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Monday, November 28, 2011

चर्चा में: शरद पवार, कोलावरी डी और विदेशी पूँजी निवेश Sharad Pawar, Kolaveri Di, Foreign Direct Investment

पिछले सप्ताह हमारे देश में तीन महत्त्वपूर्ण घटनायें हुईं। पहली शरद पवार को हरविंदर सिंह द्वारा मारा गया थप्पड़, दूसरा कोलावेरी डी का तमिल गीत और तीसरा विदेशी पूँजी का भारत में बढ़ता निवेश।

बात शरद पवार की। महाराष्ट्र में उनके चीनी के कारखाने हों या रियल एस्टेट का कारोबार। वे विश्व के सबसे रईस बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। और देश के कृषि मंत्री भी। हमारा देश शुरू से ही कृषि प्रधान देश रहा है। इस लिहाज से यह मंत्री पद महत्त्वपूर्ण पदों में से एक है। पिछले दस वर्षों में लाखों किसानों ने या तो आत्महत्या की है या फिर खेती छोड़ी है। यह देश के लिये बेहद खतरनाक संदेश है। उस पर उनका आईसीसी के कार्यों में भी घुसे रहने का मतलब है पूरी तरह से कृषि मंत्रालय पर ध्यान न देना। उसपर किसान की जमीन पर भू माफ़ियाओं व बिल्डरों का कब्जा होना। उन्हीं के ही राज्य के विदर्भ क्षेत्र में किसानों का आत्महत्या करना। कितने ही विवाद हैं और कितनी ही समस्यायें। इन सब के लिये कोई नीति ही नहीं है। बहरहाल उन पर थप्पड़ मारने की घटना को हँसी में लेने की बजाय गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। इस थप्पड़ का मतलब देश के लोगों का सरकार के ऊपर से विश्वास का उठना है। यह थप्पड़ उस लोकतंत्र पर भी है जहाँ जिन नेताओं को हम चुन कर संसद भेजते हैं उन्हीं पर भरोसा नहीं कर पाते। यह सरकार की विफ़लता झलकाता है। नेताओं व सरकार पर से भरोसा उठना बेहद चिन्ताजनक व दुखद है। यह घटना दुखद है। पर क्या सरकार पर अथवा नेताओं पर इन सबका असर पड़ेगा? यह कहना कठिन है। क्या नेता व मंत्री व अफ़सर अपनी ज़िम्मेदारी समझ पायेंगे? सवाल बहुत है पर निकट भविष्य में इनके जवाब मिलने कठिन हैं।

आगे चलें तो सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए खुदरा बाज़ार में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी है। मैं कोई वित्त विशेषज्ञ नहीं  हूँ लेकिन यदि मैं दो सदी पीछे जाऊँ तो पाता हूँ कि गलती हमने ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में आ जाने की भी की थी। गाँधी जी ने स्वदेशी अपनाने का आंदोलन भी किया था। आज वही कांग्रेस विदेशियों को अपने देश में आने का निमंत्रण दे रही है। ग्लोबलाइज़ेशन के इस दौर में यह गलत नहीं है। 49 प्रतिशत तक ठीक है क्योंकि विदेशी कम्पनी का कब्जा नहीं हो पायेगा किन्तु पचास फ़ीसदी से अधिक निवेश का आशय स्पष्ट है कि देश में विदेशियों का कब्जा होगा। सरकार की दलील है कि किसान को पूरा पैसा मिलेगा और महँगाई पर रोक लगेगी। इससे छोटे कारोबारियों को नुकसान भी नहीं होगा। हमारे देश में टाटा, रिलायंस, बिड़ला, प्रेमजी व न जाने कितने ही बड़े नाम व कॉर्पोरेट घराने हैं जो खुदरा कारोबार में आ सकते हैं या फिर आ चुके हैं। क्या सरकार इन कम्पनियों को इतना काबिल नहीं बना सकती? क्या जब देश के कॉर्पोरेट घराने खुदरा बाज़ार में कारोबार करेंगे तो सस्ता सामान मुहैया नहीं करा सकते? ऐसा विदेशी कम्पनी में क्या होता है जो देशी में नहीं? क्या खुदरा नीति देश की कम्पनियों के लिये नहीं बदल सकती कि किसानों तक पूरा पैसा पहुँचे? ऐसा क्यों है कि हम हर बार पश्चिम की ओर मुँह कर के खड़े हो जाते हैं। क्यों नहीं हम स्वयं में सुधार करते? विदेशी ही हमारे देश को चलायेंगे तो यह हमारी कमजोरी है और हमारी विफ़लता। वॉल्मार्ट आदि केवल खाद्य उत्पादन ही नहीं बल्कि घर की सभी वस्तुयें जैसे फ़र्नीचर, बर्तन आदि भी बेच सकेंगे।  जो अर्थशास्त्री हैं वे ही इस पर रोशनी डाल सकते हैं कि देशी कम्पनियाँ क्यों नहीं वो काम कर सकतीं जो विदेशी आ कर करेगी? क्या गारंटी है कि चीनी कम्पनियाँ हमारे देश के छोटे व्यवसायों को नुकसान नहीं पहुँचायेंगी जो पहले ही खतरे से जूझ रहे हैं?

