अभी हाल ही में मुझे चेन्नई शहर में जाने का मौका मिला। हर बड़े शहर की तरह वहाँ भी कंक्रीट के बड़े बड़े पुल बन रहे थे। दिल्ली से काफी हद तक जुदा था। लोगों का रहन सहन, खान पान, भाषा, कार्यशैली सब विलग हैं। कैसे भिन्नता है इसके बारे में कभी आगे के लेखों में जिक्र करूँगा, आज कुछ और ही बताने जा रहा हूँ। ये मेरे अनुभव हैं जो वहाँ के लोगों से मिलकर, उनसे बातें कर के मैंने जाने|
आपके अपने आज के विचार बचपन से ही बनते जाते हैं। आप किस तरह से जीवन व्यतीत करते हैं, आपके परिवार का माहौल कैसा है, आपके घर के आसपास व शहर का राजनैतिक व समाजिक वातावरण भी आपकी सोच पर पूरा असर करता है।
शुरू करता हूँ उस घटना से जो हो सकता है आपको आशावादी बना दे। हुआ यूँ कि मैं और मेरा दोस्त समुद्र किनारे टहल रहे थे। चेन्नई शहर में आपको विदेशी लोग काफी नजर आ जायेंगे जो वहाँ काफी पहले से रह रहें हैं व वहाँ के लोगों के साथ जुड़े हुए हैं। किनारे पर जो विदेशी महिलायें सागर की ओर देख रहीं थीं मेरे दोस्त ने उन से पूछा कि आप रेत पर बैठीं हैं, क्या आपको वहाँ गंदगी फैली हुई नज़र नहीं आती? वहाँ से जवाब मिला, "हम सागर की खूबसूरती को देख रहें हैं फिर गंदगी कौन देखे?"। जीवन की सच्चाई है। हम हमेशा लोगों की गलतियाँ व बुराइयाँ देखते हैं, पर अच्छाइयाँ हमें नज़र नहीं आतीं।
दूसरी घटना तब घटी जब हम सड़क पर चल रहे थे कि तभी मेरे दोस्त की नज़र एक ऐसी लड़की पर पड़ी जो साइकिल के साथ किसी दुकान में जाने के लिये खड़ी थी। पता नहीं क्या हुआ कि वो उसके पास गया और किसी घटना का जिक्र करने लगा। दरअसल मेरे दोस्त ने एक बार उस लड़की को सड़क किनारे किसी बच्चे को खिलौना देते हुए देखा था। तो वो उससे बात करके पूछना चाहता था कि क्या वो वही थी? उस लड़की ने कहा कि वो वहाँ बहुत पहले से है और वहाँ के लोगों व बच्चों के साथ बहुत मिलजुल चुकी है। उससे पता चला कि वो फ़्रांस की निवासी थी।(देयर इज़ ए बॉंडिंग बिटवीन अस) उसका जवाब सुनकर मैं दंग रह गया कि एक वो है जो विदेशी होकर भी भारतीय लोगों को इतना प्यार बाँटती है और एक हम हैं जो आपस में लड़ते रहते हैं। कभी महाराष्ट्र, कभी पूर्वाँचल और कभी द्रविड़ प्रदेशों में हम मारपीट करते हैं। मुझे शर्म आ रही थी।
अगली घटना बहुत दुःखदाई थी। मैं चेन्नई में एक महीने से ऊपर रहा और कभी भी मैंने ये नहीं देखा कि उत्तर भारतीयों के साथ कोई बुरा सुलूक किया हो। किया भी हो तो मुझे इसका आभास कभी नहीं हुआ। पर मेरे दिल्ली आने से ठीक एक रात पहले जब मैं अपने दोस्त के साथ रेस्तरां में भोजन कर रहा था कि तभी हमारी टेबल के पीछे कुछ तमिल बोलने वाले लोग आकर बैठे। मेरी पीठ उनकी तरफ थी पर मेरा दोस्त उन्हें ठीक से देख पा रहा था। वे चार लोग थे। रात के करीबन साढ़े दस बज रहे होंगे, ज्यादा लोग रेस्तरां में नहीं बचे थे। वेटर भी खाना खा रहे थे। हम खाना खा रहे थे और आपस में बात कर रहे थे। क्योंकि हम दोनों ही दिल्ली की तरफ के थे तो हिन्दी में ही बातें कर रहे थे। तभी मुझे पीछे से आवाज़ें सुनाई देने लगी। "ऐ, नो हिन्दी, नो हिन्दी"....."हिन्दी पीपल, खच खच खच", ये वाक्य एक आदमी ने हाथ से चाकू की तरह काटने का इशारा करते हुए कहा। मेरा दोस्त ये सब देख रहा था। मेरी पीछे मुड़के देखने की हिम्मत नहीं हुई हालाँकि एक दफा कोशिश जरूर करी थी। पर मेरे दोस्त ने पीछे देखने से मना किया। हम लोग तब खाना खत्म ही करने वाले थे। वेटर ने बाद में माफी भी माँगी। पर तब तक मैं चेन्नई का एक और रूप देख चुका था। शायद ये वहाँ का राजनैतिक रूप था। क्या यही वहाँ की सच्चाई है? क्या मिलता है नेताओं को ऐसी बातों से? ये सवाल मेरे मन में आज भी गूँज रहे हैं।
