Tuesday, April 1, 2008

खबरिया चैनलों की होड़ में बिगड़ता बचपन

मैं ये लेख पहले लिखना चाहता था परन्तु कोई न कोई बात हो जाती और इसमें देरी हो जाती। पर शनिवार को जो बात हुई उसके बाद मुझे ये लिखने के लिये समय निकालना ही पड़ा। अभी कुछ महीनों से एक नाम जो हर हफ्ते मीडिया की खबरों में होता है वो है खली उर्फ दिलीप सिंह। चाहें कोई देश के प्रधानमंत्री का नाम नहीं जानता हो, पर आज की तारीख में खली के नाम और काम से सब वाकिफ़ हैं। पेशे से WWE का पहलवान है। इस तरह की कुश्ती भारत में करीबन १७ सालों से दिखाई जा रही है। जबसे केबल चालू हुआ, तब से। मैं छोटा हुआ करता था और ये कुश्ती बहुत पसंद थी, परन्तु वही देख पाते थे जिनके यहाँ केबल था। अब हर घर में केबल है तो सभी देखते हैं। ट्रम्प कार्ड्स भी खूब बिका करते थे।

भारत में इस कुश्ती के काफी दर्शक हैं और इन दर्शकों में बच्चों की तादाद शायद ९० फीसदी से ऊपर होगी। ये हाल ही में और ज्यादा चर्चा में तब आई जब खली का नाम भी इस कुश्ती में शामिल किया गया। खली भारत का है इसीलिये इस कुश्ती की खबर हर चैनल पर दिखाई जाने लगी। जिस कुश्ती का परिणाम २-३ सप्ताह के बाद पता चलता था वो उसके खत्म होते के साथ ही पता चलने लगा। वो दिन दूर नहीं जब इसका सीधा प्रसारण भी होने लगेगा। लेकिन इन सब के बीच ये कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि मासूम बच्चों पर क्या असर पड़ेगा।

मुझे गुस्सा आता है मीडिया पर जो "तेज़" व "सच्ची" खबर आगे रखने का दावा करते हैं पर इन वादों और दावों को पूरा करने में पूरी तरह से नाकामयाब हैं। ये सभी जानते हैं कि इस कुश्ती के पहलवान पूरी तरह से प्रशिक्षित हैं व ये लड़ाई फिक्स होती है। यानि कि परिणाम पहलवानों को पहले से ही पता होता है व जो भी दाँव उन्हें लगाना होता है वे उसकी पहले से ही पूरी प्रैक्टिस करके रखते हैं। किस दाँव को कैसे खेलना है ये उन्हें सिखाया जाता है। और इसके उन्हें पैसे भी खूब मिलते हैं। ये एक धारावाहिक की तरह है जिसके सारे किरदारों पर कहानी लिखी जाती है और ये किरदार उस कहानी को निभाते हैं। पर ये सब बातें हमारा मीडिया नहीं बताता। क्योंकि यदि ऐसा किया गया तो उनके चैनल की टी आर पी कम हो जायेगी। चैनलों का मकसद केवल टी आर पी को बढ़ाने का है। हमारे समय में मीडिया इतना नहीं था इसलिये ये सब बातें हमें पता चलने में देरी हुई। अब इस कुश्ती को देखते हुए ये पता होता है कि ये सब दाँवों की इन पहलवानों को आदत है। पर बच्चों को ये सब कौन बतायेगा?

अब मैं बताता हूँ कि गत शनिवार हुआ क्या था। मेरी बुआ का लड़का जो महज ६ साल का है हमारे घर आया हुआ था। काफी होशियार है और कम्प्यूटर को बखूबी इस्तेमाल करता है। वो मेरे एक और छोटे भाई से खली और ट्रम्प कार्ड्स के बारे में बातें कर रहा था। इस पर मैं उसे समझाने लगा कि ये सब लड़ाई नकली होती है और उस पर ध्यान न दे।
"पर न्यूज़ में दिखाते हैं, तो क्या वो गलत बतायेंगे?"। मैं उसका जवाब सुनकर हैरान रह गया और सच बताऊँ तो मैं इस तरह के जवाब के लिये तैयार नहीं था।

दरअसल इसी तरह की बातें सभी बच्चों के मन में गहरा प्रभाव छोड़ती है। बच्चे हिंसक हो जाते हैं और यही मीडिया फिर स्कूल प्रशासन को दोषी करार देता है। सच्ची खबरें देने का ढोंग करते ये झूठे चैनल केवल अपनी रोटियाँ सेंकने में लगे हुए हैं। कोई भी ये सच्चाई बताने की हिम्मत नहीं कर रहा है। मैं आप सब से गुजारिश करूँगा कि आपके रिश्ते में जितने भी छोटे बच्चे हैं उन सब को सिखायें कि इन सब बातों में न पड़ें|

वरना वो दिन दूर नहीं जब हर स्कूल में गोलियाँ चलेंगी। और इन तेज़ , चालाक, झूठे खबरिया चैनलों को एक और सनसनीखेज़, सच्ची व दर्दनाक खबर मिल जायेगी जो इनका चैनल अगले एक सप्ताह तक चलाती रहेगी।

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