आखिर में बात करते हैं कोलावरि डी की। आमतौर पर वही गाने सुनते हैं जिनके बोल हमें समझ आते हैं या यूँ कहें कि जिन भाषाओं की हमें जानकारी है। पर संगीत शायद एक ऐसा माध्यम है जिसने आदि काल से एक दूसरे को जोड़ा हुआ है। संगीत हर दिल में है। कहते हैं कि संगीत की अपनी कोई भाषा नहीं होती। इसीलिये शायद कोलावरि डी आज उत्तर भारत में भी हिट है। आज दिल्ली के रेडियो चैनलों पर तमिल गीत सुनने को मिल रहा है। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि फ़िल्म "थ्री" रजनीकांत के दामाद की फ़िल्म है इसलिये यह गाना मशहूर हुआ है। कुछ लोग इसे महज इत्तेफ़ाक या भाग्य भी मानते हैं। लेकिन जब रजनीकांत का कोई तमिल गाना दिल्ली में नहीं बजा (या कहें कि मुझे याद नहीं रहा) तो उनके दामाद का गाना बजना महज एक संयोग तो नहीं। पर फिर भी यदि ऐसा हुआ है तो यह देश की एकता के लिहाज से अच्छा संयोग है। अनेकता में एकता यदि ऐसे संयोग से और प्रगाढ़ हो सकती है तो कहने ही क्या!!! 


जय हिन्द
वन्देमातरम
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरियसी
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Sunday, September 11, 2011

अमर सिंह को पहुँचे तिहाड़, दिल्ली पर आतंकी हमला और पाकिस्तान व चीन क्या कर रहे हैं राजस्थान की सीमा पर? China-Pakistan At Rajasthan Border, Amar singh sent to Tihar, Delhi Bomb Blast - Where are terrorists?

राजनैतिक दृष्टि से पिछला सप्ताह काफ़ी उथल-पुथल का रहा। वैसे तो पिछले दो-तीन वर्षों में कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता जब पक्ष व विपक्ष शांत रहे हों। दिग्विजय सिंह जी ने रामदेव को ठग की उपाधि तक डाली। बेल्लारी बँधुओं को कर्नाटक में हो रहे अवैध खनन के मामले में जेल भेज दिया है। अन्ना की टीम अपनी अगली रणनीति के लिये मीटिंग कर रही है। लेकिन तीन मुद्दे महत्त्वपूर्ण रहे जिनमें से दो पर तो मीडिया की नज़र गई पर एक खबर ऐसी थी जो पर्दे के पीछे रह गई। 


