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Sunday, September 11, 2011

अमर सिंह को पहुँचे तिहाड़, दिल्ली पर आतंकी हमला और पाकिस्तान व चीन क्या कर रहे हैं राजस्थान की सीमा पर? China-Pakistan At Rajasthan Border, Amar singh sent to Tihar, Delhi Bomb Blast - Where are terrorists?

राजनैतिक दृष्टि से पिछला सप्ताह काफ़ी उथल-पुथल का रहा। वैसे तो पिछले दो-तीन वर्षों में कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता जब पक्ष व विपक्ष शांत रहे हों। दिग्विजय सिंह जी ने रामदेव को ठग की उपाधि तक डाली। बेल्लारी बँधुओं को कर्नाटक में हो रहे अवैध खनन के मामले में जेल भेज दिया है। अन्ना की टीम अपनी अगली रणनीति के लिये मीटिंग कर रही है। लेकिन तीन मुद्दे महत्त्वपूर्ण रहे जिनमें से दो पर तो मीडिया की नज़र गई पर एक खबर ऐसी थी जो पर्दे के पीछे रह गई। 


पहली खबर रही अमर सिंह को तिहाड़ भेजने की। आज के हालात ऐसे हैं जिसमें या तो तिहाड़ में 800 लोगों के लिये एक ऑडिटॉरियम बनवा देना चाहिये या फिर संसद में तिहाड़-एक्स्टेंशन खोल देना चाहिये। "वोट के बदले नोट" का केस जो वर्ष 2008 में चर्चा का विषय रहा। अमर सिंह के ऊपर आरोप है कि उन्होंने भाजपा के तीन सांसदों को सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिये घूस दी। उन्होंने अदालत में अर्जी दी कि उनकी दोनों किडनी खराब चल रही हैं और वे काफ़ी बीमार हैं। जज ने उनकी ये अपील खारिज कर दी और उन्हें अदालत में दोपहर 12.30 बजे तक हाजिर होने का आदेश दिया। उनके साथ भाजपा के दो पूर्व सांसद भी जेल भेज दिये गये। जिन तीन सांसदों को रिश्वत दी गई थी उनमें से एक आज भी सांसद हैं इसलिये बिना लोकसभा सेक्रेट्री के आदेश के उन्हें जेल नहीं भेजा सकता था।

यदि आपको याद हो तो यह एक स्टिंग ऑप्रेशन था जिसे भाजपा ने आईबीएन के साथ मिलकर किया था। भाजपा के तीनों सांसदों ने जानबूझ कर रिश्वत ली और कैमरे में कैद करना चाहा। भाजपा ने संसद में रूपयों  की गड्डी उछालीं और यह उम्मीद करी की आईबीएन स्टिंग ऑप्रेशन की  वीडियो जनता को दिखायेगा। लेकिन इस चैनल ने यह कहकर वीडियो दिखाने से मना कर दिया कि तस्वीरें साफ़ नहीं थीं। अब  इसे क्या कहा जाये मुझे नहीं मालूम। और इन सब में हैरानी की बात यह रही सीबीआई ने सत्ता पक्ष के एक भी नेता पर आरोप नहीं लगाये।   मतलब यह कि अमर सिंह ने रिश्वत दी,  भाजपा सांसदों ने रिश्वत ली, चैनल ने सब रिकॉर्ड किया पर इन सबसे जिस सरकार का फ़ायदा होना था उस सत्ता पक्ष में कोई आरोपी नहीं।

दूसरा मुद्दा रहा दिल्ली में हुआ बम विस्फ़ोट। तेरह लोग मारे गये और सौ के करीब घायल हुए। सरकार की ओर से वही रिकॉर्डेड बयान जो शायद उन्होंने पहले भी कईं बार यही बयान दिये होंगे। सुन सुन कर कान भी पक गये हैं। माना कि हर बम विस्फ़ोट नहीं रोका जा सकता। पर होने के बाद आतंकवादी पकड़े तो जा सकते हैं? लेकिन नहीं, चार दिन में एक  भी आतंकवादी पकड़ा नहीं गया। सारी एजेंसियाँ अपने हिसाब से केस देख रही हैं। दिल्ली के पिछले कितने ही बम विस्फ़ोटों में एक भी आरोपी को नहीं पकड़ा जा सका है। क्या कर रही हैं सुरक्षा एजेंसियाँ? और यदि एक आध कोई अफ़्ज़ल या नलिनी जैसा पकड़ा भी जाता है तो उसे सजा नहीं होती। क्योंकि यदि फ़ाँसी हो गई तो किसी को अल्पसंख्यक वोट नहीं मिलेंगे तो किसी को अपने राज्य के। यह कैसा ’वोट’तंत्र है?


