Saturday, December 31, 2011

नव वर्ष २०१२ का आगमन - अलविदा २०११ New Year Poetry Welcome 2012 -- New Year Special

कुछ खड़े कर के सवाल
कुछ यादों को समेट
देते हुए थोड़े संदेश
जा रहा है बीता वर्ष

कहीं है आँसू,
कहीं है हर्ष

याद आयेंगे हमें
पटौदी के नवाब,
हज़ारिका लाजवाब
शम्मी कपूर "राजकुमार"
देव आनन्द सदाबहार...
ग़ज़ल जीत, 
जगजीत...
भीमसेन की मधुर तान
याद रखेगा हिन्दुस्तान

साल भर विश्व ने
देखी कईं क्रांतियाँ..
अमरीका में बजा
विरोध का बिगुल
मिस्र-लीबिया-पाकिस्तान
जनता ने ढहाये किले
खत्म हुए कईं हुक्मुरान...

एक क्रान्ति ऐसी ही
भारत में भी छाई है
अन्ना की आँधी ने
दिल में आस जगाई है..
उम्मीद की किरण धूमिल
है जरूर
पर जनचेतना हो ऐसी
कि टूटे नेताओं का गुरूर
भ्रष्टाचार और काले धन पर
अन्ना और रामदेव ने
नेताओं को है घेरा...
मंत्रियों ने ढँका हुआ है
मुखौटे से अपना चेहरा...


रोडरेज के किस्से भी
हो रहें आम हैं..
ऐसा लगता है मानों
झगड़ना ही हमारा काम है
गुस्से को क्यों हम लोग
चलते हैं नाक पर रख कर
"कर्त्तव्यों" पर ध्यान नहीं..
वो रहता है केवल "हक़" पर..

वर्तमान से सीख कल को बुनें
आओ समाज एक नया चुनें
जहाँ परोपकार की आशा हो
प्रेम की बोलें भाषा हो..
न द्वेष हो न ईर्ष्या
और न ही अहंकार
न बदले की भावना से
मचा हुआ हो हाहाकार...
रोजाना
एक शुभ काम करें,
किसी दुखी के चेहरे पर
खिलखिलाती मुस्कान भरें....
लोकपाल का बिल सदन में,
चाहें न पास हो...
एक लोकपाल का हर दिल में
होता फिर भी वास हो...

ये युग हमारा है,
ये समाज हमारा है
वो कल हमारा था
ये आज हमारा है...
समाज के उत्थान से ही
व्यक्ति का उत्थान है
हम बनाते आज है
हम बनाते समाज हैं

आओ फिर एक समाज बुनें
वर्तमान से सीख कल को बुनें
आओ समाज एक नया चुनें


आइये आप और मैं एक प्रण करें। किसी रोते हुए बच्चे को हँसायें.. किसी बुजुर्ग का सहारा बनें...तभी स्वस्थ समाज की स्थापना हो पायेगी और फिर किसी लोकपाल की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
बचपन में किताबों के आरम्भ में "गाँधी जी का जन्तर" आता था। हम कोई भी कार्य करें तो बस यही सोचें कि क्या किसी के चेहरे पर इससे मुस्कान आयेगी? क्या यह कार्य उस व्यक्ति के लिये लाभदायक होगा जो तुमने अब तक का सबसे दुखी चेहरा देखा हो?


********************************************************************
थोड़ा हँस लें...

कुछ घटनाओं पर यदि गाने बजाये जायें तो क्या होंगे..मसलन...

कांग्रेस-भाजपा के रिश्तों पर: 
--कल भी, आज भी, आज भी, कल भी.. कुछ रिश्तें नहीं हैं बदलते कभी...

सोनिया जी जैसे ही कांग्रेस की मीटिंग में आती हैं सभी खड़े हो जाते हैं : 
--"तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो.. तुम्हीं हो...."

साल 2011 और अन्ना:
--"बन्दे में था दम.. वन्देमातरम.."

आडवाणी जी "कुर्सी" के बारे में सोचते हुए:
--"तेरा पीछा न.. मैं छोड़ूँगा सोणिये..भेज दे चाहें...."

राहुल बाबा सुबह सुबह घर से निकलते हुए:
--"नन्हा मुन्ना राही हूँ.. देश का सिपाही हूँ..."

ममता दीदी को प्रणब दादा कैसे मनाते होंगे?:
--"कोई हसीना जब रूठ जाती है तो....और भी..."

जनता के थूकने, रोडरेज, भ्रष्टाचार, दुराचार आदि के आचरण पर.. यानि हम पर:
--"हम तो भई जैसे हैं, वैसे रहेंगे...."