पहली खबर रही अमर सिंह को तिहाड़ भेजने की। आज के हालात ऐसे हैं जिसमें या तो तिहाड़ में 800 लोगों के लिये एक ऑडिटॉरियम बनवा देना चाहिये या फिर संसद में तिहाड़-एक्स्टेंशन खोल देना चाहिये। "वोट के बदले नोट" का केस जो वर्ष 2008 में चर्चा का विषय रहा। अमर सिंह के ऊपर आरोप है कि उन्होंने भाजपा के तीन सांसदों को सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिये घूस दी। उन्होंने अदालत में अर्जी दी कि उनकी दोनों किडनी खराब चल रही हैं और वे काफ़ी बीमार हैं। जज ने उनकी ये अपील खारिज कर दी और उन्हें अदालत में दोपहर 12.30 बजे तक हाजिर होने का आदेश दिया। उनके साथ भाजपा के दो पूर्व सांसद भी जेल भेज दिये गये। जिन तीन सांसदों को रिश्वत दी गई थी उनमें से एक आज भी सांसद हैं इसलिये बिना लोकसभा सेक्रेट्री के आदेश के उन्हें जेल नहीं भेजा सकता था।

यदि आपको याद हो तो यह एक स्टिंग ऑप्रेशन था जिसे भाजपा ने आईबीएन के साथ मिलकर किया था। भाजपा के तीनों सांसदों ने जानबूझ कर रिश्वत ली और कैमरे में कैद करना चाहा। भाजपा ने संसद में रूपयों  की गड्डी उछालीं और यह उम्मीद करी की आईबीएन स्टिंग ऑप्रेशन की  वीडियो जनता को दिखायेगा। लेकिन इस चैनल ने यह कहकर वीडियो दिखाने से मना कर दिया कि तस्वीरें साफ़ नहीं थीं। अब  इसे क्या कहा जाये मुझे नहीं मालूम। और इन सब में हैरानी की बात यह रही सीबीआई ने सत्ता पक्ष के एक भी नेता पर आरोप नहीं लगाये।   मतलब यह कि अमर सिंह ने रिश्वत दी,  भाजपा सांसदों ने रिश्वत ली, चैनल ने सब रिकॉर्ड किया पर इन सबसे जिस सरकार का फ़ायदा होना था उस सत्ता पक्ष में कोई आरोपी नहीं।

दूसरा मुद्दा रहा दिल्ली में हुआ बम विस्फ़ोट। तेरह लोग मारे गये और सौ के करीब घायल हुए। सरकार की ओर से वही रिकॉर्डेड बयान जो शायद उन्होंने पहले भी कईं बार यही बयान दिये होंगे। सुन सुन कर कान भी पक गये हैं। माना कि हर बम विस्फ़ोट नहीं रोका जा सकता। पर होने के बाद आतंकवादी पकड़े तो जा सकते हैं? लेकिन नहीं, चार दिन में एक  भी आतंकवादी पकड़ा नहीं गया। सारी एजेंसियाँ अपने हिसाब से केस देख रही हैं। दिल्ली के पिछले कितने ही बम विस्फ़ोटों में एक भी आरोपी को नहीं पकड़ा जा सका है। क्या कर रही हैं सुरक्षा एजेंसियाँ? और यदि एक आध कोई अफ़्ज़ल या नलिनी जैसा पकड़ा भी जाता है तो उसे सजा नहीं होती। क्योंकि यदि फ़ाँसी हो गई तो किसी को अल्पसंख्यक वोट नहीं मिलेंगे तो किसी को अपने राज्य के। यह कैसा ’वोट’तंत्र है?


