समय
कितना कहा
रूका ही नहीं
आज शायद
किसी दुश्मन ने
आवाज़ दी होगी!!
दर्द
इसकी भी आदत
पड़ ही जायेगी
ये दर्द अभी नया जो है...
चेहरे
कितना घूमा..
पर मुखौटे ही देखने को मिले
चेहरे कहीं खो गये हैं क्या?
आज आइना भी
मुझसे यही कह रहा है!!
मिलावट
मिलावट का दौर
जारी है
आज तो मैं भी
इससे अछूता नहीं रहा...
माँ
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
4 comments:
" गागर में सागर".... अति सुन्दर अभिव्यक्ति।
http://safaltasutra.com/
तपन जी बहुत ही सुन्दर रचना है| आपकी रचनाएं बेहद रोचक रहती हैं | आप ऐसी ही खूबसूरत रचनाओं को शब्दनगरी मे भी प्रकाशित कर सकते हैं | वहाँ अाप
"गजल, दरख़्त व छाँव"
जैसी रचनाये पढ़ व लिख सकते हैं |
Amit Sharma
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