नववर्ष 2012 आपके एवं आपके समस्त परिवार के लिये शुभकारी हो।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:


जय हिन्द
वन्देमातरम


आज से तीन वर्ष पूर्व मैंने यह लिखा था 
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Tuesday, December 27, 2011

वैदिक गणित की श्रृंखला, भाग-दो ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम का एक उदाहरण Learning Unconventional Methods - Vedic Mathematics Part -2

वैदिक गणित से बड़े अंकों का गुणा कितनी तेज़ी से हो जाता है यह हमने पिछले भाग में जाना। "वेद" का अर्थ होता है ज्ञान। हमारे चारों वेद ज्ञान के अथाह समन्दर हैं जिससे हम ज्ञान की असंख्य बूँदें निकाल सकते हैं। इस सागर में डुबकी लगा सकते हैं व जीवन-ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। इन्हीं वेदों में छिपा है वैदिक गणित भी। गणित की जटिलता को बड़ी सरलता से समाप्त करता है यह गणित। हमने जो उदाहरण पिछले भाग में जाना था वह "निखिलं नवतश्चरम दशत:" था।

मेरे मित्र अभिषेक ने जानना चाहा था कि क्या 73*77 को हम जल्दी से गुणा कर सकते हैं?
आइये पहले जानते हैं कि आज के अंग्रेज़ी माध्यम से हम किस तरह से Multiply करते हैं:

    7 3
   *7 7
--------
   51 1
5 11  *
-----------
5621

अब जानते हैं वैदिक गणित का हल:
7 3
7 7
--------------------------
(7*7 बायें के दोनों अंक का गुणा =  49)
(Top-left * Right Bottom) + (Top-Right*Bottom Left) = 7*7 + 7*3 = 70
अंतिम दोनों अंकों का गुणा = 3 * 7 = 21

4 9 0
   7 2 1
------------------------
5621

Algebra की दृष्टि से:

मान लीजिये ये दो संख्यायें हैं: ax+b, cx+d
यानि (ax+b) * (cx+d) = acx^2 + (ad + bc)x + bd

और अब x=10 मानिये और 73*77 का उत्तर निकालिये

इसे ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम कहते हैं।

निखिलं नवतश्चरमं दशत: सूत्र का एक उदाहरण और देते चलें:

मान लीजिये आपको 18 का square निकालना है:
(यहाँ "/" का अर्थ Divide से नहीं है)

18 * 18 = (18 + 8) / (8*8)  = 26/64 = (26+6)/4 = 324 (उत्तर)


इसी तरह:

या 12*12 = (12+2)/(2*2) = 14/4 = 144 (उत्तर)

ऊपर दिये गये उदाहरणों में 18 व 12 संख्यायें 10 से क्रमश: 8 व 2 अधिक हैं इसलिये उनमें 8, 2 जोड़े हैं।

इसी तरह नीचे दिये गये उदाहरणों में संख्यायें 100 से कम हैं।
या 92*92 = (92 - 8)/(8*8) = 84/64 = 8464
96*96 = (96-4)/(4*4) = 92/16 = 9216

989*989 = (989-11)/(11*11) = 978/121 = 978121 (उत्तर) 
कितना समय लगा??? पाँच सेकंड? या पाँच मिनट.. कैलकुलेटर से भी जल्दी है यह!!!!

988*988 = (988-12)/(12*12)= 976/144 = 976144

आने वाले अंकों में हम हर सूत्र को विस्तार में जानेंगे।

वैदिक गणित के सोलह सूत्र इस प्रकार हैं:

१. एकाधिकेन पूर्वेण Recurring Decimals
२. निखिलं नवतश्चरमं दशत: (Multiplication/Division)
३. ऊर्ध्वतिर्यग्भ्यां (Multiplication/Division of Quadratic Numbers)
४. परावर्त्य योजयेत (Division, Partial Fractions)
५. शून्यं साम्यसमुच्चये (Simple Equation, Cubic Equations, Quadratic Equations Find x types)
६. (आनुरूप्ये) शून्यमन्यत (Factorization)
७. संकलनव्यवकलनाभ्यां (Factorization/H.C.F)
८. पूरणापूरणाभ्यां Biquadratic equations, Multiple Simultaneous equations (Three equations, three variables)
९. चलनकलनाभ्यां
१०. यावदूनम (Squaring, Cubing etc)
११. व्यष्टिसमष्टि
१२. शेषाण्यंकेन
१३. सोपान्त्यद्वयमन्तयं
१४. एकन्यूनेन पूर्वेण
१५. गुणितसमुच्चय:
१६. गुणकस्मुच्चय: (Factorization and Differential Calculus)

ऊपर दिये गये सूत्रों की मदद से हम Multiplication, Division, Partial Fractions, Square, Cube, Quadratic Equations, Simple equations, Cubic equations, factorization, H.C.F, Differential Calculus, Square root, Cube roots, Pythagoras Theorem, Analytical Conics व Apollonius' Theorem जैसे जटिल Topics से गुजरेंगे।

आशा है आपको यह प्रयास पसंद आयेगा। चूँकि मैं भी नया ही सीख रहा हूँ तो चूक होने पर क्षमा कीजियेगा। सहयोग मिलता रहा है तो हम मिलकर इस प्राचीन गणित को फिर से जीवित कर सकेंगे। आप भी बच्चों को ये "तेज़" गणित सिखायें।

भाग एक : वैदिक गणित की एक नई श्रूंख्ला - भाग एक Vedic Mathematics Series - Learn Un-Conventional ways of Multiplication Division

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Sunday, December 25, 2011

अटल बिहारी वाजपेयी जी की पाँच बेहतरीन कवितायें...आओ मन की गाँठें खोलें....Atal Bihari Vajpayee Birthday

पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज जन्मदिन है। आज उनकी कवितायें पढ़ने का मन किया...।
उनकी कविताओं में उनका अनुभव झलकता है। राजनीति से कभी बेचैन दिखाई पड़ते हैं तो कभी आज के हालात पर दुखी। जीवन और मृत्यु का संघर्ष दिखाई देता है तो मौत से ठन जाने की बातें करते हैं। अदम्य साहस... ऊँचाई एकाकी होती है....

