Tuesday, June 28, 2011

अतुल्य भारत : भारत के तीन स्थल जो विश्व धरोहरों में शामिल हैं Kaziranga, Bodh Gaya in UNESCO List : Incredible India

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO / यूनेस्को) द्वारा भारत के 28 स्थलों को विश्व धरोहर घोषित किया हुआ है। यूनेस्को की स्थापना 1972 में हुई। यूनेस्को विश्व के सांस्कृतिक व प्राकृतिक स्थलों की देखरेख के लिये जाना जाता है। यह संगठन अब तक विश्व के 152 देशों में 911 स्थलों की सूची तैयार कर चुका है जिनमें से 711 सांस्कृतिक व 180 प्राकृतिक स्थल हैं।

भारत की बात करें तो 1983 में पहली बार यूनेस्को ने आगरा के किले और अजंता की गुफ़ाओं को विश्व धरोहर में शामिल किया। पिछले 28 वर्षों में पच्चीस से अधिक स्थलॊं को अपनी सूची में डाल चुका है। भारत के 23 सांस्कृतिक व अन्य प्राकृतिक स्थल इस सूची में हैं। इस सूची में आने का आशय यह है कि ये स्थल अति भारतीय संस्कृति व पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील व महत्त्वपूर्ण हैं एवं इन स्थलों के रखरखाव की जिम्मेदारी सरकार व हर भारतीय को निभानी ही है। हाल ही में जयपुर के जंतर मंतर को भी इस विशिष्ट सूची में शामिल किया गया है।

आज "अतुल्य भारत" श्रूंख्ला में तीन जगहों का विवरण होगा।

काज़ीरंगा अभयारण्य पूर्वोत्तर राज्य असम में स्थित है। ये ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर है; वही ब्रह्मपुत्र जो पूर्वोत्तर राज्यों में जीवन रेखा की तरह है और चीन उसके बहाव को अपने अनुसार मोड़ना चाह रहा है उस पर बाँध बना कर। हो सकता है कि काज़ीरंगा का अस्तित्व भी उसके बहाव पर टिका हो। हालाँकि मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ इसलिये कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। यूनेस्को ने इस अभयारण्य को 1985 में विश्व धरोहर घोषित किया। इसकी स्थापना सर्वप्रथम 1908 में भारतीय गैंडों की सुरक्षा को ध्यान में रख कर हुई थी। उसके पश्चात यह वन कईं बदलावों से गुजरा व 1950 में अभयारण्य व 1974 में राष्ट्रीय पार्क बना। काज़ीरंगा एक लाख एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में फ़ैला हुआ है।

यूनेस्को की लिस्ट से दूसरा नाम आता है १९०७ में स्थापित मानस अभयारण्य का। ये भी असम में ही स्थित है व हिमालय की पहाड़ियों के ठीक नीचे भूटान के बॉर्डर को छूता हुआ अनेकानेक पशु-पक्षियों का घर है। अपने अनुपम प्राकृतिक सुंदरता व वन्य जीवों के कारण इसका नाम यूनेस्को ने 1985 में ही चुना। यहाँ 21  से अधिक दुर्लभ प्रजातियाँ हैं जिनमें बाघ, भारतीय गैंडा, जंगली भैंस व हाथी, सुनहरा लंगूर शामिल हैं।
विलुप्त होती प्रजातियों के बारे में जानने के लिये इस लिंक पर जायें।


बौद्ध गया- बारह एकड़ के इस क्षेत्र का सांस्कृतिक व पुरातात्विक महत्त्व है। कहा जाता है कि इस मंदिर को 260 ईसा पूर्व भारत के महान सम्राट अशोक ने बनवाया। हालाँकि परिसर के कुछ मंदिर 1500 वर्ष पूर्व के भी बताये जाते हैं। इसकी संरचना ईंटों से की गई है। राजा सिद्धार्थ गौतम ने महज 35 वर्ष की उम्र में इसी जगह से बौद्ध धर्म का आरम्भ किया था। पूरे विश्व से बौद्ध धर्म के अनुयायी इस पवित्र व ऐतिहासिक मंदिर में पूजा-अर्चना करने आते हैं। इसकी ऊँचाई करीबन पचास मीटर की है। इसकी संरचना पाँचवीं शताब्दी की है व यह मंदिर भारतीय उप-महाद्वीप का प्राचीनतम मंदिर है। सम्पूर्ण मंदिर परिसर को विश्व धरोहर में रखा गया है।





जय हिन्द
वन्देमातरम



अतुल्य भारत के आने वाले अंकों में यूनेस्को की लिस्ट में शामिल अन्य स्थल व भारत के वे पर्यटन स्थल जो इस धरती को अतुल्य बनाते हैं। आइये इन धरोहरों को संजो कर रखें ताकि भविष्य की पीढ़ी सर उठा कर स्वाभिमान से अपने अतीत को निहार सके-इस धरती को जान सके।


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Thursday, June 23, 2011

क्या आप जानते हैं - कैसे निर्धारित होता है आपके इलाके का पिनकोड? Postal Index Number

पिनकोड का मतलब है Postal Index Number । इसका इस्तेमाल भारतीय डाक सेवा चिट्ठी, पत्र, डाक, रजिस्टर्ड पोस्ट इत्यादि को दिये गये पते पहुँचाने के लिये होता है। पर ये सोचिये कि किसी क्षेत्र का पिनकोड निर्धारित कैसे होता है? किस तरह भारतीय डाक इसका उपयोग करता है? किसी डाक पर पिनकोड न लिखें तो क्या होगा?

भारतीय डाक ने पिनकोड का प्रयोग करना 15 अगस्त 1972 से शुरू किया। भारतीय डाक ने स्वयं को नौ क्षेत्र में बाँटा है। जिनमें से आठ क्षेत्रीय व एक सैन्य विभाग है। आपका पिन छह अंकों का होता है। पहला अंक वो राज्य व क्षेत्र होता है जिसमें आपका डाकघर है। मतलब यदि पहला अंक एक (1) है तो आपका डाकघर दिल्ली, हरियाणा, पंजाव, हिमाचल, चंडीगढ़ अथवा जम्मू व कश्मीर में ही है। इसी तरह दूसरा अंक उप-क्षेत्र दर्शाता है, तीसरा अंक जिला व अंतिम तीन अंक डाक-घर का नम्बर इंगित करता है।

वे नौ क्षेत्र/राज्य जो पिन कोड के अंतर्गत आते हैं। पहला अंक-
1 - दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर व चण्डीगढ़।
2 - उत्तर-प्रदेश, उत्तराखण्ड
3 - राजस्थान, गुजरात, दमन-दीव, दादर-नागर हवेली।
4 - गोआ, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़।
5 - आंध्रप्रदेश, कर्नाटक।
6 - तमिल नाडु, केरल, पुद्दुचेरी व लक्षद्वीप।
7 - उडीसा, पश्चिम बंगाल, अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणीपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय, अंडमान-निकोबार।
8 - बिहार व झारखंड।
9 - आर्मी पोस्ट ऑफ़िस।
दूसरा  व तीसरा अंक-
11         दिल्ली
12/13 हरियाणा
14/15 पंजाब
16         चंडीगढ़
17         हिमाचल प्रदेश
18-19 जम्मू-कश्मीर
20 से 28 उत्तर-प्रदेश/उत्तराखंड
30 से 34 राजस्थान
36 से 39 गुजरात
40         गोआ
40 से 44 महाराष्ट्र
45 से 48 मध्यप्रदेश
49         छत्तीसगढ़
50 से 53 आंध्रप्रदेश
56 से 59 कर्नाटक
60 से 64 तमिलनाडु
67 से 69 केरल
682         लक्षद्वीप
70 से 74 पश्चिम बंगाल
744         अंडमान-निकोबार
75 से 77 उड़ीसा
78         असम
79         अरूणाचल प्रदेश
793, 794, 783123 मेघालय
795           मणिपुर
796        मिज़ोरम
799          त्रिपुरा
80 से 85         बिहार व झारखंड

