हो
तुम  अगर  मुझको  अपना  समझने  लगो
मैं बहारों  की  महफ़िल  सजाता  रहूँ ,
तुम  अगर  साथ  देने  का  वादा  करो


गर तुम भुला न दोगे (फ़िल्म: यकीन 1969)








गर  तुम  भुला  न  दोगे
सपने  यह  सच  ही  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे 
गर  तुम  भुला  न  दोगे
सपने  यह  सच  ही  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे 

मालिक  ने  अपने  हाथों 
जिस  दम  हमे  बनाया
डाली  दिलों  में  धड़कन
और  दिल  से  दिल  मिलाया
फिर  प्यार  का  फ़रिश्ता
दुनिया  में  लेके  आया 

गर  तुम  भुला  न  दोगे
सपने  यह  सच  ही  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे 

जीवन  के  हर  सफ़र  में
हम  साथ  ही  रहेंगे 
दुनिया  के  हर  डगर  पर
हम  साथ  ही  चलेंगे
हम  साथ  ही  जियेंगे
हम  साथ  ही  मरेंगे 
गर  तुम  भुला  न  दोगे
सपने  यह  सच  ही  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे 

किसी राह में किसी मोड़ पर
यूँ ही चल न देना तू छोड़ कर... मेरे हमसफ़र



और भी गीत शामिल हो सकते थे पर सभी को एक अंक में शामिल करना मुमकिन नहीं था...

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Tuesday, December 6, 2011

अहम ब्रह्मास्मि ! Aham Brahmasmi

आत्मा
परमात्मा
आदि अनन्त
साधु व संत
सप्तरंगी छँटा
वादियों में घटा
खग विहग
वर्षा सावन
वन उपवन
पवित्र पावन

मरूभूमि की रेत
सरसों के खेत
खेत में फ़सल
वायु व जल
गीत संगीत
पूनम का चाँद
अमावस की रात

सुख दुख
आज कल
काल चक्र
अच्छा बुरा
अच्छा क्या?
बुरा क्या ?

तेरा मेरा
अपना पराया
तुझमें समाया
खुशी गम
माया व भ्रम...

धूप छाँव
राह  मंज़िल
समंद्र व साहिल
मस्जिद मंदिर
पंडित काज़ी
एक ही जहाज
एक ही माझी

कंस रावण
दुर्योधन दुशासन
कृष्ण या राम
एक ही नाम
ॐकार निराकार

पुरुष प्रकृति
साकार आकृति

रे सर्वज्ञ !
रे सर्वेश्वर !
अर्धनारीश्वर..
क्यूँ है मौन
मैं हूँ कौन ?
मृत्यु जीवन
सत्य अटल
एक सत्य
सत्य असत्य
अग्नि नभ
तुझमें सब
अंतरिक्ष नक्षत्र
ब्रह्म सर्वत्र
तुझमें संसार
मुझमें संसार
तू मैं
मैं तू

अहम ब्रह्मास्मि !

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Thursday, December 1, 2011

किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है Film Anari 1959, Singer Mukesh

राजकपूर की फ़िल्म अनाड़ी आई थी 1959 में। आज भूले बिसरे गीत में शामिल हैं इसी फ़िल्म के गीत। राजकपूर के अधिकतर गाने मुकेश ने गाये हैं और उनकी आवाज़ के कहने ही क्या...

किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार 


इस गाने को यूट्यूब पर सर्च करने पर आपको सैकड़ों ऐसे गाने भी मिल जायेंगे जो किसी न किसी सम्गीत प्रेमी ने राज कपूर व मुकेश की याद में स्वयं गाये हैं... उन्हें श्रद्धांजलि दी है..यही इसके बोल, आवाज़ का कमाल है...
ब्लॉगर में कोई "बग" है जिसके कारण इस गाने को सर्च करने पर भी "असली" गाना नहीं दिखा रहा है अत:  लिंक पर आपको स्वयं जाना होगा..


असली गाना इस लिंक पर 
http://www.youtube.com/watch?v=tKpfIAXnPr0


किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार 
किसी  का  दर्द  मिल  सके  तो  ले  उधार
किसी  के  वास्ते  हो  तेरे  दिल  में  प्यार
जीना  इसी  का  नाम  है

किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार
किसी  का  दर्द  मिल  सके  तो  ले  उधार
किसी  के  वास्ते  हो  तेरे  दिल  में  प्यार
जीना  इसी  का  नाम  है

माना  अपनी  जेब  से  फ़कीर  हैं
फिर  भी  यारों  दिल  के  हम  अमीर  हैं
माना  अपनी  जेब  से   फ़कीर  हैं
फिर  भी  यारों  दिल  के  हम  अमीर  हैं

मिटे  जो  प्यार  के  लिए  वो  ज़िन्दगी 
चले  बहार  के  लिए  वो  ज़िन्दगी
किसी  को  हो  न  हो  हमें  तो  ऐतबार
जीना  इसी  का  नाम  है

किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार
किसी  का  दर्द  मिल  सके  तो  ले  उधार
किसी  के  वास्ते  हो  तेरे  दिल  में  प्यार
जीना  इसी  का  नाम  है

रिश्ता  दिल  से  दिल  के  ऐतबार  का 
जिंदा  है  हमी  से  नाम  प्यार  का 
रिश्ता  दिल  से  दिल  के  ऐतबार  का 
जिंदा  है  हमी  से  नाम  प्यार  का 


कि मरके  भी  किसी  को  याद  आयेंगे 
किसी  के  आंसुओ  में  मुस्कुरायेंगे 
कहेगा  फूल  हर  कली  से  बार  बार 
जीना  इसी  का  नाम  है 

किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार
किसी  का  दर्द  मिल  सके  तो  ले  उधार
किसी  के  वास्ते  हो  तेरे  दिल  में  प्यार
जीना  इसी  का  नाम  है


सब  कुछ  सीखा  हमने , न  सीखी  होशियारी 

सब  कुछ  सीखा  हमने , न  सीखी  होशियारी
सच  है  दुनियावालों , की  हम  हैं  अनाड़ी

दुनिया  ने  कितना  समझाया
कौन  है  अपना , कौन  पराया
फिर  भी  दिल  की  चोट  छुपा  कर
हमने  आपका  दिल  बहलाया
खुद  पे  मर  मिटने  की , ये  जिद  थी  हमारी  (2)
सच  है  दुनियावालों  की  हम  हैं  अनाड़ी

असली  नकली  चेहरे  देखे
दिल  पे  सौ  सौ  पहरे  देखे
मेरे  दुखते  दिल  से  पूछो
क्या  क्या  ख्वाब  सुन्हेरे  देखे
टूटा  जिस  तारे  पे  नज़र  थी  हमारी  (2)
सच  है  दुनियावालों  की  हम  हैं  अनाड़ी

दिल  का  चमन  उजड़ते  देखा
प्यार  का  रंग उतरते देखा
हमने  हर  जीने वाले  को
धन दौलत  पे  मरते देखा
दिल  पे  मरने वाले मरेंगे भिखारी  (2)
सच  है  दुनियावालों  की  हम  हैं  अनाड़ी

भूले बिसरे गीत के अन्य गीत

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Monday, November 28, 2011

चर्चा में: शरद पवार, कोलावरी डी और विदेशी पूँजी निवेश Sharad Pawar, Kolaveri Di, Foreign Direct Investment

पिछले सप्ताह हमारे देश में तीन महत्त्वपूर्ण घटनायें हुईं। पहली शरद पवार को हरविंदर सिंह द्वारा मारा गया थप्पड़, दूसरा कोलावेरी डी का तमिल गीत और तीसरा विदेशी पूँजी का भारत में बढ़ता निवेश।

बात शरद पवार की। महाराष्ट्र में उनके चीनी के कारखाने हों या रियल एस्टेट का कारोबार। वे विश्व के सबसे रईस बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। और देश के कृषि मंत्री भी। हमारा देश शुरू से ही कृषि प्रधान देश रहा है। इस लिहाज से यह मंत्री पद महत्त्वपूर्ण पदों में से एक है। पिछले दस वर्षों में लाखों किसानों ने या तो आत्महत्या की है या फिर खेती छोड़ी है। यह देश के लिये बेहद खतरनाक संदेश है। उस पर उनका आईसीसी के कार्यों में भी घुसे रहने का मतलब है पूरी तरह से कृषि मंत्रालय पर ध्यान न देना। उसपर किसान की जमीन पर भू माफ़ियाओं व बिल्डरों का कब्जा होना। उन्हीं के ही राज्य के विदर्भ क्षेत्र में किसानों का आत्महत्या करना। कितने ही विवाद हैं और कितनी ही समस्यायें। इन सब के लिये कोई नीति ही नहीं है। बहरहाल उन पर थप्पड़ मारने की घटना को हँसी में लेने की बजाय गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। इस थप्पड़ का मतलब देश के लोगों का सरकार के ऊपर से विश्वास का उठना है। यह थप्पड़ उस लोकतंत्र पर भी है जहाँ जिन नेताओं को हम चुन कर संसद भेजते हैं उन्हीं पर भरोसा नहीं कर पाते। यह सरकार की विफ़लता झलकाता है। नेताओं व सरकार पर से भरोसा उठना बेहद चिन्ताजनक व दुखद है। यह घटना दुखद है। पर क्या सरकार पर अथवा नेताओं पर इन सबका असर पड़ेगा? यह कहना कठिन है। क्या नेता व मंत्री व अफ़सर अपनी ज़िम्मेदारी समझ पायेंगे? सवाल बहुत है पर निकट भविष्य में इनके जवाब मिलने कठिन हैं।

