Monday, February 18, 2013

क्या आप जानते हैं चिड़ियाघर की शुरुआत कहाँ हुई और भारत में कुल कितने चिड़िया घर हैं? Why Zoos are necessary?

एक फ़ाईव स्टार हॉटल के कमरे में आप कितने दिन ठहर सकते हैं? जहाँ सारी सुविधायें मौजूद हों। खाना - पीना रहना सोना, नहाना सब कुछ बढिया सुविधाओं सहित। कुछ दिन, कुछ सप्ताह या कुछ महीने.. ज़िन्दगी भर तो नहीं....

अभी पिछले दिनों परिवार के साथ दिल्ली के चिड़ियाघर जाना हुआ। हजारों लोग, सैंकड़ों गाड़ियाँ एक के बाद एक आई जा रहीं थीं। अच्छी खासी भीड़ थी उस दिन। वैसे तो दस-पन्द्रह रूपये की टिकट है लेकिन यदि आपको भीड़ की धक्का मुक्की से बचना है तो प्रशासन आपको सौ रूपये की टिकट भी दे रहा है। काफ़ी बड़े हिस्से में बना हुआ है चिड़ियाघर। सभी तरह के पशु-पक्षी आपको मिल जायेंगे। शेरे, चीता, गीदड़ हाथी से लेकर जिराफ़, हिरन, नील गाय, चिम्पैंजी आदि भी। जानकारी के लिये बता दूँ कि भारत का एकमात्र गुरिल्ला मैसूर के चिड़ियाघर में है।


इन पशुओं को देखकर एक बात दिमाग में आई कि आखिर चिड़ियाघर की आवश्यकता क्या है? हम शेर को एक बड़े इलाके में रखते हैं, जहाँ वो घूम तो सकता है पर जंगल की तरह जहाँ जी में आये जा नहीं सकता। उसे एक छोटा सा इलाका मिल जाता है और उसके व मैदान के बीच एक गड्ढा होता है। मुझे विश्वास है कि कुछ सालों में वो शिकार करना भी भूल जायेगा। और जिन जंगली जानवरों के बच्चे चिड़ियाघर में जन्म लेते होंगे उनको तो कभी उनकी असली शक्ति का पता ही नहीं चलेगा। चिड़ियाघर में दो चीतों को तो एक छोटे से पिंजरे में डाल रखा था। चीता जो पृथ्वी पर सबसे अधिक गति से दौड़ लगा सकता है उसे पिंजरे में रहकर कैसा लग रहा होगा आप सोच सकते हैं... ऐसे ही भालू, जिराफ़, गीदड़.. सभी की एक सी हालत... चिड़ियाघर की जगह इन पशुओं को वनजीव अभयारण्य (sanctuary) में भेजना चाहिये जहाँ वे ठीक से साँस तो ले सकें...

चिड़ियाघर की शुरुआत 1500 ई.पू (BC) में मिस्र (Egypt) में हुई। फिर चीन व यूनान (Greece) में भी ये चलन में आये। गूगल पर ढूँढा तो पता चला कि इनकी जरूरत शोध करने व लोगों में पशुओं की जानकारी देने के लिये पड़ी। वैज्ञानिक इन पर शोध करते हैं। और कहीं कहीं पर विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण हेतु इनका प्रयोग होता है।

पर क्या जीवन भर इन पशुओं को गुलाम रखना इतना जरूरी है? मानव अपनी शक्ति का दिखावा कर रहा है। पर किन पर? बेजुबानों पर....विदेशों में चिड़ियाघर में जीवों की देखरेख के लिये कुछ मानक(standards) होते होंगे पर मुझे नहीं लगता कि भारत में इस तरह का कुछ भी होगा जहाँ इंसान ही जानवरों की तरह समझे जाते हों। जिस तरह हम फ़ाईव स्टार हॉटल के कमरे में ज़िन्दगी नहीं गुज़ार सकते उसी तरह ये पशु भी जंगल में जाने के लिये तड़पते होंगे। PETA आदि संस्था इस विषय पर लड़ रही हैं। वहीं दूसरी और कुछ बुद्धिजीवी चिड़ियाघरों को सही भी मानते हैं। www.whyzoos.com पर बताया हुआ है कि किस तरह से चिड़ियाघर जानवरों को लम्बे समय तक जीवित रखने में सहायक है व आखिर इनकी आवश्यकता है क्या।

भारत में इन " पशु जेलों" की तादाद 38 है, जिसकी लिस्ट आप विकीपीडिया पर देख सकते हैं।

वन्देमातरम
जय हिन्द

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