जब एक ही राज्य में दो इलाकों का एक नाम हो तब इस पिनकोड का फ़ायदा होता है। इसलिये भारतीय डाक ने इसका प्रयोग करना प्रारम्भ किया।

"क्या आप जानते हैं" स्तम्भ के अन्य लेख पढ़ने के लिये यहाँ जायें। आपको ये लेख कैसे लगते हैं अवश्य बतायें।
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Saturday, June 18, 2011

भूले बिसरे गीत - रवींद्रनाथ टैगोर की मर्मस्पर्शी कहानी पर बनी फ़िल्म का वो सदाबहार नग़मा जो देशभक्ति गीतों में मील का पत्थर साबित हुआ Story By RabindraNath Tagore, Singer Manna Dey : Kabuliwala (1961)

रवींद्रनाथ टैगोर ने एक कहानी लिखी जिसका नाम था काबुलीवाला। 1957 में इस कहानी पर तपन सिन्हा ने बंगाली भाषा में फ़िल्म बनाई और फिर हेमेन गुप्ता ने 1961 में मुम्बई में इसी कहानी पर बनी फ़िल्म का निर्देशन किया। हेमेन गुप्ता सुभाष चंद्र बोस के सेक्रेट्री भी रहे हैं।

आज धूप-छाँव पर भूले-बिसरे गीत में पहले वो कहानी जिसे साहित्य जगत में ऊँचा स्थान मिला और फ़िल्म जगत में भी भरपूर सम्मान मिला। उसके बाद उस गीत की करेंगे जिसके रचनाकार रहे प्रेम धवन और जिसे गाया था मन्ना डे ने। आप सोचिये कि ये फ़िल्म-ये गीत कितना महान,कितना खास बन जाता है जब इसके साथ रवींद्रनाथ टैगोर, मन्ना डे व बलराज साहनी जुड़े हों। 

कहानी-काबुलीवाला, कहानीकार-रवींद्रनाथ टैगोर

मेरी पाँच बरस की लड़की मिनी से पल-भर भी बात किए बिना नहीं रहा जाता। दुनिया में आने के बाद भाषा सीखने में उसने सिर्फ एक ही वर्ष लगा होगा। उसके बाद से जितनी देर सो नहीं पाती हैं, उस समय का एक पल भी वह चुप्पी में नहीं खोती। उसकी माता बहुधा डाँट-फटकारकर उसकी चलती हुई ज़बान बन्द कर देती हैं, लेकिन मुझ से ऐसा नही होता। मिनी का मौन मुझे ऐसा अस्वाभाविक-सा प्रतीत होता है कि मुझसे वह अधिक देर तक नहीं सहा जाता और यही कारण हैं कि मेरे साथ उसके भावों का आदान-प्रदान कुछ अधिक उत्साह के साथ होता रहा हैं।

सवेरे मैने अपने उपन्यास के सत्रहवें अध्याय में हाथ लगाया ही था कि इतने में मिनी ने आकर कहना आरम्भ कर दिया - "बाबूजी! रामदयाल दरबान ‘काक’ को ‘कौआ’ कहता है। वह कुछ जानता नहीं न, बाबूजी।" विश्व की भाषाओं की विभिन्नता के विषय में मेरे कुछ बताने से पहले ही उसने दूसरा प्रसंग छेड़ दिया- "बाबूजी! भोला कहता था, आकाश में हाथी सूँड से पानी फेंकता है, इसी से वर्षा होती है। अच्छा बाबूजी, भोला झूठ बोलता है, है न? खाली बक-बक किया करता हैं, दिन-रात बकता रहता है।"

इस विषय में मेरी राय की तनिक भी राह न देख करके, चट से धीमें स्वर में एक जटिल प्रश्न कर बैठी- "बाबूजी! माँ तुम्हारी कौन लगती हैं?"
फिर उसने मेरी मेज के पार्श्व में पैरों के पास बैठकर अपने दोनो घुटने और हाथों का हिला-हिलाकर बड़ी शीघ्रता से मुँह चलाकर 'अटकन-बटबन दही चटाके' कहना आरम्भ कर दिया। जबकि मेरे उपन्यास के अध्याय में प्रताप सिंह उस समय कंचन माला को लेकर रात्रि के प्रगाढ़ अंधकार में बंदीगृह के ऊँचें झरोखे से नीचे कलकल करती हूई सरिता में कूद रहे थे।

मेरा घर सड़क के किनारे पर था। अचानक मिनी अपने अटकन-चटकन को छोड़कर खिड़की के पास दौड़ी गई और जोर-जोर से चिल्लाने लगी, "काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले!"

मैले-कुचले ढीले कपड़े पहने, सिर पर कुल्ला रखे, उस पर साफा बाँधे कँधे पर सूखे फलों की झोली लटकाए, हाथ में चमन के अँगूरों की कुछ पिटारियाँ लिए, एक लम्बा-तगड़ा सा काबुली मन्द चाल से सड़क पर जा रहा था। उसे देख कर मेरी छोटी-सी बेटी के हृदय में कैसे भाव उदय हुए यह बताना असम्भव हैं। उसने जोर से पुकारना शुरु किया। मैने सोचा - 'अभी झोली कन्धे पर डाले, सिर पर एक मुसीबत आ खड़ी होगी और मेरा सत्रहवाँ अध्याय आज अधूरा रह जाएगा।'

किन्तु मिनी के चिल्लाने पर ज्यों ही काबुली ने हँसते हुए उसकी ओर मुँह फेरा और घर की ओर बढ़ने लगा, त्यों ही मिनी भय खाकर भीतर भाग गई। फिर पता ही नहीं लगा कि कहाँ छिप गई? उसके छोटे से मन में यह अन्धविश्वास बैठ गया था कि उस मैली-कुचैली झोली के अंदर ढूढ़ने पर उस जैसी और भी जीती जागती बच्चियाँ निकल सकती हैं।

इधर काबुली ने आकर मुस्कराते हुए, मुझे हाथ उठाकर अभिवादन किया और खड़ा हो गया। मैने सोचा- 'वास्तव में प्रताप सिंह औऱ कंचन माला की दशा अत्यन्त संकटापन्न हैं, फिर भी घर में बुलाकर इससे कुछ न खरीदना अच्छा न होगा।'

कुछ सौदा खरीदा गया। उसके बाद मैं उससे इधर-उधर की बातें करने लगा। रहमत, रूस, अंग्रेज, सीमान्त रक्षा के बारे में गप-शप होने लगी।
अन्त में उठकर जाते हुए उसने अपनी मिली-जुली भाषा में पूछा- "बाबूजी! आप की बच्ची कहाँ गई?"
मैंने मिनी के मन से व्यर्थ का भय दूर करने के अभिप्राय से उसे भीतर से बुलवा लिया। वह मुझसे बिल्कुल लगकर काबुली के मुख और झोली की ओर सन्देहात्मक दृष्टि डालती हुई खड़ी रही । काबुली ने झोली से किशमिश और खुबानी निकालकर देनी चाही, परन्तु उसने न ली और दुगने सन्देह के साथ मेरे घुटनों से लिपट गई। उसका पहला परिचय इस तरह हुआ।

