Sunday, March 4, 2012

पानी - जीवन अथवा मौत - Save Water, Crisis, Riots in Mumbai over Water

उसने पीने के लिये
माँगा था पानी,
ताकि रह सके ज़िन्दा..
बुझा सके प्यास..
पर उसे मिली मौत
महज ग्यारह बरस का
था वो..बच्चा...

जहाँ एक ओर
अकेले भारत में
बन जाती है
दस हजार करोड़ की
इंडस्ट्री..
मिनरल वॉटर के नाम पर
वहीं पीने के पानी
की एक बूँद
को तरस जाता है
आधे से ज्यादा देश...

जमीन के अंदर समाये हुए
पानी की एक एक बूँद
को हम..
निचोड़ लेना चाहते हैं..
गटक लेना चाहते हैं
पूरी की पूरी नदी...
ताकि सूख जाये वह
समन्दर तक पहुँचने से पहले ही...

वो जमाना और था
जब भरता था घड़ा
बूँद बूँद...
अब बिस्लेरी का जमाना है
और बिकती है प्यास...
महज पन्द्रह रूपये लीटर...
सेवा के वे "रामा प्याऊ"
कहीं खो गये हैं शायद...
गुमनामी के गटर में
जिसका पानी पीती है
वो दुनिया
जहाँ आज भी भरा जाता है घड़ा...
बूँद.. बूँद...

नोट: जब मुझे यह पता चला कि मुम्बई में पानी के लिये सात लोग मारे गये तो अनायास ही यह कविता बन पड़ी....

2 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

तपन भाई आपके ब्लॉग थीम ने तो मन मोह लिया.

Pramendra Pratap Singh said...

भाई बहुत से ऐसे नल देखता हू जो २४ घंटे बहते ही रहते है.. मार्मिक कविता