Friday, July 29, 2011

बदलता वक्त बदलता नजरिया - माइक्रोपोस्ट Time Changes, Perception Changes?

ट्रैफ़िक सिग्नैल पर हमारे ऑफ़िस की ए.सी. कैब खड़ी थी। गर्मी का मौसम था। नारियल की गिरी बेचने वाला एक आदमी पसीने से तर बतर गोला-गिरी बेच रहा था। वहीं फ़ुटपाथ पर बैठा एक छोटा सा दुकानदार खीरे पर मसाला लगा रहा था।

आठ वर्ष पूर्व..

ये वो वक्त था जब कॉलेज के दोस्त कॉलेज से घर जा रहे होते थे। बस का इंतज़ार करने के  बाद एक डी.टी.सी की बस आती तो दौड़ कर उस पर चढ़ जाते थे। गुलाबी रंग का साढ़े बारह रूपये का कॉलेज-पास बना हुआ था। कोई दूसरी खाली बस दिखी तो उस पर चढ़ गये। एक से दूसरे पर, दूसरे से तीसरे पर। पसीने की परवाह किये बगैर। आज की तरह लाल रंग की ए.सी. बस जो नहीं थी तब.. वो तो एक डब्बा था...

कभी कभार बस का इंतज़ार करते हुए भूख लगती तो फ़ुटपाथ पर बैठे हुए खीरे-मूली वाले से खीरा खरीद कर खा लेते। मसाला लगाये हुए मूली और उस पर नींबू..वाह क्या स्वाद आता था। कभी गोला-गिरी खा लेते। पचास पैसे का पानी पी लेते तो कभी उसी ठेले से नींबू-पानी या फिर कहीं से बंटा!! मसालेदार पापड़ का स्वाद आज भी याद है।

वर्ष 2011..
कॉलेज के हम दोस्त सॉफ़्टवेयर इंजीनियर अथवा मैनेजर बन गये हैं।  चालीस..पचास..साठ हजार रूपये महीने की तन्ख्वाह...ए.सॊ कैब में सफ़र करने के अलग ठाठ हैं। कम्पनी तो वही जो कैब "प्रोवाईड" करे। मुफ़्त की कैब हो तो कहने ही क्या!! टीम की पार्टी होती है तो पित्ज़ा या "मैक-डी" का बर्गर। कोल्ड ड्रिंक तो होगी ही पर अगर वाइन-बीयर का घूँट भी गले को तर कर जाये तो वारे-न्यारे। अरे हाँ "हार्ड-ड्रिंक" के साथ जो पापड़ मिलता है वो....कहीं बाहर जाना हो तो "बिसलेरी" की बोतल का होना अत्यन्त आवश्यक है। पन्द्रह रूपये की ही तो है!!

ट्रैफ़िक सिग्नेल पर ऑफ़िस की ए.सी कैब खड़ी है। एफ़.एम. पर आज के जमाने के गाने बज रहें हैं। बाहर फ़ुटपाथ पर खीरे वाला गंदे पानी से खीरे धो रहा है। गोला-गिरि वाला उसी बदबूदार पानी गोले पर छिड़क रहा है। पचास पैसे वाला पानी अब एक रूपये का हो गया है। प्यास काफ़ी लगी है.. .ठेले वाले ने गिलास कब धोया होगा पिछली बार? खुले में पापड़ वाला पापड़ लिये खड़ा है...सब कुछ कितना "अन-हाइजिनिक" है.....छि:...
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Monday, July 25, 2011

भारत के किस राज्य में आते हैं सबसे अधिक विदेशी पर्यटक? क्या खास है इस राज्य में? Most Foreign Tourists In Southern State - Incredible India

तुल्य भारत की श्रृंख्ला में आज-भारत का दक्षिण का राज्य तमिलनाडु। हाल ही में तमिलनाडु अपनी राजनैतिक गतिविधियों के कारण चर्चा में रहा है। पर क्या आप जानते हैं कि ये राज्य सबसे अधिक विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है? पुरातत्व विभाग ने तमिलनाडु राज्य में कईं ऐसे स्थानों की खोज की है जहाँ 3800 बरसों से भी पुरानी सभ्यता के अवशेष मिलने की पुष्टि हुई है।