"आओ मन की गाँठें खोलें" से वे प्रेम से रहने और मन मुटाव दूर करने की सीख दे जाते हैं..शायद इसीलिये वे राजनीति में भी अपने प्रतिद्वंदियों के चहेते बने रहे...

1. आओ फिर से दिया जलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ


2. ऊँचाई

 ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,

पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।

जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,


किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।

जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।

ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।

भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।

धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,

किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।


न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।


मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।


3. कौरव कौन, कौन पांडव


कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|



4. मौत से ठन गई।

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।


मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

5. आओ मन की गाँठें खोलें.

यमुना तट, टीले रेतीले, घास फूस का घर डंडे पर,
गोबर से लीपे आँगन में, तुलसी का बिरवा, घंटी स्वर.
माँ के मुँह से रामायण के दोहे चौपाई रस घोलें,
आओ मन की गाँठें खोलें.
बाबा की बैठक में बिछी चटाई बाहर रखे खड़ाऊँ,
मिलने वालों के मन में असमंजस, जाऊं या ना जाऊं,
माथे तिलक, आंख पर ऐनक, पोथी खुली स्वंय से बोलें,
 
आओ मन की गाँठें खोलें.
सरस्वती की देख साधना, लक्ष्मी ने संबंध ना जोड़ा,
मिट्टी ने माथे के चंदन बनने का संकल्प ना तोड़ा,
नये वर्ष की अगवानी में, टुक रुक लें, कुछ ताजा हो लें,
आओ मन की गाँठें खोलें.

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Friday, December 23, 2011

बेल्लारी जिले के हम्पी में स्थित हैं विजयनगर साम्राज्य के प्राचीनतम मंदिर Hampi Temples & Monuments, Bellary District, Karnataka - Incredible Bharat

आज अतुल्य भारत में सैर करेंगे राजनैतिक दृष्टि से सबसे "संवेदनशील" माने जाने वाले भाजपा शासित राज्य की। घबराइये नहीं लेख में कोई राजनीति नहीं है। बहुत साफ़-सुथरा लेख है। पर बात यहाँ होगी अवैध खनन के मामले में भाजपा के गले की हड्डी बने बेल्लारी जिले की। बेल्लारी जहाँ भाजपा ने रेड्डी बँधुओं से नाता तोड़ा और उपचुनाव हारा, वो भी जमानत जब्त करवा कर!!

बात होगी विजयनगर की। बात है हम्पी की।

उत्तरी कर्नाटक के बेल्लारी जिले में स्थित एक गाँव है जिसका नाम है हम्पी। विजयनगर साम्राज्य के अवशेषों के बीच में स्थित है हम्पी। विजयनगर साम्राज्य के समय से ही यह इलाका धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यहाँ पर है विरुपक्ष मंदिर और कईं स्मारक। हम्पी के इसी मंदिर और अवशेषों के लिये यूनेस्को ने इसे अपनी पुरातत्व विरासत में शामिल किया है। जुलाई 2011 में जिला प्रशासन ने इस गाँव व मुख्य सड़क को तुड़वा दिया है।

हम्पी का नाम पड़ा है तंगभद्रा नदी के नाम पर। दरअसल तंगभद्रा का प्राचीन नाम था पम्पा। और पम्पा से कन्नड़ में आया हम्पे और फिर बना हम्पी। कईं वर्षों तक इसे विरुपक्षपुरा के नाम से भी जाना जाता रहा है।

रामायण में हम्पी का जिक्र किष्किंधा के तौर पर होता है। जहाँ वानर राज बालि व सुग्रीव का राज्य माना गया। विजयनगर के महत्त्वपूर्ण इलाके के लिये हम्पी जाना जाता है। यह साम्राज्य 1336 से 1565 तक अस्तित्व में रहा। यह दक्षिण भारत का अंतिम हिन्दू साम्राज्य था। तालिकोट के युद्ध में बीजापुर, गोलकोंडा व अहमदनगर के मुस्लिम राज्यों ने विजयनगर को हराया।

हम्पी अपने वास्तुकला के लिये जाना जाता है। इस पूरे क्षेत्र में बड़े बड़े पत्थर हैं जिनसे हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। भारत के पुरातत्व विभाग को इस क्षेत्र से मंदिर व प्राचीन अवशेष मिले हैं।

बैंग्लोर से 353 किमी दूर तंगभद्रा नदी के किनारे बसा है हम्पी गाँव। यहाँ पर लोगों की खेती व विरुपक्ष मंदिर से आय होती है। कर्नाटक सरकार प्रति वर्ष नवम्बर माह विजयनगर उत्सव मनाती है। चूँकि इस क्षेत्र में भारी तादाद में खनिज पदार्थ पाये जाते हैं इसलिये कईं वर्षों से यहाँ खनन चल रहा है। और "बेल्लारी बँधु" आंध्र व कर्नाटक सरकारों से मिलीभगत कर "अवैध खनन" कर रहे हैं। विश्व की विरासत में से एक हम्पी और तंगभद्रा नदी पर बना बाँध दोनों ही सरकारी उपेक्षा झेल रहा है।