आगे चलें तो सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए खुदरा बाज़ार में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी है। मैं कोई वित्त विशेषज्ञ नहीं  हूँ लेकिन यदि मैं दो सदी पीछे जाऊँ तो पाता हूँ कि गलती हमने ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में आ जाने की भी की थी। गाँधी जी ने स्वदेशी अपनाने का आंदोलन भी किया था। आज वही कांग्रेस विदेशियों को अपने देश में आने का निमंत्रण दे रही है। ग्लोबलाइज़ेशन के इस दौर में यह गलत नहीं है। 49 प्रतिशत तक ठीक है क्योंकि विदेशी कम्पनी का कब्जा नहीं हो पायेगा किन्तु पचास फ़ीसदी से अधिक निवेश का आशय स्पष्ट है कि देश में विदेशियों का कब्जा होगा। सरकार की दलील है कि किसान को पूरा पैसा मिलेगा और महँगाई पर रोक लगेगी। इससे छोटे कारोबारियों को नुकसान भी नहीं होगा। हमारे देश में टाटा, रिलायंस, बिड़ला, प्रेमजी व न जाने कितने ही बड़े नाम व कॉर्पोरेट घराने हैं जो खुदरा कारोबार में आ सकते हैं या फिर आ चुके हैं। क्या सरकार इन कम्पनियों को इतना काबिल नहीं बना सकती? क्या जब देश के कॉर्पोरेट घराने खुदरा बाज़ार में कारोबार करेंगे तो सस्ता सामान मुहैया नहीं करा सकते? ऐसा विदेशी कम्पनी में क्या होता है जो देशी में नहीं? क्या खुदरा नीति देश की कम्पनियों के लिये नहीं बदल सकती कि किसानों तक पूरा पैसा पहुँचे? ऐसा क्यों है कि हम हर बार पश्चिम की ओर मुँह कर के खड़े हो जाते हैं। क्यों नहीं हम स्वयं में सुधार करते? विदेशी ही हमारे देश को चलायेंगे तो यह हमारी कमजोरी है और हमारी विफ़लता। वॉल्मार्ट आदि केवल खाद्य उत्पादन ही नहीं बल्कि घर की सभी वस्तुयें जैसे फ़र्नीचर, बर्तन आदि भी बेच सकेंगे।  जो अर्थशास्त्री हैं वे ही इस पर रोशनी डाल सकते हैं कि देशी कम्पनियाँ क्यों नहीं वो काम कर सकतीं जो विदेशी आ कर करेगी? क्या गारंटी है कि चीनी कम्पनियाँ हमारे देश के छोटे व्यवसायों को नुकसान नहीं पहुँचायेंगी जो पहले ही खतरे से जूझ रहे हैं?

आखिर में बात करते हैं कोलावरि डी की। आमतौर पर वही गाने सुनते हैं जिनके बोल हमें समझ आते हैं या यूँ कहें कि जिन भाषाओं की हमें जानकारी है। पर संगीत शायद एक ऐसा माध्यम है जिसने आदि काल से एक दूसरे को जोड़ा हुआ है। संगीत हर दिल में है। कहते हैं कि संगीत की अपनी कोई भाषा नहीं होती। इसीलिये शायद कोलावरि डी आज उत्तर भारत में भी हिट है। आज दिल्ली के रेडियो चैनलों पर तमिल गीत सुनने को मिल रहा है। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि फ़िल्म "थ्री" रजनीकांत के दामाद की फ़िल्म है इसलिये यह गाना मशहूर हुआ है। कुछ लोग इसे महज इत्तेफ़ाक या भाग्य भी मानते हैं। लेकिन जब रजनीकांत का कोई तमिल गाना दिल्ली में नहीं बजा (या कहें कि मुझे याद नहीं रहा) तो उनके दामाद का गाना बजना महज एक संयोग तो नहीं। पर फिर भी यदि ऐसा हुआ है तो यह देश की एकता के लिहाज से अच्छा संयोग है। अनेकता में एकता यदि ऐसे संयोग से और प्रगाढ़ हो सकती है तो कहने ही क्या!!! 


जय हिन्द
वन्देमातरम
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरियसी
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Friday, November 25, 2011

ग़मों का दौर भी आये तो मुस्कुरा के जियो : फ़िल्म हमराज़ (1967) Film Humraaz Mahendra Kapoor, Sahir Ludhiyanvi

आज भूले-बिसरे गीत में फ़िल्म हमराज़ के सदाबहार गीत। १९६७ में आई इस फ़िल्म के निर्माता निर्देशक थे बी.आर.चोपड़ा व इसमें अभिनय किया था सुनील दत्त, राज कुमार, मुमताज़, सारिका, मदन पुरी,इफ़्तेखार,
बलराज साहनी व जीवन ने। फ़िल्म का संगीत था रवि का व इस के गाने लिखे थे उर्दू शायर साहिर लुधियानवी जी ने।
इस फ़िल्म में गीत गाये हैं महेंद्र कपूर जी ने। मोहम्मद रफ़ी व किशोर कुमार के बीच में महेंद्र कपूर ने अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। आज की पीढ़ी रफ़ी, किशोर को तो जानती ही होगी पर पता नहीं क्यों मुझे
महेंद्र कपूर के गाये हुए गाने व उनकी आवाज़ बेहद पसंद है। इस फ़िल्म के सभी गीत इन्होंने ही गाये हैं।