इस घटना के कुछ दिन बाद एक दिन सवेरे मैं किसी आवश्यक कार्यवश बाहर जा रहा था। देखूँ तो मेरी बिटिया दरवाजे के पास बैंच पर बैठकर काबुली से हँस-हँस कर बातें कर रही है और काबुली उसके पैरों के समीप बैठा-बैठा मुसकराता हुआ, उन्हें ध्यान से सुन रहा है। और बीच-बीच में अपनी राय मिली-जुली भाषा में व्यक्त करता जाता हैं। मिनी को अपने पाँच वर्ष के जीवन में बाबूजी के सिवाय, ऐसा धैर्य वाला श्रोता शायद ही कभी मिला हो। देखो तो उसकी फ्रॉक का अग्रभाग बादाम-किशमिश से भरा हुआ था। मैंने काबुली से कहा, "इसे यह सब क्यों दे दिया? अब कभी मत देना।"

यह कहकर कुर्ते की जेब में से एक अठन्नी निकालकर उसे दी। उसने बिना किसी हिचक के अठन्नी लेकर अपनी झोली में रख ली।
कुछ देर बाद, घर लौटकर देखता हूँ कि उस अठन्नी ने बड़ा उपद्रव खड़ा कर दिया हैं।
मिनी की माँ एक सफेद चमकीला गोलाकर पदार्थ हाथ में लिए डाँट-फटकार मिनी से पूछ रही थी- "तूने यह अठन्नी पाई कहाँ से, बता?"
मिनी ने कहा- "काबुली वाले ने दी हैं।"
"काबुली वाले से तूने अठन्नी ली कैसे, बता?"
मिनी ने रोने का उपक्रम करते हुए कहा- "मैने माँगी नहीं थी, उसने आप ही दी हैं।"

मैने जाकर मिनी की उस अकस्मात मुसीबत से रक्षा की और उसे बाहर ले आया। मालूम हूआ कि काबुली के साथ मिनी की यह दूसरी ही भेंट थी, सो कोई विशेष बात नहीं। इस दौरान वह रोज आता रहा। और पिस्ता-बादाम की रिश्वत दे-देकर मिनी के छोटे से ह्रदय पर बहुत अधिकार कर लिया था।
देखा कि इस नई मित्रता में बँधी हुई बातें और हँसी ही प्रचलित हैं। जैसी मेरी बिटिया, रहमत को देखते ही, हँसते हुए पूछती - "काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले! तुम्हारी झोली के भीतर क्या है?"

काबुली जिसका नाम रहमत था। एक अनावश्यक चन्द्र-बिन्दु जोड़कर मुस्कराता हुआ कहता, "हाथी।"
उसके परिहास का रहस्य क्या हैं? यह तो नहीं कहाँ जा सकता, फिर भी इन नये मित्रों को इससे तनिक विशेष खेल-सा प्रतीत होता हैं और जाडे के प्रभात में एक सयाने और एक बच्ची की सरल हँसी सुनकर मुझे भी बड़ा अच्छा लगता।
उन दोनों मित्रों में और भी एक-आध बात प्रचलित थी। रहमत मिनी से कहता, "तुम ससुराल कभी नहीं जाना, अच्छा?"

हमारे देश की लड़कियाँ जन्म से ही 'ससुराल' शब्द से परिचित रहती हैं, लेकिन हम लोग तनिक कुछ नई रोशनी के होने के कारण तनिक-सी बच्ची को ससुराल के विषय में विशेष ज्ञानी नही बना सके थे, अतः रहमत का अनुरोध वह स्पष्ट नहीं समझ पाती थी। इस पर भी किसी बात का उत्तर दिए बिना चुप रहना उसके स्वभाव के बिल्कुल विरुद्ध था। उलटे वह रहमत से ही पूछती, "तुम ससुराल कब जाओगे?"

रहमत काल्पनिक ससुर के लिए अपना जबरदस्त घूँसा तानकर कहता, "हम ससुर को मारेगा।"
सुनकर मिनी 'ससुर' नामक किसी अनजाने जीव की दुरावस्था की कल्पना करके खूब हँसती।

देखते-देखते जाड़े की सुहावनी ऋतु आ गयी। पूर्व युग में इसी समय राजा लोग दिग्विजय के लिए कूच करते थे। मैं कोलकाता छोड़कर कभी कहीं नहीं गया। शायद इसीलिए मेरा मन ब्राह्मांड में घूमा करता था। यानी, कि मैं अपने घर में ही चिर प्रवासी हूँ। बाहरी ब्रह्मांड के लिए मेरा मन सर्वदा आतुर रहता था। किसी विदेश का नाम आगे आते ही मेरा मन वहीं की उडान लगाने लगता हैं। इसी प्रकार किसी विदेशी को देखते ही तत्काल मेरा मन सरिता-पर्वत-बीहड़ वन के बीच में एक कुटीर का दृश्य देखने लगता हैं और एक उल्लासपूर्ण स्वतंत्र जीवन-यात्रा की बात कल्पना में जाग उठती हैं।

इधर देखा तो मैं ऐसी प्रकृति का प्राणी हूँ, जिसका अपना घर छोड़कर बाहर निकलने में सिर कटता हैं। यही कारण हैं कि सवेरे के समय अपने छोटे-से कमरे मे मेंज के सामने बैठकर उस काबुली से गप-शप लड़ाकर बहुत कुछ भ्रमण कर लिया करता हूँ। मेरे सामने काबुल का पूरा चित्र खिंच जाता। दोनों ओर ऊबड़-खाबड़, लाल-लाल ऊँचे दुर्गम पर्वत हैं और रेगिस्तानी मार्ग, उन पर लदे गुए ऊँटों की कतार जा रही हैं। ऊँचे-ऊँचे साफे बाँधे हुए सौदागर और यात्री कुछ ऊँट की सवारी पर हैं तो कुछ पैदल है जा रहे हैं। किसी के हाथों मे बरछा हैं तो कोई बाबा आदम के जमाने की पुरानी बन्दूक थामें हुए हैं। बादलों की भयानक गर्जन के स्वर में काबुल लोग अपनी मिली-जुली भाषा में अपने देश की बातें कर रहें हैं।

मिनी की माँ बड़ी वहमी स्वभाव की थी। राह में किसी प्रकार का शोर-गुल हुआ नहीं कि उसने समझ लिया कि संसार-भर के सारे मस्त शराबी हमारे ही घर की ओर दौड़े आ रहे हैं? उसके विचारों में यह दुनिया इस छोर से उस छोर तक चोर-डकैत, मस्त, शराबी, साँप, बाघ, रोगों, मलेरिया, तिलचट्टे और अंग्रेजो से भरी पड़ी हैं। इतने दिन हुए इस दुनिया में रहते हुए भी उसके मन का यह रोग दूर नहीं हुआ।

रहमत काबुली की ओर से भी वह पूरी तरह निश्चिंत नहीं थी। उस पर विशेष नजर रखने के लिए मुझसे बार-बार अनुरोध करती रहती। जब मैं परिहास के आवरण से ढकना चाहता तो मुझसे एक साथ कई प्रश्न पूछ बैठती- 'क्या अभी किसी का लड़का नहीं चुराया गया? क्या काबुल में गुलाम नहीं बिकते? क्या एक लम्बे-तगड़े काबुली के लिए एक छोटे बच्चे को उठा ले जाना असम्भव हैं?' इत्यादि।


