हाल ही में वैष्णौं देवी जी के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। भीड़ कम होने के कारण तसल्ली से दर्शन कर सके वरना आप जानते ही हैं कि पाँच घंटे की चढ़ाई और पाँच सेकंड के लिये भी दर्शन दुर्लभ होते हैं।
केवल दिल्ली में ही नहीं हर जगह ही विकास का चेहरा दिख रहा है। बाणगंगा से भवन की तरफ़ जाते हुए आप पुरानी बल्ब की लाइटों की जगह ट्यूब लाईट की नई दूधिया से नहाये हुए रास्तों से गुजरेंगे। हमारा ध्यान इस ’विकास’ की ओर नहीं जाता यदि हमें पहाड़ी पर पड़े हुए ये बल्ब दिखाई नहीं दिखते। उन्हीं पुराने बल्बों में से एक की यह झलक:
ऐसे एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों बल्ब यात्रा के दौरान आपको मिल जायेंगे।
क्या इन बल्बों को उठाने के बारे में कुछ सोच रहा है श्राईन बोर्ड या फिर वैष्णौं देवी की यह पहाड़ी जो लोगों द्वारा फ़ेंकी गई प्लास्टिक की बोतलों व चिप्स के रैपरों से "शोभायमान" हो रही है अब बिजली के इन बल्ब से होने वाले रासायनिक प्रदूषण का भी स्वाद चखती रहेगी?
चलते चलते देखते चलिये दूसरी तस्वीर: कटरा का पवित्र शहर कुछ ऐसा दिखता है यह साँझी छत से।
अगले अंक में जानिये "सीमा सड़क संगठन" अपने शब्दों से कैसे कर रहा है लोगों को जागरुक
2 comments:
श्राइन बोर्ड भी भारत की विभिन्न नगरपालिकाओं की तरह कचरा-निस्तारण की अपनी ज़िम्मेदारी को नकार रह है, यह जानकर तकलीफ हुई। आप जैसे सजग नागरिक अगर उन्हें कुछ सोचने को बाध्य कर सकें तो बडी बात होगी।
अगर आप इस लेख के द्वारा इन लोगों को जगा पाए तो आप निश्चित ही बहुत अच्छा काम कर जायेंगे|
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