किसी भी वस्तु के मोल-भाव के लिये सिक्कों का चलन राजा महाराजाओं के समय से रहा है। शुरू में एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु लेने का चलन था जो बाद में मुद्रा में बदल गया। हर राजा ने अपने राज्य में अलग किस्म के सिक्के चलाये। सोने की अशरफ़ी से लेकर चाँदी की मोहरें तो हमने नहीं देखीं पर एक-दो के पैसे जरूर देखें हैं।
अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल, बम्बई और मद्रास से सोने की मोहरें व चाँदी के सिक्के चालू किये जो रूपये के आठवें व सोलहवें हिस्से तक के थे। मद्रास से उन्होंने २ रूपये का सिक्का भी निकाला। 1 पाई, १/२, १/४, १.५, १, २ पैसे के सिक्के आम थे।
जब भी कोई व्यक्ति अपनी बात की सच्चाई बताना चाहता है तो वो एक ही बात कहता है : "मेरी बात सोलह आने सही है"। अंग्रेज़ी में : I am cent percent correct. सोलह आना मिलकर एक रूपया बनाते हैं, इसीलिये, चार आना से बिगड़कर चौ आना और फिर चवन्नी बनी। इसी तरह अठन्नी भी। पर एक समय ऐसा था जब इस एक आने के भी कईं हिस्से होते थे। 1/16, 1/8,1 /4 आना।
बाद में तांबे, एल्युमीनियम आदि दूसरे पदार्थों से भी सिक्के बनने शुरु हो गये। महँगाई बढ़ती चली गई और सिक्कों की कीमत घटती चली गई। लोगों ने सिक्के जमा करने की अपनी आदत बना ली। आज आलम यह है कि एक, दो, पाँच, दस, बीस पैसे के सिक्के गुजरे जमाने की बातें हैं। आज ये अंक तो वहीं हैं पर इनके पीछे की इकाई (Unit) बदल गई है। पैसे रूपये में बदल चुके हैं। धीरे धीरे जब भिखारियों ने भी ये पैसे लेने बंद कर दिये तब सरकार की नींद टूटी । सरकार महँगाई पर काबू नहीं पा सकती इसलिये इन सिक्कों को ही बंद करने का फ़ैसला कर लिया। 30 जून को चवन्नी का आखिरी दिन होगा। जल्द ही अठन्नी को भी बंद करने का निर्णय लिया जा सकता है। आज़ादी के बाद जब इन सिक्कों को शुरु किया गया तब इन्हें "नये पैसे" कहा जाता था। अब ये "नये पैसे" पुराने हो गये हैं।
चवन्नी भी सरकार से यही कह रही है: सखी सैयां तो खूब ही कमात है.. महँगाई डायन खाये जात है....
आईये चवन्नी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दें। आपको छोड़ जाते हैं चवन्नी और उसके साथियों की चंद तस्वीरों के साथ...
1 comment:
quite informative
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