मुझे मानना पड़ता कि यह बात नितांत असम्भव हो सो बात नहीं, परन्तु भरोसे के काबिल नहीं। भरोसा करने की शक्ति सब में समान नहीं होती, अतः मिनी की माँ के मन में भय ही रह गया, परन्तु केवल इसीलिए बिना किसी दोष के रहमत को अपने घर में आने से मना न कर सका।

हर वर्ष रहमत माघ महीने में अपने देश लौट जाता था। इस समय वह अपने व्यापारियों से रुपया-पैसा वसूल करने में तल्लीन रहता। उसे घर-घर, दुकान-दुकान घूमना पड़ता था, मगर फिर भी मिनी से उसकी भेंट एक बार अवश्य हो जाती हैं। देखने में तो ऐसा प्रतीत होता हैं कि दोनों के मध्य किसी षड्यंत्र का श्रीगणेश हो रहा हो। जिस दिन वह सवेरे नहीं आ पाता, उस दिन देखूँ तो वह सन्ध्या को हाजिर हैं। अन्धेरे में घर के कोने में उस ढीले-ढाले जामा-पाजामा पहने, झोली वाले लम्बे-तगड़े आदमी को देखकर सचमुच ही मन में अचानक भय-सा पैदा हो जाता हैं।

लेकिन, जब देखता हूँ कि मिनी 'ओ काबुलीवाला' पुकारते हुए हँसती-हँसती दौड़ी आती हैं और दो भिन्न आयु के असम मित्रों में वही पुराना हास-परिहास चलने लगता हैं, तब मेरा सारा हृदय खुशी से नाच उठता हैं।

एक दिन सवेरे मैं अपने छोटे कमरे में बैठा नई पुस्तक के प्रुफ देख रहा था। जाड़ा विदा होने से पूर्व, आज दो-तीन दिन से खूब जोर से अपना प्रकोप दिखा रहा हैं। जिधर देखों, उधर इस जाड़े की ही चर्चा हो रही हैं। ऐसे जाडे़-पाले में खिड़की में से सवेरे की धूप मेज के नीचे मेरे पैरों पर आ पड़ी। उसकी गर्मी मुझे अच्छी प्रतीत होने लगी। लगभग आठ बजे का समय होगा। सिर से मफलर लपेटे ऊषा चरण सवेरे की सैर करके घर की और लौट रहे थे। ठीक उसी समय एक बड़े ज़ोर का शोर सुनाई दिया।

देखूँ तो अपने उस रहमत को दो सिपाही बाँधे लिए जा रहे हैं। उसके पीछे बहुत से तमाशाई बच्चों का झुंड चला आ रहा हैं। रहमत के ढीले-ढीले कुरते पर खून के दाग हैं और सिपाही के हाथ में खून से लथपथ छुरा। मैने द्वार से बाहर निकलकर सिपाही को रोक लिया और पूछा- 'क्या बात हैं?'

कुछ सिपाही से और कुछ रहमत के मुँह से सुना कि हमारे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने रहमत से एक रामपुरी चादर खरीदी थी। उसके कुछ रुपए उसकी ओर बाकी थे, जिन्हें देने से उसने साफ इनकार कर दिया। बस, इसी पर दोनों में बात बढ़ गई और रहमत ने उसे छुरा निकालकर घोंप दिया। रहमत उस झूठे बेईमान आदमी के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के अपशब्द सुना रहा था। इतने में "काबुलीवाला, काबुलीवाला", पुकारती हुई मिनी घर से निकल आई।

रहमत का चेहरा क्षण-भर में कौतुक हास्य से चमक उठा। उसके कन्धे पर आज झोली नहीं थी, अतः झोली के बारे में दोनों मित्रों की अभ्यस्त आलोचना न चल सकी। मिनी ने आते ही पूछा- ‘’तुम ससुराल जाओगे?"
रहमत ने प्रफुल्लित मन से कहा- "हाँ, वहीं तो जा रहा हूँ।"

रहमत ताड़ गया कि उसका यह जवाब के चेहरे पर हँसी न ला सकेगा और तब उसने हाथ दिखाकर कहा- "ससुर को मारता पर क्या करुँ, हाथ बँधे हुए हैं।"

छुरा चलाने के अपराध में रहमत को कई वर्ष का कारावास मिला।

रहमत का ध्यान धीरे-धीरे मन से बिलकुल उतर गया । हम लोग अब अपने घर में बैठकर सदा के अभ्यस्त होने के कारण, नित्य के काम-धन्धों में उलझे हुए दिन बिता रहे थे, तभी एक स्वाधीन पर्वतों पर घूमने वाला इंसान कारागर की प्राचीरों के अन्दर कैसे वर्ष पर वर्ष काट रहा होगा, यह बात हमारे मन में कभी उठी ही नहीं। और चंचल मिनी का आचरण तो और भी लज्जाप्रद था। यह बात उसके पिता को भी माननी पड़ेगी। उसने सहज ही अपने पुराने मित्र को भूलकर पहले तो नबी सईस के साथ मित्रता जोड़ी, फिर क्रमशः जैसे-जैसे उसकी वयोवृद्धि होने लगी, वैसे-वैसे सखा के बदले एक के बाद एक उसकी सखियाँ जुटने लगी। और तो क्या, अब वह अपने बाबूजी के लिखने के कमरे में भी दिखाई नहीं देती। मेरा तो एक तरह से उसके साथ नाता ही टूट गया हैं।

कितने ही वर्ष बीत गए? वर्षो बाद आज फिर शरद ऋतु आई हैं। मिनी की सगाई की बात पक्की हो गई। पूजा की छुट्टियों में उसका विवाह हो जाएगा। कैलाशवासिनी के साथ-साथ अबकी बार हमारे घर की आनन्दमयी मिनी भी माँ-बाप के घर में अंधेरा करके सुसराल चली जाएगी।

सवेरे दिवाकर बड़ी सज-धज के साथ निकले। वर्षों के बाद शरद ऋतु की यह नई धवल धूप सोने में सुहागे का काम दे रही हैं। कोलकाता की संकरी गलियों से परस्पर सटे हुए पुराने ईटझर गन्दे घरों के ऊपर भी इस धूप की आभा ने इस प्रकार का अनोखा सौन्दर्य बिखेर दिया हैं।

हमारे घर पर दिवाकर के आगमन से पूर्व ही शहनाई बज रही हैं। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा हैं कि जैसे यह मेरे हृदय की धड़कनों में से रो-रोकर बज रही हो। उसकी करुण भैरवी रागिनी मानो मेरी विच्छेद पीड़ा को जाड़े की धूप के साथ सारे ब्रह्मांड़ में फैला रही हैं। मेरी मिनी का आज विवाह है।

सवेरे से घर में बवंडर बना हुआ हैं। हर समय आने-जाने वालों का ताँता बँधा हुआ हैं। आँगन में बाँसों का मंडप बनाया जा रहा हैं। हरेक कमरे और बरामदे में झाड़-फानूस लटकाए जा रहे हैं और उनकी टक-टक की आवाज मेरे कमरे में आ रही हैं। 'चलो रे!', 'जल्दी करो!', 'इधर आओ!' की तो कोई गिनती ही नहीं हैं।
मैं अपने लिखने-पढ़ने के कमरे में बैठा हुआ खर्च का हिसाब लिख रहा था। इतने में रहमत आया और अभिवादन करके ओर खड़ा हो गया।