दस साल पहले अमरीका में आतंकी हमला हुआ। उसके दस साल में एक भी नहीं। और जिसने हमला किया वो  लादेन भी मारा गया। लेकिन हमारे देश में दस साल पहले संसद पर हमला हुआ। वह संसद जिससे देश चलता है। भारत की आन-बान-शान की धज्जियाँ उड़ा दी गईं। उस हमले के दस साल के अंदर इस  देश में 38 हमले हो चुके हैं। लेकिन किसी को सजा नहीं हुई। अफ़्ज़ल और कसाब जेल में कबाब खा रहे हैं। पर कैद में होते हुए भी आज़ाद हैं। यह कैसा कानून है? यह कैसा संविधान?

यह दोनों खबरें मीडिया में चर्चा में रहीं लेकिन सप्ताह के आरम्भ में एक ऐसी घटना घटी जो इक्के-दुक्के समाचार-पत्रों में ही नज़र आईं वो भी केवल एक ही दिन।

राजस्थान के बाड़मेर में एक गाँव है मुनाबाओ। यह गाँव पाकिस्तान के बॉर्डर पर स्थित है। पाकिस्तान इसी बॉर्डर के नज़दीक ही रेलवे स्टेशन बना रहा है। आप कहेंगे कि इसमें हर्ज ही क्या है? नियम के अनुसार किसी भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 150 गज के दायरे के अंदर कोई भी देश निर्माण नहीं कर सकता है। जबकि पाकिस्तान जो रेलवे स्टेशन बना रहा है वो केवल दस मीटर की दूरी पर है। जी हाँ, केवल दस मीटर। 2006 में उन्होंने इस सीमा पर ट्रैक बिछाना शुरु किया था जो अब सीमा के बेहद नज़दीक आ गया है। अब चौकाने वाली एक और बात यह है कि ये सब काम एक चीनी कम्पनी कर रही है। 

अब आप लोगों को सब समझ आ गया होगा। चीनी ड्रैगन ने पश्चिमी सीमा पर भी अपना कब्जा कर लिया है। सीमा सुरक्षा बलों की हर हरकत पर चीन की नज़रें हैं। हम चारों ओर से घिर चुके हैं। भारत ने अपनी शिकायत दर्ज कराई है पर...। इन सबसे क्या मिलेगा भारत को? श्री एस.एम.कृष्णा जैसे विदेश मंत्री हमारे पास हैं। कौन सा आरोपी पाकिस्तान की जेल में है कौन सा राजस्थान की यह उन्हें नहीं पता। सरबजीत को पाकिस्तान ने क्यों पकड़ रखा है यह उन्हें नहीं पता। हीना रब्बानी खार उनसे पहले हुर्रियत नेताओं से क्यों मिलीं यह भी उन्हें नहीं पता। सरकार के प्रधानमंत्री हों या राहुल बाबा या सोनिया जी सभी लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं और हमारे कृष्णा साहब तो किसी दूसरे देश का ही भाषण पढ़ देते हैं तो कहाँ विरोध जतायें हम? ऐसे विदेश मंत्री के दरवाजे पर खटखटायें? ठोस विदेशी नीतियों की कमी है हमारे पास या फिर इच्छा शक्ति की?

चलते-चलते: सोनिया जी वापिस आ गई है। "मैडम आईं राहत लाईं" का नारा लगा रहे होंगे कांग्रेसी नेता। देखते हैं अगला सप्ताह क्या नये रंग लेकर आता है।
चीन पाकिस्तान से बड़ा शत्रु है... 

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Thursday, June 9, 2011

हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा कितना है सही? चीन को शत्रु कहें या मित्र? Is China Bigger Enemy Than Pakistan? Chinese Naval Bases In Neighbourhood

"हिन्दी चीनी भाई भाई"- यही नारा दिया था उस पंचशील योजना के दौरान जब पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन यात्रा पर गये थे। उसके कुछ समय पश्चात ही चीन ने हम पर हमला कर दिया और 1962 का वो युद्ध हम हार गये। वो बीता हुआ समय था पर सवाल ये है कि क्या अब बदले हुए वक्त में जब भारत भी सशक्त हो चुका है और विश्व में अपनी पहचान बना चुका है तब चीन और भारत के पड़ोसी रिश्ते वैसे ही हैं जैसे 1962 में थे अथवा नहीं? क्या चीन की सोच भारत के लिये बदली है?

