Monday, July 28, 2008

'आवाज़' से रचता ब्लोगिंग में इतिहास

पिछले वर्ष हिन्दयुग्म ने संगीत के क्षेत्र में एक शुरूआत की, जिसका नाम रखा गया-आवाज़। वो आवाज़ जिसके माध्यम से नये संगीतकारों, गीतकारों व गायकों को एक मंच मिल सके जिससे ये सभी प्रतिभावान चेहरे लोगों के सामने आ सकें व अपनी कला प्रदर्शित कर सकें।

पहले इस ब्लाग का मकसद था कविताओं व कहानियों का पोडकास्ट। ऐसा प्रयोग शायद ही कभी किसी ब्लाग या किसी साइट ने किया हो। उसके पश्चात इसका दायरा बढ़ने लगा। सुबोध साठे व ऋषि जैसे गायक व संगीतकार आगे आये। दिसम्बर २००७ में शुरू हुए आवाज़ के मंच पर हर सप्ताह नये चेहरों की प्रतिभा सामने आने लगी। फरवरी २००८ में हिन्दयुग्म ने अपना पहला एल्बम पहला सुर प्रगति मैदान में लांच किया। ये भी ब्लागिंग के इतिहास में पहली मर्तबा हुआ होगा कि कोई ब्लाग संगीत एल्बम रिलीज़ कर रहा हो। इस एल्बम के गीतों की खास बात यह रही कि ये गीत इंटेरनेट पर ही बनाये गये हैं। कोई व्यक्ति उत्तर भारत का होता तो कोई दक्षिण का तो कोई विदेश से काम करता। इस तरह का विचार और प्रयोग भी अपने आप में अनूठा है।
ये गीत इतने पसंद आये कि ये DU-FMअमरीका के डैलास में भी सुने गये। दिल्ली में १०२.६ FM पर भी इसके गीतों का प्रसारण हुआ वो हिन्दयुग्म के सदस्यों का इंटरव्यू भी आया।

पहला सुर की कामयाबी के बाद आजकल आवाज़ पर नयी श्रृंख्ला का आरम्भ हुआ है। इसमें पहले वाले गीतकार व संगीतकार तो हैं ही बल्कि नये संगीतकार भी जुड़े हैं। ये पहले से बड़ा कदम है व लोगों द्वारा लगातार सराहा जा रहा है। इसका अंदाज़ा लगातार बढ़ती टिप्पणियों से लगाया जा सकता है। 'आवाज़' पर १६ साल के संगीतकार भी हैं व संजय पटेल जैसे सलाहकार भी।

अभी रविवार को ही इंटेरनेट पर कवि सम्मेलन हुआ। ये भी अपने आप में अलग व अनूठा प्रयास कहा जा सकता है। इसकी शुरआत रविवार को ही हुई। और अब खबर ये है की पहला सुर के गीतों को वोडाफोन ने अपनी कालर ट्यून की लिस्ट में भी जगह दे दी है। क्या ये 'आवाज़' की सफलता का प्रंमाण नहीं!!

जिस तरह की कामयाबी हिन्दयुग्म की आवाज़ को प्रथम वर्ष में ही मिल गई है उससे इसके भविष्य का अंदाज़ा लगया जा सकता है जो निःसंदेह उज्ज्वल होगा। इंटेरनेट पर हिन्दी ब्लागिंग में हिन्दयुग्म ने अपने पाठकगण व कविता/कहानियों के दम पर पहले ही तहलका मचाया हुआ है और अब संगीत के क्षेत्र में 'आवाज़' भी धूम मचा रही है। अब इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये 'आवाज़' ब्लागिंग के क्षेत्र में हर पल नया इतिहास रच रही है।
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Sunday, July 20, 2008

मीडिया, अंधविश्वास और कलियुगी धर्म

अनुरोध : किसी को ठेस पहुँचाना मेरा मकसद नहीं। ये लेख निष्पक्ष हो कर पढें।
धर्म पर मैं पहले भी काफी बार लिख चुका हूँ। कभी धर्म का मतलब जानना चाहा (http://tapansharma.blogspot.com/2007/01/blog-post_4643.html) तो कभी धर्म व क्षेत्रवाद से भारत को टूटने से बचाने पर जोर दिया (http://tapansharma.blogspot.com/2008/03/un.html)। इस बार थोड़ा और आगे बढ़ेंगे।