हम्पी में हिन्दू मंदिर बहुत हैं। विरुपक्ष मंदिर, हज़ारा राम मंदिर, कृष्णा मंदिर व विट्ठल मंदिर इनमें प्रमुख हैं।

न जाने क्यों कब तक हम्पी जैसे अनेकानेक किले, मंदिर व अन्य धरोहरें सरकारी उपेक्षा की भेंट चढ़ जायेंगे। रही सही कसर हम पूरी कर देते हैं। कभी किलों में थूक कर तो कभी चट्टानों पर "आई लव यू" की घोषणा कर।

हम्पी के चित्र:


विरूपक्ष मंदिर

360 डिग्री तक फ़ैला हम्पी का विहंगम दृश्य

विट्ठल मंदिर

हम्पी के मंदिर


भारत में अनेक पर्यटन स्थल हैं, इस श्रृंख्ला का एकमात्र मक़सद उन स्थलों को सभी तक पहुँचाना ताकि पर्यटकों व सरकार तक इन स्थलॊं की पीड़ा पहुँचाई जा सके व पर्यटन भारतीय अर्थव्यवस्था का एक मज़बूत स्तम्भ बन सके।


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स्रोत : विकीपीडिया

जय हिन्द
वन्देमातरम
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरीयसी
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Tuesday, December 20, 2011

कर्म करो तुम ज्ञान से, श्रेष्ठ ज्ञान है धर्म । कर्म योग ही धर्म है, धर्मयोग ही कर्म ॥ - रूस द्वारा भग्वद्गीता पर पाबन्दी Russia Bans Bhagvad Geeta Text

रूस में गीता पर कोहराम मचा हुआ है। कुछ लोगों का कहना है कि इसमें उग्रवाद को बढ़ावा दिया गया है। भाई को भाई से लड़वाया गया है। लड़ाई की शिक्षा दी गई है।

मेरा मत:
श्रीकृष्ण ने गीता का पाठ उस अर्जुन को दिया जो युद्ध क्षेत्र में अपने हथियार डाल देता है। यदि हमारे सैनिक पाकिस्तान व चीन के सामने युद्ध के मैदान में हाथ खड़े कर दें..तो? वे गोली चलाने से घबराने लगे तो?
यह शिक्षा उस अर्जुन को दी गई जो अपने कर्त्तव्य से दूर भाग रहा था। उस अर्जुन को जिसमें संदेह ही संदेह भरा हुआ था। जिसे अपने कर्म का ध्यान नहीं था..जिसे अपने धर्म का ज्ञान नहीं.. जो कर्मयोग से भटक गया था। 

कृष्ण कहते हैं:

कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फ़लेषु कदाचन.. अर्थात कर्म करो फल की इच्छा न करो...

वे कहते हैं कि यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि: भवति भारत.. जब जब धर्म की हानि होती है तब तब वे जन्म लेते हैं।

कृष्ण आत्मा व परमात्मा का ज्ञान देते हैं। वे मुक्ति की बात करते हैं। वे कर्म करने की बात करते हैं। वे धर्म का पालन करने की बात करते हैं। परमात्मा आदि से अनादि तक है। शरीर नश्वर है। जीवन व मृत्यु तो बस आत्मा के लिये एक पड़ाव है। वे कहते हैं कि कर्म का त्याग न करो अपितु त्याग भाव से कर्म करो। वे निराकार परमात्मा को समझाने की कोशिश करते हैं। वे कहते हैं कि "वे" अजन्मा हैं.. वे आदिकाल में भी थे आज भी हैं और हमेशा रहेंगे... वे आत्मा के काल-चक्र को समझाते हैं। वो आत्मा जो शरीर को केवल वस्त्र की तरह पहनता है। आत्मा को कर्म करने के लिये शरीर धारण करना होता है चाहें मनुष्य का हो अथवा पशु का। आत्मा अपने पिछले कर्म व इच्छाओं के कारण ही शरीर का त्याग करता है या नया शरीर धारण करता है। कर्मानुसार ही फल की प्राप्ति होती है।


वे कहते हैं कि तीन तरह के कर्म होते हैं: कर्म, अकर्म व विकर्म। कर्म तो कर्म है ही, विकर्म होता है वह कर्म जो किसी इच्छा के लिये किया जाये और अकर्म होता है वह कर्म जिसे करने के पश्चात आप उसके फल की इच्छा नहीं करते अपितु परमात्मा जो भी देता है उसे मान लेते हैं। अकर्म ही श्रेष्ठ है। कोई भी कार्य अथवा कर्म करते हुए कब "मैं" का भाव आ जाये तो उस कर्म का लाभ ही क्या? कोई भी कार्य करें तो परमात्मा के लिये ही हो।