न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो  


न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो
ग़मों  का  दौर  भी  आये  तो  मुस्कुरा  के  जियो
न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो


घटा  में  छुपके  सितारे  फ़ना  नहीं  होते
अँधेरी  रात  में  दिए  जला  के  चलो
न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो



ये  ज़िन्दगी  किसी  मंजिल  पे  रुक  नहीं  सकती
हर  इक  मक़ाम  पे  क़दम  बढ़ा  के  चलो
न  मुँह  छुपा  के  जियो  और  न  सर  झुका  के  जियो



नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...
ऐसे ही जग में, आती हैं सुबहें,
ऐसे ही शाम ढले...
हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

शबनम के मोती, फूलों पे बिखरे,
दोनों की आस फले  ...
हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

बलखाती बेलें, मस्ती में खेलें ,
पेड़ों  से  मिल  के  गले ...
हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

नदिया  का  पानी , दरिया  से  मिल  के,
सागर  की  और  चले  ...
हे ... नीले गगन के तले.. धरती का प्यार पले...

भूले बिसरे गीत के अन्य गीत

जय हिन्द
वन्देमातरम

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Tuesday, November 22, 2011

क्या आप जानते हैं- भारत की सबसे बड़ी झीलें कौन सी हैं व विश्व का सबसे लम्बा रेलवे प्लेटफ़ार्म कहाँ पर है? Longest Railway Platform In The World, Largest Lakes Of India

क्या आप जानते हैं के इस अंक में आज हम जानेंगे भारत की सबसे बड़ी झीलों व भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे बड़े रेलवे प्लेटफ़ार्म के बारे में।

कश्मीर की वूलर झील के बारे में हम पहले से ही जान चुके हैं। गौरतलब है कि यह झील एशिया की भी सबसे बड़ी झील है। 

चिल्का झील (पुरी, ओड़ीशा)


अन्य झीलों की बात करें तो जिक्र आता है ओड़ीशा की चिल्का झील का। यह झील खारे पानी की सबसे बड़ी झील है व बंगाल की खाड़ी में जा कर मिलती है। चिल्का झील पुरी, खुर्द व गंजम जिलों तक फ़ैली हुई है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह झील बहुत सारे पशुओं व पेड़-पौधों के लिये जीवन दायिनी है जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। सर्दियों में इस झील पर 160 से भी अधिक तरह के पक्षी अपना डेरा जमाते हैं। इस झील में कैस्पियन सागर, बैकल झील व अरल सागर से लेकर रूस, मंगोलिया व दक्षिण-पूर्व एशिया, लद्दाख और हिमालय से पक्षी आते हैं। ये पक्षी 12000 कि.मी से भी अधिक का सफ़र तय कर चिल्का झील तक पहुँचते हैं। इस झील की लम्बाई 64 कि.मी है। जी हाँ आपने सही पढ़ा है....

सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) में स्थित गोविंद वल्लभ पंत सागर देश की सबसे बड़ी कृत्रिम रूप से तैयार की गई झील है। इसका नाम भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत जी के नाम से पड़ा।  वे 1950 से 1954 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। उत्तराखंड के बड़े राजनेताओं में से एक रहे। इस झील की गहराई 38 फ़ीट है।

कोल्लेरू (आंध्र प्रदेश)
साफ़ पानी की सबसे बड़ी झील कोल्लेरू झील है। आंध्रप्रदेश की यह झील कृष्णा व गोदावरी नदियों के संगम से बनी सबसे बड़ी झील है। बुडामेरू व तम्मिलेरू मौसमी नदियाँ भी इसी झील में आकर मिलती हैं।
245 वर्ग किमी तक फ़ैली यह झील आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। कारण इंसान का लोभ। 42 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अब खेती के लिये लिया जा रहा है, जगह जगह झील ने सूखना शुरु कर दिया है। करीबन दो करोड़ पक्षियों का यह आशियाना धीरे धीरे उजड़ रहा है। यहाँ के पक्षियों की संख्या को देखते हुए वर्ष 1999 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया।

खड़गपुर रेलवे स्टेशन (मिदनापुर-पश्चिम, पं. बंगाल)
आइये अब जानते हैं विश्व के सबसे बड़े रेलवे प्लेटफ़ार्म के बारे में। यह स्टेशन है पश्चिम बंगाल ( माफ़ कीजिये पश्चिम बंगा...पता नहीं ये नाम क्यों रखा है ममता दीदी ने.. बड़ी कठिनाई से बोला जाता है..) का खड़गपुर रेलवे स्टेशन। इस स्टेशन के प्लेटफ़ार्म की लम्बाई है 1.072 किमी। प्रारम्भ में यह प्लेटफ़ार्म 716 मीटर लम्बा था पर इसे पहले 833 मी और फिर बाद में अभी के जितना लम्बा किया गया। खड़गपुर का प्लेटफ़ार्म विश्व में सबसे लम्बा है। यह शहर मिदनापुर पश्चिम जिले में स्थित है। हम सभी जानते हैं कि खड़गपुर आईआईटी के लिये जाना जाता है। भारत की सबसे बड़ी रेलवे वर्कशॉप भी यहीं पर है।