पिछले दिनों धूप-छाँव पर लेख छपा था जिसमें चीन के एक विश्वविद्यालय में चल रहे संस्कृत प्रोग्राम का जिक्र था। उस के शीर्षक में मैंने चीन को "शत्रु" कह दिया था। लेकिन कुछ मित्रों ने यह प्रश्न उठाया कि क्या चीन को शत्रु मानना गलत है? क्रमबद्ध तरीके से बात करते हैं। हर बात का प्रमाण देने का प्रयास रहेगा।

चीन द्वारा माओवादियों की सहायता

गौरतलब है कि चीन नेपाल के रास्ते भारत में माओवादियों को हथियार मुहैया करा रहा है। उसका इरादा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ से होते हुए उड़ीसा तक सभी माओवादियों व नक्सलियों हथियार पहुँचाना। और माओवादी देश के आंतरिक हालात किस तरह से बिगाड़ रहे हैं ये सभी जानते हैं।

कुछ खबरें जो विभिन्न साईट से ली गई हैं।
चैनल 7
" बहराइच के रूपईडिहा में पिछले दिसम्बर में तीन चीनी नागरिकों को सशस्त्र सीमा बल के चौकी की तस्वीर उतारते गिरफ्तार किया गया था। तीनों बिना पासपोर्ट और वीजा के भारत आए थे। उनमें से एक के पास भारतीय स्थायी खाता संख्या (पैन कार्ड) भी मिला था। तीनों अभी बहराइच जेल में बंद हैं।"

दैनिक भास्कर


"नेपाल में भारत की मदद से चलने वाली परियोजनाओं में माओवादियों द्वारा अड़ंगा डालने की एक और घटना सामने आई है। वहीं माओवादी पड़ोसी चीन से अपनी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं। खबर है कि विपक्षी माओवादी पार्टी दक्षिण नेपाल में रेलवे परियोजना पर सर्वे के काम में रुकावटें पैदा कर रही है। जबकि माओवादी नेता प्रचंड एक बार फिर चीन के लिए रवाना हो रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों ने बारदीबास बाजार में सर्वे के दौरान गाड़े गए खंभे भी उखाड़ दिए हैं। इससे पहले माओवादियों ने नेपाल में भारत की मदद से तैयार होने वाली दर्जनों पनबिजली परियोजनाओं को भी ठप करने की धमकी दी थी। इनका कहना है कि ये परियोजनाएं देशहित के खिलाफ हैं।"

वेबदुनिया
"केन्द्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि माओवादियों को चीन से हथियार हासिल हो रहे हैं, चीन की सरकार से नहीं। माओवादियों से निपटने में उड़ीसा सरकार की तैयारी की समीक्षा करने के बाद पिल्लई ने स्पष्ट किया कि मैंने माओवादियों को चीनी सरकार से हथियार मिलने की बात कभी नहीं कही। उन्हें चीन से असलहे हासिल हो रहे हैं, चीन की सरकार से नहीं।हथियारों के अवैध कारोबार को दुनिया का बड़ा व्यवसाय करार देते हुए उन्होंने कहा कि माओवादियों को चीन, म्याँमार और बांग्लादेश जैसे मुल्कों से हथियार हासिल हो रहे हैं। "

चीन का बंगाल की खाड़ी में नौसेना का अड्डा

टाईम्स ऑफ़ इंडिया

चीन ने म्यांमार की सहायता से कोको टापू पर नौसेना का अड्डा बनाया है। ये जगह भारत से नज़दीक है और यहाँ चीन ने हथियार भी रखने शुरु कर दिये हैं। म्यांमार की नौसेना भी चीन का साथ दे रही है उसके बदले में चीन वहाँ की व्यवस्था को सुधार रहा है।

