राजनैतिक दृष्टि से पिछला सप्ताह काफ़ी उथल-पुथल का रहा। वैसे तो पिछले दो-तीन वर्षों में कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता जब पक्ष व विपक्ष शांत रहे हों। दिग्विजय सिंह जी ने रामदेव को ठग की उपाधि तक डाली। बेल्लारी बँधुओं को कर्नाटक में हो रहे अवैध खनन के मामले में जेल भेज दिया है। अन्ना की टीम अपनी अगली रणनीति के लिये मीटिंग कर रही है। लेकिन तीन मुद्दे महत्त्वपूर्ण रहे जिनमें से दो पर तो मीडिया की नज़र गई पर एक खबर ऐसी थी जो पर्दे के पीछे रह गई।
पहली खबर रही अमर सिंह को तिहाड़ भेजने की। आज के हालात ऐसे हैं जिसमें या तो तिहाड़ में 800 लोगों के लिये एक ऑडिटॉरियम बनवा देना चाहिये या फिर संसद में तिहाड़-एक्स्टेंशन खोल देना चाहिये। "वोट के बदले नोट" का केस जो वर्ष 2008 में चर्चा का विषय रहा। अमर सिंह के ऊपर आरोप है कि उन्होंने भाजपा के तीन सांसदों को सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिये घूस दी। उन्होंने अदालत में अर्जी दी कि उनकी दोनों किडनी खराब चल रही हैं और वे काफ़ी बीमार हैं। जज ने उनकी ये अपील खारिज कर दी और उन्हें अदालत में दोपहर 12.30 बजे तक हाजिर होने का आदेश दिया। उनके साथ भाजपा के दो पूर्व सांसद भी जेल भेज दिये गये। जिन तीन सांसदों को रिश्वत दी गई थी उनमें से एक आज भी सांसद हैं इसलिये बिना लोकसभा सेक्रेट्री के आदेश के उन्हें जेल नहीं भेजा सकता था।
यदि आपको याद हो तो यह एक स्टिंग ऑप्रेशन था जिसे भाजपा ने आईबीएन के साथ मिलकर किया था। भाजपा के तीनों सांसदों ने जानबूझ कर रिश्वत ली और कैमरे में कैद करना चाहा। भाजपा ने संसद में रूपयों की गड्डी उछालीं और यह उम्मीद करी की आईबीएन स्टिंग ऑप्रेशन की वीडियो जनता को दिखायेगा। लेकिन इस चैनल ने यह कहकर वीडियो दिखाने से मना कर दिया कि तस्वीरें साफ़ नहीं थीं। अब इसे क्या कहा जाये मुझे नहीं मालूम। और इन सब में हैरानी की बात यह रही सीबीआई ने सत्ता पक्ष के एक भी नेता पर आरोप नहीं लगाये। मतलब यह कि अमर सिंह ने रिश्वत दी, भाजपा सांसदों ने रिश्वत ली, चैनल ने सब रिकॉर्ड किया पर इन सबसे जिस सरकार का फ़ायदा होना था उस सत्ता पक्ष में कोई आरोपी नहीं।
दूसरा मुद्दा रहा दिल्ली में हुआ बम विस्फ़ोट। तेरह लोग मारे गये और सौ के करीब घायल हुए। सरकार की ओर से वही रिकॉर्डेड बयान जो शायद उन्होंने पहले भी कईं बार यही बयान दिये होंगे। सुन सुन कर कान भी पक गये हैं। माना कि हर बम विस्फ़ोट नहीं रोका जा सकता। पर होने के बाद आतंकवादी पकड़े तो जा सकते हैं? लेकिन नहीं, चार दिन में एक भी आतंकवादी पकड़ा नहीं गया। सारी एजेंसियाँ अपने हिसाब से केस देख रही हैं। दिल्ली के पिछले कितने ही बम विस्फ़ोटों में एक भी आरोपी को नहीं पकड़ा जा सका है। क्या कर रही हैं सुरक्षा एजेंसियाँ? और यदि एक आध कोई अफ़्ज़ल या नलिनी जैसा पकड़ा भी जाता है तो उसे सजा नहीं होती। क्योंकि यदि फ़ाँसी हो गई तो किसी को अल्पसंख्यक वोट नहीं मिलेंगे तो किसी को अपने राज्य के। यह कैसा ’वोट’तंत्र है?
दस साल पहले अमरीका में आतंकी हमला हुआ। उसके दस साल में एक भी नहीं। और जिसने हमला किया वो लादेन भी मारा गया। लेकिन हमारे देश में दस साल पहले संसद पर हमला हुआ। वह संसद जिससे देश चलता है। भारत की आन-बान-शान की धज्जियाँ उड़ा दी गईं। उस हमले के दस साल के अंदर इस देश में 38 हमले हो चुके हैं। लेकिन किसी को सजा नहीं हुई। अफ़्ज़ल और कसाब जेल में कबाब खा रहे हैं। पर कैद में होते हुए भी आज़ाद हैं। यह कैसा कानून है? यह कैसा संविधान?