पहले तो मैं उसे पहचान ही न सका। उसके पास न तो झोली थी और न पहले जैसे लम्बे-लम्बे बाल और न चेहरे पर पहले जैसी दिव्य ज्योति ही थी। अंत में उसकी मुस्कान देखकर पहचान सका कि यह तो रहमत है।
"क्यों रहमत कब आए?" मैंने पूछा।
"कल शाम को जेल से छूटा हूँ।" उसने कहा।

सुनते ही उसके शब्द मेरे कानों में खट से बज उठे। किसी खूनी को अपनी आँखों से मैंने कभी नही देखा था। उस देखकर मेरा सारा मन एकाएक सिकुड़-सा गया! मेरी यही इच्छा होने लगी कि आज के इस शुभ दिन में वह इंसान यहाँ से टल जाए तो अच्छा हो।

मैंने उससे कहा- "आज हमारे घर में कुछ आवश्यक काम है, सो मैं उसमें लगा हुआ हूँ। आज तुम जाओ, फिर आना।"
मेरी बातें सुनकर वह उसी क्षण जाने को तैयार हो गया, परन्तु द्वार के पास आकर कुछ इधर-उधर देखकर बोला, "क्या, बच्ची को तनिक नहीं देख सकता?"

शायद उसे यही विश्वास था कि मिनी अब भी वैसी ही बच्ची बनी हुई है। उसने सोचा हो कि मिनी अब भी पहले
की तरह "काबुलीवाला, ओ काबुलीवाला" पुकारती हुई दौड़ी चली आएगी। उन दोनों के पहले हास-परिहास में किसी प्रकार की रुकावट न होगी। यहाँ तक कि पहले की मित्रता की याद करके वह एक पेटी अंगूर और एक कागज के दोने मं थोड़ी-सी किसमिश और बादाम, शायद अपने देश के किसी आदमी से माँग-ताँगकर लेता आया था। उसकी पहले की मैली-कुचैली झोली आज उसके पास न थी।
मैंने कहा, "आज घर में बहुत काम है। सो किसी से भेंट न हो सकेगी।"

मेरा उत्तर सुनकर वह कुछ उदास-सा हो गया। उसी मुद्रा में उसने एक बार मेरे मुख की ओर स्थिर दृष्टि से देखा। फिर अभिवादन करके दरवाजे के बाहर निकल गया।

मेरे हृदय मे न जाने कैसी एक वेदना-सी उठी। मैं सोच ही रहा था कि उसे बुलाऊँ, इतने मे देखा कि वह स्वयं ही आ रहा हैं।
वह पास आकर बोला- 'ये अंगूर और कुछ किशमिश, बादाम बच्ची के लिए लाया था, उसको दे दीजिएगा।'
मैने उसके हाथ से सामान लेकर पैसे देने चाहे, लेकिन उसने मेरे हाथ को थामते हुए कहा- 'आपकी बहुत मेहरबानी बाबू साहब! हमेशा याद रहेगी, पैसा रहने दीजिए।' थोड़ी देर रूककर वह फिर बोला- 'बाबू साहब! आपकी जैसी मेरी भी देश में एक बच्ची हैं। मैं उसकी याद करके आपकी बच्ची के लिए थोड़ी-सी मेवा हाथ में ले आया करता हूँ। मैं यहाँ सौदा बेचने नहीं आता।'

यह कहते हुए उसने ढीले-ढाले कुरते के अन्दर हाथ डालकर छाती के पास से एक मैला-कुचैला मुड़ा हुआ कागज का टुकड़ा निकला औऱ बड़े जतन से उसकी चारों तह खोलकर दोनो हाथों से उसे फैलाकर मेरी मेज पर रख दिया।

देखा कि कागज के उस टुकडे पर एक नन्हें से हाथ के छोटे-से पंजे की छाप हैं। फोटो नहीं, तेल चित्र नहीं, हाथ में थोडी-सी कालिख लगाकर, कागज के ऊपर उसी का निशान ले लिया गया हैं। अपनी बेटी के इस स्मृति-पत्र को छाती से लगाकर, रहमत हर वर्ष कोलकाता की गली-कूचों से सौदा बेचने के लिए आता हैं और तब वह कालिख चित्र मानो उसकी बच्ची के हाथ का कोमल स्पर्श, उसके बिछड़े हुए विशाल वक्षःस्थल में अमृत उडेलता रहता हैं।

देखकर मेरी आँखें भर आई और फिर मैं इस बात को बिल्कुल ही भूल गया कि वह एक मामूली काबुली मेवा वाला है, मैं एक उच्चवंश का रईस हूँ। फिर मुझे ऐसा लगने लगा जो वह हैं, वहीं मैं ही हूँ। वह भी एक बाप हैं और मैं भी। उसकी पर्वतवासिनी छोटी बच्ची की निशानी मेरी ही मिनी की याद दिलाती हैं। मैने तत्काल ही मिनी को बुलाया, हालाँकि इस पर अन्दर घर में आपत्ति की गई, परन्तु मैंने उस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। विवाह के वस्त्रों और अलंकारों में लिपटी हुई बेचारी मिनी मारे लज्जा के सिकुड़ी हुई-सी मेरे पास आकर खड़ी हो गई।
उस अवस्था में देखकर रहमत काबुली पहले तो सकपका गया। उससे पहले जैसी बातचीत न करते बना। बाद में हँसते हुए बोला- 'लल्ली! सास के घर जा रही हैं क्या?'

मिनी अब सास का अर्थ समझने लगी थी, अतः अब उससे पहले की तरह उत्तर देते न बना। रहमत की बात सुनकर मारे लज्जा के उसके कपोल लाल-सुर्ख हो उठे। उसने मुँह फेर लिया। मुझे उस दिन की याद आई, जब रहमत के साथ मिनी का प्रथम परिचय हुआ था। मन में एक पीड़ा की लहर दौड़ गई।

मिनी के चले जाने के बाद, एक गहरी साँस लेकर रहमत फर्श पर बैठ गया। शायद उसकी समझ में यह बात एकाएक साफ हो गई कि उसकी बेटी भी इतनी ही बड़ी हो गई होगी और उसके साथ भी उसे अब फिर से नई जान-पहचान करनी पडेगी। सम्भवतः वह उसे पहले जैसी नहीं पाएगा। इन आठ वर्षों में उसका क्या हुआ होगा, कौन जाने? सवेरे के समय शरद की स्निग्ध सूर्य किरणों में शहनाई बजने लगी और रहमत कोलकाता की एक गली के भीतर बैठा हुआ अफगानिस्तान के मेरु-पर्वत का दृश्य देखने लगा।

मैने एक नोट निकालकर उसके हाथ में दिया और बोला- 'रहमत! तुम देश चले जाओ, अपनी लड़की के पास। तुम दोनों के मिलन-सुख से मेरी मिनी सुख पाएगी।'

रहमत को रुपए देने के बाद विवाह के हिसाब में से मुझे उत्सव-समारोह के दो-एक अंग छाँटकर काट देने पड़े। जैसी मन में थी, वैसी रोशनी नहीं करा सका। अंग्रेजी बाजा भी नहीं आया। घर में औरतें बड़ी बिगड़ने लगी। सब कुछ हुआ, फिर भी मेरा विचार हैं कि आज एक अपूर्व ज्योत्स्ना से हमारा शुभ समारोह उज्ज्वल हो उठा।



गीतकार-प्रेम धवन, गायक-मन्ना डे, संगीतकार-सलिल चौधरी

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझपे दिल कुर्बान, तू ही मेरी आरज़ू
तू ही मेरी आबरू, तू ही मेरी जान

माँ का दिल बन के कभी सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं सी बेटी बन के याद आता है तू
जितना याद आता है मुझको, उतना तड़पाता है तू
तुझपे दिल कुर्बान...

तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस ज़ुबां को जिसपे आए तेरा नाम
सबसे प्यारी सुबह तेरी, सबसे रंगीं तेरी शाम
तुझपे दिल कुर्बान...

छोड़ कर तेरी गली को दूर आ पहुंचे हैं हम
है मगर ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की कसम
जिस जगह पैदा हुए थे, उस जगह ही निकले दम
तुझपे दिल कुर्बान...

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Monday, June 13, 2011

कांग्रेस की आपातकालीन बैठक में छाये रहे अन्ना व रामदेव Emergency Congress Meet - Anna, Ramdev discussed

हाल ही में रामदेव व अन्ना हजारे के अनशन प्रकरण के बीच कांग्रेस ने सोनिया जी के निवास पर आपातकालीन बैठक बुलाई। वहाँ पहुँचे मनमोहन, सोनिया, राहुल और दिग्विजय सिंह। हमारे संवाददाता ने उनकी बातचीत सुनी। आईये आप भी पढ़ें बैठक के अंदर का हाल।

मनमोहन सिंह: मैडम जी, राहुल बाबा व अन्य मंत्रीगण। जैसा कि आप जानते हैं कि अन्ना व रामदेव हम पर दबाव डाल रहे हैं। मैंने सोचा है कि...
राहुल गाँधी (बीच में टोकते हुए): अरे रुकिये मनमोहन जी। मम्मी आप बताइये कैसे निपटा जाये इस अनशन के अंटशंट से।
सोनिया जी: अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है। उत्तर प्रदेश में चुनाव भी सर पर हैं। इन सबसे बचने का उपाय तो प्रियंका ही हो सकती है।
राहुल: मतलब दीदी भी अनशन करेगी?
सोनिया जी: अरे नहीं.. पर यदि उत्तर प्रदेश लाज बचानी है तो हम उसे चुनाव प्रचार में उतार सकते हैं।
दिग्विजय सिंह: राहुल बाबा, मैडम ठीक कह रही हैं। रामदेव व अन्ना को संघ का एजेंट घोषित करा देते हैं।

तभी न जाने कहाँ से उमा भारती आ धमकती हैं। सभी एकदम आश्चर्यचकित हो जाते हैं।

उमा: दिग्गी राजा.. कैसे हो....जिस तरह मध्य प्रदेश से तुम्हें हटाया था उसी तरह से उत्तर प्रदेश से भी तुम्हें साफ़ कर देंगे। मैं आ गई हूँ...
दिग्विजय सिंह: अरे उमा जी.. आइये..धन्यभाग हमारे। बड़े दिनों से किसी ने हमें दिग्गी राजा नहीं कहा था। उत्तर प्रदेश हमारा है उमा जी। राहुल बाबा हमारे साथ हैं..
मनमोहन जी: हाँ उमा जी राहुल बाबा की जय हो। वैसे भी हमारी सरकार वहाँ किसानों के लिये नये नये प्रोजेक्ट के बारे में सोच रही है। वहाँ पंचायत होगी.. गाँव वालों से मिलेंगे और हम अपनी नीतियाँ लोगों तक पहुँचायेंगे.. हम...
सोनिया जी: मनमोहन जीईईईईईईई...
मनमोहन सिंह: सॉरी मैडम... मैं भावनाओं में बह गया था...
राहुल जी: डॉक्टर साहब आप मौन रहा करिये.. बोलने का काम मेरा और मम्मी जी का है। राईट मॉम?
सोनिया जी: यस बेटा! मनमोहन जी, आप तब बोला कीजिये जब मीडिया हमसे घोटालों के बारे में पूछे। बाकि समय बीच में टाँग न अड़ायें।
मनमोहन सिंह (मायूस होते हुए): ओके मैडम...

उमा भारती एक नजर राहुल बाबा की ओर देखती हैं फिर वापस चला जाती हैं...

बैठक में थोड़ी देर के अंतराल के बाद.....

दिग्विजय सिंह: मैडम ओबामा ने जिस तरह से लादेन जी को मरवाया था वो मुझसे देखा नहीं गया। कोई मानवाधिकार नाम की चीज़ नहीं है क्या विश्व में?
सोनिया जी: अरे दिग्विजय जी आप कौन सा विषय उठा रहे हैं? हम अन्ना पर चर्चा कर रहे हैं।
दिग्विजय सिंह: ओह.. हाँ.. उस घटना कि याद आते ही तन बदन में आग लग जाती है। पता नहीं कहाँ से याद आ गया सब कुछ। अब नहीं बोलूँगा।
सोनिया जी (जनता से): हमारे महासचिव का बयान उनका निजी बयान समझा जाये कांग्रेस का नहीं।
राहुल बाबा: एक काम करते हैं। थोड़ी माँगें मान लेते हैं.. बाकि कल पर टाल देते हैं।
सोनिया जी: सही कह रहे हो बेटा।
राहुल बाबा: चलो जी मीटिंग ऑवर।
मनमोहन सिंह: पर मीटिंग ऑवर कैसे? अभी तो हमने कोई निर्णय लिया ही नहीं।
राहुल बाबा: आपको कोई निर्णय लेना भी नहीं है। हमारे पास प्रणव मुखर्जी हैं। वे सम्भाल लेंगे। आप बस 2जी, कलमाड़ी, कनिमोझी को सम्भाले रखिये। आपका मुखौटा हमारे लिये कितना जरूरी है आप नहीं जानते। मेरा वैसे भी एक गाँव में रात गुजारने का प्लान है।
दिग्विजय सिंह: सही बात है। और मैं संघ के किसी और एजेंट को ढूँढता हूँ। ये रामदेव और अन्ना का राग कब तक अलापूँगा। वैसे आप लोग कहें तो "आस्था" चैनल पर केस कर दें? सुना है कि वो चैनल बालकृष्ण का है?
सोनिया जी: क्या कह रहे हैं दिग्विजय जी? करवाईये पड़ताल...बाय राहुल.. टेक केयर...

बैठक समाप्ति ओर.. लेकिन तभी...
अरे ये क्या? ये कौन आ गया.. बैठक में एक बार फिर सन्नाटा...

सुषमा स्वराज नाचती हुई दाखिल हुईं... 


"ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का.. इस देश का यारों....क्या कहना ये देश है दुनिया का गहना...."


और फिर वापस चली जाती हैं...

मनमोहन सिंह: ये सुषमा जी यहाँ किस मक़सद से आईं थीं।
दिग्विजय सिंह: अरे हमारे राहुल बाबा की तारीफ़ों के क़सीदे पढ़ने के लिये.. उन्हें वीर जवान कहा गया है। वे ही इस देश के सच्चे जवान हैं। बाकि सब तो संघ के एजेंट.....

पर्दा गिरता है...
समाप्त....