दस साल पहले अमरीका में आतंकी हमला हुआ। उसके दस साल में एक भी नहीं। और जिसने हमला किया वो  लादेन भी मारा गया। लेकिन हमारे देश में दस साल पहले संसद पर हमला हुआ। वह संसद जिससे देश चलता है। भारत की आन-बान-शान की धज्जियाँ उड़ा दी गईं। उस हमले के दस साल के अंदर इस  देश में 38 हमले हो चुके हैं। लेकिन किसी को सजा नहीं हुई। अफ़्ज़ल और कसाब जेल में कबाब खा रहे हैं। पर कैद में होते हुए भी आज़ाद हैं। यह कैसा कानून है? यह कैसा संविधान?

यह दोनों खबरें मीडिया में चर्चा में रहीं लेकिन सप्ताह के आरम्भ में एक ऐसी घटना घटी जो इक्के-दुक्के समाचार-पत्रों में ही नज़र आईं वो भी केवल एक ही दिन।

राजस्थान के बाड़मेर में एक गाँव है मुनाबाओ। यह गाँव पाकिस्तान के बॉर्डर पर स्थित है। पाकिस्तान इसी बॉर्डर के नज़दीक ही रेलवे स्टेशन बना रहा है। आप कहेंगे कि इसमें हर्ज ही क्या है? नियम के अनुसार किसी भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 150 गज के दायरे के अंदर कोई भी देश निर्माण नहीं कर सकता है। जबकि पाकिस्तान जो रेलवे स्टेशन बना रहा है वो केवल दस मीटर की दूरी पर है। जी हाँ, केवल दस मीटर। 2006 में उन्होंने इस सीमा पर ट्रैक बिछाना शुरु किया था जो अब सीमा के बेहद नज़दीक आ गया है। अब चौकाने वाली एक और बात यह है कि ये सब काम एक चीनी कम्पनी कर रही है। 

अब आप लोगों को सब समझ आ गया होगा। चीनी ड्रैगन ने पश्चिमी सीमा पर भी अपना कब्जा कर लिया है। सीमा सुरक्षा बलों की हर हरकत पर चीन की नज़रें हैं। हम चारों ओर से घिर चुके हैं। भारत ने अपनी शिकायत दर्ज कराई है पर...। इन सबसे क्या मिलेगा भारत को? श्री एस.एम.कृष्णा जैसे विदेश मंत्री हमारे पास हैं। कौन सा आरोपी पाकिस्तान की जेल में है कौन सा राजस्थान की यह उन्हें नहीं पता। सरबजीत को पाकिस्तान ने क्यों पकड़ रखा है यह उन्हें नहीं पता। हीना रब्बानी खार उनसे पहले हुर्रियत नेताओं से क्यों मिलीं यह भी उन्हें नहीं पता। सरकार के प्रधानमंत्री हों या राहुल बाबा या सोनिया जी सभी लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं और हमारे कृष्णा साहब तो किसी दूसरे देश का ही भाषण पढ़ देते हैं तो कहाँ विरोध जतायें हम? ऐसे विदेश मंत्री के दरवाजे पर खटखटायें? ठोस विदेशी नीतियों की कमी है हमारे पास या फिर इच्छा शक्ति की?

चलते-चलते: सोनिया जी वापिस आ गई है। "मैडम आईं राहत लाईं" का नारा लगा रहे होंगे कांग्रेसी नेता। देखते हैं अगला सप्ताह क्या नये रंग लेकर आता है।
चीन पाकिस्तान से बड़ा शत्रु है... 

