"आपका पाकिस्तान जिन्दाबाद है इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं लेकिन हमारा हिन्दुस्तान जिन्दाबाद है, जिन्दाबाद रहेगा।"
इस डायलॉग पर हो सकता है कि आप, मैं और हमारे नेता लोग भी ताली बजायें। लेकिन फिर क्यों नहीं हम इन अलगाववादियों को यह कहें कि आप जब पाकिस्तान का झंडा बुलंद करते हैं तब हमें कोई आपत्ति नहीं तो फिर लालचौक पर अपने ही देश का झंडा लहराने पर उन्हें आपत्ति क्यों?
खैर, मुद्दा नाजुक है। और हम में से अधिकतर इस बेहद संवेदनशील मुद्दे की शुरुआत से अनभिज्ञ हैं। इस पर कुछ कहना मेरे लिये ठीक नहीं। लेकिन मेरा विवेक कहता है कि जब आप देश के उस हिस्से में तिरंगा नहीं लहरा सकते तो उस हिस्से को देश का हिस्सा मानना ही गलत है। और जब हमारी सरकार उसे भारत का हिस्सा मानती है तो तिरंगा लहराना राजनीति नहीं अपना हक़ होना चाहिये।
मैथिली शरण गुप्त की कलम से निकली देशभक्ति की यह पंक्तियाँ:
"जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधान नहीं, वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।"
कैसे बना हमारा राष्ट्र-ध्वज। आइये डालते हैं इतिहास के पन्नों पर कुछ नजर:
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा.... ये बोल सुनते ही शरीर में रौंगटे खड़े होने लगते हैं और हम गर्व से कह उठते हैं कि तिरंगा हमें सबसे प्यारा है। खेलों के मैदान में दर्शक यही तिरंगा फ़ैला कर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। १५ अगस्त को पतंगें चुनते हुए तिरंगों का खास ध्यान रखा जाता है। इतने खास तिरंगे के बारे में आइये थोड़ा जानते हैं।
२२ जुलाई १९४७ को आज के तिरंगे को मान्यता मिली। आज के तिरंगे को तो हम जानते ही हैं। तीन रंग बीच में अशोक चक्र। सबसे ऊपर केसरिया, फिर सफ़ेद और फिर हरा। लेकिन इससे पहले इस तिरंगे के कितने स्वरूप बदले हैं उसके लिये इतिहास में झाँकना होगा। सबसे पहले १९०४-०५ में स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने एक झंडा प्रस्तुत किया। लाल और पीले रंगे के इस झंडे में वज्र और कमल के फूल भी थे। लाल रंग स्वतंत्रता संग्राम का तो पीला विजयी होने का प्रतीक था। वज्र शक्ति को तथा कमल शुद्धता को दर्शाता था। १८८२ में बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित आनंदमठ उपन्यास के गीत "वंदे मातरम" को बंगाली भाषा में लिखवाया। इस झंडे को काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में दिसम्बर १९०६ में प्रदर्शित किया गया।
सचिंद्रनाथ बोस का तिरंगा |
उस समय और भी तरह तरह के झंडे बनाये जाने लगे। चूँकि हमारा देश का हर हिस्सा अपने आप में दूसरे से अलग है और उस समय भारत का कोई एक झंडा नहीं हुआ करता था तो हर कोई अपने सुझाव दे रहा था। उन्हीं में से एक था सचिंद्रनाथ बोस का तिरंगा जो उन्होंने ७ अगस्त १९०६ को बंगाल के विभाजन के विरोध में फ़हराया था। सबसे ऊपर था संतरी रंग, बीच में पीला व सबसे नीचे था हरा रंग। संतरी रंग की पट्टी में ८ आधे खिले हुए कमल के फूल थे। सबसे नीचे एक सूरज और एक चंद्रमा था व बीच में देवनागरी में वंदेमातरम लिखा हुआ था।
भीकाजी कामा द्वारा जर्मनी में फहराया गया तिरंगा |
इसी तरह से गदर पार्टी ने अपना झंडा निकाला और बाल गंगाधर तिलक व एनी बेसेंट ने मिलकर अपने ध्वज का इस्तेमाल किया। देखिये इनकी झलक...
गदर पार्टी का तिरंगा |
बाल गंगाधर तिलक व एनी बेसेंट का झंडा |
1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद सम्मेलन में फ़हराया गया झंडा कभी |
1931 में कांग्रेस की कार्यकरिणी द्वारा गठित सात सदस्यीय कमेटी द्वारा पारित झंडा |
देश में बहुत से लोग थे जो झंडे के साम्प्रदायिक व्याख्या से नाखुश थे। १९२४ के कलकत्ता के अपने अधिवेशन में अखिल भारतीय संस्कृत काँग्रेस ने झंडे में केसरिया रंग लाने की इच्छा जताई। उसी साल कहा गया कि गेहुँआ रंग हिन्दू संन्यासी व मुस्लिम फ़कीर दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। सिख भी झंडे में पीले रंग को अपनाने की जिद करने लगे। इन सबके बीच १९३१ में कांग्रेस की कार्यकरिणी ने सात सदस्यीय कमेटी का गठन करने का निर्णय किया। जिसमें सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना आज़ाद, मास्टर तारासिंह, काका कालेकर, डा. हर्दिकार व पट्टभी सीतारमैवा जैसे दिग्गज शामिल थे। इस कमेटी ने केसरिया रंग के झंडे का निर्माण किया जिसमें ऊपर चरखा बना हुआ था। ये विडम्बना है कि जिस दल के पटेल, नेहरू व आज़ाद सरीखे नेताओं ने केसरिया रंग की वकालत की उस भगवा रंग से कांग्रेस तब भी खौफ़ खाती थी और आज भी। संघ उस समय महज छह वर्ष पुराना ही था तो यह कहना कि उसके भगवा रंग से कमेटी प्रभावित हो गई होगी, बेमानी होगा। खैर कांग्रेस के लिये वो रंग साम्प्रदायिक हो गया और उस ने पटेल, नेहरू और मौलाना आज़ाद द्वारा पारित झंडे को भी मानने से इंकार कर दिया। ।
१९३१ में ही कराची में फिर कमेटी बैठी और पिंगली वैंकैया को फिर कमान सौंपी गई और केसरिया, सफ़ेद व हरे रंग का एक झंडा सामने आया जिसके बीच में चरखा बना हुआ था। इस झंडे से हम सब परिचित हैं।
1931 में झंडे में कराची में हुई बैठक के बाद किये गये परिवर्तन |
दूसरी ओर सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज़ की स्थापना उस झंडे के तले की जिसमें बाघ का चित्र बना हुआ था।
आज़ाद हिन्द फ़ौज़ का तिरंगा |
आज का तिरंगा |
3 comments:
बहुत अच्छी जानकारी .................धन्यवाद हमसब से साझा करने के लिए
THANK YOU SO MUCH FOR THIS INFORMATION I TRY MANY TIMES FOR THIS INFORMATION BUT NOT ACHIVE finaly today is read from this article so thank you so much
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Very nice and truthful article
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