Monday, August 8, 2011

संवेदना की अर्थी No Feelings Left In Metros

कल बस से कटा था एक हाथ,
कराहता रहा वो,
तड़पता रहा वो
कईं घंटे
एक मेट्रो शहर में-
हिन्दुस्तान का दिल कहते हैं हम जिसे!!

आज कार चलाते एक शख्स ने
टक्कर मार दी गाय को,
और पलट कर भी न देखा-
श्राद्ध पर रोटी खिलाने के लिये
गाय ढूँढेगा
तब शायद याद आ जाये
इस बेज़ुबान की-
माँ का दर्जा दिया है हमने जिसे!!

सड़क किनारे  पड़े पड़े
लाश बन गया है एक शरीर-
जिसे ठोकर मारते हुए
चल पड़ी है दुनिया
तरक्की की राह पर,
विश्व का
नम्बर एक बनने की चाह लिये

कहते हैं ये शहर नहीं सोता
पर हाँ
आँखें जरूर मूँद लेता है
पीड़ा देख नहीं सकता पगला!!

लाशें चीख रही हैं-
समय की माँग है-
संवेदना की
अर्थी पर रोने के लिये
रूदालियों को बुलाया जाये!!!

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