आज के जमाने में मुझे ऐसा कोई गाना नहीं सूझ रहा जो मुझे वर्तमान का हाल बता सके। हालाँकि सभी फ़िल्म निर्माता यही कहते हैं कि वे समाज का ही आईना दिखाते हैं। न ही कोई ऐसा बनता है जो आज से साठ बरस बाद भी सामयिक लगे। मतलब यह कि यदि 2070 में कोई आज का गाना गाये (क्या मैं ज्यादा आशावादी तो नहीं हुआ हूँ?) तो भी लगे कि अरे ये तो इसी दौर का गीत है....
आज आपके लिये हर दौर का गीत लेकर भूले-बिसरे गीत में हाजिर है फ़िल्म CID (1956) का यह गीत। अरे हाँ, तब का बॉम्बे आज का मुम्बई हो गया है (राज सर माफ़ कीजियेगा...) अच्छा हुआ इस गीत में बंगाल नहीं है.. अब तक आप जान चुके होंगे कि ममता दीदी कलकत्ता की तरह बंगाल का नाम भी बदलने के मूड में हैं।
ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ
ज़रा हट के ज़रा बच के , यह है बॉम्बे मेरी जान
ऐ दिल है ..
कहीं बिल्डिंग कहीं ट्रामे , कहीं मोटर कहीं मिल
मिलता है यहाँ सब कुछ इक मिलता नहीं दिल
इंसान का नहीं कहीं नाम -ओ -निशाँ
ज़रा हट के ज़रा बच के , यह है बॉम्बे मेरी जान
ऐ दिल है ..
कहीं सत्ता , कहीं पत्ता कहीं चोरी कहीं रेस
कहीं डाका , कहीं फाका कहीं ठोकर कहीं ठेस
बेकारों के हैं कई काम यहाँ
ज़रा हट के ज़रा बच के , यह है बॉम्बे मेरी जान
ऐ दिल है ..
बेघर को आवारा यहाँ कहते हँस हँस
खुद काटे गले सबके कहे इसको बिज़नेस
इक चीज़ के हैं कई नाम यहाँ
ज़रा हट के ज़रा बच के , यह है बॉम्बे मेरी जान
ऐ दिल है...
जय हिन्द
वन्देमातरम
2 comments:
सदाबहार गीत!
jara hatke jara bchke ye hai dilli
meri jaan ...............
hahahahaahahahahahahah
gud song...
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