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Sunday, August 28, 2011

क्या आप जानते हैं कि चीन की महान दीवार कितनी लम्बी है? Great Wall of China, Some Interesting Facts - Did You Know?

भारत के विभिन्न पर्यटन शहरों के बारे में तो हम जानते ही हैं किन्तु पड़ोसी को भी थोड़ा बहुत जानना चाहिये। क्या आप जानते हैं कि चीन की महान दीवार कितनी लम्बी है? चीन की दीवार मिट्टी व पत्थर से बनी हुई है व उत्तरी चीन में स्थित है। कहते हैं कि इसे चीन के राजाओं ने उत्तरी देशों से बचाव के लिये बनवाया है।

चीन की लम्बी दीवार
यह लेख लिखने से पहले मैं सोचता था कि यह एक ही दीवार है जो चीन में फ़ैली हुई है। किन्तु इंटेरनेट पर पढ़ कर समझ में आया है कि यह कईं सारी दीवारों के टुकड़े हैं जो विभिन्न राजाओं ने अलग अलग काल में बनवाये हैं। दीवार बनवाने की शुरुआत पाँचवी शताब्दी (ईसा -पूर्व) यानि करीबन ढाई हजार पहले हुई। प्रमुख दीवारों में किन शि हुआंग नामक राजा की दीवार शामिल है जो उन्होंने 220 से 206 ईसा पूर्व के दौरान बनवाई। हालाँकि अब इस दीवार का छोटा सा हिस्सा ही शेष बचा है। मिंग शासन के दौरान सबसे ज्यादा हिस्सा बनकर तैयार हुआ।

चीन की दीवार पूर्व में शंहाईगुआन से लेकर पश्चिम में लोपलेक तक फ़ैली हुई है। यह दीवार 6,259.6 किमी ईंटों से, 359.7 किमी खाई व 2,232 किमी प्राकृतिक रक्षात्मक बाधायें जैसे पहाड़ियाँ व नदियाँ हैं। इस तरह इसकी कुल लम्बाई करीबन नौ हजार किमी तक पहुँच जाती है। कहते हैं कि मानव निर्मित यह एक ही ऐसी कृति है जो चाँद से देखी जा सकती है।

अन्य कुछ रोचक तथ्य:

  • भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाला फ़ोन है नोकिया ये तो सभी जानते हैं। ये कम्पनी फ़िनलैंड की है और इसका नाम फ़िनलैंड के शहर एक नाम पर रखा गया है।
  • दुनिया में सबसे ज्यादा पोस्ट ऑफ़िस भारत में ही हैं। इनकी संख्या एक लाख से भी अधिक है।
  • मिस्र के पिरामिड विश्वविख्यात हैं। किन्तु ये कम ही लोगों को पता है कि मिस्र से अधिक पिरामिड पेरू (दक्षिण अमरीका) में हैं।
  • जमाइका में 120 नदियाँ हैं व सऊदी अरब एक ऐसा देश है जहाँ एक भी नदी नहीं है।
  • ऑस्ट्रेलिया विश्व का एक मात्र महाद्वीप है जहाँ एक भी ज्वालामुखी नहीं है।
  • ब्राज़ील दक्षिण अमरीका महाद्वीप का एक देश है जो महाद्वीप का पचास फ़ीसदी हिस्सा है।  ब्राज़ील का नाम एक पेड़ के नाम पर रखा गया है।


क्या आप जानते हैं के अन्य लेख पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें। आपको यह श्रॄंख्ला कैसी लग रही है अवश्य बतायें।

जय हिन्द
वन्देमातरम
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Thursday, June 9, 2011

हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा कितना है सही? चीन को शत्रु कहें या मित्र? Is China Bigger Enemy Than Pakistan? Chinese Naval Bases In Neighbourhood

"हिन्दी चीनी भाई भाई"- यही नारा दिया था उस पंचशील योजना के दौरान जब पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन यात्रा पर गये थे। उसके कुछ समय पश्चात ही चीन ने हम पर हमला कर दिया और 1962 का वो युद्ध हम हार गये। वो बीता हुआ समय था पर सवाल ये है कि क्या अब बदले हुए वक्त में जब भारत भी सशक्त हो चुका है और विश्व में अपनी पहचान बना चुका है तब चीन और भारत के पड़ोसी रिश्ते वैसे ही हैं जैसे 1962 में थे अथवा नहीं? क्या चीन की सोच भारत के लिये बदली है?

