मुसलमानों) को ही। दिल्ली सरकार इसे प्रोत्साहन राशि कहती है। उसपर आलम यह है कि बच्चे स्कूल आते नहीं हैं। और ग्रेड्स मिलेंगे इसलिये पढ़ते नहीं हैं। हमारी एक रिश्तेदार हैं जो हाल ही में सरकारी स्कूल में अध्यापिका के तौर पर लगी हैं उन्होंने बताया कि बच्चे स्कूल उन्हीं दिनों आते हैं जब उन्हें पता लगता है कि "प्रोत्साहन राशि" मिलने वाली है।
यह है सरकारी विद्यालयों का हाल। अब प्रश्न यह उठता है कि बच्चों को पढ़ाने के लिये प्रोत्साहन राशि क्या एक "भीख" की तरह नहीं है? जहाँ लेने वाला भीख माँग रहा है क्योंकि वो स्कूल ही तभी आ रहा है। उसे पढ़ने का कोई उत्साह नहीं है। उसको पढ़ना नहीं है अपितु भीख माँगनी है। दूसरी ओर देने वाला भी भीख माँग रहा है। यह भीख है वोटों की। वे वोट जो उसे अगली बार फिर कुर्सी तक पहुँचायेंगे। सत्ता की गद्दी हथियाने में मदद करेंगे। चूँकि चुनावों के दौरान पैसे बाँटना अपराध है तो ये कानूनी रूप से "प्रोत्साहन राशि" के नाम पर रिश्वत दी जा रही है।
बच्चों को पढ़ाने के लिये उन्हें किताबें, यूनिफ़ार्म मुफ़्त दी जाती हैं। यह बेहद अच्छा कदम है। आठवीं तक के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने से ही हम शिक्षित हो सकेंगे। दिल्ली नगर निगम में ग्यारहवीं तक मुफ़्त शिक्षा का प्रावधान है। वैसे हम लोग साक्षरता दर देखते हैं। जो बढ़ तो रही है लेकिन शिक्षित दर नहीं देखते। लोगों में शिक्षा का अभाव है। साक्षर तो वो भी है जिसे अपने हस्ताक्षर करने आते हैं परन्तु क्या हम उसे शिक्षित कर पायें हैं? शिक्षित होने क्या लक्षण हैं ये मुझे नही पता। मैं तो गली में कूड़ा फ़ैलाने वालों को भी अशिक्षित करार दे देता हूँ या फिर हेलमेट को सर पर मगाने कि जगह जो हाथ में हेल्मेट पहनते हैं। बहरहाल हम बात कर रहे थे मुफ़्त शिक्षा की। सरकार यह कदम नि:संदेह एक बेहतरीन प्रयास है और दूरगामी भी। लेकिन इतने सब के बीच "प्रोत्साहन राशि" को मैं रिश्वत समझता हूँ। रिश्वत इसलिये भी क्योंकि यह केवल एस.सी,
एस.टी और मुसलमानों के लिये ही है। स्कोलरशिप केवल इन वर्गों के लिये ही क्यों हैं? फिर चाहें परिवार की आय कितनी ही हो।
इंजीनियरिंग में दाखिले के लिये आरक्षण है। आईपी में यदि आप दाखिले का फ़ार्म भरते हैं तो उसमें आप पायेंगे कि आपका धर्म व जाति पूछी होती है। और यदि कोई ऑपशन आपको नहीं पायेगा तो वो है "जनरल" श्रेणी का। खैर आरक्षण का यह मापदंड मेरी समझ से परे हो जाता है जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये कम से कम दो लाख रूपये चाहियें। जो गरीब है, जो महंगाई की मार सह रहा है वो दो लाख रूपये कहाँ से लायेगा? फिर चाहें आप उसे आरक्षण ही क्यों न दें। इसका आशय स्पष्ट है कि दाखिला अमीर अनुसूचित जाति जनजाति व अल्पसंख्यकों को ही मिल रहा है। उन्हें आरक्षण दे कर क्या फ़ायदा?
आरक्षण की जिस बैसाखी से कांग्रेस ने भारत के लोगों को सहारा देने की कोशिश की थी वही बैसाखी इस देश को तोड़ रही है। कांग्रेस ने इलाज करने की बजाय इस बैसाखी का मोहताज बना दिया। ये बैसाखी अब सहारा नहीं है बल्कि खुद एक बीमारी बन गई है जो हमें खोखला कर रही है। क्योंकि ये बीमारी वोट लेने का जरिया मात्र बन कर रह गई है। मुसलमानों के वोट। दलितों के वोट। मुसलमानों व दलितों को प्रोत्साहन राशि का लोभ
दिया जा रहा है। जातिगत या धर्म के आधार पर आरक्षण इस देश को तोड़ रहा है।
आरक्षण आर्थिक आधार पर क्यों नहीं हो सकता? क्या ब्राह्मंण या अगड़ी जाति के लोग गरीब नहीं हो सकते? क्या इस प्रोत्साहन राशि के प्रलोभन की वजह से बच्चे पढ़ेंगे? मुझे तो नहीं लगता। उन्हें पैसा तो मिल रहा है लेकिन पढ़ाई नहीं। वे पढ़्ने के लिये नहीं पैसे लेने के लिये स्कूल आ रहे हैं। उनकी पढ़ाई करने की इच्छा ही नहीं रही है। उन्हें यूनिफ़ार्म दी जाये, उन्हें किताबें दें, उन्हें दोपहर का भोजन दें। यह सब बेहद आवश्यक है। परन्तु उन्हें ऐसी शिक्षा भी दी जाये कि आगे चल कर वे बैसाखी का सहारा न लें। और यदि यह सब हो रहा है तो आर्थिक आधार पर हो न कि जातिगत व धर्म के आधार पर.. क्योंकि आज महँगाई के दौर में गरीबी एक अभिशाप की तरह है और गरीब की कोई जाति नहीं होती।
दिल्लॊ सरकार की वेबसाईट जहाँ आप को तरह तरह की स्कीमें मिल जायेंगीं:
http://delhi.gov.in/wps/wcm/connect/doit_welfare/Welfare/Home/Services-+Schemes
जय हिन्द
वन्देमातरम
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