और भी गूढ़ बातें इसमें कहीं गई हैं जो मुझ जैसे मूढ़ को कम ही समझ आती है। लेकिन इतना समझ आता है कि जीवन जीने की सीख देती है यह पुस्तक। इस पुस्तक को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित किया जाये अथवा नहीं इसमें मैं कुछ नहीं कहना चाहता। करें तो अच्छा न करें तो भी अच्छा। यदि हम इस पुस्तक को पढ़ लें व इसकी बारीकियों को व शिक्षाओं को अपने जीवन शैली में उतार लें तो शायद धरती स्वर्ग बन जाये या यूँ कहें कि लोकपाल की आवश्यकता ही न पड़े जिसके कारण आज राजनीति में हड़क्म्प मचा हुआ है। इस पुस्तक पर पाबन्दी लगायें या न लगायें लेकिन इस पुस्तक की आवाज़ व सत्यता को कोई समाप्त नहीं कर सकता। गीता का ज्ञान केवल द्वापर युग तक ही सीमित नहीं है वो उससे पहले भी था आज भी है और प्रकृति के अंत तक रहेगा।

मुझे रूस के लोगों से कोई शिकायत नहीं क्योंकि शायद वे इस ब्रह्म सत्य को समझ ही नहीं पा रहे हैं। पश्चिम से लोग आत्मिक व आध्यात्मिक ज्ञान हेतु भारत आते हैं तो उसका कारण भारत की आधात्मिकता की जड़ें भग्वद्गीता में होना ही है। मुझे उनपर क्रोध नहीं आ रहा है, वे बैन करना चाहें तो कर सकते हैं।

पूरी गीता में कहीं भी "हिन्दू" धर्म की बात नहीं कही गई है। क्योंकि तब कोई मजहब था ही नहीं। "हिन्दू" शब्द ही नहीं था। केवल मानवता थी, कर्म था, धर्म था। उसमें जिस धर्म की बात कही गई है उसे हम मजहब या रिलीजन से न तोले। धर्म का शाब्दिक अर्थ किसी भी भाषा में मिलना कठिन है। यहाँ धर्म का आशय पिता का धर्म, पुत्री का धर्म, पत्नी का, माँ का, सेवक का धर्म, राजा का धर्म आदि धर्मों से है।

अर्जुन युद्ध क्षेत्र के मध्य में क्षत्रिय धर्म से भटक जाता है। उसे दुशासन या दुर्योधन का अधर्म दिखाई नहीं देता। वो मोहवश अपना गांडीव छोड़ देता है और तब श्रीकृष्ण उससे कहते हैं:


कर्म करो तुम ज्ञान से, श्रेष्ठ ज्ञान है धर्म ।
कर्म योग ही धर्म है, धर्मयोग ही कर्म ॥

जय हिन्द
वन्देमातरम

नोट: जल्दबाजी में लिखा गया लेख है, त्रुटि सम्भव है।
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Sunday, December 18, 2011

क्या आप जानते हैं में इस बार कुछ रोचक जानकारियाँ Interesting Facts - Did You Know?

क्या आप जानते हैं की श्रृंख्ला में आज हैं कुछ रो़चक तथ्य:

  • ऑस्ट्रेलिया ही एकमात्र महाद्वीप है जिसमें एक भी सक्रिय ज्वालामुखी नहीं है।
  • मनुष्य के पैर में छब्बीस हड्डियाँ हैं।
  • जितनी ऑक्सीजन हम साँस के द्वारा लेते हैं उसका 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा हमारा दिमाग इस्तेमाल करता है।
  • हमारी धरती पर एक मिनट में छह हजार बार बिजली गिरती है।
  • जब 1878 में पहली बार फ़ोन डायरेक्ट्री बनी थी तब उसमें केवल पचास नाम थे। एक शोध के मुताबिक हमारे देश में नलों से ज्यादा मोबाईल हैं। मतलब यह कि जिस देश में आधी से ज्यादा आबादी के पास पीने को शुद्ध पानी नहीं उसमें आप मुफ़्त बात अवश्य कर सकते हैं।
  • आर्कटिक महासागर विश्व का सबसे छोटा महासागर है।
  • अंग्रेज़ी भाषा का सबसे पुराना शब्द है "Town"।
  • 111,111,111 x 111,111,111 = 12,345,678,987,654,321
  • अफ़्रीकी हाथी के मुँह में केवल चार दाँत होते हैं।
  • गिरगिट की जीभ उसके शरीर से दो गुनी लम्बी होती है।
  • व्हेल मछली उलटी दिशा में नहीं तैर सकती।
  • हाथी अपनी सूँड में पाँच लीटर तक पानी रख सकता है।
  • टिड्डे का खून सफ़ेद रंग का होता है।
  • न्यूटन की उम्र तेईस वर्ष की थी जब उन्होंने  पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल की खोज करी थी।

  • मगरमच्छ को रंगों की पहचान में कठिनाई होती है।
  • हैरानी की बात यह है कि मगरमच्छ अपनी जीभ नहीं हिला सकता है।
क्या आप जानते हैं के अन्य लेख

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Tuesday, December 13, 2011

वैदिक गणित की एक नई श्रूंख्ला - भाग एक Vedic Mathematics Series - Learn Un-Conventional ways of Multiplication Division