पिछले दिनों धूप-छाँव पर लेख छपा था जिसमें चीन के एक विश्वविद्यालय में चल रहे संस्कृत प्रोग्राम का जिक्र था। उस के शीर्षक में मैंने चीन को "शत्रु" कह दिया था। लेकिन कुछ मित्रों ने यह प्रश्न उठाया कि क्या चीन को शत्रु मानना गलत है? क्रमबद्ध तरीके से बात करते हैं। हर बात का प्रमाण देने का प्रयास रहेगा।

चीन द्वारा माओवादियों की सहायता

गौरतलब है कि चीन नेपाल के रास्ते भारत में माओवादियों को हथियार मुहैया करा रहा है। उसका इरादा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ से होते हुए उड़ीसा तक सभी माओवादियों व नक्सलियों हथियार पहुँचाना। और माओवादी देश के आंतरिक हालात किस तरह से बिगाड़ रहे हैं ये सभी जानते हैं।

कुछ खबरें जो विभिन्न साईट से ली गई हैं।
चैनल 7
" बहराइच के रूपईडिहा में पिछले दिसम्बर में तीन चीनी नागरिकों को सशस्त्र सीमा बल के चौकी की तस्वीर उतारते गिरफ्तार किया गया था। तीनों बिना पासपोर्ट और वीजा के भारत आए थे। उनमें से एक के पास भारतीय स्थायी खाता संख्या (पैन कार्ड) भी मिला था। तीनों अभी बहराइच जेल में बंद हैं।"

दैनिक भास्कर


"नेपाल में भारत की मदद से चलने वाली परियोजनाओं में माओवादियों द्वारा अड़ंगा डालने की एक और घटना सामने आई है। वहीं माओवादी पड़ोसी चीन से अपनी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं। खबर है कि विपक्षी माओवादी पार्टी दक्षिण नेपाल में रेलवे परियोजना पर सर्वे के काम में रुकावटें पैदा कर रही है। जबकि माओवादी नेता प्रचंड एक बार फिर चीन के लिए रवाना हो रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों ने बारदीबास बाजार में सर्वे के दौरान गाड़े गए खंभे भी उखाड़ दिए हैं। इससे पहले माओवादियों ने नेपाल में भारत की मदद से तैयार होने वाली दर्जनों पनबिजली परियोजनाओं को भी ठप करने की धमकी दी थी। इनका कहना है कि ये परियोजनाएं देशहित के खिलाफ हैं।"

वेबदुनिया
"केन्द्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि माओवादियों को चीन से हथियार हासिल हो रहे हैं, चीन की सरकार से नहीं। माओवादियों से निपटने में उड़ीसा सरकार की तैयारी की समीक्षा करने के बाद पिल्लई ने स्पष्ट किया कि मैंने माओवादियों को चीनी सरकार से हथियार मिलने की बात कभी नहीं कही। उन्हें चीन से असलहे हासिल हो रहे हैं, चीन की सरकार से नहीं।हथियारों के अवैध कारोबार को दुनिया का बड़ा व्यवसाय करार देते हुए उन्होंने कहा कि माओवादियों को चीन, म्याँमार और बांग्लादेश जैसे मुल्कों से हथियार हासिल हो रहे हैं। "

चीन का बंगाल की खाड़ी में नौसेना का अड्डा

टाईम्स ऑफ़ इंडिया

चीन ने म्यांमार की सहायता से कोको टापू पर नौसेना का अड्डा बनाया है। ये जगह भारत से नज़दीक है और यहाँ चीन ने हथियार भी रखने शुरु कर दिये हैं। म्यांमार की नौसेना भी चीन का साथ दे रही है उसके बदले में चीन वहाँ की व्यवस्था को सुधार रहा है।