हम २१वीं सदी में जीते हैं। आज मीडिया पर भी कहूँगा और धर्म को व्यवसाय बनाने वाले लोगों के बारे में भी कहना चाहूँगा। पिछले कुछ समय से टीवी पर साई बाबा की खबरें खूब जोर शोर से दिखाई जा रही हैं। कभी कुछ चमत्कार दिखाया जाता है, कभी कुछ। कभी उनकी आकाश में तस्वीर बनती दिखाई जाती है, तो कभी उनकी एक आँख खुली हुई होती है(http://www.orkut.co.in/CommMsgs.aspx?cmm=141335&tid=5224298292176437798)। ऐसे ही अनगिनत करिश्में रोजाना हम इंडिया टीवी, आजतक और IBN जैसे हिन्दी चैनलों पर देख सकते हैं। मेरा कहना है कि ऐसा पहले क्यों नहीं हुआ? अब ही क्यों हर दिन नये नये खेल हो रहे हैं? हर रोज साईं बाबा का ही जिक्र क्यों? क्या चाहते हैं उनके अनुयायी? मीडिया का इस्तेमाल कर क्या बेच रहे हैं उस महान संत को?मेरी शिकायत है धन के लालची व टी आर पी के चक्कर में फँसे चैनलों से व बाबा के उन समर्थकों से जिन्होंने धर्म को बेच दिया। उस संत महात्मा को तो पता भी न होगा कि उसके नाम का कैसा दुरुपयोग हो रहा है!!!ये २१वीं सदी है(?)

ये तो बात हुई मीडिया की धर्म बेचने वालों से साठ-गाँठ की। आजकल रात को ११ बजे के बाद न्यूज़ के चैनलों पर एक ही खबर होती है। कहीं पर खौफ होता है तो कहीं काल, कपाल, महाकाल के चर्चे, कहीं कब्रिस्तान दिखाया जाता है तो कहीं श्मशान पर तप करते अघोरी। अगर हम २१वीं सदी में हैं तो खबरिया चैनलों को चाहिये कि ऐसे अंधविश्वासों को बढ़ावा न दे। परन्तु होता इसके उलट ही है। इन चैनलों को पता है कि लोग यही सब देखना पसंद करते हैं, अगर ये सच दिखायेंगे तो इन्हें डर है कि कहीं टी.आर.पी न गिर जाये। इन्हें "भूतों" को बेचना है, चुडैलों से लोगों को डराना है। इंडिया टीवी ने कुछ साल पहले नकली बाबाओं को पकड़ा था, लेकिन लगता है कि भूतों ने अब इनके स्टूडियो में डेरा जमा लिया है। इन चैनलों ने अपनी सारी सीमायें तोड़ दी हैं।

डेरा की बात चली है तो बात करते हैं बाबा राम रहीम के डेरे की भी। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आत्मिक ज्ञान देने वाले संतों के शिष्य इतने लड़ाके कैसे हो सकते हैं? हैरानी की बात ये है कि ये बाबा भी अपने शिष्यों को शांत नहीं कराते हैं। क्या ये ज्ञान फर्जी बाँटा जाता है? क्या ये संतों का ड्रामा भर है? क्या ये पंजाब हरियाणा में फैल रहे दंगे फ्सादों को बंद नहीं करवाना चाहते? क्या चाहते हैं बाबा? लोगों को प्रेम का ज्ञान बाँटने वाले ये बाबा हिंसक कैसे हो जाते हैं? क्या लोग ही नहीं सुनते उनकी? सारा ज्ञान बेकार? डेरा से निकल कर अहमदाबाद पहुँचें तो पायेंगे कि एक और बाबा के भक्तों का बडा वर्ग गुस्से में बैठा है। यहाँ आग भड़की है आसाराम बापू के आश्रम में हुई २ बच्चों की मौतों के बाद। लोग आक्रोश में हैं और उनसे भिड़ रहे हैं बापू के शिष्य। उस पर इस संत का बयान ये कि "गुरु पर हमला होगा तो शिष्य चुप क्यों बैठेंगे?" । यानि सीधा सीधा आज्ञा दे दी है कि जो करना है करो। तोडफोड करनी है करो। मीडिया ने कुछ समय पहले ६-७ बाबा लोगों का पर्दाफाश भी किया था, किन्तु उन बाबाओं के (अंधे) भक्तों ने ये सब मानने से इंकार किया। हम २१वी सदी में हैं!!

एक दोहा पढ़ा था कभी, "गुरू गोविंद दोऊ खडे काके लागू पाये, बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो बताये"। गुरु को ईश्वर का दर्जा दिया गया है। ईश्वर प्रेम सिखाता है। किन्तु क्या ईश्वर इतना निर्दयी हो गया है कि अब दंगे फसाद करवाने लगा है। ये धर्म है जो हत्यारा है मासूमों का, ये धर्मगुरू हैं कातिल ईश्वर के!!!इन्होंने धोखा दिया है करोडों लोगों के विश्वासों को। ये खूनी हैं उस आत्मा के जो मिलना चाहती है परम-आत्मा से...ये २१वीं सदी भी है, यहाँ झूठा मीडिया भी है जो कभी अँधविश्वास से दूर रहने का ढोंग करता है तो कभी उसी अँधविश्वास की थाली लोगों को परोसता है। यहाँ करोडों (अँध) विश्वासी लोग भी हैं जिन्हें पता ही नहीं चल पाता है कि उनके साथ कैसा विश्वासघात हो रहा है। और यहाँ ऐसे (सद?)गुरू भी हैं जो फायदा उठाते हैं ऐसे लोगों का... ये कलियुग है..ये कलियुगी धर्म है...यहाँ कलियुगी धर्मात्मा हैं..ये २१वीं सदी है..(???)!!!
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