दूसरी खबर बांग्लादेश से है। यहाँ चटगाँव में चीन ने बंगाल की खाड़ी में अपना नौसेना अड्डा बनाया है।

चीनी वेबसाईट के खुलासे में

चीन का लिट्टे के विरुद्ध श्रीलंका की मदद करना  और वहाँ सैन्य अड्डा खोलना

श्रीलंका के हम्बंतोता में चीन ने पूरी तरह से कमर्श्यल बंदरगाह बनाया है और वहाँ पर अपना सैन्य अड्डा भी खोल दिया है। इसके लिये लिट्टे के विरुद्ध चीन ने लंका की सहायता करी। इस बंदरगाह के लिये चीन ने एक बिलियन डालर खर्च किय हैं। एक बिलियन डालर!!
स्रोत: पाकिस्तानश्रीलंका की साईट

चीन का पाकिस्तान में नौसेना अड्डा और परमाणु शक्ति बनाना

हाल ही में पाकिस्तान के नौसेना अड्डे पर अलकायदा का हमला हुआ। पाकिस्तान ने भी काफ़ी समय से लम्बित अपने निर्णय पर सहमति जता दी है और चीन की मदद से एक नौसेना अड्डा खोलने को कह दिया है। ओसामा के मरने के बाद एक चीन ही था जो खुले तौर पर पाकिस्तान के साथ आया। चीन पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करता आया है ये बात भी किसी से नहीं छिपी है। और तो और पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनाने में चीन का ही हाथ है। काराकोरम की घाटियों में भी चीन सैन्य कार्रवाही करता आ रहा है।

टाईम्स ऑफ़ इंडिया

बंगाल की खाड़ी हो या अरब सागर या फिर हिन्द महासागर। तीनों ओर से चीन भारत को घेर चुका है। पाकिस्तान, लंका, नेपाल, बंग्लादेश म्यांमार-सभी पड़ोसी देश चीन के साथ हैं। 
रही सही कसर चीन स्वयं कभी सिक्किम व अरूणाचल प्रदेश तो कभी कश्मीर में घुसपैठ कर पूरी कर देता है। इन सभी राज्यों में उसने जमीन हड़प रखी है ये भी सभी को ज्ञात है। इन सब बातों के बाद इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज चीन पाकिस्तान से भी बड़ा शत्रु है। हमने ६२ के बाद भी कोई सीख नहीं ली। न हम खुल कर चीन के सामने आ पाते हैं। तिब्बत के लोग भारत से मदद की गुहार लगाते रहते हैं पर हम चुप रहते हैं।

चीन शत्रु है इसमें कोई संशय नहीं परन्तु यदि हम आँख मूँद कर बैठे रहे और अनजान बनकर चीन को अपना मददगार समझते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब ड्रैगन भारतीय बाघ को चारों तरफ़ दबा कर उसकी साँस रोक देगा और निगल जायेगा।


जय हिन्द
वन्देमातरम

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Sunday, May 8, 2011

दोरजी खांडू का निधन और पूर्वोत्तर राज्यों से होते सौतेले व्यवहार के बीच प्रधानमंत्री के नाम पत्र Death Of Dorji Khandu, North-East States Ignored By Media - Letter to Prime Minister

माननीय मनमोहन जी,

सर्वप्रथम आपकी सरकार को बधाई देता हूँ कि आप की यूपीए सरकार को तीन बरस होने वाले है। परन्तु शायद आप भी इस बात से सहमत होंगे कि इस बार प्रधानमंत्री की कुर्सी आपके लिये काँटों भरा ताज रहा है। आज मेरे पत्र लिखने का खास कारण है।

