Friday, December 10, 2010

तुम्हीं हो कल, आज हो तुम...

कोयल की कूक तुम्हीं से,
हर शे’र की बहर हो तुम।
खेतों का लहलहाना तुम से

सागर की लहर हो तुम॥

चाँद की चाँदनी तुम से,
कली का मुस्कुराना तुम
मिट्टी की सुगँध तुम्हीं से,
बहारों का हो आना तुम॥
 

हीरे की चमक तुम्हीं से
घटाओं का छा जाना तुम।
प्रेम का है स्पर्श तुम्हीं से
शाम का ढल जाना तुम॥

कविता का आगाज़ तुम्हीं से,
मधुर संगीत का साज़ हो तुम।
कविता पूरी होती तुम्हीं से,
तुम्हीं हो कल, आज हो तुम।

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