यह दोनों खबरें मीडिया में चर्चा में रहीं लेकिन सप्ताह के आरम्भ में एक ऐसी घटना घटी जो इक्के-दुक्के समाचार-पत्रों में ही नज़र आईं वो भी केवल एक ही दिन।
राजस्थान के बाड़मेर में एक गाँव है मुनाबाओ। यह गाँव पाकिस्तान के बॉर्डर पर स्थित है। पाकिस्तान इसी बॉर्डर के नज़दीक ही रेलवे स्टेशन बना रहा है। आप कहेंगे कि इसमें हर्ज ही क्या है? नियम के अनुसार किसी भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 150 गज के दायरे के अंदर कोई भी देश निर्माण नहीं कर सकता है। जबकि पाकिस्तान जो रेलवे स्टेशन बना रहा है वो केवल दस मीटर की दूरी पर है। जी हाँ, केवल दस मीटर। 2006 में उन्होंने इस सीमा पर ट्रैक बिछाना शुरु किया था जो अब सीमा के बेहद नज़दीक आ गया है। अब चौकाने वाली एक और बात यह है कि ये सब काम एक चीनी कम्पनी कर रही है।
अब आप लोगों को सब समझ आ गया होगा। चीनी ड्रैगन ने पश्चिमी सीमा पर भी अपना कब्जा कर लिया है। सीमा सुरक्षा बलों की हर हरकत पर चीन की नज़रें हैं। हम चारों ओर से घिर चुके हैं। भारत ने अपनी शिकायत दर्ज कराई है पर...। इन सबसे क्या मिलेगा भारत को? श्री एस.एम.कृष्णा जैसे विदेश मंत्री हमारे पास हैं। कौन सा आरोपी पाकिस्तान की जेल में है कौन सा राजस्थान की यह उन्हें नहीं पता। सरबजीत को पाकिस्तान ने क्यों पकड़ रखा है यह उन्हें नहीं पता। हीना रब्बानी खार उनसे पहले हुर्रियत नेताओं से क्यों मिलीं यह भी उन्हें नहीं पता। सरकार के प्रधानमंत्री हों या राहुल बाबा या सोनिया जी सभी लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं और हमारे कृष्णा साहब तो किसी दूसरे देश का ही भाषण पढ़ देते हैं तो कहाँ विरोध जतायें हम? ऐसे विदेश मंत्री के दरवाजे पर खटखटायें? ठोस विदेशी नीतियों की कमी है हमारे पास या फिर इच्छा शक्ति की?
चलते-चलते: सोनिया जी वापिस आ गई है। "मैडम आईं राहत लाईं" का नारा लगा रहे होंगे कांग्रेसी नेता। देखते हैं अगला सप्ताह क्या नये रंग लेकर आता है।
चीन पाकिस्तान से बड़ा शत्रु है...
जय हिन्द
वन्देमातरम
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पहली खबर रही अमर सिंह को तिहाड़ भेजने की। आज के हालात ऐसे हैं जिसमें या तो तिहाड़ में 800 लोगों के लिये एक ऑडिटॉरियम बनवा देना चाहिये या फिर संसद में तिहाड़-एक्स्टेंशन खोल देना चाहिये। "वोट के बदले नोट" का केस जो वर्ष 2008 में चर्चा का विषय रहा। अमर सिंह के ऊपर आरोप है कि उन्होंने भाजपा के तीन सांसदों को सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिये घूस दी। उन्होंने अदालत में अर्जी दी कि उनकी दोनों किडनी खराब चल रही हैं और वे काफ़ी बीमार हैं। जज ने उनकी ये अपील खारिज कर दी और उन्हें अदालत में दोपहर 12.30 बजे तक हाजिर होने का आदेश दिया। उनके साथ भाजपा के दो पूर्व सांसद भी जेल भेज दिये गये। जिन तीन सांसदों को रिश्वत दी गई थी उनमें से एक आज भी सांसद हैं इसलिये बिना लोकसभा सेक्रेट्री के आदेश के उन्हें जेल नहीं भेजा सकता था।
यदि आपको याद हो तो यह एक स्टिंग ऑप्रेशन था जिसे भाजपा ने आईबीएन के साथ मिलकर किया था। भाजपा के तीनों सांसदों ने जानबूझ कर रिश्वत ली और कैमरे में कैद करना चाहा। भाजपा ने संसद में रूपयों की गड्डी उछालीं और यह उम्मीद करी की आईबीएन स्टिंग ऑप्रेशन की वीडियो जनता को दिखायेगा। लेकिन इस चैनल ने यह कहकर वीडियो दिखाने से मना कर दिया कि तस्वीरें साफ़ नहीं थीं। अब इसे क्या कहा जाये मुझे नहीं मालूम। और इन सब में हैरानी की बात यह रही सीबीआई ने सत्ता पक्ष के एक भी नेता पर आरोप नहीं लगाये। मतलब यह कि अमर सिंह ने रिश्वत दी, भाजपा सांसदों ने रिश्वत ली, चैनल ने सब रिकॉर्ड किया पर इन सबसे जिस सरकार का फ़ायदा होना था उस सत्ता पक्ष में कोई आरोपी नहीं।
दूसरा मुद्दा रहा दिल्ली में हुआ बम विस्फ़ोट। तेरह लोग मारे गये और सौ के करीब घायल हुए। सरकार की ओर से वही रिकॉर्डेड बयान जो शायद उन्होंने पहले भी कईं बार यही बयान दिये होंगे। सुन सुन कर कान भी पक गये हैं। माना कि हर बम विस्फ़ोट नहीं रोका जा सकता। पर होने के बाद आतंकवादी पकड़े तो जा सकते हैं? लेकिन नहीं, चार दिन में एक भी आतंकवादी पकड़ा नहीं गया। सारी एजेंसियाँ अपने हिसाब से केस देख रही हैं। दिल्ली के पिछले कितने ही बम विस्फ़ोटों में एक भी आरोपी को नहीं पकड़ा जा सका है। क्या कर रही हैं सुरक्षा एजेंसियाँ? और यदि एक आध कोई अफ़्ज़ल या नलिनी जैसा पकड़ा भी जाता है तो उसे सजा नहीं होती। क्योंकि यदि फ़ाँसी हो गई तो किसी को अल्पसंख्यक वोट नहीं मिलेंगे तो किसी को अपने राज्य के। यह कैसा ’वोट’तंत्र है?