तमिलनाडु में 34000 से अधिक मंदिर हैं जैसे मदुरई का मीनाक्षी मंदिर, रामेश्वरम , श्री रंगनाथस्वामी मंदिर व वृहदेश्वर मंदिर। यूनेस्को की लिस्ट में तमिलनाडु के सबसे अधिक स्थल हैं जिनमें चोल शासन के दौरान बनाये गये मंदिर और महाबलीपुरम भी है। वृहदेश्वर मंदिर 1987 में यूनेस्को लिस्ट में शामिल हुआ जबकि गन्गईकोंडाचोलिस्वरम व ऐरावतेश्वर मंदिर 2004 में बाद में इसमें जोड़े गये।

चिकित्सा पर्यटन की दृष्टि से भी राज्य जाना जाता है और एशिया के कुछ बड़े अस्पताल भी इसी राज्य में हैं।

महाबलीपुरम चेन्नई से महज साठ किलोमीटर की दूर स्थित एक तटीय शहर है। सातवीं शताब्दी में पल्लव शासन के दौरान यह बंदरगाह के तौर पर इस्तेमाल की जाती थी। कहा जाता है कि इसका नाम पल्लव राजा नरसिम्हावरमन ने रखा जो पहले ममल्लापुरम और अब यह महाबलीपुरम बन गया है। पल्लव शासन में महा-मल्ला (कुश्ती) एक प्रिय खेल मानी जाती थी। इसके अधिकतर ऐतिहासिक स्थल सातवीं से नौवीं शताब्दी के बीच ही बने।

महाबलीपुरम के मंदिर महाभारत काल में हुई अनेकों घटनाओं को दर्शते हैं। ये मंदिर नरसिम्हावर्मन व राजसिम्हावर्मन ने बनाये जो चट्टानों को काट कर बनाये गये और उस समय की कारीगरी की खासियत रही।
महाबलीपुरम शहर को अंग्रेजों ने आकर 1827 में बसाया।

तिरुवल्लुवर की प्रतिमा (कन्याकुमारी)
यदि अन्य पर्यटन स्थलों की बात करें तो कन्याकुमारी अपने सूर्योदय व सूर्यास्त के समय होने वाले अनुपम दृश्य के लिये जाना जाता है। यह भारत का दक्षिणतम शहर है। केरल की राजधानी तिरुवनन्तपुरम से यह केवल 85 किमी की दूरी पर स्थित है। इसके बारे में बताने को बहुत कुछ है इसलिये इसे किसी अन्य लेख के लिये छोड़ रहा हूँ।

येर्कोड, कोडाइकनाल, उदागामंडलम (ऊटी), वलपरई, येलगिरी इत्यादि प्राकृतिक सुंदरता बिखेरते हुए अत्यन्त विहंगम हिल स्टेशन हैं। ऊटी से  सटकर है कुन्नूर जो चाय के बागानों के लिये मशहूर है। ऊटी में ही अनेकों झील, झरने हैं। यदि आप प्रकृति को नज़दीक से देखना चाहते हैं तो इन हिल स्टेशनों पर अवश्य जायें। कोयम्बटूर सबसे नज़दीक एयरपोर्ट है। तमिलनाडु में कईं जीव अभयारण्य भी हैं। पिचावरम में विश्व के दूसरा सबसे बड़ा सदाबहार वन है।

पिचावरम के घने जंगल
मेट्टूपलम से ऊटी के बीच में पहाड़ी रास्तों के बीच से गुजरती हुई रेल है नीलगिरी। ये ज़मीन से 7500 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है जो दोनों शहरों के बीच 41 किमी की दूरी तय करती है। इस रेल को भी यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया हुआ है।

तमिलनाडु में प्राकृतिक सुंदरता भी है, ऐतिहासिक मंदिर-स्थल, वन-जीव-समुद्र भी है। यानि पर्यटन की दृष्टि से इस राज्य में आपको सबकुछ मिलेगा शायद इसलिये इस राज्य में भारत के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं।

अतुल्य भारत की यह श्रृंख्ला आगे भी जारी रहेगी। हिन्दुस्तान नहीं देखा तो क्या देखा।