दोरजी खांडू को आप जानते ही होंगे। वे सेना में कार्यरत रहे और 71 के युद्ध के पश्चात उन्हें गोल्ड मैडल से भी नवाज़ा गया। वे बाद में चार बार जनता द्वारा चुने भी गये। बाद में अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए हैलीकॉप्टर  दुर्घटना में उनकी असमय मृत्यु हो गई। पर ये मृत्यु कईं प्रश्न खड़े कर गई है। पिछले दो वर्षों में कईं बार हैलीकॉप्टर दुर्घटनायें हुई हैं। जिनमें से दो बार तो इस देश के दो मुख्यमंत्री मारे गये हैं। गोल्ड मैडल विजेता सैनिक अधिकारी की इस तरह हुई हत्या होगी यह उन्होंने भी नहीं सोचा होगा। हम पूरी दुनिया पर राज करने की बात करते आये हैं। इसरो एक के बाद एक सैटेलाईट अंतरिक्ष में भेज रहा है। वैज्ञानिक और सेना दोनों के पास ही यदि आधुनिक तकनीकें हैं तो मुख्यमंत्री को ढूँढने में चार दिन से ऊपर का समय कैसे लग जाता है? कहीं न कहीं तो गुंजाईश अवश्य है।

दोरजी खांडू की मृत्यु होती है और आपके मंत्री उनकी मृत्यु की पुष्टि होने से पहले ही दु:ख संदेश मीडिया को दे देते हैं। पुष्टि से पहले!!! यी हैं आपकी सरकार के विदेश मंत्री श्री एस.एम. कृष्णा जी। आपका ध्यान मैं मीडिया की ओर भी ले जाना चाहता हूँ। हमारी मीडिया के द्वारा जिस तरह से उत्तर-पूर्व क्षेत्र को नजर अंदाज़ किया जा रहा है वो आप तक पहुँचाना जरूरी महसूस कर रहा हूँ। श्री खांडू की मौत हुई पर हमारा मीडिया ओसामा और ओबामा के नामों को गुनगुना रहा था। ओबामा उनके लिये भगवान बना हुआ है। इतनी बार तो शायद आपका नाम भी न लिया हो। सुबह अखबार टटोले तो पहले पन्ने पर कही पर बड़ी तो कहीं पर छोटी खबर दिखाई दी। खैर इन सब के बीच एक समाचार पत्र ऐसा भी रहा जिसने श्री खांडू के निधन का कोई समाचार नहीं छापा!!! कम से कम पहले पन्ने पर तो नहीं। 

दूसरी ओर हमारा नम्बर एक दुश्मन चीन उत्तर-पूर्व राज्यों में अपनी पैठ जमाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। परन्तु आपकी सरकार उसे भी नजर-अंदाज़ कर रही है। किस बात का खौफ़ है आपको? क्या आप चीन से डरते हैं? अमरीका द्वारा ओसामा को मारे जाने के पश्चात आपकी सेना के अधिकारी छाती ठोंक कर कह रहे थे कि हम भी ऐसा कर सकते हैं। पर क्या आपकी सरकार में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुसने की हिम्मत है? जो चीन ओसामा के पाकिस्तान में मारे जाने के बाद भी पाकिस्तान का साथ दे रहा है उस चीन को माकूल जवाब देने में क्या आपकी सरकार समर्थ है?

आपके पास जब टू-जी आदि घोटालों से समय मिल जाये तो कृपया उत्तर-पूर्व के लोगों पर भी नजर डालियेगा। कहीं ऐसा न हो कि आने वाला वक्त भारत को बाईस राज्यों से जाने।


आज मातृ दिवस है। भारत माता के लिये आपसे निवेदन है कि हर राज्य को इस एक देश की माला में पिरोये रखें। आप सभी पाठकों से निवेदन है कि हम लोग ही पूर्वोत्तर के लोगों को पराया समझते हैं तो सरकार से कैसे हम कुछ आशा कैसे कर सकते हैं?
"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदापि गरीयसी" : जननी और मातृभूमि दोनों स्वर्ग से भी महान हैं। 


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