हमारे भारत में गर्व करने के लिये न जाने कितने ही स्थान, झील, नदी, पहाड़ आदि हैं। प्राकृतिक ही नहीं अपितु किले, महल मीनार आदि अनगिनत स्थान हैं किन्तु फिर भी हम इन पर गर्व नहीं करते। भारत को भूल विदेशों की ओर देखते हैं। इसका एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि हम अपने देश को, स्वदेश को पहचानते ही नहीं। इसीलिये ऐसे लेख हमारी जानकारी बढ़ाते हैं। मैं स्वयं भी इन सबसे अनजान रहा हूँ। मुझे भारत और भारतीय पर गर्व है।

आने वाले लेखों में वो बातें जो विदेशी हमारे बारे में कहते हैं, भारत को मानते हैं। अध्यात्म व गौरवशाली इतिहास होंगे धूप-छाँव के मुख्य बिंदु।

जय हिन्द
वन्देमातरम


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Friday, November 18, 2011

एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तिल... मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं... फ़िल्म इजाज़त के गीत - भाग २ Film Izaazat, Old Hindi Movies Songs

फ़िल्म- इजाज़त
गीतकार-गुलज़ार
गायिका-आशा भोंसले
संगीतकार-राहुल देव बर्मन

हिन्दी फ़िल्म "इजाज़त" सुबोध घोष की बंगाली फ़िल्म "जातुगृह" से प्रेरित है। यह उन गिनी चुनी फ़िल्मों में से एक है जिन्हें गुलज़ार ने निर्मित किया। फ़िल्म में मुख्य भूमिकायें नसीरूद्दीन शाह, रेखा व अनुराधा पटेल ने निभाई हैं।

मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं

मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं
सावन के कुछ भीगे दिन रखे हैं
और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पडी हैं
वो रात बुझा दो, मेरा सामान लौटा दो

पतझड़ हैं कुछ, 
हैं ना ...
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में एक बार पहन के लौटाई थी
पतझड़ की वो शांख अभी तक काँप रही हैं
वो शांख गिरा दो, 
मेरा वो सामान लौटा दो...

एक अकेले छतरी  में जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे आधे गिले, सुखा तो मैं ले आयी थी
गीला मन शायद, बिस्तर के पास पडा हो
वो भिजवा दो, 
मेरा वो सामान लौटा दो...

एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तिल
गीली मेहंदी की खुशबू, झूठमूठ के शिकवे कुछ
झूठमूठ के वादे भी, सब याद करा दो
सब भिजवा दो, 
मेरा वो सामन लौटा दो...

एक इजाजत दे दो बस
जब इस को दफ़नाऊँगी 
मैं भी वही सो जाऊँगी...

छोटी सी कहानी से

छोटी सी कहानी से, 
बारिशों की पानी से
सारी वादी भर गयी,

ना जाने क्यों, दिल भर गया,
ना जाने क्यों, आँख भर गयी

शाखों पे पत्ते थे,पत्तों पे बूंदे थी
बूंदो में पानी था,पानी में आंसू थे

दिल में गिल भी थे,पहले मिले भी थे
मिलके पराये थे, दो हमसाये थे


जय हिन्द
वन्दे मातरम

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Tuesday, November 15, 2011

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जाति व धर्म के आधार पर मिल रही "प्रोत्साहन राशि" एक रिश्वत है? Delhi Government Schools, Religion Caste Based Schemes

सुनने में आया है कि दिल्ली सरकार की ओर से एक स्कीम सरकारी स्कूलों में चल रही है। जिसके तहत हर एक या दो महीने में सरकार की ओर से कभी पाँच सौ, कभी सात सौ तो कभी पन्द्रह सौ रूपये बच्चों के अभिभावकों को दिये जाते हैं। लेकिन केवल अनुसूचित जाति/जनजाति/पिछड़े और अल्पसंख्यक (अधिकतर
मुसलमानों) को ही। दिल्ली सरकार इसे प्रोत्साहन राशि कहती है। उसपर आलम यह है कि बच्चे स्कूल आते नहीं हैं। और ग्रेड्स मिलेंगे इसलिये पढ़ते नहीं हैं। हमारी एक रिश्तेदार हैं जो हाल ही में सरकारी स्कूल में अध्यापिका के तौर पर लगी हैं उन्होंने बताया कि बच्चे स्कूल उन्हीं दिनों आते हैं जब उन्हें पता लगता है कि "प्रोत्साहन राशि" मिलने वाली है।

