Monday, February 11, 2013

हवा...

कभी नर्म हवा के झोंके सी
गालों को चूम जाती है
सिर सहलाती-
पीठ थपथपाती है

तो कभी
तेज़ आँधी- तूफ़ान सी
सब कुछ उड़ा ले जाती है

रेतीली हवा में
धुंधला जाती है तस्वीर...

कभी गर्म तो कभी सर्द
बहती रहती है
निरंतर...

हवा के रुख से ही
मोड़ लेती है
ज़िन्दगी ...

पर जब हवा चलना छोड़ दे
तो 
घुट जाता है दम...
रुक जाती है 
ज़िन्दगी
थम जाता है सफ़र...

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