Thursday, January 25, 2007

धर्म

हिंदू और मुस्लिम में झगड़े..कभी 84 के दंगे..कभी बाबरी कांड..और आजकल तो जैसे विश्व ईसाई और इस्लाम धर्म में बँट गया है।

धर्म..!!!आखिर ये धर्म है क्या? ये क्या है जिसके लिये हम झगड़ते हैं..एक दूसरे के बारे में बुरा सोचते हैं..द्वेष की भवना से देखते हैं,जहाँ मौका मिले वहाँ तिरस्कार करते हैं... धर्म के बारे में जानने की इच्छा हुई..अभी पिछले दिनों एन.डी.टी.वी. पर "हम लोग" में इसी विषय पर चर्चा भी हुई। पता चला कि धर्म शब्द संस्कृत भाषा की धृ धातु से बना है, और इसका अर्थ होता है "धारण करना", या "पालन करना"।

फ़िर सवाल उठता है कि धर्म कितने प्र्कार के होते हैं..बहुत हो सकते हैं..जैसे राष्ट्र धर्म,पिता धर्म, शिष्य धर्म, स्त्री धर्म..इत्यादि.. धर्म का अर्थ प्रकृति या स्वभाव है जैसे कि सूर्य का धर्म है- गर्मी एवं प्रकाश प्रदान करना। मनुष्य के जीवन में धर्म का अर्थ है कर्त्तव्य पालन करना। जैसे माता-पिता का धर्म है संतान का पालन-पोषण करना तथा संतान का धर्म है उनकी आज्ञा का पालन करना व उनकी सेवा करना। इसी प्रकार गुरु का धर्म शिक्षा प्रदान करना और शिष्य का धर्म है ज्ञान प्राप्त करना।

हम कहते हैं कि पुत्र धर्म का पालन करो..ये तो सभी मजहबों में एक ही होता है...पर कमाल है..हम हिंदू, इस्लाम, सिख,पारसी..इन सबको कैसे भूल गये?? अगर उपर्युक्त शब्द धर्म नहीं हैं तो क्या हैं?? मैं भी आश्चर्यचकित हो गया था..मैंने धर्म का अंग्रेज़ी अनुवाद ढूँढने का प्रयास किया... रिलीजन..अंग्रेज़ी में यही कहते है धर्म को..अब मेरा विचार रिलीजन शब्द की उत्पत्ति पर गया..''रिलीजन'' शब्द लैटिन के ''री''। लीगारे'' से आता है, जिसका शाब्दिक अर्थ ''बाँधना'' होता है। इसका यह अभिप्रेत है कि जो प्रेम और सहानुभूति के आधार पर मानवों को एकीकृत करता है या मानव को ईश्वर से जोड़ता है और फिर उसे विश्वात्मा से मिलाता है लेकिन अंग्रेजी के ''रिलीजन'' शब्द का संस्कृत पर्यायवाची धर्म कतई नहीं हो सकता शायद धर्म को किसी और भाषा में समझना या अनुवाद करना मेरे लिये कठिन है..पर मैं फ़िलहाल इतना ज़रूर जान गया हूँ कि धर्म कभी डराता नहीं,धर्म प्रेम करना सिखाता है..धर्म समाज को बाँटता नहीं, जोड़ना सिखाता है..

चाहें कोई भी ग्रंथ हम उठा लें..कोई भी ये नहीं कहता कि ईश्वर अनेक हैं..हिंदू हो या मुस्लिम या और कोई भी "धर्म" सभी एक ही भगवान की पूजा करते हैं...बस तरीके विलग हैं..जब सबका पिता एक है..तो किसके लिये लड़ रहे हैं?? मुझे लगता है कि "धर्म" के नाम पर "धर्म" से खेला जा रहा है..शान्त मन से सोचने की बात है..

हमें चाहिये हम ये इंसानों के बनाये "धर्म" (हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई) को छोड़ें और ईश्वर के रचे हुए धर्म को..यानि सामाजिक धर्म,पुत्र धर्म, पिता का धर्म, गुरू का धर्म..रिश्तों का धर्म...इनको माने..मंदिर मस्जिद तोड़ेंगे तो नुकसान तो एक ही के पिता का हुआ!!आप किस धर्म को मानते हैं?? ये निर्णय आप पर है....मैं तो इतना ही समझ पाया हूँ..आपको जानना है तो 2 लिंक्स हैं...
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/1451802.cms
http://www.tempweb34.nic.in/xprajna_annie/html/dharm_marm.php
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अप्पदीपो भव

महावीर स्वामी ने कहा हैः अप्पदीपो भव इस का अर्थ हैःस्वयं अपने दीपक बनो। जब दृष्टि बाहर से मुड़कर भीतर चली जाती है, तो अपने आप में सब कुछ पा लेती है।
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मनुः भव

मनुः भव का अर्थ है..मनुष्य बनो...आज कल हम मनुष्य होकर भी..मनुष्य नहीं हैं..केवल शाब्दिक तौर पे मनुष्य नहीं होना है..वरन वो सभी गुण होने चाहियें, व उन्हें अपने अंदर धारण करना चाहिये..जो इश्वर ने एक् मानव के अंदर देखने चाहे थे..
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आनंद मरते नहीं..

आनंद मरते नहीं..ये केवल एक फ़िल्म का डायलोग नहीं है...अपितु ये शब्द हमें जीने की राह दिखाते हैं..ज़िन्दगी का मकसद देते हैं..
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न हार में न जीत में, किञ्चित नहीं भयभीत मैं...

न हार में न जीत में, किञ्चित नहीं भयभीत मैं...
कर्त्तव्य पथ पर जो भी मिले..यह भी सही..वह भी सही..

मतलब साफ़ है..अपने कर्म करते चले जाओ..परिणाम की चिन्ता न करते हुए..पूरे लगन और निष्ठा के साथ अपना काम करो..और बाकि कुछ सोचने की ज़रूरत नहीं है..सफ़लता असफ़लता हमारे हाथ में नहीं है..पर हम कर्म तो कर ही सकते हैं...ये तो हमारे हाथ में है ही...जो असफ़ल होने से डरते हैं वे आगे कुछ नहीं कर सकते..
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ज़िन्दगी एक नींद

ज़िन्दगी एक नींद की तरह् है..कब पूरी हो जाये पता ही नहीं चलता..इसीलिये जितने सपने देख सकते हो देखो..जितना उन्को साकार करने की सोच् सकते हो करो..न जाने कब नींद पूरी हो जाये और् आप फ़िर कभी सपने ना देख ना पायें.!!
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कौन है सबसे कामयाब निर्देशक??

ईश्वर है सबसे बड़ा निर्देशक...ईश्वर ही हम सब के जीवन की कहानियाँ खुद ही लिख रहा है, निर्देशन कर रहा है..कमाल की बात है..इतने बड़े नाटक को अकेले ही निर्देशित कर रहा है !!और कमाल् तो इस बात का है..हम किरदार हैं और हम ही नहीं समझ पा रहे हैं के हमारे साथ क्या करवाया जाने वाला है..पर निर्देशक गुणी है..हमारा बुरा नहीं होने देगा...इस बात का पूर्ण विश्वास है..पर कम से कम ये तो बता देता के कौन सा किरदार कितनी देर तक् स्टेज पर रहेगा!!!
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