जय हिन्द।
वन्देमातरम।

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Wednesday, July 20, 2011

भूले बिसरे गीत : 1956 से अब तक इस देश ने कईं बम्बई दे दी हैं Song On Current Social-Political Condition Film CID (1956)

अगर किसी कवि को आज के हालात पर कविता लिखने को कहा जाये तो वो वही लिखेगा जो गीतकार ने आज से करीबन साठ वर्ष पूर्व ही लिख दिया था। फ़िल्म थी CID और गाना था - "ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ"। इस गीत से मुम्बई को हटा कर कोई भी मेट्रो शहर का नाम डाल दीजिये बस हो गया आपका काम। आपके शहर का हाल आप तक पहुँच गया समझो। 1956 से अब तक इस देश ने कईं बम्बई दे दी हैं।

आज के जमाने में मुझे ऐसा कोई गाना नहीं सूझ रहा जो मुझे वर्तमान का हाल बता सके। हालाँकि सभी फ़िल्म निर्माता यही कहते हैं कि वे समाज का ही आईना दिखाते हैं। न ही कोई ऐसा बनता है जो आज से साठ बरस बाद भी सामयिक लगे। मतलब यह कि यदि 2070 में कोई आज का गाना गाये (क्या मैं ज्यादा आशावादी तो नहीं हुआ हूँ?) तो भी लगे कि अरे ये तो इसी दौर का गीत है....

आज आपके लिये हर दौर का गीत लेकर भूले-बिसरे गीत में हाजिर है फ़िल्म CID (1956) का यह गीत। अरे हाँ, तब का बॉम्बे आज का मुम्बई हो गया है (राज सर माफ़ कीजियेगा...) अच्छा हुआ इस गीत में बंगाल नहीं है.. अब तक आप जान चुके होंगे कि ममता दीदी कलकत्ता की तरह बंगाल का नाम भी बदलने के मूड में हैं।

ऐ  दिल  है  मुश्किल  जीना  यहाँ
ज़रा  हट  के  ज़रा  बच  के , यह  है  बॉम्बे  मेरी  जान
ऐ  दिल  है ..

कहीं  बिल्डिंग  कहीं   ट्रामे , कहीं  मोटर  कहीं  मिल
मिलता  है  यहाँ  सब  कुछ  इक  मिलता  नहीं  दिल
इंसान  का  नहीं  कहीं  नाम  -ओ -निशाँ
ज़रा  हट  के  ज़रा  बच  के , यह  है  बॉम्बे  मेरी  जान
ऐ  दिल  है ..

कहीं  सत्ता , कहीं  पत्ता  कहीं  चोरी  कहीं  रेस
कहीं  डाका , कहीं  फाका  कहीं  ठोकर  कहीं  ठेस
बेकारों  के  हैं  कई  काम  यहाँ
ज़रा  हट  के  ज़रा  बच  के , यह  है  बॉम्बे  मेरी  जान
ऐ  दिल  है ..

बेघर  को  आवारा  यहाँ  कहते  हँस हँस
खुद  काटे  गले  सबके  कहे  इसको  बिज़नेस
इक  चीज़  के  हैं  कई  नाम  यहाँ
ज़रा  हट  के  ज़रा  बच  के , यह  है  बॉम्बे  मेरी  जान
ऐ दिल है...



जय हिन्द
वन्देमातरम
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Sunday, July 17, 2011

हिन्दुस्तान की राजनीति का साप्ताहिक सार Weekly Update Of Indian Politics

भ्रष्टाचार पर
चहुँ ओर से घिरी सरकार ने
किया मंत्रिमंडल फ़ेरबदल-
किसी की कुर्सी गई,
किसी को मिला सत्कार
जमकर हुई
राजनैतिक उथलपुथल।
पर इससे नहीं बदलेगा
सरकार का भ्रष्ट चेहरा
शतरंज खेलती मैडम हैं
मनमोहन तो हैं बस एक मोहरा ।

कईं बरसों से
रेल मंत्रालय
चढ़ता आया है
गठबंधन की बलि,
कभी बिहार की
शान होती थी रेल,
अब बंगाल की ओर चली।

चाहें बिहार चाहें बंगाल
रेल रही हमेशा कंगाल
परियोजनायें-
पटरी से उतरी पड़ी हैं
हाशिये पर है
सुरक्षा का ख्याल।

मुम्बई एक मर्तबा फिर दहली
सरकार ने हुँकार भरी-
आतंकवाद का मुकाबला
डटकर करेंगे
आतंकवादियों को
जल्द ही पकड़ेंगे...
पर प्रधानमंत्री जी...
पकड़कर आप करेंगे क्या?
जिनके अपने चले गये
उन्हें वापस ला सकेंगे क्या?