दस साल पहले अमरीका में आतंकी हमला हुआ। उसके दस साल में एक भी नहीं। और जिसने हमला किया वो लादेन भी मारा गया। लेकिन हमारे देश में दस साल पहले संसद पर हमला हुआ। वह संसद जिससे देश चलता है। भारत की आन-बान-शान की धज्जियाँ उड़ा दी गईं। उस हमले के दस साल के अंदर इस देश में 38 हमले हो चुके हैं। लेकिन किसी को सजा नहीं हुई। अफ़्ज़ल और कसाब जेल में कबाब खा रहे हैं। पर कैद में होते हुए भी आज़ाद हैं। यह कैसा कानून है? यह कैसा संविधान?
यह दोनों खबरें मीडिया में चर्चा में रहीं लेकिन सप्ताह के आरम्भ में एक ऐसी घटना घटी जो इक्के-दुक्के समाचार-पत्रों में ही नज़र आईं वो भी केवल एक ही दिन।
राजस्थान के बाड़मेर में एक गाँव है मुनाबाओ। यह गाँव पाकिस्तान के बॉर्डर पर स्थित है। पाकिस्तान इसी बॉर्डर के नज़दीक ही रेलवे स्टेशन बना रहा है। आप कहेंगे कि इसमें हर्ज ही क्या है? नियम के अनुसार किसी भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 150 गज के दायरे के अंदर कोई भी देश निर्माण नहीं कर सकता है। जबकि पाकिस्तान जो रेलवे स्टेशन बना रहा है वो केवल दस मीटर की दूरी पर है। जी हाँ, केवल दस मीटर। 2006 में उन्होंने इस सीमा पर ट्रैक बिछाना शुरु किया था जो अब सीमा के बेहद नज़दीक आ गया है। अब चौकाने वाली एक और बात यह है कि ये सब काम एक चीनी कम्पनी कर रही है।
अब आप लोगों को सब समझ आ गया होगा। चीनी ड्रैगन ने पश्चिमी सीमा पर भी अपना कब्जा कर लिया है। सीमा सुरक्षा बलों की हर हरकत पर चीन की नज़रें हैं। हम चारों ओर से घिर चुके हैं। भारत ने अपनी शिकायत दर्ज कराई है पर...। इन सबसे क्या मिलेगा भारत को? श्री एस.एम.कृष्णा जैसे विदेश मंत्री हमारे पास हैं। कौन सा आरोपी पाकिस्तान की जेल में है कौन सा राजस्थान की यह उन्हें नहीं पता। सरबजीत को पाकिस्तान ने क्यों पकड़ रखा है यह उन्हें नहीं पता। हीना रब्बानी खार उनसे पहले हुर्रियत नेताओं से क्यों मिलीं यह भी उन्हें नहीं पता। सरकार के प्रधानमंत्री हों या राहुल बाबा या सोनिया जी सभी लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं और हमारे कृष्णा साहब तो किसी दूसरे देश का ही भाषण पढ़ देते हैं तो कहाँ विरोध जतायें हम? ऐसे विदेश मंत्री के दरवाजे पर खटखटायें? ठोस विदेशी नीतियों की कमी है हमारे पास या फिर इच्छा शक्ति की?
चलते-चलते: सोनिया जी वापिस आ गई है। "मैडम आईं राहत लाईं" का नारा लगा रहे होंगे कांग्रेसी नेता। देखते हैं अगला सप्ताह क्या नये रंग लेकर आता है।
चीन पाकिस्तान से बड़ा शत्रु है...
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