दूसरी खबर बांग्लादेश से है। यहाँ चटगाँव में चीन ने बंगाल की खाड़ी में अपना नौसेना अड्डा बनाया है।

चीनी वेबसाईट के खुलासे में

चीन का लिट्टे के विरुद्ध श्रीलंका की मदद करना  और वहाँ सैन्य अड्डा खोलना

श्रीलंका के हम्बंतोता में चीन ने पूरी तरह से कमर्श्यल बंदरगाह बनाया है और वहाँ पर अपना सैन्य अड्डा भी खोल दिया है। इसके लिये लिट्टे के विरुद्ध चीन ने लंका की सहायता करी। इस बंदरगाह के लिये चीन ने एक बिलियन डालर खर्च किय हैं। एक बिलियन डालर!!
स्रोत: पाकिस्तानश्रीलंका की साईट

चीन का पाकिस्तान में नौसेना अड्डा और परमाणु शक्ति बनाना

हाल ही में पाकिस्तान के नौसेना अड्डे पर अलकायदा का हमला हुआ। पाकिस्तान ने भी काफ़ी समय से लम्बित अपने निर्णय पर सहमति जता दी है और चीन की मदद से एक नौसेना अड्डा खोलने को कह दिया है। ओसामा के मरने के बाद एक चीन ही था जो खुले तौर पर पाकिस्तान के साथ आया। चीन पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करता आया है ये बात भी किसी से नहीं छिपी है। और तो और पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनाने में चीन का ही हाथ है। काराकोरम की घाटियों में भी चीन सैन्य कार्रवाही करता आ रहा है।

टाईम्स ऑफ़ इंडिया

बंगाल की खाड़ी हो या अरब सागर या फिर हिन्द महासागर। तीनों ओर से चीन भारत को घेर चुका है। पाकिस्तान, लंका, नेपाल, बंग्लादेश म्यांमार-सभी पड़ोसी देश चीन के साथ हैं। 
रही सही कसर चीन स्वयं कभी सिक्किम व अरूणाचल प्रदेश तो कभी कश्मीर में घुसपैठ कर पूरी कर देता है। इन सभी राज्यों में उसने जमीन हड़प रखी है ये भी सभी को ज्ञात है। इन सब बातों के बाद इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज चीन पाकिस्तान से भी बड़ा शत्रु है। हमने ६२ के बाद भी कोई सीख नहीं ली। न हम खुल कर चीन के सामने आ पाते हैं। तिब्बत के लोग भारत से मदद की गुहार लगाते रहते हैं पर हम चुप रहते हैं।

चीन शत्रु है इसमें कोई संशय नहीं परन्तु यदि हम आँख मूँद कर बैठे रहे और अनजान बनकर चीन को अपना मददगार समझते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब ड्रैगन भारतीय बाघ को चारों तरफ़ दबा कर उसकी साँस रोक देगा और निगल जायेगा।


जय हिन्द
वन्देमातरम

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Sunday, May 22, 2011

इस देश की सबसे उपेक्षित भाषा संस्कृत को कैसे सीख रहा है शत्रु देश चीन The Sanskrit Tale On Enemy's Land - China Learning The Language We Ignore Most

आज तक आपने चीन की हरक़तों के बारे में सुना होगा। कराची में पाकिस्तान की सहायता से, बंगाल की खाड़ी  में बंग्लादेश से मदद और भारतीय महासागर में श्रीलंका , तीनों दिशाओं से भारत के ऊपर नज़र रखे हुए है। अरूणाचल प्रदेश व कश्मीर में घुसपैठ जारी है। फिर भी भारत सरकार सोई हुई है। पता नहीं किस बात से डरते हैं हम? पर आज मैं आपको जो बताने जा रहा हूँ वो सुनकर आप भी उसी तरह से हैरान हो जायेंगे जिस तरह से मैं हो गया था।