यह है सरकारी विद्यालयों का हाल। अब प्रश्न यह उठता है कि बच्चों को पढ़ाने के लिये प्रोत्साहन राशि क्या एक "भीख" की तरह नहीं है? जहाँ लेने वाला भीख माँग रहा है क्योंकि वो स्कूल ही तभी आ रहा है। उसे पढ़ने का कोई उत्साह नहीं है। उसको पढ़ना नहीं है अपितु भीख माँगनी है। दूसरी ओर देने वाला भी भीख माँग रहा है। यह भीख है वोटों की। वे वोट जो उसे अगली बार फिर कुर्सी तक पहुँचायेंगे। सत्ता की गद्दी हथियाने में मदद करेंगे। चूँकि चुनावों के दौरान पैसे बाँटना अपराध है तो ये कानूनी रूप से "प्रोत्साहन राशि" के नाम पर रिश्वत दी जा रही है।

बच्चों को पढ़ाने के लिये उन्हें किताबें, यूनिफ़ार्म मुफ़्त दी जाती हैं। यह बेहद अच्छा कदम है। आठवीं तक के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने से ही हम शिक्षित हो सकेंगे। दिल्ली नगर निगम में ग्यारहवीं तक मुफ़्त शिक्षा का प्रावधान है। वैसे हम लोग साक्षरता दर देखते हैं। जो बढ़ तो रही है लेकिन शिक्षित दर नहीं देखते। लोगों में शिक्षा का अभाव है। साक्षर तो वो भी है जिसे अपने हस्ताक्षर करने आते हैं परन्तु क्या हम उसे शिक्षित कर पायें हैं? शिक्षित होने क्या लक्षण हैं ये मुझे नही पता। मैं तो गली में कूड़ा फ़ैलाने वालों को भी अशिक्षित करार दे देता हूँ या फिर हेलमेट को सर पर मगाने कि जगह जो हाथ में हेल्मेट पहनते हैं। बहरहाल हम बात कर रहे थे मुफ़्त शिक्षा की। सरकार यह कदम नि:संदेह एक बेहतरीन प्रयास है और दूरगामी भी। लेकिन इतने सब के बीच "प्रोत्साहन राशि" को मैं रिश्वत समझता हूँ। रिश्वत इसलिये भी क्योंकि यह केवल एस.सी,
एस.टी और मुसलमानों के लिये ही है। स्कोलरशिप केवल इन वर्गों के लिये ही क्यों हैं? फिर चाहें परिवार की आय कितनी ही हो।

इंजीनियरिंग में दाखिले के लिये आरक्षण है। आईपी में यदि आप दाखिले का फ़ार्म भरते हैं तो उसमें आप पायेंगे कि आपका धर्म व जाति पूछी होती है। और यदि कोई ऑपशन आपको नहीं पायेगा तो वो है "जनरल" श्रेणी का। खैर आरक्षण का यह मापदंड मेरी समझ से परे हो जाता है जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये कम से कम दो लाख रूपये चाहियें। जो गरीब है, जो महंगाई की मार सह रहा है वो दो लाख रूपये कहाँ से लायेगा? फिर चाहें आप उसे आरक्षण ही क्यों न दें। इसका आशय स्पष्ट है कि दाखिला अमीर अनुसूचित जाति जनजाति व अल्पसंख्यकों को ही मिल रहा है। उन्हें आरक्षण दे कर क्या फ़ायदा?

आरक्षण की जिस बैसाखी से कांग्रेस ने भारत के लोगों को सहारा देने की कोशिश की थी वही बैसाखी इस देश को तोड़ रही है। कांग्रेस ने इलाज करने की बजाय इस बैसाखी का मोहताज बना दिया। ये बैसाखी अब सहारा नहीं है बल्कि खुद एक बीमारी बन गई है जो हमें खोखला कर रही है। क्योंकि ये बीमारी वोट लेने का जरिया मात्र बन कर रह गई है। मुसलमानों के वोट। दलितों के वोट। मुसलमानों व दलितों को प्रोत्साहन राशि का लोभ
दिया जा रहा है। जातिगत या धर्म के आधार पर आरक्षण इस देश को तोड़ रहा है।

आरक्षण आर्थिक आधार पर क्यों नहीं हो सकता? क्या ब्राह्मंण या अगड़ी जाति के लोग गरीब नहीं हो सकते? क्या इस प्रोत्साहन राशि के प्रलोभन की वजह से बच्चे पढ़ेंगे? मुझे तो नहीं लगता। उन्हें पैसा तो मिल रहा है लेकिन पढ़ाई नहीं। वे पढ़्ने के लिये नहीं पैसे लेने के लिये स्कूल आ रहे हैं। उनकी पढ़ाई करने की इच्छा ही नहीं रही है। उन्हें यूनिफ़ार्म दी जाये, उन्हें किताबें दें, उन्हें दोपहर का भोजन दें। यह सब बेहद आवश्यक है। परन्तु उन्हें ऐसी शिक्षा भी दी जाये कि आगे चल कर वे बैसाखी का सहारा न लें। और यदि यह सब हो रहा है तो आर्थिक आधार पर हो न कि जातिगत व धर्म के आधार पर.. क्योंकि आज महँगाई के दौर में गरीबी एक अभिशाप की तरह है और गरीब की कोई जाति नहीं होती।