आपके नेता कहते हैं-
हम पाकिस्तान से बेहतर हैं!!!
तो अब ये दिन आ गये हैं..
पाकिस्तान से मुकाबला करेंगे क्या?
राहुल बाबा का अंदाज़ विलग
हमले रोके नहीं जा सकते।
हमले रोके नहीं जा सकते?
पाकिस्तान, बांग्लादेश
टोके नहीं जा सकते?

अफ़्ज़ल कसाब को मत मारो
डेढ़ सौ लोगों के कातिलों को
मत चढ़ाओ तुम फ़ाँसी पर...
पर इतना हम पर उपकार करो...
जैसे उन्हें सुरक्षित रखा है..
हमारी सुरक्षा का भी
वैसा पुख़्ता इंतज़ाम करो...
वैसा पुख्ता इंतज़ाम करो....

कभी रेल होगी
कभी आतंकवादी हमलों से होगा
यमराज का
हम पर वार-
परोक्ष रूप से हत्या का 
कोई गुनाह नहीं होता यार-
हिन्दुस्तान की राजनीति का 
यही है साप्ताहिक सार,
यही है साप्ताहिक सार।


जय हिन्द
वन्देमातरम
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Tuesday, July 12, 2011

केरल के गाँव में वैज्ञानिकों ने किया हवन प्रक्रिया पर शोध Scientists Experiment On Hindu Ritual In Kerala - Science In Hinduism

समय समय पर हिन्दू रीति रिवाज़ पर शोध होता आया। हिन्दुओं के पूजा-पाठ  करने के तरीके को विज्ञान ने हमेशा बारीक निगाहों से परखा है। आज बात इसलिये उठी है क्योंकि हाल ही में केरल के एक दूर-दराज के गाँव में वैज्ञानिकों ने यज्ञ से होने वाले फ़ायदे पर शोध किया है। हिन्दुत्व विज्ञान से किस कदर जुड़ा हुआ है यह शोध इसी बात को दर्शाता है।

अतिरत्रम नामक यज्ञ चार से पन्द्रह अप्रैल के बीच त्रिसूर जिले के पन्जल गाँव में सम्पन्न हुआ। करीबन चार हजार वर्षों से यह पर्व मनाया जा रहा है। कोच्ची विश्वविद्यलय के प्रो. वी,पी.एन.नामपुरी के नेतृत्व में एक वैज्ञानिक दल ने इस पूरे पर्व से जुड़े हुए हर वैज्ञानिक पहलू को देखा।

उन्होंने इस हवन के दौरान वातावरण, मिट्टी व सूक्ष्म जीवों पर होने वाले असर पर शोध किया। ऐसा माना जा रहा है कि इस हवन के पश्चात बीज अंकुरित होने वाली प्रक्रिया में तीव्रता से बढ़ोतरी हुई है एवं अग्नि अनुष्ठान के क्षेत्र में और उसके चारों ओर हवा, पानी और मिट्टी में माइक्रोबियल उपस्थिति बेहद कम हुई है। 

दल ने अनुष्ठान आरम्भ होने से पहले ही लोबिया, हरा चना व बंगाल ग्राम के बीज स्थल के चारों ओर बो दिये थे। पन्द्रह अप्रैल के बाद में जाँच में उन्होंने पाया कि स्थल के सबसे नज़दीक बोये गये बीज सबसे बेहतरीन स्थिति में थे। बंगाल ग्राम के पौधे तो 2000 गुना से अधिक की तेजी से उगे।

नामपुरी के अनुसार लगातार मंत्र-उच्चारण से जो ध्वनि उत्पन्न हुई उससे बीज-अंकुरित होने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिला। वे कहते हैं कि इस शोध से वैदिक प्रक्रिया पर प्रश्न चिह्न उठाने व इसे अंधविश्वास से  जोड़ने वाले लोगों तक हमारा मत पहुँचाने में सहायता मिलेगी और इस शोध के नतीजे से हम वातावरण की बेहतरी के लिये कदम उठा सकेंगे।