भारत का इतिहास व इसकी सभ्यता सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। कोई वस्तु जितनी पुरानी होती जाती है उतने ही उसके टूटने व खराब होने के आसार बढ़ते जाते हैं। परन्तु आज भी भारत यदि अपने स्वाभिमान के साथ टिका हुआ है तो उसका कारण इस देश का इतिहास ही है। जब हम देखते हैं पश्चिम के लोग आध्यात्मिकता के लिये भारत का रूख करते हैं तो गर्व का अनुभव होता है। आध्यात्मिकता ही आज एकमात्र रास्ता है पृथ्वी व विश्व के टिके रहने का। हिन्दू धर्म में आध्यात्मिकता की जो बातें हैं व सीख है उससे पूरा विश्व आकर्षित होता है। भारतीय इतिहास ने राम व कृष्ण को देखा है जो मर्यादा में भी रहते हैं और आदि व अनन्त का रहस्य भी बताते हैं। हमने चरक व सुश्रुत को भी देखा है जिन्होंने शल्य चिकित्सा यानि चीरफ़ाड़ के ऑप्रेशन में महारत हासिल की। आज की भाषा में बात करूँ तो वे उस समय के बहुत बड़े सर्जन थे। हजारों वर्ष पूर्व के सर्जन!! हमने वीर शिवाजी को देखा है, हमने लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगना को भी देखा जो महज तेईस बरस में अंग्रेजों को दाँतों तले उंगलियाँ दबाने पर मजबूर किया। हमने भगत सिंह को देखा, हमने मोहनदास करमचंद गाँधी को भी देखा, हमने स्वामी दयानन्द व राजा राम मोहन राय को देखा जिन्होंने हिन्दू धर्म की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। ऐसा ही शायद ही किसी धर्म में होता हो जब वे स्वयं अपनी गलतियों से सीखें व उसे सुधारने का प्रयास करें। ऐसे साधुओं को मेरा प्रणाम। हमने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। मुगलों, तुगलकों, लोदियों व अंग्रेज़ों का डटकर सामना किया।

हमारे देश में गर्व करने के लिये व सीखने के लिये इतना सब कुछ है फिर भी जब हम पश्चिम का मुँह ताकते हैं तो हैरानी होती है। दरअसल बात यह है कि हम अपना इतिहास भूल चुके हैं। या यूँ कहें कि इतिहास जानते ही नहीं। बराक ओबामा जब कहते हैं आज का विज्ञान भारत के इतिहास में दिये गये वैज्ञानिक उपलब्धियों पर टिका हुआ है तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है। हमने शून्य दिया इस पर हमें गर्व होना चाहिये। जब हमने चिकिसा प्रणाली दी तब गर्व होना चाहिये। जब हमने Trigonometry का सिद्धांत दिया तब गर्व होना चाहिये। मैंने जब नारद पुराण के कुछ पन्ने पलटे तो मैं दंग रह गया कि उसमें ज्योतिष सिखाया गया है और उसमें Trigonometry की Pythagoras Theorem भी है और Heights & Distances के उदाहरण भी। हमें अपने वेदों व उपनिषदों पर गर्व होना चाहिये जिन्होंने आज के विज्ञान की नींव रखी। हमें अपने पूर्वजों पर गर्व होना चाहिये। हमें गीता पर गर्व होना चाहिये जो आज के आध्यात्मिकता की नींव है।

आज से धूप छाँव पर वैदिक गणित का आरम्भ कर रहा हूँ। मैंने अभी हाल ही में इसे पढ़ना शुरू किया और मैं शुरू के कुछ पन्ने पढ़ कर ही हैरान हो गया हूँ। मैं चाहता हूँ कि इस बेहतरीन तकनीक को सभी के साथ बाँटा जाये और सरकार से बार बार अनुरोध करूँगा कि छोटे बच्चों को इसकी शिक्षा दी जाये। ये विदेशी तकनीकों से बिल्कुल अलग है और बेहद सरल है। इसके किसी भी Calculation के लिये आपको केवल पाँच तक का ही पहाड़ा (Table) आने की जरूरत है।

वैदिक गणित सोलह सूत्रों से बना है।

आज एक उदाहरण से इस श्रृंख्ला का प्रारम्भ कर रहा हूँ।

मान लीजिये आपको 8 x 7 निकालना है।
आप कहेंगे कि इसका जवाब 56 है। बिल्कुल सही। लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा कि केवल 5 तक का ही Table आने की आवश्यकता है।

8 और 10 में 2 का अंतर है व 7 और 10 में 3 का अंतर है। इन्हें कुछ इस तरह से लिखें:

8   -  2
7   -  3

अब 8 में से 3 को (8-3 = 5)या फिर 7 में से 2 (7 - 2 = 5) को घटायें।
और 2 * 3 निकालें...(2*3=6)  और कुछ इस तरह से लिखें:

8 2
7 3
(8-3)     (2*3)
5 6

जवाब आपके सामने है: 56

इसी तरह से
7 x 6 = 42

7 3
6 4
(6-3)         (3*4)
3 12 (अब इसमें से 1 को 3 में जोड़ें)