गुस्ताखियाँ हाजिर हैं आप को कैसा लगा और आप किस तरह की गुस्ताखियाँ पढ़ना पसंद करेंगे? जरूर बताइयेगा। 

नोट:
सुषमा स्वराज ने राजघाट पर जाने अनजाने गाना गाया हो.. नाचीं हों.. राजघाट का अपमान किया हो या नहीं...उसे भूल जाते हैं.. मनमोहन सिंह जी मौन थे मौन हैं मौन रहेंगे... तो उन्हें भूल जाते हैं। सोनिया जी कांग्रेस की ही नहीं बल्कि इस देश की मैडम हैं और राहुल गाँधी बाबा...ये आप और मैं गाँठ बाँध लेते हैं... 
दिग्विजय सिंह फ़ेसबुक पर डॉगविजय सिंह के नाम से मशहूर हो रहे हैं। संघ को साम्प्रदायिक बताने वाले कांग्रेस के नेताओं को इतिहास नहीं पता जब पंडित नेहरू ने सन 62-63 में संघ से उनके चीन युद्ध में सहायता करने के लिये गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का आग्रह किया था.....शायद नेहरू गलत थे (?)

खैर ये सब भूल जाते हैं.....पर याद रखनी होगी एक बात

इस देश को दुनिया का गहना बनाना है। जो देश में हाल-फ़िलहाल हो रहा है वो इस देश के लिये आवश्यक था। यदि आप आक्रोश में हैं तो इसका सही इस्तेमाल कीजिये। मैंने कईं कमेंट पढ़े, फ़ेसबुक पर पढ़ा.. "अनशन से कुछ नहीं होना.. राजनीति है... सब बकवास है... इस देश का कभी भला नहीं होगा..."... ये सब नकरात्मक बातें हैं। ये इस देश का दुर्भाग्य कहा जायेगा कि युवाओं में  नकरात्मकता का इस कदर प्रभाव है। 

परन्तु इन सब के बीच एक और गीत मेरे जहन में अनायास ही आ जाता है...और मन शांत हो जाता है...

हम होंगे कामयाब... हम होंगे कामयाब....हम होंगे कामयाब एक दिन...
हो हो मन में है विश्वास..पूरा है विश्वास.....हम होंगे कामयाब एक दिन...
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Thursday, June 9, 2011

हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा कितना है सही? चीन को शत्रु कहें या मित्र? Is China Bigger Enemy Than Pakistan? Chinese Naval Bases In Neighbourhood

"हिन्दी चीनी भाई भाई"- यही नारा दिया था उस पंचशील योजना के दौरान जब पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन यात्रा पर गये थे। उसके कुछ समय पश्चात ही चीन ने हम पर हमला कर दिया और 1962 का वो युद्ध हम हार गये। वो बीता हुआ समय था पर सवाल ये है कि क्या अब बदले हुए वक्त में जब भारत भी सशक्त हो चुका है और विश्व में अपनी पहचान बना चुका है तब चीन और भारत के पड़ोसी रिश्ते वैसे ही हैं जैसे 1962 में थे अथवा नहीं? क्या चीन की सोच भारत के लिये बदली है?

पिछले दिनों धूप-छाँव पर लेख छपा था जिसमें चीन के एक विश्वविद्यालय में चल रहे संस्कृत प्रोग्राम का जिक्र था। उस के शीर्षक में मैंने चीन को "शत्रु" कह दिया था। लेकिन कुछ मित्रों ने यह प्रश्न उठाया कि क्या चीन को शत्रु मानना गलत है? क्रमबद्ध तरीके से बात करते हैं। हर बात का प्रमाण देने का प्रयास रहेगा।

चीन द्वारा माओवादियों की सहायता

गौरतलब है कि चीन नेपाल के रास्ते भारत में माओवादियों को हथियार मुहैया करा रहा है। उसका इरादा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ से होते हुए उड़ीसा तक सभी माओवादियों व नक्सलियों हथियार पहुँचाना। और माओवादी देश के आंतरिक हालात किस तरह से बिगाड़ रहे हैं ये सभी जानते हैं।

कुछ खबरें जो विभिन्न साईट से ली गई हैं।
चैनल 7
" बहराइच के रूपईडिहा में पिछले दिसम्बर में तीन चीनी नागरिकों को सशस्त्र सीमा बल के चौकी की तस्वीर उतारते गिरफ्तार किया गया था। तीनों बिना पासपोर्ट और वीजा के भारत आए थे। उनमें से एक के पास भारतीय स्थायी खाता संख्या (पैन कार्ड) भी मिला था। तीनों अभी बहराइच जेल में बंद हैं।"

दैनिक भास्कर


"नेपाल में भारत की मदद से चलने वाली परियोजनाओं में माओवादियों द्वारा अड़ंगा डालने की एक और घटना सामने आई है। वहीं माओवादी पड़ोसी चीन से अपनी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं। खबर है कि विपक्षी माओवादी पार्टी दक्षिण नेपाल में रेलवे परियोजना पर सर्वे के काम में रुकावटें पैदा कर रही है। जबकि माओवादी नेता प्रचंड एक बार फिर चीन के लिए रवाना हो रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों ने बारदीबास बाजार में सर्वे के दौरान गाड़े गए खंभे भी उखाड़ दिए हैं। इससे पहले माओवादियों ने नेपाल में भारत की मदद से तैयार होने वाली दर्जनों पनबिजली परियोजनाओं को भी ठप करने की धमकी दी थी। इनका कहना है कि ये परियोजनाएं देशहित के खिलाफ हैं।"

वेबदुनिया
"केन्द्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि माओवादियों को चीन से हथियार हासिल हो रहे हैं, चीन की सरकार से नहीं। माओवादियों से निपटने में उड़ीसा सरकार की तैयारी की समीक्षा करने के बाद पिल्लई ने स्पष्ट किया कि मैंने माओवादियों को चीनी सरकार से हथियार मिलने की बात कभी नहीं कही। उन्हें चीन से असलहे हासिल हो रहे हैं, चीन की सरकार से नहीं।हथियारों के अवैध कारोबार को दुनिया का बड़ा व्यवसाय करार देते हुए उन्होंने कहा कि माओवादियों को चीन, म्याँमार और बांग्लादेश जैसे मुल्कों से हथियार हासिल हो रहे हैं। "

चीन का बंगाल की खाड़ी में नौसेना का अड्डा

टाईम्स ऑफ़ इंडिया

चीन ने म्यांमार की सहायता से कोको टापू पर नौसेना का अड्डा बनाया है। ये जगह भारत से नज़दीक है और यहाँ चीन ने हथियार भी रखने शुरु कर दिये हैं। म्यांमार की नौसेना भी चीन का साथ दे रही है उसके बदले में चीन वहाँ की व्यवस्था को सुधार रहा है।

दूसरी खबर बांग्लादेश से है। यहाँ चटगाँव में चीन ने बंगाल की खाड़ी में अपना नौसेना अड्डा बनाया है।

चीनी वेबसाईट के खुलासे में

चीन का लिट्टे के विरुद्ध श्रीलंका की मदद करना  और वहाँ सैन्य अड्डा खोलना

श्रीलंका के हम्बंतोता में चीन ने पूरी तरह से कमर्श्यल बंदरगाह बनाया है और वहाँ पर अपना सैन्य अड्डा भी खोल दिया है। इसके लिये लिट्टे के विरुद्ध चीन ने लंका की सहायता करी। इस बंदरगाह के लिये चीन ने एक बिलियन डालर खर्च किय हैं। एक बिलियन डालर!!
स्रोत: पाकिस्तानश्रीलंका की साईट