इस टीम ने यज्ञशाला के 500 मीटर से लेकर डेढ़ कि.मी. तक की दूरी का निरीक्षण किया तो पाया कि शाला के नज़दीक की वायु सबसे अधिक स्वच्छ थी व बैक्टीरिया की संख्या सबसे कम।

हवन प्रक्रिया से होने वाले फ़ायदे पर यह पहला शोध नहीं था। वैज्ञानिकों के बीच यह प्रक्रिया हमेशा से ही चर्चा का विषय रही है। हवन सामग्री में जो जड़ी बूटियाँ मिलाई जाती हैं उनसे न केवल वायु स्वच्छ होती है अपितु शरीर में रक्त संचार ठीक होता है व त्वचा से जुड़ी बीमारियाँ भी ठीक हो जाती हैं।

अधिक जानकारी के लिये यहाँ क्लिक करें।

हिन्दुत्व किसी धर्म से नहीं जुड़ा अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। प्राचीन काल से हम इससे जुड़ हुए हैं। मंदिर की घंटी बजाना, मंत्र उच्चारण करना, हवन करना, दीपक जलाना, सूर्य को जल चढ़ाना इत्यादि अनेकानेक कार्य हम प्रतिदिन करते हैं और हम भूल जाते हैं कि ये सभी हिन्दू रीति-रिवाज़ से तो जुड़े हैं हीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। 

जय हिन्द
वन्दे मातरम
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Thursday, July 7, 2011

क्या आप जानते हैं अब तक कितने भारतीयों को नोबेल पुरस्कार मिला है? Nobel Prize Indian Winners

नोबेल पुरस्कार-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार। इसकी शुरुआत वर्ष 1901 से हुई और इसे एल्फ़्रेड नोबेल के नाम पर रखा गया। नोबेल स्वीडन के निवासी थे व डायनामाईट के आविष्कारक। नोबेल पुरस्कार भौतिकी, रसायन विज्ञान, शरीर विज्ञान या चिकित्सा, साहित्य और शांति के लिये दिये जाते हैं।

आज हम बात करेंगे उन भारतीयों की जिन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। सर्वप्रथम नाम आता है गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का। टैगोर को साहित्य के लिये 1913 में पुरस्कृत किया गया। वे सम्मान पाने वाले पहले एशियाई भी रहे। रवींद्रनाथ (7 मई 1861 – 7 अगस्त 1941) बंगाली कवि, संगीतकार, लेखक व चित्रकार थे। गीतांजलि के लेखक ने महज आठ वर्ष की उम्र से ही कवितायें लिखनी शुरु कर दी थी। वे एक ऐसी हस्ती रहे जिन्होंने हिन्दुस्तान और बंग्लादेश-दो देशों के लिये राष्ट्रगान लिखा।

दूसरा नाम आता है सर चंद्रशेखर वेंकटरमन का। सर सी.वी रमन (7 नवम्बर 1888 - 21 नवम्बर 1970) ने भौतिकी के क्षेत्र में यह सम्मान 1930 में हासिल किया। जब प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम से गुजरता है तब उसकी वेवलैंथ (तरंग की लम्बाई) में बदलाव आता है। इसी को रमन इफ़ेक्ट के नाम से जाना गया।

हरगोबिंद खुराना (भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक)  उन्हें चिकित्सा के लिये नोबेल मिला। खुराना ने मार्शल व. निरेनबर्ग और रोबेर्ट होल्ले के साथ मिलकर चिकित्सा के क्षेत्र में काम किया। उन्हें कोलम्बिया विश्वविद्यालय की ओर से 1968 में ही होर्विट्ज़ पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। वे 1966 में अमरीका के नागरिक बने।

अल्बानिया मूल की भारतीय मदर टेरेसा (26 अगस्त 1910 - 5 सितम्बर 1997) को 1979 में शांति नोबेल पुरस्कार मिला। उनका असली नाम एग्नेस गोन्शा बोजाज़्यू था। उन्होने 1950 में मिशनरी ऑफ़ कोलकाता की स्थापना की। 45 बरसों तक उन्होंने अनाथ व गरीब बीमार लोगों की सेवा करी।

सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर को 1983 में भौतिकी के लिये समानित किया। वे भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक थे। उन्होंने तारों के क्षेत्र में खोज करी। वे सर सी.वी रमन के भतीजे थे। उन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय में 1937 से 1997 तक काम किया। वे 1953 में अमरीकी नागरिक बने।

वर्ष 1998  में अमर्त्य सेन को अर्थशास्त्र में उनके योगदान के लिये नोबेल पुरस्कार मिला। उन्होंने अकाल में भोजन की व्यवस्था के लिये अपनी थ्योरी दी। फ़िलहाल वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर के तौर पर कार्यरत हैं। ऑक्सब्रिज विश्वविद्यालय के शीर्ष पर काबिज होने वाले वे प्रथम भारतीय ही नहीं अपितु प्रथम एशियाई भी हैं। पिछले चालीस बरसों से उनकी तीस से अधिक भाषाओं में उनकी पुस्तकें छप चुकी हैं।

भारतीय मूल के अमरीकी वेंकटरमन रामाकृष्ण को 2009 में रसायन शास्त्र के क्षेत्र में नोबेल मिला। उन्हें सेट्ज़ और योनाथ के साथ ही नोबेल प्राप्त हुआ। वे कैम्ब्रिज में अभी MRC Laboratory Of Molecular Biology में हैं।

कुल मिलाकर बात करें तो विशुद्ध रूप से रवींद्रनाथ टैगोर, सी.वी. रमन व अमर्त्य सेन ही भारतीय हैं जिन्हें नोबेल मिला है। बाकि सभी या तो विदेशी नागरिक रहे या विदेशी मूल के भारतीय नागरिक।
वैसे विडम्बना यह भी कि विनाश की जड़ डायनामाईट के आविष्कारक के नाम पर नोबेल का शांति पुरस्कार मिलता है
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Saturday, July 2, 2011

भूले बिसरे गीत- संगीत, कहानी, अदाकारी, गीत हर क्षेत्र में बेजोड़ थी फ़िल्म गाईड - Old Hindi Movie Songs- Guide - One Of The Best Movie Of Bollywood

आज जिस फ़िल्म की बात हम भूले-बिसरे गीत में कर रहे हैं वो है - गाईड। हिन्दी फ़िल्म जगत की एक ऐसी बेमिसाल फ़िल्म जिसमें कहानी भी है, अदाकारी भी, गीत के बोल, संगीत- सब कुछ है इस फ़िल्म में। अगर मैं कहूँ कि गाईड की गिनती हिन्दी फ़िल्म जगत की पहली पाँच फ़िल्मों में होती है तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी

छह फ़रवरी 1965 को रिलीज़ हुई गाईड जिसमें थे देव आनन्द और वहीदा रहमान, जिसे लिखा था विजय आनन्द ने और संगीत था सचिन देव बर्मन का। गाईड की कहानी आर.के.नारायण द्वारा निखित उपन्यास पर आधारित थी। इस फ़िल्म ने एक या दो नहीं बल्कि सात फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड जीते थे- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, निर्देशन, नायक, नायिका, कहानी, सिनेमाटोग्राफ़ी और डॉयलाग।

पेश हैं इसी फ़िल्म के कुछ गीत। हिन्दी सिनेमा के इतिहास के सर्वश्रेष्ठ गीत।

आज फ़िर जीने की तमन्ना है
वो गीत जिसमें अंतरा मुखड़े से पहले आया!!






दिन ढल जाये..


गाता रहे मेरा दिल..




क्या से क्या हो गया.. बेवफ़ा...


पिया तोसे नैना लागे रे..








तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं




वहाँ कौन है तेरा..मुसाफ़िर जायेगा कहाँ..






गाईड जैसी फ़िल्में आज के दौर में नहीं बन सकती और विडम्बना यह कि ऐसी ही फ़िल्मों की जरूरत है।




जय हिन्द
वन्देमातरम



भूले-बिसरे गीत श्रृंख्ला आपको कैसी लगी टिप्पणी के माध्यम से अवश्य बतायें।
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