Thursday, September 15, 2011

यूनेस्को की लिस्ट में शामिल हुमायूँ का मकबरा और कुतुब मीनार : अतुल्य भारत Humayun's Tomb, Qutub Minar Unesco List

अतुल्य भारत के पिछले अंकों में यूनेस्को की लिस्ट में भारत के 28 में से तीन स्थलों के बारे में बताने के बाद आज हम दिल्ली के दो स्थलों के बारे में जानेंगे।

हुमायूँ का मकबरा
पहला है हुमायूँ का मकबरा। हाल ही में जब ओबामा भारत आये तब वे भी इस मकबरे के दर्शन करने गये थे। हुमायूँ का मकबरा ताजमहल के बनने से करीबन एक शताब्दी पहले बन कर तैयार हुआ। इस मकबरे में नये तरह उपकरण लगाये गये व शाही बाग के बीचो बीच बनाया गया। यह मक़बरा 1570 में निर्मित हुआ व इसकी सांस्कृतिक महत्त्व को समझते हुए यूनेस्को ने इसे 1993 में अपनी लिस्ट में शामिल किया। हुमायूँ की विधवा बेगम हाजी ने इसे 1569-1570 में बनवाया। इसके निर्माण में इसके वास्तुकार मिर्ज़ा गियात ने अहम भूमिका निभाई। अपनी दो गुम्बददारी छतरियों के कारण यह मुगल शैली अपने आप में अद्भुत है। यहाँ हुमायूँ के मकबरे के अलावा 150 अन्य शाही लोगों की भी कब्र हैं।


जल में मकबरे का प्रतिबिम्ब

इस मकबरे में दो गेट के साथ चार बाग हैं। यह दोनों गेट एक दक्षिण की ओर है अथवा दूसरा उत्तर की ओर। यहाँ अनगिनत जल संग्रह हैं। गुम्बद की ऊँचाई 42.5 मीटर है। इसमें संगमरमर लगाये गये हैं व छतरियों से इसे सजाया गया है। दिल्ली के अन्य बेहतरीन स्मारकों जैसे अक्षरधाम मंदिर, लाल किला, इंडिया गेट व  बहाई मंदिर आदि ऐतिहासिक व सांस्कृतिक स्थलों को छोड़ कर हुमायूँ के मकबरे में ओबामा के जाने के दो अर्थ हो सकते हैं। एक, वे इस मकबरे के अद्भुत सौंदर्य का दर्शन करना चाहते थे या फिर अपना कोई राजनैतिक कारण रहा होगा।

कुतुब मीनार

दूसरा स्मारक है कुतुब मीनार। दक्षिणी दिल्ली में स्थित कुतुब मीनार के इर्दगिर्द अन्य स्मारक भी हैं। लाल पत्थरों से निर्मित इस मीनार की ऊँचाई करीबन 238 फ़ीट है। ज़मीन पर इसका डायामीटर 47 फ़ीट का है जो सबसे ऊपर जाकर मात्र 9 फ़ीट का रह जाता है। इस स्थल का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में शुरु हुआ व अलग अलग चरणों में हुआ। अलई दरवाज़ा, अलई मीनार और फिर कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद जो भारत की सबसे पहले बनाई गईं मस्जिदों में शुमार है। इल्तुमिश का मकबरा व लोहे का स्तम्भ भी इसी क्षेत्र में आते हैं।

लौह स्तम्भ किस धातु से बना हुआ इस पर कईं वैज्ञानिक शोध करते आये हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से यह स्तम्भ अद्भुत है क्योंकि इस पर जंग नहीं लगता जिस प्रकार अन्य साधारण लोहे की किसी वस्तु पर लगता है। इस्लामिक तानाशाही व लूट-पाट की निशानी है यह क्षेत्र जो कहा जाता है हिन्दू मन्दिरों को नष्ट करके बनाया गया। तुग़लक, लोदी, अब्दाली, गज़नवी व अन्य अनगिनत लुटेरे हमारे यहाँ आये और लूट कर चले गये। 

अलई दरवाज़ा
खैर, इस लौह स्तम्भ की ऊँचाई तेईस फ़ीट है व इस पर संस्कृत भाषा में लिखा गया है। कहा जाता है कि इसे चन्द्रगुप्त द्वितीय के राज काल में बनाया गया। इतिहास के अनुसार कुतुब मीनार के निर्माण का आरम्भ कुतुब्बुद्दीन ऐबक ने सन 1192 में किया जिसे बाद में इल्तुमिश (1211-36) व अलाउद्दीन खल्जी (1296-1316) ने पूरा किया। बाद में इसमें अन्य शासकों ने भी लगातार बदलाव किये।  यूनेस्को ने इसे इस्लामिक वास्तुकला को ध्यान में रखते हुए विश्व घरोहरों की श्रेणी में शामिल किया।

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