अगले ही दिन मेरी वापसी थी। हवाई जहाज में मेरी सीट रास्ते के बगल वाली थी। खिड़की की तरफ एक १५-१६ साल की लड़की बैठी थी व बीच में मुझसे करीबन ७-८ वर्ष बड़ी उस लड़की की बहन थी। लड़की की बहन की शादी हो चुकी थी और वे एक शादी के समारोह में शामिल होने दिल्ली आ रहीं थीं। मैं अपनी डायरी के पन्नों में कुछ लिख रहा था तो उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं दिल्ली क्यों जा रहा हूँ। बस वहीं से हमारी बातें शुरू हुईं। मैंने उन्हें बताया कि मैं करीबन ३५ दिन चेन्नई में रहके अब वापस दिल्ली जा रहा हूँ। वे मूलतः हैदराबाद के पास की किसी जगह से थीं व चेन्नई में उनका विवाह हुआ था। उनकी हिन्दी में मुझे कोई गलती नहीं दिखी। बहुत साफ बोलतीं थी वे। बातों ही बातों में मैंने उन दीदी को अपनी पिछली रात वाली घटना बताई। उन्होंने कहा कि पहले ये काफी होता था पर अब लोगों को हिन्दी आती है और वे बोलते भी हैं। और जो लोग ऐसा करते भी हैं तो वे राजनैतिक लोगों की वजह से। उनकी बातों से लगा कि जो पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी वर्ग है शायद उसको फर्क न पड़ता हो परन्तु वो तबका जो बेरोजगार है व एक किस्म की मानसिक बीमारी से ग्रस्त है व जो पिछले कईं सालों से आँख मूँदे राजनेताओं की जी हुजूरी करते जी रहा है केवल वो ही ऐसी हरकतें कर रहा है।
ये चार वे घटनायें जो एक ही शहर के उन लोगों के विचार दर्शाती हैं। आप किस शहर को, किस व्यक्ति को, किस घटना को किस नज़र से देखते हैं ये सब आप पर निर्भर करता है। चेन्नई की हर एक घटना ने मेरी सोच को व मेरे जीवन को प्रभावित किया है। इसीलिये मैंने ये सब आपके समक्ष रखीं हैं। आगे अभी और भी ऐसी ही घटनायें आपके सामने रखूँगा जैसे ही मुझे याद आयेंगी। तब तक के लिये चेन्नई की मेरी यात्रा से इतना ही।
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आपके अपने आज के विचार बचपन से ही बनते जाते हैं। आप किस तरह से जीवन व्यतीत करते हैं, आपके परिवार का माहौल कैसा है, आपके घर के आसपास व शहर का राजनैतिक व समाजिक वातावरण भी आपकी सोच पर पूरा असर करता है।
शुरू करता हूँ उस घटना से जो हो सकता है आपको आशावादी बना दे। हुआ यूँ कि मैं और मेरा दोस्त समुद्र किनारे टहल रहे थे। चेन्नई शहर में आपको विदेशी लोग काफी नजर आ जायेंगे जो वहाँ काफी पहले से रह रहें हैं व वहाँ के लोगों के साथ जुड़े हुए हैं। किनारे पर जो विदेशी महिलायें सागर की ओर देख रहीं थीं मेरे दोस्त ने उन से पूछा कि आप रेत पर बैठीं हैं, क्या आपको वहाँ गंदगी फैली हुई नज़र नहीं आती? वहाँ से जवाब मिला, "हम सागर की खूबसूरती को देख रहें हैं फिर गंदगी कौन देखे?"। जीवन की सच्चाई है। हम हमेशा लोगों की गलतियाँ व बुराइयाँ देखते हैं, पर अच्छाइयाँ हमें नज़र नहीं आतीं।
दूसरी घटना तब घटी जब हम सड़क पर चल रहे थे कि तभी मेरे दोस्त की नज़र एक ऐसी लड़की पर पड़ी जो साइकिल के साथ किसी दुकान में जाने के लिये खड़ी थी। पता नहीं क्या हुआ कि वो उसके पास गया और किसी घटना का जिक्र करने लगा। दरअसल मेरे दोस्त ने एक बार उस लड़की को सड़क किनारे किसी बच्चे को खिलौना देते हुए देखा था। तो वो उससे बात करके पूछना चाहता था कि क्या वो वही थी? उस लड़की ने कहा कि वो वहाँ बहुत पहले से है और वहाँ के लोगों व बच्चों के साथ बहुत मिलजुल चुकी है। उससे पता चला कि वो फ़्रांस की निवासी थी।(देयर इज़ ए बॉंडिंग बिटवीन अस) उसका जवाब सुनकर मैं दंग रह गया कि एक वो है जो विदेशी होकर भी भारतीय लोगों को इतना प्यार बाँटती है और एक हम हैं जो आपस में लड़ते रहते हैं। कभी महाराष्ट्र, कभी पूर्वाँचल और कभी द्रविड़ प्रदेशों में हम मारपीट करते हैं। मुझे शर्म आ रही थी।