चीन का पाकिस्तान में नौसेना अड्डा और परमाणु शक्ति बनाना

हाल ही में पाकिस्तान के नौसेना अड्डे पर अलकायदा का हमला हुआ। पाकिस्तान ने भी काफ़ी समय से लम्बित अपने निर्णय पर सहमति जता दी है और चीन की मदद से एक नौसेना अड्डा खोलने को कह दिया है। ओसामा के मरने के बाद एक चीन ही था जो खुले तौर पर पाकिस्तान के साथ आया। चीन पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करता आया है ये बात भी किसी से नहीं छिपी है। और तो और पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनाने में चीन का ही हाथ है। काराकोरम की घाटियों में भी चीन सैन्य कार्रवाही करता आ रहा है।

टाईम्स ऑफ़ इंडिया

बंगाल की खाड़ी हो या अरब सागर या फिर हिन्द महासागर। तीनों ओर से चीन भारत को घेर चुका है। पाकिस्तान, लंका, नेपाल, बंग्लादेश म्यांमार-सभी पड़ोसी देश चीन के साथ हैं। 
रही सही कसर चीन स्वयं कभी सिक्किम व अरूणाचल प्रदेश तो कभी कश्मीर में घुसपैठ कर पूरी कर देता है। इन सभी राज्यों में उसने जमीन हड़प रखी है ये भी सभी को ज्ञात है। इन सब बातों के बाद इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज चीन पाकिस्तान से भी बड़ा शत्रु है। हमने ६२ के बाद भी कोई सीख नहीं ली। न हम खुल कर चीन के सामने आ पाते हैं। तिब्बत के लोग भारत से मदद की गुहार लगाते रहते हैं पर हम चुप रहते हैं।

चीन शत्रु है इसमें कोई संशय नहीं परन्तु यदि हम आँख मूँद कर बैठे रहे और अनजान बनकर चीन को अपना मददगार समझते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब ड्रैगन भारतीय बाघ को चारों तरफ़ दबा कर उसकी साँस रोक देगा और निगल जायेगा।


जय हिन्द
वन्देमातरम

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Saturday, June 4, 2011

क्या आप जानते हैं एशिया की सबसे बड़ी झील भारत के किस राज्य में है? -अतुल्य भारत श्रृंख्ला की पहली कड़ी। Largest Fresh Water Lake is in India-Do you know? | Incredible India

गर फिरदौस बर रू-ए-जमीं अस्त
हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्त

ये शे’र शायद अमीर खुसरो ने कहा है। "अतुल्य भारत" श्रृंख्ला का प्रारम्भ कश्मीर से करने की इच्छा हुई। इस श्रृंख्ला में हर राज्य के उन स्थानों के बारे में बताने की कोशिश रहेगी जिन्हें बढ़ावा देकर हम पर्यटन के क्षेत्र में विकास कर सकते हैं। ये स्थान हमारी धरोहर हैं व इन्हें संजो कर रखना हमारा कर्त्तव्य है। हमारा भविष्य इन्हें देख सके इसके लिये वर्तमान को आगे आकर इसकी रक्षा करनी होगी।

आज हम बात करेंगे जम्मू व कश्मीर की। भारत के उत्तर में स्थित यह राज्य ब्रिटिश काल से आजाद तो हुआ पर स्वतंत्र अभी तक नहीं हो पाया है। जम्मू, कश्मीर व लद्दाख हिस्से बँटा यह राज्य न जाने कितने हिस्सों में और बँटा हुआ है। पर हम बात करेंगे पर्यटन की। इस राज्य की ग्रीष्म ऋतु की राजधानी है श्रीनगर व बाकि समय जम्मू है। जम्मू की बात करें तो यहाँ पर पौराणिक मम्दिर, मस्जिद भी हैं तो किले व बाग-बगीचे भी। जम्मू-कश्मीर में वैष्णौ देवी, रघुनाथ मंदिर व अमरनाथ गुफ़ा वो तीर्थ धाम हैं जहाँ हर हिन्दू जाने की इच्छा रखता हैं। जम्मू के ऐतिहासिक किले इस्लामिक और हिन्दू वास्तुकला को दर्शाते हैं।

कश्मीर की बात करें तो यहाँ डल झील, श्रीनगर, गुलमर्ग व मुगल गार्डन पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण व दर्शनीय स्थल हैं। आजकल तो लद्दाख व लेह पर्यटकों के लिये लिस्ट में सबसे ऊपर पहुँच चुके हैं।

क्या आप जानते हैं कि कश्मीर की सुप्रसिद्ध डल झील 15.5 किमी लम्बी है? इस झील के आसपास मुग़ल गार्डन, शालीमार बाग व निशात बाग जैसे खूबसूरत बाग इस झील की शोभा बढ़ाते हैं। ये कश्मीर की दूसरी बड़ी झील है। पर्यटकों के द्वारा झील को गंदा करने की वजह से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। इस झील को दोबार जिंदा करने के लिये भारत सरकार ने राज्य सरकार को 1100 करोड़ रूपये दिये हैं। झील में चलते शिकारों से सुंदरता में चार-चाँद लग जाते हैं। मछली के कारोबार में डल झील महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सर्दियों में इसका तापमान -11 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है।

डल झील का जिक्र संस्कृत के पुराने ग्रंथों में भी किया गया है। कहते हैं कि झील के पूर्व में दुर्गा का निवास था। चाहें मुगल हों, ब्रिटिश या दुर्रानी-हर काल में डल झील राजा-महाराजाओं अथवा अंगेजों की पसंदीदा जगह बनी रही। 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात यहाँ पश्तून जनजाति आई। फिर दुर्रानी ने दशकों तक राज किया और उसके बाद आये राजा रणजीत सिंह।

डल झील श्रीनगर के दिल में बसी हुई है और सड़क व हवाई रास्तों से जुड़ी हुई है। हवाई अड्डा बड़गाम में है जो यहाँ से सात किमी दूर है। सबसे नज़दीक रेलवे स्टेशन जम्मू में है और करीबन 300 किमी दूर है।

जम्मू कश्मीर का तीसरा हिस्सा है लद्दाख। लेह जिसे लद्दाख की राजधानी माना जाता है भारत का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। जानकारी के लिये बता दें कि गुजरात का कच्छ भारत का सबसे बड़ा जिला है। 

यदि आपने ध्यान से पढ़ा हो तो मैंने डल झील को राज्य की दूसरी बड़ी झील बताया। तो फिर राज्य की सबसे बड़ी झील कौन सी है? जी हाँ डल झील से बड़ी झील है वूलर लेक- ये झील राज्य की नहीं, हिन्दुस्तान की नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी साफ़ पानी की झील है। इस झील में झेलम नदी का पानी बहता है और यह 189 वर्ग किमी (sq.km.) तक फ़ैली है। डल से करीबन दस गुना बड़ी झील!! झील में एक टापू है जो ज़ैन-उल-अबिदिन नाम के राजा ने 15वीं शताब्दी में बनवाया था।
कश्मीर के लोग ही कश्मीर को आतंक से आज़ाद करवा सकते हैं।खौफ़ से आज़ादी-आतंक से आज़ादी। कश्मीर मैंने तो नहीं देखा पर हर हिन्दुस्तानी का पसंदीदा राज्य जिस दौर से गुजर रहा है उसके लिये पर्यटन ही उबरने का एकमात्र सहारा है।

जय हिन्द
वन्देमातरम

धूप-छाँव पर सबसे ज्यादा पढ़े गये लेखों में जम्मू व कश्मीर के दो लेख शामिल हैं।
जम्मू व कश्मीर में के इलाकों में कैसे हो रहा है भेदभाव
पश्मीना शॉलों के लिये मशहूर राज्य में कैसे हो रहा है चिंगु का खेल?
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