दिल्लॊ सरकार की वेबसाईट जहाँ आप को तरह तरह की स्कीमें मिल जायेंगीं:
http://delhi.gov.in/wps/wcm/connect/doit_welfare/Welfare/Home/Services-+Schemes

जय हिन्द
वन्देमातरम

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Friday, November 11, 2011

भूले बिसरे गीत: खाली हाथ शाम आई है, खाली हाथ जायेगी..... जब आशा भोंसले और पंचम दा ने गुलज़ार के गीतों में जान डाल दी Old Hindi Songs RD Burman, Asha Bhosle, Gulzar - Film Izaazat

फ़िल्म- इजाज़त
गीतकार-गुलज़ार
गायिका-आशा भोंसले
संगीतकार-राहुल देव बर्मन

हिन्दी फ़िल्म "इजाज़त" सुबोध घोष की बंगाली फ़िल्म "जातुगृह" से प्रेरित है। यह उन गिनी चुनी फ़िल्मों में से एक है जिन्हें गुलज़ार ने निर्मित किया। फ़िल्म में मुख्य भूमिकायें नसीरूद्दीन शाह, रेखा व अनुराधा पटेल ने निभाई हैं।

खाली हाथ शाम आयी हैं, खाली हाथ जायेगी

खाली हाथ शाम आयी हैं, खाली हाथ जायेगी
आज भी न आया कोई, खाली लौट जायेगी

आज भी न आये आँसू, आज भी न भीगे नैना
आज भी ये कोरी रैना, कोरी लौट जायेगी

रात की सियाही कोई, आये तो मिटाए ना
आज ना मिटाई तो ये, कल भी लौट आयेगी

छोटी सी कहानी से, बारिशों की पानी से

छोटी सी कहानी से, बारिशों की पानी से
सारी वादी भर गयी,

ना जाने क्यों, दिल भर गया,
ना जाने क्यों, आँख भर गयी

शाखों पे पत्ते थे,पत्तों पे बूंदे थी
बूंदो में पानी था,पानी में आंसू थे

दिल में गिल भी थे,पहले मिले भी थे
मिल के पराये थे, दो हमसाये थे
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Sunday, November 6, 2011

भूपेंद्र हज़ारिका को भावभीनी श्रद्धांजलि.. गंगा बहती हो क्यूं?.. Bhupendra Hazarika Bharat Lost Voice Of East

यह वर्ष हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिये बेहद दुखदाई रहा है। क्रिकेट, बॉलीवुड व ग़ज़ल के बाद शास्त्रीय संगीत ने भी एक रत्न को खो दिया। बात कर रहा हूँ भूपेंद्र हज़ारिका की। पूर्वी भारत के असम में 1926 में जन्मे भूपेंद्र ने हिन्दी फ़िल्मों में संगीत दिया व गीत भी गाये। उनके योगदान को हम कभी नहीं भूल पायेंगे।
उन्होंने शनिवार पाँच सितम्बर को आखिरी साँस ली।

पद्म भूषण(2001)
दादा साहेब फ़ालके अवार्ड (1992)
असोम रत्न (2009)
संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (2009)

भूपेंद्र हज़ारिका को भावभीनी श्रद्धांजलि।


दिल हूम हूम करे (रूदाली)



गंगा बहती हो क्यूँ


ये गीत आज मैंने पहली बार सुना है... फिर सोचा कि लानत है.. मैने ये पहली बार क्यों सुना...
विनती है एक बार अवश्य सुनें...




जय हिन्द
वन्देमातरम
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Wednesday, November 2, 2011

क्या आप जानते हैं अब तक के सबसे निर्मम हत्याकांड के बारे में? Passenger Pigeon Extinction Story

कहते हैं कि भगवान ने इस धरती पर सबसे समझदार जीव जो बनाया है वो है इंसान। पर आज जो मैं आपसे कहने जा रहा हूँ वो आपको अंदर तक झकझोर सकती है। यदि किसी भी पढ़ने वाले में थोड़ा सा भी दिल होगा तो आज का यह लेख आपको सकते में डाल सकता है। मैं चाहता हूँ कि आप इस लेख को ध्यान से पढ़ें।

चित्रों में मुसाफ़िर कबूतर
मानव जाति के प्रारम्भ से लेकर अब तक का सबसे निर्मम हत्याकांड मैं आज आपके समक्ष रख रहा हूँ। अब तक का सबसे निर्मम हत्याकांड.. एक "समझदार (?)" व सामाजिक (?) जीव कितना निर्दयी हो सकता है, कितना आसामाजिक है व इस धरती का सबसे शक्तिशाली जीव होने का किस तरह से फ़ायदा उठाया है ये आपको आज पता चलेगा। हम बेज़ुबान जानवरों व पक्षियों पर किस तरह से अत्याचार करते हैं उसका नमूना आज पेश करूँगा। मैं अपने लेख को सनसनीखेज़ करने के लिये ऐसा नहीं कर रहा हूँ.. मैं कोई टीवी पर टीआरपी बढ़ाने के लिये नहीं ऐसा कह रहा हूँ.. अपितु सच..सच और केवल सच...