अगली घटना बहुत दुःखदाई थी। मैं चेन्नई में एक महीने से ऊपर रहा और कभी भी मैंने ये नहीं देखा कि उत्तर भारतीयों के साथ कोई बुरा सुलूक किया हो। किया भी हो तो मुझे इसका आभास कभी नहीं हुआ। पर मेरे दिल्ली आने से ठीक एक रात पहले जब मैं अपने दोस्त के साथ रेस्तरां में भोजन कर रहा था कि तभी हमारी टेबल के पीछे कुछ तमिल बोलने वाले लोग आकर बैठे। मेरी पीठ उनकी तरफ थी पर मेरा दोस्त उन्हें ठीक से देख पा रहा था। वे चार लोग थे। रात के करीबन साढ़े दस बज रहे होंगे, ज्यादा लोग रेस्तरां में नहीं बचे थे। वेटर भी खाना खा रहे थे। हम खाना खा रहे थे और आपस में बात कर रहे थे। क्योंकि हम दोनों ही दिल्ली की तरफ के थे तो हिन्दी में ही बातें कर रहे थे। तभी मुझे पीछे से आवाज़ें सुनाई देने लगी। "ऐ, नो हिन्दी, नो हिन्दी"....."हिन्दी पीपल, खच खच खच", ये वाक्य एक आदमी ने हाथ से चाकू की तरह काटने का इशारा करते हुए कहा। मेरा दोस्त ये सब देख रहा था। मेरी पीछे मुड़के देखने की हिम्मत नहीं हुई हालाँकि एक दफा कोशिश जरूर करी थी। पर मेरे दोस्त ने पीछे देखने से मना किया। हम लोग तब खाना खत्म ही करने वाले थे। वेटर ने बाद में माफी भी माँगी। पर तब तक मैं चेन्नई का एक और रूप देख चुका था। शायद ये वहाँ का राजनैतिक रूप था। क्या यही वहाँ की सच्चाई है? क्या मिलता है नेताओं को ऐसी बातों से? ये सवाल मेरे मन में आज भी गूँज रहे हैं।
अगले ही दिन मेरी वापसी थी। हवाई जहाज में मेरी सीट रास्ते के बगल वाली थी। खिड़की की तरफ एक १५-१६ साल की लड़की बैठी थी व बीच में मुझसे करीबन ७-८ वर्ष बड़ी उस लड़की की बहन थी। लड़की की बहन की शादी हो चुकी थी और वे एक शादी के समारोह में शामिल होने दिल्ली आ रहीं थीं। मैं अपनी डायरी के पन्नों में कुछ लिख रहा था तो उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं दिल्ली क्यों जा रहा हूँ। बस वहीं से हमारी बातें शुरू हुईं। मैंने उन्हें बताया कि मैं करीबन ३५ दिन चेन्नई में रहके अब वापस दिल्ली जा रहा हूँ। वे मूलतः हैदराबाद के पास की किसी जगह से थीं व चेन्नई में उनका विवाह हुआ था। उनकी हिन्दी में मुझे कोई गलती नहीं दिखी। बहुत साफ बोलतीं थी वे। बातों ही बातों में मैंने उन दीदी को अपनी पिछली रात वाली घटना बताई। उन्होंने कहा कि पहले ये काफी होता था पर अब लोगों को हिन्दी आती है और वे बोलते भी हैं। और जो लोग ऐसा करते भी हैं तो वे राजनैतिक लोगों की वजह से। उनकी बातों से लगा कि जो पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी वर्ग है शायद उसको फर्क न पड़ता हो परन्तु वो तबका जो बेरोजगार है व एक किस्म की मानसिक बीमारी से ग्रस्त है व जो पिछले कईं सालों से आँख मूँदे राजनेताओं की जी हुजूरी करते जी रहा है केवल वो ही ऐसी हरकतें कर रहा है।
ये चार वे घटनायें जो एक ही शहर के उन लोगों के विचार दर्शाती हैं। आप किस शहर को, किस व्यक्ति को, किस घटना को किस नज़र से देखते हैं ये सब आप पर निर्भर करता है। चेन्नई की हर एक घटना ने मेरी सोच को व मेरे जीवन को प्रभावित किया है। इसीलिये मैंने ये सब आपके समक्ष रखीं हैं। आगे अभी और भी ऐसी ही घटनायें आपके सामने रखूँगा जैसे ही मुझे याद आयेंगी। तब तक के लिये चेन्नई की मेरी यात्रा से इतना ही।