उत्तर : 42


इसे आप 100 के Base तक ले जा सकते हैं.. मसलन
99 * 88

99 1
88 12

(88-1) (1*12)
87 12

= 8712

इस प्रश्न का उत्तर निकालने के लिये आपको ज्यादा से ज्यादा 5 सेकंड लगेंगे... वहीं यदि आप किताबी तरीके से इसका उत्तर निकालने का प्रयास करें तो??? शर्त लगा सकता हूँ तीन से चार गुना अधिक समय लगेगा..
जो आपने ऊपर सूत्र जाना है वह है निखिलं नवतश्चरम दशत: । जगद्गुरू स्वामी श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज (1884-1960) का धन्यवाद जिन्होंने वैदिक गणित को सोलह सूत्रों में पिरो कर हम तक पहुँचाया है।

यह तो अभी शुरूआत है। जैसे जैसे मैं आगे के पन्ने पढूँगा मैं आपके साथ बाँटता रहूँगा।

जय हिन्द
वन्देमातरम
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरीयसी।
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Saturday, December 10, 2011

हमसफ़र मेरे हमसफ़र...आज भूले बिसरे गीत का है खास अंक Evergreen Songs From Films Purnima, Humraaz, Yakeen & Mere Humsafar

आज दस दिसम्बर है.. आज से दो वर्ष पूर्व  जीवन में एक खास पड़ाव आया था... इसलिये इस दिन का मेरे लिये खास महत्त्व है..
आज के भूले बिसरे गीत के अंक में शामिल हैं मेरी पसंद के खास गीत..

ये गीत पुराने होते हुए भी नये से क्यों लगते हैं? ये गाने श्वेत श्याम युग के हैं... ये गाने दादा के जमाने हैं.. ये गीत सदाबहार हैं...

हमसफ़र मेरे हमसफ़र पंख तुम परवाज़ हम
ज़िन्दगी का गीत हो तुम, गीत की आवाज़ हम
फ़िल्म : पूर्णिमा, कल्याणजी आनंद जी




तुम  अगर  साथ  देने  का  वादा  करो (फ़िल्म : हमराज़)

तुम  अगर  साथ  देने  का  वादा  करो
मैं  यूँ ही  मस्त  नगमे  लुटता  रहूँ
तुम  मुझे  देख  कर  मुस्कुराती  रहो
मैं तुम्हे  देख  कर  गीत  गाता  रहूँ

कितने  जलवे  फिजाओं  में  बिखरे  मगर
मैंने  अब  तक  किसी  को  पुकारा  नहीं
तुमको  देखा  तो  नज़रें  यह  कहने  लगीं
हमको  चेहरे  से  हटना  गवारा  नहीं
तुम  अगर  मेरी  नज़रों  के  आगे  रहो ,
मैं हर  एक  शय  से  नज़रें  चुराता  रहूँ

तुम  अगर  साथ  देने  का  वादा  करो

मैंने  ख्वाबों  में  बरसों  तराशा  जिसे
तुम  वही  संग-ए -मर्मर  की  तस्वीर  हो
तुम  न  समझो  तुम्हारा  मुक़द्दर  हूँ  मैं
मैं  समझता  हूँ  तुम  मेरी  तकदीर  हो
तुम  अगर  मुझको  अपना  समझने  लगो
मैं बहारों  की  महफ़िल  सजाता  रहूँ ,
तुम  अगर  साथ  देने  का  वादा  करो


गर तुम भुला न दोगे (फ़िल्म: यकीन 1969)








गर  तुम  भुला  न  दोगे
सपने  यह  सच  ही  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे 
गर  तुम  भुला  न  दोगे
सपने  यह  सच  ही  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे 

मालिक  ने  अपने  हाथों 
जिस  दम  हमे  बनाया
डाली  दिलों  में  धड़कन
और  दिल  से  दिल  मिलाया
फिर  प्यार  का  फ़रिश्ता
दुनिया  में  लेके  आया 

गर  तुम  भुला  न  दोगे
सपने  यह  सच  ही  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे 

जीवन  के  हर  सफ़र  में
हम  साथ  ही  रहेंगे 
दुनिया  के  हर  डगर  पर
हम  साथ  ही  चलेंगे
हम  साथ  ही  जियेंगे
हम  साथ  ही  मरेंगे 
गर  तुम  भुला  न  दोगे
सपने  यह  सच  ही  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे
हम  तुम  जुदा  न  होंगे 

किसी राह में किसी मोड़ पर
यूँ ही चल न देना तू छोड़ कर... मेरे हमसफ़र



और भी गीत शामिल हो सकते थे पर सभी को एक अंक में शामिल करना मुमकिन नहीं था...

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Tuesday, December 6, 2011

अहम ब्रह्मास्मि ! Aham Brahmasmi

आत्मा
परमात्मा
आदि अनन्त
साधु व संत
सप्तरंगी छँटा
वादियों में घटा
खग विहग
वर्षा सावन
वन उपवन
पवित्र पावन

मरूभूमि की रेत
सरसों के खेत
खेत में फ़सल
वायु व जल
गीत संगीत
पूनम का चाँद
अमावस की रात

सुख दुख
आज कल
काल चक्र
अच्छा बुरा
अच्छा क्या?
बुरा क्या ?

तेरा मेरा
अपना पराया
तुझमें समाया
खुशी गम
माया व भ्रम...