जिस भाषा की कद्र उसके अपने देश में नहीं होती वो भाषा हमारे पड़ोसी शत्रु देश में शोभायमान हो रही है। जिस भाषा को एक सम्प्रदाय की भाषा मान कर हमारी सरकार केवल वोट बैंक की खातिर नजरअंदाज़ करती रही है वही भाषा चीन में अध्ययन का विषय बनी हुई है। मैं बात कर रहा हूँ हमारी मातृभाषा हिन्दी से भी अधिक उपेक्षित भाषा व हिन्दी की जननी संस्कृत की। जी हाँ इस देश की सबसे पुरानी भाषा संस्कृत जिसे आज हिन्दुओं की भाषा माना जाता है।

आजकल भारत में छठी कक्षा से ही अपनी भाषा चुनने की स्वतंत्रता मिल जाती है। बच्चे जर्मन, फ़्रैंच व स्पेनिश जैसी भाषाओं को संस्कृत से ऊपर मानते हुए चुनते हैं क्योंकि ये भाषायें आगे चलकर नौकरी दिलवाने में मदद करती हैं। यानि वो भाषा जिसे इस देश की राष्ट्रभाषा बनना चाहिये था वो राजनीति व जटिल पाठ्यक्रम के कारण हाशिये पर जाती जा रही है।

चलिये भारत की बात छोड़ते हैं और चीन की बात करता हूँ। चीन के पीकिंग विश्वविद्यालय की बात करें तो वहाँ पर संस्कृत विषय पर 1960 से अध्ययन व लोगों को संस्कृत सिखाने का कार्यचल रहा है। इसे जी ज़ानलिन की छत्रछाया में देश में प्रसिद्धि मिली। करीबन 2000 वर्ष पूर्व बौद्ध गुरुओं के माध्यम से संस्कृत चीन तक पहुँची। यहाँ 60 विद्यार्थी संस्कृत पढ़ते हैं व कईं पुस्तकों का संस्कृत से चीनी भाषा में अनुवाद भी करते हैं। यहाँ के विद्यार्थियों में जबर्दस्त लगन है और सटीक उच्चारण सीखने की इच्छा भी है।

नई दिल्ली से चीनी विश्वविद्यालय पढ़ाने के लिये गये संस्कृत विद्वान सत्यव्रत शास्त्री जी ने बताया कि तिब्बत में बहुत सी हस्तलिखित पुस्तकें हैं जो संस्कृत से तिब्बती व चीनी भाषा में अनूदित है किन्तु संस्कृत में मिलनी दुर्लभ है। वे कहते हैं कि अब वक्त आ गया है कि हम इस भाषा की कद्र करें व इसको पहचानें। वे आगे बताते हैं कि चीनी विद्यार्थी बहुत तेज़ी से इस भाषा को सीख रहे हैं। ये विद्यार्थी पी.एच.डी कर रहे हैं। ये लोग भगवद गीता और कालिदास की कुमारसम्भव में अध्ययन कर रहे हैं। 
आपको यदि यकीन न हो तो आप अंग्रेज़ी दैनिक "हिन्दू" के इस लिंक पर जा कर इसके बारे में अधिक जान सकते हैं।

ये बात दुखी करती है कि जिस देश में वैदिक शिक्षा व संस्कृत अनिवार्य करनी चाहिये उस देश की आज की कथित "युवा" पीढ़ी को इन दोनों के बारे में ही ज्ञान नहीं है। कोई राज्य वैदिक शिक्षा शुरु करते भी हैं तो स्वयं को "धर्मनिरपेक्ष" कहने वाली कुछ पार्टियाँ टाँग अड़ाने से बाज नहीं आती हैं। ये वोट-बैंक की राजनीति हमारे देश को विपरीत दिशा में ले जा रही है। समय आ गया है संस्कृत के पाठ्यक्रम में सुधार  करने का जिससे बच्चों में इसके प्रति दिलचस्पी बढ़े व इस भाषा को उचित सम्मान मिल सके। क्या ऐसे मिल सकेगा इसे सम्मान? आज पहली बार मैं चीन के साथ खड़ा हो रहा हूँ।  घर की भाषा को घर में इज़्ज़त नहीं मिल रही और शत्रु देश उसे पूज रहा है। अचम्भा!!! हैरानी!!! दु:ख!!! खुशी!!! सब कुछ है इस खबर में....

।जय हिन्द।
।वन्देमातरम।
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