क्या आपने मुसाफ़िर कबूतरों का नाम सुना है? ऑल इंडिया रेडियो पर मैंने अक्टूबर में इनके बारे में सुना। वो ऐसी जानकारी थी जिसने मेरे होश उड़ा दिया। विकिपीडिया व नेट पर खोजा तो बात 
मुसाफ़िर कबूतर का बच्चा
बिल्कुल सच थी। वही बात मैं आपके साथ बाँट रहा हूँ। उत्तरी अमरीका व कनाडा के पूर्वी हिस्से में आज से सौ साल पहले तक मुसाफ़िर कबूतर जिन्हें अंग्रेज़ी में Passenger Pigeon कहते हैं, पाये जाते थे।

क्या आप जानते हैं इनकी संख्या कितनी थी? पाँच सौ करोड़.... जी हाँ आपने सही पढ़ा.. पाँच सौ करोड़। ये पक्षी इसी हिस्से उड़ा करते थे। कहते हैं कि जब ये झुंड में उड़ा करते थे तब एक मील चौड़ा और 300 मील लम्बा झुंड बन जाता था....एक ऐसा झुंड जो सूर्य की किरणों को ढँक लेता था और धरती पर एक किरण भी नहीं पड़ने देता था। जब वे उड़ते थे तो ऐसा अँधेरा छा जाता था जिसे छँटने में चौदह घंटे से ज्यादा समय लग जाता था। चौदह घंटे तक आसमान में अँधेरा.. जैसे सूर्य ग्रहण लग गया हो.. ज़रा सोच कर देखिये.. पाँच सौ करोड़ पक्षी एक साथ आकाश में उड़ते हुए....

सिनसिनाती के चिड़ियाघर में मरने वाला अंतिम कबूतर
आज मुसाफ़िर कबूतरों की संख्या है शून्य... शून्य। कारण- जब यूरोप से लोगों का आगमन तेज़ हुआ और वे अपने रहने के लिये जगह बनाने लगे तब इन पक्षियों के जंगल काटे गये। 19वीं शताब्दी में गुलामों के लिये इन कबूतरों का सस्ता माँस मिलने लगा था। यह वो दौर था जब इनके घरौंदों को तेज़ी से तोड़ा व इन्हें काटा जाने लगा था। 1800 से 1870 तक इनका आँकड़ा धीरे धीरे कम हो रहा था किन्तु 1890 आते आते ये इतनी तेज़ी से विलुप्त हो गये कि पता ही नहीं चला। सिनसिनाटी चिड़ियाघर में 1 सितम्बर , 1914 को अंतिम पक्षी ने दम तोड़ दिया। यानि करीबन सौ वर्षों में पाँच सौ करोड़ मौतें....

इस सत्य घटना में आपको परेशान कर सकती है..आपके रौंगटे खड़े कर सकती है.. आपको दु:खी कर सकती है.. आपको शर्मिंदा कर सकती है..। जैसे मैं हूँ। मुझे जब इस घटना का पता चला तो मैं शर्मिंदा था स्वयं पर.. मानव जाति पर...अपने स्वार्थ व स्वाद हेतु कितना गिर सकता है इंसान इसका उदाहरण है यह घटना...इसके आगे मैं कुछ नहीं कह सकता.. स्तब्ध...

भारत से विलुप्त होने के कागार पर खड़ी हैं अन्य कुछ प्रजातियाँ भी..

साभार:
http://en.wikipedia.org/wiki/Passenger_Pigeon
http://www.eco-action.org/dt/pigeon.html

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Saturday, October 29, 2011

झाँसी की रानी - सुभद्राकुमारी चौहान Jhansi Ki Rani ( By Subhadra Kumari Chahan)


पिछले कुछ वर्षों से बच्चों के पाठ्यक्रम से वे राष्ट्रभक्ति व जीवन से रूबरू कराने वाली शिक्षाप्रद कवितायें "लुप्त" हो गईं हैं। सोचा कि क्यों न उन्हें दोबारा पढ़ा जाये और ब्लॉग पर उतारा जाये। हालाँकि ये कवितायें इंटेरनेट पर काफ़ी जगह मिल जायेंगी परन्तु इन्हें पढ़ने का मज़ा ही कुछ और है। इसी कड़ी में आज की कविता समर्पित है रानी लक्ष्मी बाई को। सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा लिखित झाँसी की रानी-


जन्म: 19 नवम्बर 1835 , वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु: 17 जून 1858, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
पाठकों से विनती है कि ऊपर दी गईं जन्म व मृत्यु की तिथियों से रानी लक्ष्मीबाई की आयु का अंदाज़ा लगायें। रौंगटें न खड़े हों तो कहियेगा... ऐसी वीरांगना को शत शत नमन.....

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्ट-कुल-देवी भी उसकी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
वीर बुंदेलों सी विरदावली सी वह आई झाँसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया,शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
छिनी राजधानी दिल्ली की,लिया लखनऊ बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कुटियों में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अब जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया,यह था संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
तेरा यह बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
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