धूप छाँव
राह  मंज़िल
समंद्र व साहिल
मस्जिद मंदिर
पंडित काज़ी
एक ही जहाज
एक ही माझी

कंस रावण
दुर्योधन दुशासन
कृष्ण या राम
एक ही नाम
ॐकार निराकार

पुरुष प्रकृति
साकार आकृति

रे सर्वज्ञ !
रे सर्वेश्वर !
अर्धनारीश्वर..
क्यूँ है मौन
मैं हूँ कौन ?
मृत्यु जीवन
सत्य अटल
एक सत्य
सत्य असत्य
अग्नि नभ
तुझमें सब
अंतरिक्ष नक्षत्र
ब्रह्म सर्वत्र
तुझमें संसार
मुझमें संसार
तू मैं
मैं तू

अहम ब्रह्मास्मि !

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Thursday, December 1, 2011

किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है Film Anari 1959, Singer Mukesh

राजकपूर की फ़िल्म अनाड़ी आई थी 1959 में। आज भूले बिसरे गीत में शामिल हैं इसी फ़िल्म के गीत। राजकपूर के अधिकतर गाने मुकेश ने गाये हैं और उनकी आवाज़ के कहने ही क्या...

किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार 


इस गाने को यूट्यूब पर सर्च करने पर आपको सैकड़ों ऐसे गाने भी मिल जायेंगे जो किसी न किसी सम्गीत प्रेमी ने राज कपूर व मुकेश की याद में स्वयं गाये हैं... उन्हें श्रद्धांजलि दी है..यही इसके बोल, आवाज़ का कमाल है...
ब्लॉगर में कोई "बग" है जिसके कारण इस गाने को सर्च करने पर भी "असली" गाना नहीं दिखा रहा है अत:  लिंक पर आपको स्वयं जाना होगा..


असली गाना इस लिंक पर 
http://www.youtube.com/watch?v=tKpfIAXnPr0


किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार 
किसी  का  दर्द  मिल  सके  तो  ले  उधार
किसी  के  वास्ते  हो  तेरे  दिल  में  प्यार
जीना  इसी  का  नाम  है

किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार
किसी  का  दर्द  मिल  सके  तो  ले  उधार
किसी  के  वास्ते  हो  तेरे  दिल  में  प्यार
जीना  इसी  का  नाम  है

माना  अपनी  जेब  से  फ़कीर  हैं
फिर  भी  यारों  दिल  के  हम  अमीर  हैं
माना  अपनी  जेब  से   फ़कीर  हैं
फिर  भी  यारों  दिल  के  हम  अमीर  हैं

मिटे  जो  प्यार  के  लिए  वो  ज़िन्दगी 
चले  बहार  के  लिए  वो  ज़िन्दगी
किसी  को  हो  न  हो  हमें  तो  ऐतबार
जीना  इसी  का  नाम  है

किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार
किसी  का  दर्द  मिल  सके  तो  ले  उधार
किसी  के  वास्ते  हो  तेरे  दिल  में  प्यार
जीना  इसी  का  नाम  है

रिश्ता  दिल  से  दिल  के  ऐतबार  का 
जिंदा  है  हमी  से  नाम  प्यार  का 
रिश्ता  दिल  से  दिल  के  ऐतबार  का 
जिंदा  है  हमी  से  नाम  प्यार  का 


कि मरके  भी  किसी  को  याद  आयेंगे 
किसी  के  आंसुओ  में  मुस्कुरायेंगे 
कहेगा  फूल  हर  कली  से  बार  बार 
जीना  इसी  का  नाम  है 

किसी  की  मुस्कुराहटों  पे  हो  निसार
किसी  का  दर्द  मिल  सके  तो  ले  उधार
किसी  के  वास्ते  हो  तेरे  दिल  में  प्यार
जीना  इसी  का  नाम  है


सब  कुछ  सीखा  हमने , न  सीखी  होशियारी 

सब  कुछ  सीखा  हमने , न  सीखी  होशियारी
सच  है  दुनियावालों , की  हम  हैं  अनाड़ी

दुनिया  ने  कितना  समझाया
कौन  है  अपना , कौन  पराया
फिर  भी  दिल  की  चोट  छुपा  कर
हमने  आपका  दिल  बहलाया
खुद  पे  मर  मिटने  की , ये  जिद  थी  हमारी  (2)
सच  है  दुनियावालों  की  हम  हैं  अनाड़ी

असली  नकली  चेहरे  देखे
दिल  पे  सौ  सौ  पहरे  देखे
मेरे  दुखते  दिल  से  पूछो
क्या  क्या  ख्वाब  सुन्हेरे  देखे
टूटा  जिस  तारे  पे  नज़र  थी  हमारी  (2)
सच  है  दुनियावालों  की  हम  हैं  अनाड़ी

दिल  का  चमन  उजड़ते  देखा
प्यार  का  रंग उतरते देखा
हमने  हर  जीने वाले  को
धन दौलत  पे  मरते देखा
दिल  पे  मरने वाले मरेंगे भिखारी  (2)
सच  है  दुनियावालों  की  हम  हैं  अनाड़ी

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जय हिन्द
वन्देमातरम
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